Manav Adhika Sanrakshan Adhiniyam मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 | Protection of Human Rights Act 1993
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993
- मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 28 सितंबर 1993 में लागू हुआ। इसमे 8 अध्याय एवं 43 धाराए हैं।
- अधिनियम संख्यांक 10 है।
- भारत गणतन्त्र राज्य के चवाँलीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्न प्रकार अधिनियमित किया गया
अध्याय 1 प्रारंभिक (धारा 1 से 2)
01
सक्षिप्त नाम विस्तार और प्रारंभ
02
परिभाषाएं
अध्याय 2 राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (धारा 3 से 11)
03.
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन
04.
अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति
05.
अध्यक्ष और सदस्यों को का त्यागपत्र और
हटाया जाना
06.
अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि
07.
कतिपय परिस्थतियों में सदस्य या अध्यक्ष
के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन
08.
अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के निबंधन
और शर्तें
09
रिक्तियों आदि से आयोग की कार्यवाहियों
का अविधिमान्य न होना
10.
प्रक्रिया का अयोजग द्वारा विनियमित
किया जाना
11
आयोग के अधिकारी ओर अन्य कर्मचारीवृन्द
अध्याय 3 आयोग के कृत्य और शक्तियां (धारा 12 से 16)
12.
आयोग के कृत्य
13
जॉच से संबंधित शक्तियां
14.
अन्वेषण
15
आयोग के समक्ष व्यक्तियों द्वारा किए गए
कथन
16
उन व्यक्तियों की सुनवाई जिनपर प्रतिकूल
प्रभाव पड़ना संभाव्य है।
अध्याय 4 प्रक्रिया (धारा 17 से 20)
17.
शिकायतों की जांच
18.
जॉच के दौरान और जांच के पश्चात कारवाई
19.
सशस्त्र बलों की बाबत प्रक्रिया
20.
आयोग की वार्षिक रिपोर्ट
अध्याय 6 राज्य मानव अधिकार आयोग (धारा 21 से 29)
21.
राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन
22.
राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की
नियुक्ति
23.
राज्य आयोग के अध्यक्ष या किसी सदस्य का
हटाया जाना
24.
राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की
पदावधि
25.
कतिपय परिस्थितियों में सदस्य का
अध्यक्ष के रूप में कार्य करना या उसके कृृत्यों का निर्वहन
26.
राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की
सेवा के निबंधन और शर्तें
27.
राज्य आयोग के अधिकारी और अन्य
कर्मचारीवृन्द
28.
राज्य आयोग की वार्षिक और विशेष रिपोर्ट
29.
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से संबंधित
कतिपय उपबंधों का राजय आयोग को लागू होना
अध्याय 6 मानव अधिकार न्यायालय (धारा 30 से 31)
30.
मानव अधिकार न्यायालय
31.
विशेष लोक अभियोजक
अध्याय
7 वित्त लेखा और संपरीक्षा (धारा 32 से 35)
32.
केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान
33.
राज्य सरकार द्वारा अनुदान
34.
लेखा ओर संपरीक्षा
35.
राज्य आयोग के लेखा और संपरीक्षा
अध्याय 8 प्रकीर्ण (धारा 36 से 43)
36.
आयोग की अधिकारिता के अधीन न आने वाले
विषय
37.
विशेष अन्वेषण दलों का गठन
38.
सदभावनापूर्वक की गई कारवाई के लिए
सरंक्षण
39.
सदस्यों और अधिकारियों का लोक सेवक होना
40.
नियम बनाने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति
40
क. भूतलक्षी रूप से नियम बनाने की शक्ति
41.
नियम बनाने की राज्य सरकार की शक्ति
42.
कठिनाईयों को दूर करने की शक्ति
43.
