सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 { The Protection of Civil Rights Act, 1955 }
- अस्पृश्यता के प्रयोग एवं उसे बढ़ावा देने तथा अस्पृश्यता से या उससे संबंधित मामलों के कारण उत्पन्न किसी प्रकार के निर्योग्यता (Disability), को दण्डित करने के उद्देश्य से 1955 में अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955, (Untouchability Offences Act, 1955) बनाया गया था।
- अधिनियम का संख्यांक 22 है।
-
भारत गणराज्य के छठे वर्ष में संसद
द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो-
यह अधिनियम 1 जून, 1955 से प्रभावी हुआ था। - अप्रैल 1965 में गठित इलायापेरूमल समिति (Elayaperumal Committee) की अनुशंसाओं के आधार पर 1976 में इसमें व्यापक संशोधन किए गए तथा अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 [Untouchability (Offences) Act, 1955] का नाम बदलकर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 (Protection of Civil Rights Act, 1955) कर दिया गया था।
- संशोधित अधिनियम 19 नवंबर, 1976 से प्रभावी हुआ था।
- यह अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के अस्पृश्यता उन्मूलन संबंधी प्रावधानों के अनुरूप ही है।
- यह अधिनियम स्वयं अस्पृश्यता संबंधी व्यवहार समाप्त करने पर केंद्रित है।
- नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 जम्मू-कश्मीर सहित देश के सभी भागों में लागू किया गया था।
धारा 1
– संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ
धारा 2-
परिभाषाएँ
धारा 3
धार्मिक
निर्योग्यताएं लागू करने के लिए दण्ड
धारा 4-
सामाजिक
निर्योग्यताएं लागू करने के लिए दण्ड
धारा 5
अस्पतालों आदि में
व्यक्तियों को प्रवेश करने देने से इन्कार करने के लिए दण्ड
धारा 6
– माल बेचने या सेवा
करने से इन्कार के लिए दण्ड
धारा 7-
“अस्पृश्यता” उदभूत अन्य अपराधों के लिए दण्ड
धारा 8-
कुछ दशाओं में
अनुज्ञप्तियों का रद्द या निलम्बित किया जाना
धारा 9
– सरकार द्वारा किए गए
अनुदानों का पुनग्रहण या निलम्बन
धारा 10
– अपराध का दुष्प्रेरण
धारा 11
– पश्चातवर्ती दोषसिध्द
पर वर्धित शास्ति
धारा 12
– कुछ मामलों में
न्यायालयों द्वारा उपधारणा
धारा 13
– सिविल न्यायालयों की
अधिकारिता की परिसीमा
धारा 14
– कम्पनियों द्वारा
अपराध
धारा 15
– अपराध संज्ञेय और
संक्षेपतः विचारणीय होंगे
धारा 16
– अधिनियम अन्य विधियों
का अध्यारोपण करेगा
17 निरसन-
17 निरसन-
धारा 1 – संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ
1) यह अधिनियम सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 कहा जा सकेगा।
2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है।
3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जिसे केनद्रीय सरकार
शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे।
धारा 2- परिभाषाएँ
इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,
क. ‘सिविल अधिकार’
से कोई ऐसा अधिकार अभिप्रेत है, जो संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा ‘अस्पुश्यता’
का अन्त कर दिए जाने के कारण किसी
व्यक्ति को
प्रोदभूत होता है।
ख. ‘स्थान’
के अन्तर्गत गृह, भवन और अन्य सँरचना तथा परिसर है और उसके अन्तर्गत तम्बू यान
और जलयान भी है।
