मुगल प्रशासन,मुगल कालीन समाज
- मुगल प्रशासन सैन्य शक्ति पर आधारित एक केंद्रीकृत व्यवस्था थी।
- मुगलोँ ने एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना की जिस पर खलीफा जैसी किसी विदेशी सत्ता का कोई अंकुश नहीँ था।
- मुगल कालीन राजत्व के सिद्धांत की स्पष्ट व्याख्या अबुल फजल ने आईन-ए-अकबरी मेँ की है।
- मुग़ल सम्राट सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति तथा सर्वोच्च नयायाधीश था। वास्तव मेँ साम्राज्य की सारी शक्तियाँ सम्राट मेँ निहित होती थी।
- केंद्रीय प्रशासन के चार प्रमुख स्तंभोँ – वजीर, मीर बख्शी, खान-ए-सामा औरर रुद्र-उस-सुदूर थे।
- वजीर राजस्वविभाग तथा बादशाह का प्रधानमंत्री होता था। सम्राट की अनुपस्थिति मेँ वह शासन के साधारण कार्योँ को बादशाह की और से देखता था।
- मीर बख्शी - यह सैन्य प्रशासन की देखभाल, मनसब दारों का प्रधान, सैनिकोँ की भर्ती, हथियारोँ तथा अनुशासन का प्रभारी होता था।
- खान-ए-सामा - राजमहल तथा कारखानो के अधिकारी होता था।
- रुद्र-उस-सुदूर - यह धार्मिक मामलोँ का अधिकारी था। दान विभाग भी उसी के अंतर्गत था। रुद्र-उस-सुदूर को ‘शेख-उस-इस्लाम’ कहा जाता था।
केंद्रीय प्रशासन के अन्य अधिकारी
- काजी-उल-कुजात - न्यायिक मामलोँ का अधिकारी था।
- मीर आतिश - यह शाही तोपखाने का प्रधान था।
- मुहतसिब - प्रजा के नैतिक चरित्र की देखभाल करने के लिए नियुक्त अधिकारी।
- दरोगा-ए डाक चौकी - राजकीय डाक तथा गुप्तचर विभाग का प्रधान था।
- मीर-बहर – नौसेना का प्रधान था।
- मीर अदल – यह न्याय विभाग का महत्वपूर्ण अधिकारी था।
- हरकारा - ये जासूस एवं संदेशवाहक दोनो होते थे।
प्रांतीय प्रशासन
- मुग़ल साम्राज्य को सूबों (प्रान्तों) मेँ सूबों को सरकारोँ (जिलो) मेँ, सरकारोँ को परगनोँ (महलोँ) मेँ तथा परगनोँ को गावों मेँ बाटा गया था।
- अकबर के समय सूबेदार होता था, जिसे सिपहसालार या नाजिम भी का कहा जाता था।
- दीवान सूबे प्रधान वित्त एवं राजस्व अधिकारी होता था।
- बख्शी का मुख्य कार्य सूबे की सेना की देखभाल करना था।
- प्रांतीय रुद्र न्याय के साथ-साथ प्रजा की नैतिक चरित्र एवं इस्लाम धर्म के कानूनों की पालन की व्यवस्था करता था।
- कोतवाल सूबे की राजधानी तथा बड़े-बड़े नगरो मेँ कानून एवं व्यवस्था की देखभाल करता था।
सरकार या जिले का प्रशासन
- मुग़ल साम्राज्य मेँ अथवा जिलों मेँ फौजदार, कोतवाल, आमिल, और काजी प्रमुख अधिकारी थे।
- मुगल काल मेँ सरकार या जिले का प्रधान फौजदार था। इसका मुख्य कार्य जिले मेँ कानून व्यवस्था बनाए रखना तथा प्रजा को सुरक्षा प्रदान करना था।
- खजानदार जिले का मुख्य खजांची होता था। इसका मुख्य कार्य राजकीय खजाने को सुरक्षा प्रदान करना था।
- आमलगुजार या आमिल जिले का वित्त एवं राजस्व का प्रधान अधिकारी था। काजी-ए-सरकार न्याय से संबंधित कार्य देखता था।
परगने का प्रशासन