निरसत और व्यावृत्ति
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
धारा 1. संक्षिप्त शीर्षक, विस्तार एवं प्रारम्भ
1)
यह अधिनियम मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कहलायेगा।
2)
यह संपूर्ण भारत में लागू होगा:
परन्तु यह कि यह जम्मू एवं कश्मीर राज्य पर उसी
सीमा तक लागू होगा जहाँ तक उसका संबंध
उस राज्य में प्रयोज्य संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची 1 या सूची 3 में
वर्णित किन्हीं प्रविष्टियों से सम्बन्धित मामलों से है।
3)
यह 28 सितम्बर, 1993 से प्रभाव में आया हुआ समझा जाएगा।
धारा 2 परिभाषाएँ
क) “सशस्त्र बल” से अभिप्राय नौ सेना, थल सेना एवं वायु सेना से है तथा इसमें संघ सरकार
के अन्य सशस्त्र बल शामिल है।
ख) “अध्यक्ष” से
अभिप्राय आयोग के या राज्य आयोग के, जैसी
भी स्थिति हो, अध्यक्ष से है।
ग) “आयोग” से
अभिप्राय धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से है।
घ) “मानव अधिकार” से अभिप्राय संविधान द्वारा गारण्टीकृत
तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं में
सम्मिलित एवं भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय
व्यक्तियों के जीवन,
स्वतन्त्रता, समानता एवं गरिमा से है।
ड़) “मानव अधिकार
न्यायालय” से
अभिप्राय धारा 30 में विनिर्दिष्ट मानव अधिकार न्यायालय से है।
च) “अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा” से अभिप्राय सिविल एवं राजनितिक
अधिकारों पर
अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा एवं 16 दिसम्बर, 1966 को
संयुक्त राष्ट्र की
साधारण सभा द्वारा अंगीकृत आर्थिक,सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा एवं संयुक्त
राष्ट्र के साधारण सभा द्वारा अंगीकृत
ऐसी अन्य प्रसंविदा एवं अभिसमय से है जो केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे;
(छ) “सदस्य” से अभिप्राय आयोग के या राज्य आयोग के, जैसी भी स्थिति हो, सदस्य से है।
(ज) “अल्पसंख्यकों
के लिए राष्ट्रीय आयोग”
से अभिप्राय अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम , 1992 की धारा 3 के
अधीन गठित अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय
आयोग से है।
(झ) “अनुसूचित
जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग”
से अभिप्राय संविधान के अनुच्छेद 338 में वर्णित अनुसूचित जातियों के लिए
राष्ट्रीय आयोग से है।
झक) “अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय
आयोग” से अभिप्राय संविधान के अनुच्छेद 338 क में वर्णित अनुसूचित जनजातियों के लिए
राष्ट्रीय आयोग से
है।
त्र) “महिलाओं
के लिए राष्ट्रीय आयोग” से अभिप्राय महिलाओं के लिए राष्ट्रीय आयोग
अधिनियम,
1990 की धारा 3 के अधीन गठित महिलाओं के लिए राष्ट्रीय आयोग से है।
(ट) “अधिसूचना” से
अभिप्राय शासकीय राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना से है।
(ठ) विहित से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों
द्वारा विहित अभिप्रेत है।
(ड) “लोक
सेवक” से अभिप्राय वह होगा जो भारतीय दण्ड
संहिता की धारा 21
में दिया गया है।
(ढ) “राज्य
आयोग” से
अभिप्राय धारा 21 के अधीन गठित राज्य मानव अधिकार आयोग से है।
धारा 3.राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन
1)
भारत सरकार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
के रुप में जानी जाने वाली एक संस्था
का, इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त
शक्तियों के प्रयोग में,
तथा समनुदेशित कार्यों को निष्पादित करने के
लिए गठन करेगी।
2)
आयोग में निम्न होंगे-
क.
अध्यक्ष जो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमुर्ति रहा है;
ख.
एक सदस्य , जो उच्चतम न्यायालय का सदस्य है, या सदस्य रहा है;
ग.
एक सदस्य , जो उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश है, या मुख्य न्यायाधीश रहा है;
घ. दो सदस्य जिनकी नियुक्ति उन व्यक्तियों
में से की जाएगी जिन्हें मानव अधिकरों
से संबंधित मामलों का ज्ञान हो,
या उसमें व्यावहारिक अनुभव हो।
धारा 4. अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति
अध्यक्ष
एवं 3[सदस्यो] को राष्ट्रपति द्वारा अपने
हस्ताक्षर एवं मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त किया जाएगा:
परन्तु
यह कि इस अधिनियम के अधीन प्रत्येक नियुक्ति समिति की, जिसमें निम्न हो॔गे, सिफारिशें प्राप्त करने के बाद की
जाएगी-
क.