ग. ‘लोक मनोरंजन- स्थान ’ के अन्तर्गत कोई भी
ऐसा स्थान है जिसमें जनता को प्रवेश करने दिया
जाता है और जिसमें मनोरंजन की व्यवस्था की जाती है या मनोरँजन किया जाता है।
स्पष्टीकरण – ‘मनोरंजन’
के अन्तर्गत कोई प्रदर्शनी, तमाशा,
खेलकुद, क्रीडा और किसी अन्य
प्रकार का आमोद भी है।
घ. ‘लोक पूजा -स्थान’ से, चाहे जिस नाम से ज्ञात हो, ऐसा स्थान अभिप्रेत
है, जो धार्मिक –
पूजा के सार्वजनिक स्थान के तौर पर
उपयोग में लाया जाता है या जो वहां कोई धार्मिक
सेवा या प्रार्थना करने के लिए,
किसी धर्म को मानने वाले या किसी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी विभाग के
व्यक्तियों को
साधारणतः समर्पित कुया गया है या उनके
द्वारा साधारणतः उपयोग में लाया जाता है, और इसके अन्तर्गत निम्नलिखित है-
(i) ऐसे किसी स्थान के साथ अनुलग्न या संलग्न सब भूमि और गौण
पवित्र स्थान,
(ii) निज स्वामित्व का कोई पूजा – स्थान जिसका स्वामी
वस्तुतः उसे लोक पूजा-स्थान के रूप में उपयोग में लाने की अनुज्ञा देता है; और
(iii) ऐसे निजी स्वामित्व वाले पूजा- स्थान से अनुलग्न ऐसी भूमि या
गौण पवित्र
स्थान जिसके स्वामी उसे लोक धार्मिक
पूजा-स्थान के रूप में उपयोग में लाने की अनुज्ञा देता है।
घक. ‘विहित’
से इस अधिनियम के अधीन बनाएड गए नियमों
द्वारा विहित अभिप्रेत है
घख. ‘अनुसूचित जाति’ का वही अर्थ है जो
संविधान के अनुच्छेद 366
के खंड 24 में उसे दिया गया है।
धारा 3 धार्मिक निर्योग्यताएं लागू करने के लिए दण्ड-
जो कोई किसी व्यक्ति
को,-
क. किसी ऐसे लोक पूजा –स्थान में प्रवेश
करने से, जो उसी धर्म को मानने वाले या उसके किसी विभाग के अन्य व्यक्तियों के लिए खुला हो, जिसका वह व्यक्ति हो, अथवा
ख. किसी लोक
पूजा-स्थान में पूजा या प्रार्थना या कोई धार्मिक सेवा
अथवा किसी पुनीत तालाब,
कुएं, जलस्त्रोत या
जल-सारणी, नदी या झील में स्नान या उसके जल का उपयोग या ऐसे तालाब, जल सरणी,
नदी या झील के किसी घाट पर स्नान उसी रीति से और उसी विस्तार तक करने
से, जिस रीति से और जिस विस्तार तक
ऐसा करना उसी धर्म को मानने वाले याउसके किसी विभाग के अन्य व्यक्तियों के लिए अनुज्ञेय हो, जिसका वह व्यक्ति हो,
‘अस्पृश्यता’
के आधार पर निवारित करेगा वह कम से कम
एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से
और ऐसे जुर्माने से भी,
जो कम से कम एक सौ रूपए और अधिक से अधिक पांच सौ रूपए का हो सकेगा, दंडनीय होगा।
स्पष्टीकरण- इस धारा और धारा 4 के प्रयोजनों के लिए
बौध्द, सिक्ख या जैन धर्म को मानने वाले व्यक्ति
या हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास को मानने वाले व्यक्ति,
जिनके अन्तर्गत वीरशैव, लिंगायत,
आदिवासी, ब्राम्ही समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज और स्वामी
नारायण संप्रदाय के अनुयायी भी है, हिन्दु समझे जाएंगे।
धारा 4- सामाजिक निर्योग्यताएं लागू करने के लिए दण्ड
जो कोई किसी व्यक्ति
के विरुद्ध निम्नलिखित के संबंध में कोई निर्योग्यता ‘अस्पृश्यता’
के आधार पर लागू करेगा-
(i) किसी दुकान,
लोक उपहारगृह, होटल या लोक मनोरंजन- स्थान में प्रवेश करना, अथवा
(ii) किसी लोक उपहारगृह, होटल, धर्मशाला,
सराय या मुसाफिरखाने में, जनसाधारण या उसके किसी विभाग
के व्यक्तियों के ,
जिसका वह व्यक्ति हो, उपयोग के लिए रखे गए किन्ही