- सरकार परगनों में बंटी होती थी। परगने के प्रमुख अधिकारियोँ मेँ शिकदार, आमिल, फोतदार, कानूनगो और कारकून शामिल थे।
- शिकदार परगने का प्रधान अधिकारी था। परगने की शांति व्यवस्था और राजस्व वसूलना इसके प्रमुख कार्यों मेँ शामिल था।
- आमिल परगने का प्रधान अधिकारी था। किसानो से लगान वसूलना इसका प्रमुख कार्य था।
- फोतदार परगने का खंजाची था।
- कानूनगो परगने के पटवारियोँ का प्रधान था। यह लगान, भूमि और कृषि से संबंधित कागजातों को संभालता था।
- कारकून लिपिक का कार्य देखता था।
ग्रामप्रशासन
- मुगल काल मेँ ग्राम प्रशासन एक स्वायत्त संस्था से संचालित होता था। प्रशासन का उत्तरदायित्व प्रत्यक्षतः मुगल अधिकारियोँ के अधीन नहीँ था।
- ग्राम प्रधान गांव का प्रमुख अधिकारी था, जिसे ‘खुत’ और ‘मुकद्दमा चौधरी’ कहा जाता था।
- गांव में वित्त राजस्व और लगान से संबंधित अधिकारियों को पटवारी कहा जाता था। इन्हें राजस्व का एक प्रतिशत दस्तूरी के रुप मेँ दिया जाता था।
मुगल कालीन अर्थव्यवस्था
- मुग़ल साम्राज्य की आय का प्रमुख स्रोत भूराजस्व था।
- मुगल कालीन समस्त भूमि को तीन भागोँ मेँ विभक्त किया गया था – 1. खालसा भूमि 2. जागीर भूमि, तथा 3. मदद-ए-माशा।
- खालसा भूमि प्रत्यक्ष रुप से शासन के अधीन थी। इससे प्राप्त आय शाही कोष मेँ जमा होती थी।
- साम्राज्य की अधिकांश भूमि जागीर भूमि थी क्योंकि यह राज्य के प्रमुख अधिकारियोँ को वेतन के बदले मेँ दी जाती थी।
- मदद-ए-माश को मिल्क भी कहा जाता था इस प्रकार की भूमि अनुदान मेँ दी जाती थी इस तरह की भूमि से आय प्राप्त नहीँ होती थी।
- मुगल काल मेँ राजस्व का निर्धारण की चार प्रमुख प्रणालियां प्रचलित थीं – 1. जब्ती या दहसाला प्रणाली 2. बंटाई या गल्ला बक्शी 3. कनकूत 4. नस्क।
- दहसाला प्रणाली 1580 में राजा टोडरमल द्वारा शुरु की गई थी।
- कनकूत प्रथा के अनुसार लगान का निर्धारण भूमि की उपज के अनुमान के आधार पर किया जाता था।
- कनकूत प्रणाली के अंतर्गत भू-राजस्व अनाज मेँ निर्धारित होता था जबकी भक्ति प्रणाली के तहत नकद रुप मेँ।
- नस्क प्रणाली मेँ भूमि के माप के बिना लगान निर्धारित किया जाता था।
- खेती के विस्तार एवं बेहतरी के लिए राज्य की ओर से ‘तकावी’ नामक ऋण भी दिया जाता था।
- भू राजस्व के अलावा जजिया और जकात नामक कर भी लिए जाते थे।
- मुगल काल मेँ गेहूँ, चावल, बाजरा, दाल आदि प्रमुख खाद्यान्न उपजाए जाते थे।
- नील की खेती भी की जाती थी, जिसका व्यापारिक महत्व था।
- उद्योग धंधोँ मेँ सूती वस्त्र उद्योग उन्नत अवस्था मेँ था।
- मभारत मेँ निर्मित कपड़ों को ‘केलिफो’ कहा जाता था।
- मुगल काल मेँ निर्मित मुख्य वस्तु नील, शोरा, अफीम एवं सूती वस्त्र थे, जबकि मुख्य आयात सोना, चांदी, घोड़ा. कच्चा रेशम आदि थे।
- समुद्री व्यापार मेँ लगे मुस्लिम व्यापारियों मेँ ‘खोजा’ और ‘बोहरा’ प्रमुख थे।
- हीरा गोलकुंडा और छोटानागपुर की खानों से प्राप्त होता था। विश्वप्रसिद्ध कोहिनूर हीरा गोलकुंडा की खान से प्राप्त हुआ था।
