गोलमेज सम्मलेन ,गाँधी इरविन समझौता,अगस्त प्रस्ताव (1940 ई.), क्रिप्स मिशन 1942 ई,भारत छोड़ो आंदोलन 1942
गोलमेज सम्मलेन (1930 ई. से 1932 ई.)
गाँधी इरविन समझौतागोलमेज सम्मलेन (1930 ई. से 1932 ई.) | ||||
सम्मलेन | तिथि | वायसरॉय | उद्देश्य | |
प्रथम | नवम्बर 1930 - जनवरी 1931 | लार्ड इरविन | साइमन आयोग के सुझावों पर विचार करने के लिए | |
द्वितीय | सितम्बर – दिसंबर 1931) | लार्ड विलिंग्डन | संघीय ढांचे पर विचार करना तथा अल्पसंख्यको के हितों की रक्षा हेतु | |
तृतीय | नवम्बर - दिसम्बर 1932) | लार्ड विलिंग्डन | भारत में शासन सुधारों पर विचार करने हेतु |
- 5 मार्च 1931 को गाँधी और इरविन के मध्य एक समझौता हुआ, जिसे गांधी-इरविन समझौता के नाम से जाना जाता है।
- इस समझौता के तहत लार्ड इरविन ने निम्न आश्वासन दिया -
- सभी राजनीतिक बंदियोँ को रिहा किया जाएगा।
- आपातकालीन अध्यादेशों को वापस ले लिया जाएगा।
- आंदोलन के दोरान जब्त की गई संपत्ति उनके स्वामियों को वापस कर दी जाएगी तथा जिनकी संपत्ति नष्ट हो गई हो, उन्हें हर्जाना दिया जाएगा।
- समुद्र तट के निकट रहने वाले लोगोँ को अपने इस्तेमाल के लिए बिना कोई कर दिए नमक एकत्र करने तथा बनाने दिया जाएगा।
- सरकार मादक द्रव्योँ तथा विदेशी वस्तुओं की दुकानोँ पर शांतिपूर्ण धरना देने वालोँ को गिरफ्तार नहीँ करेगी।
- जिन सरकारी कर्मचारियोँ ने आंदोलन के दौरान नौकरी से त्यागपत्र दिया था, उन्हें नौकरी मेँ वापस लेने मेँ सरकार उदार नीति अपनायेगी।
पूना समझौता (1932 ई.)
- सितंबर 1932 मेँ गांधी जी और अंबेडकर के बीच एक समझौता हुआ, जिसे पूना समझौता के नाम से जाना जाता है।
- इस समझौते मेँ सभी अल्पसंख्यक समुदायोँ, हरिजनोँ, मुसलमानोँ, सिखों आदि के लिए संघीय विधान परिषद मेँ पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था थी।
- इसके तहत मुसलमान केवल मुसलमानोँ द्वारा, सिख केवल सिक्खों द्वारा तथा अन्य अल्पसंख्यक समुदाय केवल अपने समुदाय द्वारा चुने जा सकते थे।
- गांधीजी, जो उस समय यरवदा जेल मेँ बंदी थे, ने इसे भारतीय एकता तथा राष्ट्रवाद पर चोट की संज्ञा दी। उन्होंने इस निर्णय को वापस ना लिए जाने की स्थिति मेँ 20 सितंबर, 1932 को आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया।
- इस समझौते के तहत् दलित वर्ग के लिए एक पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था वापस ले ली गयी।
- पूना समझौते के सांप्रदायिक निर्णय द्वारा हिंदुओं से हरीजनोँ को पृथक करने के सरकारी प्रयास को विफल कर दिया गया।
1937 का चुनाव और प्रांतो मेँ कांग्रेसी मंत्रिमंडल
- युद्ध में भारतीयोँ का सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से 8 अगस्त, 1940 को वायसरॉय लिनलिथगो ने एक घोषणा की, जिसे अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है
- वायसराय के प्रस्ताव मेँ निन्नलिखित बातेँ कही गई थी –
- वायसरॉय की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया जाएगा;
- वायसरॉय द्वारा भारतीय राज्यों, भारत के राष्ट्रीय जीवन से संबंधित अन्य हितों के प्रतिनिधियों की एकजुट परामर्श समिति की स्थापना की जाएगी;
- भारत के लिए नए संविधान का निर्माण मुख्यत: भारतीयोँ का उत्तरदायित्व होगा। युद्धोपरांत भारत के लिए नवीन संविधान निर्माण हेतु राष्ट्रीय जीवन से सम्बद्ध व्यक्तियों के एक निकाय का गठन किया जाएगा;
- युद्ध समाप्ति के एक वर्ष के भीतर औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना करना ब्रिटिश सरकार की घोषित नीति है;
- अल्पसंख्यको को पूर्ण महत्व प्रदान करने का आश्वासन दिया गया।
- यद्यपि यह घोषणा एक महत्वपूर्ण प्रगति थी, क्योंकि इसमेँ कहा गया था कि, भारत का संविधान बनाना भारतीयों का अपना अधिकार है, और इसमेँ स्पष्ट प्रादेशिक स्वशासन की प्रतिज्ञा की गई थी।
क्रिप्स मिशन 1942 ई.
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