बर्तनों और अन्य वस्तुओं का उपयोग करना, अथवा
(iii) कोई वृत्ति करना या उपजिविका, या किसी काम में
नियोजन, अथवा
(iv) ऐसी किसी नदी,
जलधारा, जलस्त्रोत, कुएं तालाब,
हौज, पानी के नल या जल के अन्य स्थान का या किसी स्नान घाट, कब्रिस्तान या शमशान, स्वच्छता संबंधी सुविधा,
सडक या रास्ते या लोक अभिगम के अन्य
स्थान का, जिसका उपयोग करने के लिए या जिसमें प्रवेश
करने के जनता के अन्य सदस्य,
या उसके किसी विभाग के व्यक्ति जिसका वह व्यक्ति हो, अधिकारवान हो, उपयोग करना या उसमें प्रवेश करना,
अथवा
(v) राज्य निधियों से पूर्णतः या अंशतः पोषित पूर्त या लोक प्रयोजन के लिए उपयोग में लाए जाने वाले या
जनसाधारण के या
उसके किसी विभाग के व्यक्तियों के, जिसका वह व्यक्ति हो, उपयोग के लिए समर्पित स्थान का, उपयोग या उसमें
प्रवेश करना, अथावा
(vi) जनसाधारण या उसके किसी विभाग के व्यक्तियों के जिसका वह
व्यक्ति हो, फायदे के लिए सृष्ट किसी पूर्त न्यास के अधीन किसी फायदे का
उपयोगकरना, अथवा
(vii) किसी सार्वजनिक सवारी का उपयोग करना या उसमें प्रवेश करना, अथवा
(viii) किसी भी परिक्षेत्र में, किसी निवास- परिसर का
सन्निर्माण, अर्जन या अधिभोग करना, अथवा
(ix) किसी धर्म शाला सराय या मुसाफिरखाने
का, जो जनसाधारण या उसके किसी विभाग के व्यक्तियों के लिए, जिसका वह व्यक्ति हो, खुला हो,
उपयोग ऐसे व्यक्ति के रुप में करना, अथवा
(x) किसी सामाजिक या धार्मिक रूढि,
प्रथा या क्रम का अनुपालन या किसी
धार्मिक, सामाजिक या सांस्कुतिक जलूस में भागलेना या
ऐसा जलूस निकालना;
अथवा
(xi) आभूषणों और अंलकारों का उपयोग करना, वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कन एक सौ रूपए और अधिक से अधिक
पांच सौ रूपए तक का हो सकेगा,
दण्डणीय होगा-
स्पष्टीकरण – इस धारा के प्रयोजनों के लिए ‘कोई निर्योग्यता लागू
करना’ के अन्तर्गत ‘अस्पृश्यता’
के आधार पर विभेद करना है।
धारा 5 अस्पतालों आदि में व्यक्तियों को प्रवेश करने देने से इन्कार
करने के लिए दण्ड
जो कोई ‘अस्पृश्यता’
के आधार पर-
क. किसी व्यक्ति को किसी अस्पताल, औषधालय, शिक्षा- संस्था, या किसी छात्रावास में,
यदि वह अस्पताल, औषधालय,
शिक्षा – संस्था या छात्रावास
जनसाधारण या
उसके किसी विभाग के फायदे के लिए
स्थापित हो या चलाया जाता हो,
प्रवेश करने देने से इन्कार करेगा, अथवा
ख. पूर्वोक्त
संस्थाओं में
से किसी में प्रवेश के पश्चात ऐसे
व्यक्ति के विरुद्ध कोई विभेदपूर्ण कार्य करेगा, गह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास
से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ
रूपए और अधिक से अधिक पांच सौ रूपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
धारा 6 – माल बेचने या सेवा करने से इन्कार के लिए दण्ड
जो कोई उसी समय और स्थान पर और वैसे ही निर्बन्धनों और शर्तों पर, जिन पर कारबार के साधारण
अनुक्रम में अन्य व्यक्तियों को ऐसा माल बेचा जाता है या उसकी सेवा की जाती हॆ किसी व्यक्ति को कोई माल बेचने या उसकी
सेवा करने से ‘अस्पृश्यता’
के आधार पर इन्कार करेगा, वह कमसे कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ रूपए और अधिक से अधिक
पांच सौ रूपए तक का हो सकेगा,
दण्डनीय होगा।
धारा 7- “अस्पृश्यता”
उदभूत अन्य अपराधों के लिए दण्ड
जो कोई-