प्रधानमंत्री- अध्यक्ष;
ख.
लोकसभा का अध्यक्ष –
सदस्य;
ग.
भारत सरकार में गृह मंत्रालय का मंत्री प्रभारी – सदस्य;
घ.
लोक सभा में विपक्ष का नेता- सदस्य;
ड़.
राज्य सभा में विपक्ष का नेता –
सदस्य;
च.
राज्य सभा का उपसभापति- सदस्य:
धारा 5.अध्यक्ष एवं सदस्यों का त्यागपत्र और हटाया जाना
1)
अध्यक्ष याअन्य सदस्य, भारत के राष्ट्रपति को सम्बोधित उसके
द्वारा हस्ताक्षरित लिखित सूचना द्वारा अपने पद का त्याग कर सकेगा।
2)
उपधारा 3 के
उपबंधों के अध्यधीन,
अध्यक्ष या किसी सदस्य को उसके पद से, भारत के राष्ट्रपति के आदेश द्वारा, राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय को निर्देश दिये जाने पर, उच्चतम न्यायालय के द्वारा उस संबंध में
विहीत प्रक्रिया के अनुसार की गई जांच पर यह
रिपोर्ट देने के बाद कि अध्यक्ष या सदस्य, यथास्थिति, को किसी ऐसे सिध्द कदाचार या अक्षमता के
आधार पर हटाया
जाना चाहिए, हटाया जाएगा
3)
उपधारा 2 में
किसी बात के होते हुए भी,
राष्ट्रपति अध्यक्ष या किसी सदस्य को, आदेश
द्वारा, पद से हटा देगा, यदि अध्यक्ष या ऐसा सदस्य, यथास्थिति-
क.
दिवालिया न्यायनिर्णित कर दिया गया है; य
ख.
अपने कार्यालय पदावधि में कार्यालय कर्तव्यों के बाहर किसी वैतनिक रोजगार में लगता
है; या
ग.
मस्तिष्क या शरीर की दुर्बलता के कारण पद पर बने रहने के लिए अयोग्य है; या
घ.
विकृत चित्त का है एवं सक्षम न्यायालय द्वारा इस प्रकार घोषित कर दिया गया है; या
ड.
किसी अपराध के लिए जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक पतन वाला है, सिध्ददोष हो गया है एवं उसे कारागार की
सजा दे दी गइ है।
धारा 6. अध्यक्ष एवं सदस्यों की पदावधि
1)
अध्यक्ष के रुप में नियुक्य व्यक्ति उस
दिनांक से जिसको वह अपने पद पर प्रवेश
करेगा, पाँच वर्ष की अवधि के लिए या जब तक वह
सत्तर वर्ष की आयु का
नही होंगा इनमें से जो भी पूर्व में हो, पद को धारित करेगा
2)
सदस्य के रुप में नियुक्त व्यक्ति उस
दिनांक से जिसको वह अपने पद पर प्रवेश
करेगा, पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद को धारित
करेगा तथा पाँच वर्षों
की दूसरी अवधि के पुनर्नियुक्त हेतु
पात्र होगा:
परन्तु
यह कि कोई भी सदस्य सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद पद को धारण नही करेगा
3)
पद पर नही रहने पर, अध्यक्ष या सदस्य भारत सरकार या किसी
राज्य सरकार के अधीन आगे और नियुक्ति के लिए अपात्र होगा।
धारा 7. कुछ परिस्थितियों में सदस्य द्वारा
अध्यक्ष के रुप में कार्य करना या उसके कार्यों का निर्वहन करना
1)
अध्यक्ष की मृत्यु होने, त्यागपत्र देने के कारण या अन्यथा
प्रकार से उसका
पद रिक्त होनेकी दशा में, राष्ट्रपति, अधिसूचना द्वारि सदस्यों में से किसी एक को अध्यक्ष के रुप में कार्य
करने के लिए, उस रिक्ति को भरने के लिए नए अध्यक्ष की नियुक्ति किये जाने
तक के लिए प्राधिकृत करेगा।
2)
जब अध्यक्ष अवकाश पर अनुपस्थिति के कारण
या अन्यथा अपने कार्यों का निर्वहन
करने में असमर्थ हो,
उन सदस्यों में से ऐसा एक जिसे
राष्ट्रपति, अधिसूचना द्वारा , इस संबंध में प्राधिकृत करे, अध्यक्ष के कार्यों का निर्वहन उस दिनांक तक करेगा, जिसको कि अध्यक्ष अपने कर्तव्यों का पुनर्ग्रहण करेगा
धारा 8. अध्यक्ष एवं सदस्यों की सेवा शर्ते तथा
निबंधन
अध्यक्ष
एवं सदस्यों को संदेय वेतन एवं भत्ते, तथा
उनकी सेवा की अन्य शर्तें व निबन्धन, वे
होंगी जो विहित की जाएं :
परन्तु यह कि अध्यक्ष या किसी सदस्य के न तो
वेतन एवं भत्ते और न सेवा की शर्तें व निबन्धन
उसकी नियुक्ति के बाद उसके लिए अलाभकारी रूपमें परिवर्तित किये जाएंगे।
धारा 12 के अनुसार आयोग के कृत्य एवं शक्तियाँ
12.