- मुगल कालीन चमड़ा उद्योग भी उन्नत अवस्था मेँ था।
मनसबदारी व्यवस्था
- मुग़ल साम्राज्य की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता मनसबदारी व्यवस्था थी।
- मनसबदारी व्यवस्था मुगल सैनिक व्यवस्था की आधार थी। यह व्यवस्था मंगोलोँ की दशमलव प्रणाली पर आधारित थी।
- मनसबदारी व्यवस्था का आरंभ 1577 ईस्वी मेँ अकबर ने किया था।
- इस व्यवस्था मेँ दशमलव प्रणाली के आधार पर अधिकारियो के पदों का विभाजन किया जाता था।
- ‘मनसब’ की पदवी या पद संज्ञा नहीँ थी, वरन् यह किसी अमीर की स्थिति का बोध कराती थी।
- ‘जात’ शब्द से व्यक्ति के वेतन तथा पद की स्थिति का बोध होता था, जबकि ‘सवार’ शब्द घुड़सवार दस्ते की संख्या का बोध कराता था।
- सैनिक तथा नागरिक दोनो को मनसब प्रदान किया जाता था। यह पैत्रिक नहीँ था।
- मनसबदारों को नगर अथवा जागीर के रुप मेँ वेतन मिलता था। उन्हें भूमि पर नहीँ बल्कि सिर्फ उस क्षेत्र के राजस्व पर अधिकार मिलता था।
- 10 से 5000 तक के मनसब दिए जाते थे। 5000 के ऊपर के मनसब शहजादों तथा राजवंश के लोगोँ के लिए सुरक्षित होते थे।
- औरंगजेब के समय मेँ मनसबदारो की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि उन्हें देने के लिए जागीर नहीँ बची।
- प्रारंभ मेँ मनसबदारोँ को दोस्त 240 रुपए वार्षिक प्रति सवार मिलता था किंतु जहाँगीर के काल मेँ यह राशि घटाकर 200 रुपए वार्षिक कर दी गई।
- अकबर के काल मेँ यह नियम था कि किसी भी मनसबदार का ‘सवार’ पद उसके ‘जात’ पद से अधिक नहीँ हो सकता है।
- जहाँगीर ने ऐसी प्रथा चलाई, जिसमे बिना ‘जात’ पद बढ़ाये मनसबदारों को अधिक सेना रखने को कहा जाता था। इस प्रथा को ‘दुह-आस्था’ अथवा ‘सिंह-आस्था’ कहा जाता था।
मुगल कालीन समाज
- मुगल कालीन समाज दो वर्गो मेँ विभक्त था - धनी या अमीर वर्ग तथा जनसाधारण वर्ग, जिसमें किसान, दस्तकार और मजदूर शामिल थे।
- उच्च वर्ग के लोग अधिकतर मनसबदार, जागीरदार एवं जमींदार होते थे।
- मुगलकाल मेँ कुलीन स्त्रियोँ की सम्मानजनक स्थिति थी। समाज मेँ विधवा विवाह, पर्दा प्रथा, बाल विवाह आदि का निषेध था।
- दहेज प्रथा, सती प्रथा आदि समाजिक कुरीतियाँ प्रचलित थीं।
- भूमिहीन किसानोँ तथा श्रमिकोँ की सामाजिक स्थिति अत्यंत दयनीय थीं।
- समाज सामंतवादी संस्था के समान दिखता था जिसके शीर्ष पर बादशाह था।
- विधवा विवाह महाराष्ट्र के गौड़ ब्राह्मणों तथा पंजाब एवं यमुना घाटी के जाटो मेँ प्रचलित था।
- बादशाहोँ तथा राज्य के बड़े-बड़े सरदारोँ के हरम मेँ हजारोँ स्त्रियाँ रखैलो और दासियोँ के रुप मेँ रहती थीं।
- मुगल बादशाहों मेँ एक ओरंगजेब ही था, जो अपनी पत्नी के प्रति समर्पित था।
मुग़ल साम्राज्य का पतन
- 1707 मेँ औरंगजेब की मृत्यु के बाद भारतीय इतिहास मेँ एक नए युग का पदार्पण हुआ, जिसे ‘उत्तर मुगल काल’ कहा जाता है।
- औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य का पतन भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस घटना ने मध्यकाल का अंत कर आधुनिक भारत की नींव रखी।
- मुग़ल साम्राज्य जैसे विस्तृत साम्राज्य का पतन किसी एक कारण से नहीँ हो सकता इसलिए इतिहासकारोँ मेँ इस बात को लेकर मतभेद है।
- यदुनाथ सरकार, एस. आर. शर्मा और लीवर पुल जैसे इतिहासकारोँ का मानना है कि औरंगजेब की नीतियोँ – धार्मिक, राजपूत, दक्कन आदि के कारण मुग़ल साम्राज्य का पतन हुआ। सतीश चंद्र, इरफान हबीब और अतहर अली जैसे मुझे इतिहासकारोँ ने मुग़ल साम्राज्य के पतन को दीर्घकालिक प्रक्रिया का परिणाम माना है।
- औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों मुअज्जम, मुहम्मद आजम और मोहम्मद कामबख्श मेँ उत्तराधिकार के लिए युद्ध हुआ, जिसमें मुअज्जम सफल हुआ।
बहादुर शाह प्रथम (1707 ई. से 1712 ई.)
- उत्तराधिकार के युद्ध मेँ सफल होने के बाद मुअज्जम 65 वर्ष की अवस्था मेँ बहादुर शाह प्रथम की उपाधि के साथ दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ।
- बहादुर शाह ने मराठोँ और राजपूतो के प्रति मैत्रीपूर्ण नीति अपनाई। इसने शंभाजी के पुत्र शाहू मुग़ल कैद से आजाद कर दिया।
- बहादुर शाह ने बुंदेल शासक छत्रसाल को बुंदेल राज्य का स्वामी स्वीकार कर लिया।
- इतिहासकार खफी खाँ के अनुसार बादशाह राजकीय कार्योँ मेँ इतना लापरवाह था की लोग उसे ‘शाह-ए-बेखबर’ कहने लगे।
- सिक्ख नेता बंदा बहादुर के विरुद्ध एक सैन्य अभियान के दौरान फरवरी 1712 ई. मेँ बहादुरशाह प्रथम की मृत्यु हो गई। इसे औरंगजेब के मकबरे के आंगन मेँ दफनाया गया।
- सर सिडनी ओवन ने बहादुर शाह के विषय मेँ लिखा है की वह अंतिम मुगल शासक था, जिसके बारे मेँ कुछ अच्छी बातेँ कही जा सकती हैं।
जहांदार शाह (1712 ई. से 1713 ई.)
- 1712 ई. मेँ बहादुरशाह प्रथम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जहाँदारशाह मुग़ल शासन की गद्दी पर बैठा।
- ईरानी मूल के शक्तिशाली अमीर जुल्फिकार खां की सहायता से जहांदार शाह ने अपने भाई अजीम-उस-शान, रफी-उस-शान तथा जहान शाह की हत्या कर शासक बना।
- यह एक अयोग्य एवं विलासी शासक था। जहांदार शाह पर उसकी प्रेमिका लालकंवर का काफी प्रभाव था।
- जहांदार शाह ने जुल्फिकार खां को बजीर के सर्वोच्च पद पर नियुक्त किया।
- जहांदार शाह ने वित्तीय व्यवस्था मेँ सुधार के लिए राजस्व वसूली का कार्य ठेके पर देने की नई व्यवस्था प्रारंभ की जिसे इस्मतरारी व्यवस्था कहते है।
- जहांदार शाह ने आमेर के राजा सवाई जयसिंह को ‘मिर्जा’ की उपाधि के साथ मालवा का सूबेदार बनाया।
- जहांदार शाह ने मारवाड़ के राजा अजीत सिंह को ‘महाराजा’ की उपाधि प्रदान कर गुजरात का सूबेदार बनाया।
- अजीमुशान के पुत्र फरूखसियर ने हिंदुस्तानी अमीर सैय्यद बंधुओं के सहयोग से जहांदार शाह को सिंहासन से अपदस्थ उसकी हत्या करवा दी।
फरूखसियर (1713 ई. से 1719 ई.)