क. किसी व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 17 के अधीन ‘अस्पृश्यता’
के अन्त होने से उसको प्रोदभूत होने वाले किसी अधिकार का प्रयोग करने
से निवारित
करेगा, अथवा
ख. किसी व्यक्ति को किसी ऐसे अधिकार के प्रयोग में उत्पीडित करेगा, क्षति पहुंचाएगा, क्षुब्ध करेगा बाधा डालेगा या बाधा कारित करेगा या कारित करने का प्रयत्न करेगा या किसी व्यक्ति के, कोई ऐसा अधिकार प्रयोग करेगा या किसी व्यक्ति के,
कोई ऐसा अधिकार प्रयोग करने के कारण उसे
उत्पीडित करेगा, क्षति पहुँचाएगा, क्षुब्ध करेगा या
उसका बहिष्कार करेगा,
अथवा,
ग. किसी व्यक्ति या व्यक्ति- वर्ग या जनसाधारण को बोले गए या
लिखित शब्दों
द्वारा या संकेतों द्वारा या
दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा किसी भी रूप में ‘अस्पृश्यता’ का आचरण करने के लिए उद्दीप्त या प्रोत्साहित करेगा, अथवा
घ. अनुसूचित जाति के सदस्य का ‘अस्पृश्यता’ के आधार पर अपमान करेगा, या अपमान करने का प्रयत्न करेगा, वह कम से कम एक मास
और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से
और ऐसे जुर्माने से भी,
जो कम से कम सौ रूपए और अधिक से अधिक पांच सौ रूपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
स्पष्टीकरण
1- किसी व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि वह अन्य व्यक्ति का
बहिष्कार करता है,
जब वह-
क. ऐसे अन्य व्यक्ति को कोई गृह भूमि पटटे पर देने से इन्कार करता
है या ऐसे
अन्य व्यक्ति को किसी गृह या भूमि के
उपयोग या अधिभोग के लिए अनुज्ञा देने से इन्कार करता है या
ऐसे अन्य व्यक्ति के साथ व्यवहार करने से, उसके लिए भाडे पर काम करने से, या उसके साथ कारबार
करने से या उसकी रूढिगत सेवि करने से या उसके कोई
रूढिगत सेवा लेने से इन्कार करता है या उक्त बातों में से किसी को ऐसे निबन्धनों पर करने से इन्कार करता है, जिन पर ऐसी बातें कारबार के साधारणह अनुक्रम में सामान्यताः की जाती, अथवा-
ख.
ऐसे सामाजिक, वृत्तिक या कारबीरी संबंधों से विरत रहता है, जैसे वह ऐसे अन्य व्यक्ति के साथ साधारणतया बनाए रखता।
7क- विधिविरुद्ध अनिवार्य श्रम कब ‘अस्पृश्यता’
का आचरण समझा जाएगा-
1)
जो कोई किसी व्यक्ति को सफाई करने या
बुहारने या कोई पशु शव हटाने या किसी पशु की खाल
खींचने या नाल काटने या इसी प्रकार का कोई अन्य काम करने के लिए ‘अस्पृश्यता’
के आधार पर मजबूर करेगा, तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने ‘अस्पृश्यता’ से उदभूत निर्योग्यता को लागू किया है।
2)
जिस किसी के बारे में उपधारा 1 के अधीन यह समझा जाता है कि उसने ‘अस्पृश्यता’
से उदभूत निर्योग्यता को लागू किया है, वह कम से कम तीन मास और अधिक से अधिक छह
मास की अवधि के कारावास से और जुर्माने से अधिक पांच सौ रूपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
स्पष्टीकरण-
इस धारा के प्रयोजनों के लिए ‘मजबूर करने’
के अन्तर्गत सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार
करने की धमकी भी है।
धारा 8- कुछ दशाओं में अनुज्ञप्तियों का रद्द या निलम्बित किया जाना
जबकि वह व्यक्ति,
जो धारा 6 के अधीन किसी अपराध
का दोषसिध्द हो ,
किसी ऐसी वृत्ति,
व्यापार आजीविका या नियोजन के बारे में
जिसके संबंध में अपराध किया गया हो, कोई अनुज्ञप्ति किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रखता हो, तब उस अपराध का विचारण करने