आयोग के कृत्य- आयोग
निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का निष्पादन करेगा, अर्थात-
क.
स्वप्रेरणा से या किसी पीडित या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा 1या किसी न्यायालय
के
किसी निदेश अथवा आदेश पर उसे प्रस्तुत याचिका पर-
(i)
मानव अधिकारों के उल्लंघन या उसके अपशमन
की; या
(ii)
किसी लोक सेवक द्वारा उस उल्लंघन को
रोकने में उपेक्षा की;
धारा 13.
जाँच
से संबंधित शक्तियाँ
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अधीन
धारा 13 के अनुसार आयोग के जाँच से संबंधित
शक्तियाँ-
1).
आयोग , इस
अधिनियम के अधीन शिकायतों की जांच करते समय, सिविल
प्रक्रिया
संहिता, 1908 के
अन्तर्गत वाद का तथा विशेष रुप से भिन्न मामलों के संबंध में, विचारण
करते हुए, सिविल न्यायालय की समस्त शक्तियाँ रखगा, अर्थात-
क.
साक्षियों को बुलाना तथा उनकी उपस्थिति प्रवर्तित करना एवं शपथ पर उनकी परिक्षा
करना;
ख.
किसी भी दस्तावेज को खोजना एवं प्रस्तुत करना;
ग.
हलफनामों पर साक्ष्य प्राप्त करना;
घ.
किसी भी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति के लिये अधियाचना
करना;
ड.
साक्षियों या दस्तावेजों की परिक्षा के लिए कमीशन जारी करना;
च.
अन्य कोई मामला जो विहित किया जाएगा।
2)
आयोग को किसी व्यक्ति से, किसी विशेषाधिकार के अध्यधीन रहते हुए
जिसे उस
व्यक्ति द्वारा तत्समय प्रवृत्त विधि के
अन्तर्गत क्लेम किया जाएगा,
ऐसे बिन्दुओं या मामलों पर, जो आयोग की राय में जांच के विषय के लिए
उओयोगी होंगे, या
उससे सुसंगत होंगे,
सूचना प्रस्तुत करने के लिये कहने की
शक्ति प्राप्त होगी तथा इस प्रकार से अपेक्षा
किये गए व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता की
धारा 176 तवं धारा 177 के अर्थान्तर्गत ऐसी सूचना देनेके लिए
बाध्य हुआ समझा जाएगा।
3)
आयोग या कोई अन्य अधिकारी जो राजपत्रित
अधिकारी के नीचे के रेंक का नहीं होगा, एवं आयोग द्वारा इस संबंध में विशेष रूप
से प्राधिकृत किया गया है,
किसी ऐसे भवन या स्थान में प्रवेश करेगा
जहाँ पर आयोग कारणों से यह विश्वास करता
है कि जाँच के विषय से संबंधित कोई दस्तावेज पाया जा सकेगा, तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 100 के, जहाँ तक वह प्रयोज्य है, उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए ऐसे दस्तावेज को
अधिग्रहीत कर सकेगा या उससे उध्दरण या प्रतिलिपियाँ
ले सकेगा।
4)
आयोग को सिविल न्यायालय होने के रूप में
समझा जाएगा एवं जब कोई अपराध जो भारतीय
दण्ड संहिता की धारा 175,
178, 179, 180, 228 में
वर्णित है, आयोग के मत में या उसकी उपस्थिति में किया
जाता है, तो अपराध का गठन करने वाले तथ्यों को तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में यथा उबन्धित अभियुक्त के बयानों को लेखबध्द करने के बाद, उस मामले को, उस पर विचारण करने का क्षेत्राधिकार रखने वाले मजिस्ट्रेट को
अग्रेषित करेगा तथा मजिस्ट्रेट,