- सैय्यद बंधुओं की सहायता से मुग़ल सासन की गद्दी पर फरूखसियर आसीन हुआ।
- फर्रुखसियर ने सैय्यद बंधुओं में से अब्दुल्ला खां को वजीर और हुसैन अली को मीर बख्शी नियुक्त किया। सैय्यद बंधुओं को मध्यकालीन भारतीय इतिहास मेँ ‘शासक निर्माता’ के रुप मेँ जाना जाता है।
- फरूखसियर के शासन काल मेँ सिक्खोँ के नेता बंदा बहादुर को पकड़ कर 1716 मेँ उसका वध कर दिया गया।
- फरूखसियर ने 1717 ई. मेँ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बहुत सारी व्यापारिक रियायतें प्रदान कीं।
- 1719 में हुसैन अली खान ने तत्कालीन मराठा बालाजी विश्वनाथ से ‘दिल्ली की संधि’ की जिसके तहत मुग़ल सम्राट की ओर से मराठा राज्य को मान्यता देना, दक्कन में मुगलोँ के 6 प्रांतो से मराठोँ को चौथ और सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार प्रदान किया गया। इसके बदले मेँ मराठोँ द्वारा दिल्ली मेँ सम्राट की रक्षा के लिए 15 हजार सैनिक रखने थे।
- सैय्यद बंधुओं ने षड्यंत्र द्वारा जून, 1719 में फरुखसियर को सिंहासन से अपदस्थ करके उसकी हत्या करवा दी।
- फरूखसियर की हत्या के बाद सैय्यद बंधुओं ने रफी-उर-दरजात तथा रफी-उद-दौला को मुग़ल बादशाह बनाया। दोनो ही सैय्यद बंधुओं के कठपुतली थे।
- रफी-उद-दौला ‘शाहजहाँ द्वितीय’ की उपाधि धारण कर मुग़ल शासन की गद्दी पर बैठा।
मुहम्मद शाह (1719 ई. से 1748 ई.)
- शाहजहाँ द्वितीय की मृत्यु के बाद उसके पुत्र रौशन अख्तर को सैय्यद बंधुओं ने मुहम्मद शाह की उपाधि के साथ मुग़ल शासन की गद्दी पर बैठाया।
- मोहम्मद शाह के शासनकाल मेँ सैय्यद बंधुओं का पतन हो गया। इनके बाद आमीन खाँ को बजीर बनाया गया। लेकिन उसकी मृत्यु के बाद निजाम-उल-मुल्क वजीर बना, जो बाद मेँ मुगल दरबार की साजिशों से तंग आकर दक्कन चला गया।
- मुहम्मद शाह ने 1724 मेँ जजिया कर अंतिम रुप से समाप्त कर दिया।
- मुहम्मद शाह की सार्वजनिक मामलोँ के प्रति उदासीनता एवं विलासिता में तल्लीनता के कारण उसे ‘रंगीला’ कहा जाता था।
- इसके शासन काल मेँ कई राज्योँ के सूबेदारोँ ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी।
- इसके शासनकाल मेँ ईरान के साथ नादिर शाह ने 1739 में भारत पर आक्रमण किया।
- मुहम्मद शाह के शासन काल मेँ नादिरशाह के उत्तराधिकारी अहमद शाह अब्दाली ने 1748 ई. में 50 हजार सैनिकोँ के साथ पंजाब पर आक्रमण किया।
अहमद शाह (1748 ई. से 1754 ई.)