वाला न्यायालय किसी अन्य ऐसी शास्ति पर, जिससे वह व्यक्ति उस धारा के अधीन दण्डणीय हो, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, निर्देश दे सकेगा कि वह अनुज्ञप्ति रद्द होगी या ऐसी कालावधि के लिए, जितनी न्यायालय ठीक समझे, निलम्बित रहेगी, और अनुज्ञप्ति को इस
प्रकार रद्द या
निलम्बित करने वाले न्यायालय का
प्रत्येक आदेश ऐसे प्रभावी होगा,
मानो वह आदेश उस प्राधिकारी द्वारा दिया गया हो, जो किसी ऐसी विधि के अधीन अनुज्ञप्ति को रद्द या निलम्बित करने के लिए सक्षम था।
धारा 9 – सरकार द्वारा किए गए अनुदानों का पुनग्रहण या निलम्बन
जहा
कि किसी ऐसे लोक पूजा- स्थान या किसी
शिक्षा संस्थान या छात्रावास का प्रबन्धक या न्यासी
जिसे सरकार से भूमि या धन का अनुदान प्राप्त हो, इस अधिनियम के अधीन किसीअपराध केलिए दोषसिध्दि हुआ हो और ऐसी
दोषसिद्धि किसी
अपील या पुनरीक्षण में उलटी या
अभिखण्डीत न की गई हो वहां,
यदि सरकार की राय में उस मामले की परिस्थितियों में ऐसा करने के लिए समुचित
आधार हों तो
वह ऐसे सारे अनुदान यि उसके किसी भाग के
निलम्बन या पुनग्रहन के लिए निदेश दे सकेगी।
धारा 10 – अपराध का दुष्प्रेरण
जो
कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा, वह उस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा।
धारा
10क –
सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने की
राज्य सरकार की शक्ति-
1)
यदि विहीय रीति में जांच करने के पश्चात, राज्य सरकार का यह समाधान हो जाता है कि किसी क्षेत्र के निवासी इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय
किसी अपराध
के किए जाने से संबंधित है, या उसका दुष्प्रेरण कर रहे हैं, या ऐसे अपराध के किए जाने से संबंधित व्यक्तियों को संश्रय दे रहे हैं, या अपराधी या अपराधियों का पता
लगाने या पकडवाने में अपनी शक्ति के अनुसार सभी प्रकार की सहायता नहीं दे रहे हैं, या ऐसे अपराध के किए
जाने के महत्त्वपूर्ण
साक्ष्य को दबा रहे हैं, तो राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना
द्वारा, ऐसे
निवासियों पर सामूहिक जुर्माना अधिरोपित
कर सकेगी और जुर्माने का ऐसे निवासियों के बीच
प्रभाजन कर सकेगी जो सामूहिक रूप से ऐसा जुर्माना देने के लिर दायी है और यह कार्य राज्य सरकार वहाँ के निवासियों की
व्यक्तिगत
क्षमता के संबंध में अपने निर्णय के
अनुसार करेगी और ऐसा प्रभाजन करने में राज्य सरकार यह भी तय
कर सकेगी कि एक हिन्दु अविभक्त कुटुम्ब ऐसे जुर्माने के कितने भाग का संदाय करेगाः
परन्तु किसी निवासी के बारे में प्रभाजित जुर्माना तब तक वसूल नही
किया जाएगा, जब
तक कि उसके द्वारा उपधारा 3 के अधीन फाइल की गई अर्जी का निपटारा नही कर दिया जाता।
2)
उपधारा 1 के अधीन अधिसूचना की
उदघोषणा ऐसे क्षेत्र में ढोल पीट कर या ऐसी अन्य रीति से की
जाएगी, जिसे राज्य सरकार उक्त क्षेत्र के निवासियों को सामूहिक जुर्माने का अधिरोपण सूचित करने के लिए उन
परिस्थितियों में
सर्वोत्तम समझे।
3)
क. उपधारा 1 के अधीन सामूहिक जुर्माने के अधिरोपण से या प्रभाजन के आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति विहीत कालावधि के अन्दर राज्य सरकार के
समक्ष या ऐसे
अन्य प्राधिकारी के समक्ष जिसे वह सरकार
इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे. ऐसे जुर्माने से छूट पाने
के लिए या प्रभाजन के आदेश में परिवर्तन के लिए अर्जी फाइल कर सकेगाः
परन्तु
ऐसी अर्जी फाइल करने के लिए कोई फीस प्रभारित नहीं की जाएगी।
ख. राज्य सरकार या उसके द्वारा विनिर्दिष्ट प्राधिकारी अर्जीदार
को सुनवाई के
लिए युक्तियुक्त अवसर प्रदान करने के
पश्चात ऐसा आदेश पारित करेगा,
जो वह ठिक समझेः
परन्तु इस धारा के अधीन छूट दी गई या कम की गई जुर्माने की रकम किसी
व्यक्ति से
वसूलीय नही होगी और किसी क्षेत्र के
निवासियों पर उपधारा 1
के अधीन अधिरोपित कुल जुर्माने उस विस्तार तक कम किया गया समझा जाएगा।
4)
उपधारा 3 में किसी बात के होते
हुए भी राज्य सरकार,
इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के शिकार व्यक्तियों को या किसी ऐसे
व्यक्ति
को, जो उसकी राय में उपधारा 1 में विनिर्दिष्ट
व्यक्तियों के वर्ग में नहीं आता है, उपधारा 1
के अधीन अधिरोपित सामूहिक जुर्माने से
या उसके किसी प्रभाग का
संदिय करने के दायित्व से छूट दे सकेगी।
5)
किसी व्यक्ति द्वारा जिसके अन्तर्गत
हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब है संदेय सामूहिक जुर्माने का
प्रभाग, न्यायालय द्वारा अधिरोपित जुर्माने की वसूल के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973(1974 का
2) द्वारा उपबन्धित रीति में ऐसे वसूल किया जा सकेगा मानो ऐसा प्रभाग, मजिस्ट्रेट द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो।
धारा 11 – पश्चातवर्ती दोषसिध्द पर वर्धित शास्ति
जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का या ऐसे अपराध के
दुष्प्रेरण का पहले
दोषसिध्द हो चुकने पर किसी ऐसे अपराध या
दुष्प्रेरण का पुनः दोषसिध्द होगा, वह दोषसिध्दि पर –
क. द्वितीय अपराध के लिए, कम से कम छह माह और
अधिक से अधीक एक वर्ष की अवधि के कारावास से और
जुर्माने से भी, जो कम से कम दो सौ रूपए और अधिक से अधिक पांच सौ रूपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा,
ख. तृतीय अपराध के लिए या तृतीय अपराध के पश्चातवर्ती किसी अपराध
के लिए कम
से कम एक वर्ष और अधिक से अधीक दो वर्ष
की अवधि के कारावास से और जुर्माने से भी, जो कम से कम पांच सौ रूपए और अधिक से अधिक एक हजार रूपए तक का
हो सकेगा,
दण्डनीय होगा।
धारा 12 – कुछ मामलों में न्यायालयों द्वारा उपधारणा
जहाँ कि इस अधिनियम के अधीन अपराध गठित करने वाला कोई कार्य
अनुसूचित जाति के
सदस्य के संबंध में किया जाए वहां, जब तक कि प्रतिकूल साबित न किया काए, न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि वह कार्य “अस्पृश्यता”
के आधार पर किया गया है।
धारा 13 – सिविल न्यायालयों की अधिकारिता की परिसीमा
1)
यदि सिविल न्यायालय के समक्ष के किसी
वाद या कार्यवाही में अन्तर्गस्त दावा या किसी डिक्री
या आदेश का दिया जाना या किसी डिक्री या आदेश का पूर्णतः या भागतः निष्पादन इस अधिनियम के उपबन्धों के किसी
प्रकार प्रतिकूल
हो तो ऐसा न्यायालय न ऐसा कोई वाद यि
कार्यवाही ग्रहण करेगा या चालू रखेगा और न ऐसी कोई डिक्री
या आदेश देगा या ऐस किसी डिक्री या आदेश का पूर्णतः या भागतः निष्पादन करेगा।
2)
कोई न्यायालय किसी बात के न्याय निर्णयन
में या किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में, किसी व्यक्ति पर ‘अस्पृश्यता’ के आधार पर कोई निर्योग्यता अधिरोपित करने वाली किसी रूढि या प्रथा को मान्यता नहीं देगा।
