विभिन्न युध्द,सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज, विदेशों में भारतीय संगठन
प्लासी का युध्द
- ये युध्द 23 जून 1757 को हुआ था अली नगर की संधि के बाद अंग्रेज अक्रांता की भूमिका में थे
- उन्होंने सिराजुद्दौला के विरुध्द मीर जाफर (जो कि सिराजुद्दौला का सेनापति था) ,जगत सेठ (प्रसिध्द साहूकार), राय दुर्लब (बिचौलिया) और अमी चंद्र (बंगाल का व्यापारी) इन सब के साथ मिलकर एक षडयंत्र रचा
- इसी समय यूरोप में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच सप्तवर्षीय युध्द भी आरम्भ हो गया था
- इस युध्द के प्रभाव स्वरुप अंग्रेजों ने बंगाल में स्थित फ्रांसीसी बस्ती चंदर नगर को 1757में जीत लिया सिराजुद्दौला इस घटना से क्रोधित हुआ और अंग्रेजों से उसका युध्द अवश्य एवं भावी हो गया
- 23 जून 1757 ई. में मुर्शीदाबाद से 22 मील दक्षिण में स्थित गाँव प्लासी वहाँ दोनों पक्षों में भिडंत हुई मीर जाफर इसका सेनापति था किन्तु वह अंग्रेजों से मिला हुआ था
- सिराजुद्दौला इन सब की सेना लेकर गया ये सब वहाँ जा के उसी के खिलाफ हो गये सिराजुद्दौला वहाँ अकेला रह गया
- सिराजुद्दौला को बंदी बना के इसकी हत्या कर दी गयी
- मीर जाफर जो सिराजुद्दौला का सेनापति था इसने 25 जून 1757 को मुर्शीदाबाद में स्वयं को बंगाल का नबाब घोषित कर दिया
- मीर जाफर ने अंग्रेजों को 24 परगने की जमींदारी सौंपी और युध्द क्षतिपूर्ति के रुप में अंग्रेजों के सेनापति क्लाइव को काफी रकम भेंट की
- मीर जाफर ने कम्पनी को बिना कर दिये व्यापार करने की अनुमति प्रदान की
- अंग्रेजो ने 27 सितम्बर 1760 को मीर जाफर को हटा कर मीर कासिम को बंगाल का नबाब बना दिया
- मीर कासिम ने अपनी राजधानी मुंगेर में स्थानानतरित कर ली और बिहार के डिप्टी गवर्नर रामनायक का भी इसने दमन किया
- इसने खिजरी नामक एक नया कर वसूल किया
- मीरकासिम अंग्रेजों की कटपुतली साबित नहीं हुआ और उसने शीघ्र ही जो अंग्रेजों को जो प्रमाण पत्र दिया हुआ था (कर मुक्त व्यापार के लिए) उसके दुरउपयोग पर उसने सबाल उठाने शुरु कर दिये क्योंकि अंग्रेज उसका प्रयोग निजी व्यापार में करके राजकोष को नुकसान पहुँचा रहे थे
- मीर जाफर ने कठोर कार्यवाही करते हुए सभी आंतरिक कर हटा दिए
- 1763 में कम्पनी और नबाब के बीच युध्द प्रारम्भ हो गया उदयनाला के युध्द में मीर कासिम को पराजय का सामना करना पडा और वह अवध चला गया
- मीर जाफर पुन: बंगाल का नबाब बना दिया गया उसने आते ही कम्पनी की सारी सुवुधायें बहाल कर दी
- कम्पनी के लिए चुंगी रहित व्यापार और भारतीयों के लिए 25% चुंगी देकर व्यापार करने की व्यवस्था की गयी
सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज
- रास बिहारी बोस ने जापान मेँ इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की। इसके बाद 11 सितंबर 1941 को उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना की।
- 18 फरवरी, 1942 को मोहन सिंह इस सेना के जनरल बनाये गए। जब सुभाष चंद्र बोस अप्रैल, 1943 मेँ पहुंचे तो जुलाई, 1943 को राज बिहारी बोस ने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग और आजाद हिंद फौज की अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया और सुभाषचंद्र बोस को इनका दायित्व सौंप दिया गया।
- सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर लौट गए वहां उन्होंने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार की स्थापना की तथा रंगून और सिंगापुर को मुख्यालय बनाया गया।
- 1945 मेँ जापान की युद्ध मेँ पराजय ने भारत को आजाद कराने की आशाओं पर पानी फेर दिया। फ़ौज के अधिकांश सेनिक बंदी बना लिया गए। जब इन सैनिकों को पर मुकदमे चलने लगे तो इन्हें जनता का भारी समर्थन मिला।
- जवाहरलाल नेहरु, तेज बहादुर सप्रू तथा भूलाभाई देसाई ने इन सैनिकों की पैरवी की। जनदबाव मेँ सरकार को झुकना पड़ा।
- सुभाष चंद्र बोस ने दिल्ली चलो का विख्यात नारा तथा अपने अनुयायियोँ को जय हिंद का मूल मंत्र दिया।
- द्वितीय विश्व युद्धोत्तर भारत मेँ लोगोँ की चेतना और राष्ट्रीय भावना का उद्वेलन करने मेँ आजाद हिंद फौज की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
विदेशों में भारतीय संगठन
संगठन | संस्थापक | वर्ष | देश |
इण्डिया हाउस | श्यामजी कृष्ण वर्मा | 1904 | लंदन (इंग्लैण्ड) |
अभिनव भारत | वी.डी.सावरकर | 1906 | लंदन (इंग्लैण्ड) |
ग़दर पार्टी | लाला हरदयाल | 1907 | सेन फ्रांसिस्को (अमेरिका) |
इंडियन इंडिपेंडेंस लीग | लाला हरदयाल | 1914 | बर्लिन (जर्मनी) |
इंडियन इंडिपेंडेंस लीग एंड गवर्नमेंट | राजा महेंद्र प्रताप | 1915 | काबुल (अफगानिस्तान) |
इंडियन इंडिपेंडेंस लीग | रास बिहारी बोस | 1942 | टोकियो (जापान) |
प्रमुख षड्यंत्र काण्ड
वर्ष | षड्यंत्र | सम्बंधित घटनाक्रम |
1909-1910 | नासिक काण्ड | वी.डी. सावरकर को आजीवन कारावास |
- | अलीपुर काण्ड | अरविन्द घोष पर मुकदमा |
1908 | ढाका काण्ड | पुलिन दास को 7 साल की सजा |
1915 | दिल्ली काण्ड | लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने का मामला |
1916 | रेशमी पत्र काण्ड | - |
1925 | काकोरी काण्ड | लखनऊ के पास रेल लूट |
1930 | लाहौर काण्ड | भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी |
1922-1924 | पेशावर काण्ड | भारत में साम्यवादियों को पकड़ना |
1924 | कानपुर काण्ड | साम्यवादियों की गिरफ़्तारी |
1929-1933 | मेरठ काण्ड | श्रमिकों एवं साम्यवादियों पर मुकदमा |
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