- 1748 में मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद अहमद शाह मुगल शासक बना।
- अहमद शाह ने अवध के सूबेदार सफदरजंग को अपना बजीर बनाया।
- अहमद शाह एक अयोग्य एवं भ्रष्ट शासक था। उसकी दुर्बलता का लाभ उठा कर उसकी माँ उधम भाई ने हिजड़ो के सरदार जावेद खां के साथ मिलकर शासन पर कब्जा जमा लिया था।
- अहमद शाह अब्दाली ने अहमद शाह के शासन काल मेँ 1748-59 के बीच भारत पर पांच बार आक्रमण किया।
- मराठा सरदार मल्हार राव की सहायता से इमाद-उल-मुल्क, सफदरजंग को अपदस्थ कर मुग़ल साम्राज्य का वजीर बन गया।
- 1754 वजीर इमाद-उल-मुल्क ने मराठोँ के सहयोग से अहमद शाह को अपदस्थ कर जहांदार शाह के पुत्र अजीजुद्दीन को ‘आलमगीर द्वितीय’ के नाम से गद्दी पर बैठाया।
- आलमगीर द्वितीय वजीर इमाद-उल-मुल्क की कठपुतली था। इमाद-उल-मुल्क ने 1759 मेँ आलमगीर द्वितीय की हत्या कर दी।
शाहआलम द्वितीय (1759 ई. से 1806 ई.)
- आलमगीर द्वितीय के बाद अलीगौहर, शाह आलम द्वितीय की उपाधि धारण कर मुग़ल शासन की गद्दी पर बैठा।
- शाहआलम द्वितीय ने 1764 में बंगाल के शासक मीर कासिम और अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ मिलकर अंग्रेजो के विरुद्ध बक्सर के युद्ध मेँ भाग लिया।
- बक्सर के युद्ध मेँ ऐतिहासिक पराजय के बाद अंग्रेजो ने शाह आलम के साथ इलाहाबाद की संधि की, जिसके द्वारा शाहआलम को कड़ा तथा इलाहाबाद का क्षेत्र मिला। मुग़ल बादशाह शाह आलम ने बंगाल बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी ईस्ट इंडिया कंपनी को प्रदान की। जिसके बदले मेँ कंपनी ने 26 लाख रुपए देने का वादा किया।
- 1772 ई. मराठा सरदार महादजी सिंधिया ने पेंशनभोगी शाहआलम द्वितीय को पुनः दिल्ली की गद्द्दी पर बैठाया।
- रुहेला सरदार गुलाम कादिर ने शाहआलम द्वितीय को अंधा कर के 1806 ई. में उसमे उसकी हत्या कर दी।
- शाहआलम द्वितीय के समय मेँ 1803 में दिल्ली पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया।
- शाहआलम द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अकबर द्वितीय अंग्रेजो के संरक्षण मेँ 1806 में मुगल बादशाह बना।
- उसने 1837 तक शासन किया। उसने राजा राम मोहन राय को इंग्लैण्ड भेजा था।
बहादुरशाह द्वितीय (1837 ई. -1857 ई.)
- अकबर द्वितीय की मृत्यु के बाद बहादुरशाह द्वितीय मुगल बादशाह बना। यह जफ़र के नाम से शायरी लिखता था।
- 1857 के विद्रोह मेँ विद्रोहियोँ का साथ देने के कारण अंग्रेजो ने इसे निर्वासित कर रंगून भेज दिया जहाँ 1862 मेँ इसकी मृत्यु हो गई।
- यह मुगल साम्राज्य का अंतिम शासक सिद्ध हुआ। इसकी मृत्यु के साथ मुग़ल साम्राज्य का भारत मेँ अंत हो गया।
स्मरणीय तथ्य
- भारत मेँ यूरोपीय व्यापारिक कंपनियोँ के आगमन का क्रम पुर्तगीज, डच, अंग्रेज, डेन व फ़्रांसीसी से हुआ।
- भारत मेँ आने वाला प्रथम यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा, द्वितीय यात्री पुर्तगाली पेड्रो अल्वारेज कैब्राल था।
- प्रथम पुर्तगीज गवर्नर फ्रांसिस्को अल्मेडा था, जबकि प्रथम अंग्रेज जॉन मिल्दें हाल था।
- बम्बई, कलकत्ता और मद्रास तथा दिल्ली का संस्थापक क्रमशः गेराल्ड औंगिया, जॉब चारनाक, फ्रान्सिस्डे तथा एडविन लुटियंस था।
- अंग्रेजो का विरोध करने वाला पहला विद्रोही जमींदार बर्दवान का जमींदार शोभा सिंह था।
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