धारा 14 – कम्पनियों द्वारा अपराध
1)
यदि इस अधिनियम के अधीन अपराध करने वाला
व्यक्ति कम्पनी हो तो हर ऐसा व्यक्ति, जो अपराध किए जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के
लिए उस कम्पनी का भारसाधक और उस कम्पनी के प्रति उत्तरदायी था, उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और
तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगाः
परन्तु इस धारा में अन्तर्विष्ट किसी भी बात से कोई ऐसा व्यक्ति दण्ड
का भागी न
होगा, यदि वह यह साबित कर
दे कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या ऐसे अपराध का किया जाना निवारित करने के लिए उसने सब सम्यक
तत्परता बरती
थी।
2)
उपधारा 1 में अन्तर्विष्ट किसी
बात के होते हुए भी,
जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध कम्पनी के किसी निदेशक या प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सम्मति से किया
गया हो, वहां ऐसा निदेशक, प्रबन्धल, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध
का दोषी समझा जाएगा,
और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डीत किए जाने का भागी होगा।
स्पष्टीकरण
–
इस
धारा के प्रयोजनो के लिए –
क
‘कम्पनी’
से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है, और उसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियोँ का अन्य संगम भी है, तथा
ख.
फर्म के संबंध में ‘निदेशक’
से फर्म का भागीदार भी अभिप्रे है।
धारा
14क –
सदभावपूर्वक की गई कार्यवाही के लिए
संरक्षण –
1)
कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी ऐसी बात के बारे में,
जो इस अधिनियम के अधीन सदभावपूर्वक की
गई हो या की जाने के लिए आशयित हो, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के विरुद्ध न होगी।
2)
कोई भी वाद या अन्य विधिक कार्यवाही
किसी भी ऐसे नुकसान के बारे में,
जो इस अधिनियम के अधीन सदभाव पूर्वक की गई यि की जाने के लिए
आशयित किसी बात
के कारण हुआ हो, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के विरुद्ध न होगी।
1)
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2)
में किसी बात के हते हुए भी इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय हर अपराध संज्ञेय होगा और ऐसे हर अपराध
पर, सिवाय उसके जो कम से कम तीन
मास से अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय है, प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानर क्षेत्र में महानगर
मजिस्ट्रेट द्वारा
उक्त संहिता में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया
के अनुसार संक्षेपतः विचार किया जा सकेगा ।
2)
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2)
में किसी बात के होते हुए भी, जब
किसी लोक सेवक के बारे में यह अभिकथित
है कि उसने इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध
के दुष्प्रेरण का अपराध अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य करते हुए या कार्य करना तात्पर्यित करते हुए, किया है तब कोई भी न्यायालय ऐसे
दुष्प्रेरण के अपराध की संज्ञान –
क.
संघ के कार्यों के संबंध में नियोजित व्यक्ति की दशा में, केन्द्रीय सरकार की, और
ख.
किसी राज्य के कार्यों के संबंध में नियोजित व्यक्ति की दशा में उस राज्य सरकार की
पूर्व मंजूरी के बिना नहीं करेगा।
धारा 15क –
“अस्पृश्यता” का अन्त करने से प्रोदभूत अधिकारों का संबंधित व्यक्तियों द्वारा फायदा उठाना सुनिश्चित करने का राज्य सरकार
का कर्तव्य-
1)
ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त बनाए, राज्य सरकार ऐसे उपाय करेगी, जो यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो, कि
‘अस्पृश्यता’ का अन्त करने से उदभूत होने वाले अधिकार ‘अस्पृश्यता’
से उदभूत किसी निर्योग्यता से पीडित व्यक्तियों के उपलब्ध किए
जाते है और वे
उनका फायदा उठाते है।
2)
विशिष्टतः और उपधारा 1 के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे उपायों के अन्तर्गत निम्नलिखित है, अर्थात –
(i)
पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था जिसके
अन्तर्गत ‘अस्पृश्यता’
से उदभूत किसी निर्योग्याता से पीडित व्यक्तियों को विधिक सहायता देना है, जिससे कि वे ऐसे अधिकारों का
फायदा उठा सके,
(ii)
इस अधिनियम के उपबन्धो के उल्लंघन के
लिए अभियोजन प्रारम्भ करने या ऐसे अभियोजनो॔ का
पर्यवेक्षण करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति,
(iii)
इस अधिनियम के अधीन अपराधों के विचारण
के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना,
(iv)
ऐसे समुचित स्तरों पर समितियों की
स्थापना जो राज्य सरकार ऐसे उपायों के निरुपण या उन्हें
कार्यन्वित करने में राज्य सरकार की सहायता करने के लिए ठिक समझे,
(v)
इस अधिनियम के उपबन्धो के बेहतर
कार्यान्वयन के लिए उपाय सुझाने की दृष्टि से इस अधिनियम के
उपबन्धो के कार्यकरण के सर्वेक्षण को समय समय पर व्यवस्था करना,
(vi)
इन क्षेत्रों का अभिनिर्धारण जहाँ
व्यक्ति ‘अस्पृश्यता’
से उदभूत किसी निर्योग्यता से पिडित है, और ऐसे उपायो को
अपनाना जिनसे ऐसे क्षेत्रों से ऐसी निर्योग्यता का
दूर किया जाना सुनिश्चीत हो सके।
3)
केन्द्रीय सरकार राज्य सरकारों द्वारा
उपधारा 1 के अधीन किए गए उपायों में समन्वय स्थापित
करने के लिए ऐसे कदम उठाएगी जो आवश्यक हो।
4)
केन्द्रीय सरकार हर वर्ष संसद के
प्रत्येक सदन के पटल पर ऐसे उपायो॔ की रिपोर्ट प्रस्तुत
करेगी जो उसने और राज्य सरकारों ने इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में किए है।
धारा 16 – अधिनियम अन्य विधियों का अध्यारोपण करेगा
इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, इस अधिनियम के उपबन्ध, किसी तत्समय प्रवृत्त विधि में उनसे असंगत किसी बात के होते
हुए भी या किसी रूढि या प्रथा अथवा किसी ऐसी विधि अथवा किसी न्यायालय
या अन्य
प्राधिकारी की किसी डिक्री या आदेश के
आधार पर प्रभावी किसी लिखत के होते हुए भी प्रभावी
होंगे।
धारा16क. अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 का
चौदह वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को लागू न होना –
अपराधी अधिनियम 1958
(1958 का 20) के उपबन्ध किसी ऐसे
व्यक्ति को लागू नहीं
होंगे, जो चौदह वर्ष से अधिक
आयु का है और इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के किए जाने का दोषी पाया जाता है।
धारा
16ख –
नियम बनाने की शक्ति –
1)
केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के
उपबन्धो॔ का पालन करने के लिए,
नियम बना सकेगी।
2)
इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार
द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम,
बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन
के समक्ष, जब वह सत्र में हो, वह कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में
अथवा दो
या अधिक आनुक्रमिक सत्रोँ में पूरी हो
सकेगी। यदि उस सत्र के,
या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठिक बाद के सत्र के अवसान के
पूर्व दोनों
सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के
लिए सहमत हो जाए,
तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के
पूर्व दोनो॔ सद
सहमत हो जाएं कि वह नियम बनाया जाना
चाहिए, तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा किन्तु नियम के ऐसेपरिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके
पहले की गइ
किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल
प्रभाव नहीं पडेगा.
17 निरसन- अनुसूची में
विनिर्दिष्ट अधिनियमितियां, जहां तक कि वे या
उसमें अन्तर्विष्ट उपबंधो में से केाई इस अधिनियम या उसमें अन्तर्विष्ट उपबंधों में
से किसी क समान है या विरूद्ध है, एतद्वारा निरसित की
जाती है।
good job.......... thanks
ReplyDeleteसिविल संरक्षण अधिनियम 1955 की विशेषताएं
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