जिसे वह मामला अग्रेषित किया जाएगा, उस अभियुक्त के विरुद्ध शिकायत को सुनने कीकार्रवाई उसी तरह करेगा जैसे
मानो वह मामला उसे दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 346 के
अन्तर्गत अग्रेषित किया गया है।
5)
आयोग के समक्ष प्रत्येक कार्रवाई को
धारा 193 व 228 के
अर्थान्तर्गत तथा
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 196 के प्रयोजनार्थ, न्यायिक कार्रवाई के रूप में समझा जाएगा, तथा आयोग को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195 एवं अध्याय XXVI के
समस्त प्रयोजनों के लिये सिविल न्यायालय होना समझा जाएगा।
6)
जहाँ आयोग ऐसा करना आवश्यक या समीचीन
समझे, वह आदेश द्वारि, उसके समक्ष फाइल या लम्बित किसी शिकायत को, इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसरण में निपटान के लिये उस राज्य के राज्य आयोग
को अन्तरित कर सकेगा,
जिससे शिकायत उदभुत हुई;
परन्तु यह कि ऐसी कोई शिकायत अन्तरित नही की
जाएगी जब तक कि वह ऐसी न हो जिसके बारे
में राज्य आयोग को उसे ग्रहण करने की अधिकारिता है।
7)
उपधारा 6 के
अधीन अन्तरित प्रत्येक शिकायत राज्य आयोग द्वारि ऐसे बरती जाएगी तथा निपटा जाएगी मानो वह ऐसी
शिकायत हो जो प्रारंभ से ही उसके समक्ष फाइल
की गई थी।
धारा 14. अनुसंधान
1)
आयोग, जांच
से संबंधित कोई अन्वेषण कराने के प्रयोजन के लिये, भारत
सरकार या किसी
राज्य सरकार के किसी अधिकारी या अन्वेषण एजन्सी की सेवाओं का उपयोग भारत सरकार
या राज्य सरकार, यथास्थिति, की सहमति से करेगा।
2)
जांच से संबंधित किसी मामले में अन्वेषण
करने के प्रयोजनार्थ,
कोई भी अधिकारी या एजन्सी, जिसकी सेवाओं का उपयोग उपधारा 1 के अधीन किया गया है, आयोग के निर्देश एवं नियन्त्रण के
अध्यधीन रहते हुए-
क.
किसी व्यक्ति को समन कर सकेगी तथा उसकी उपस्थिति को प्रवर्तित कर सकेगी एवं उसकी
परिक्षा कर सकेगी;
ख.
किसी दस्तावेज की खोज करने एवं प्रस्तुत करने की अपेक्षा कर सकेगी;
ग.
किसी कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति के लिये अधियाचना कर सकेगी।
धारा 15. आयोग को व्यक्तियों द्वारा किया गया
अभिकथन
आयोग के समक्ष साक्ष्य देने के दौरान व्यक्ति
द्वारा किया गया कोई,
अभिकथन, उस अभिकथन द्वारा झूठी साक्ष्य देने के
लिये अभियोग चलाने के सिवाय किसी सिविल या
आपराधिक कार्रवाई के अध्यधीन नही होगा या उसके विरुद्ध उपयोग में नही लिया जाएगा-
परन्तु
यह कि वह अभिकथन-
क.
उस प्रश्न के उत्तर में किया गया हो जिसका उत्तर देने के लिये आयोग द्वारा उससे
अपेक्षा की गई हो;
या
ख.
जांच के विषय से सुसंगत हो।
धारा 16. प्रतिकुल प्रभाव डालने की संभावना पर
व्यक्तियों की सुनवाई
यदि
किसी जांच के किसी स्तर पर,
आयोग-
क.
किसी व्यक्ति के आचरण के बारे में जा॔च करना आवश्यक समझता हो; या
ख.
यह राय रखता हो कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर उस जांच से प्रतिकुल प्रभाव पडने
की संभावना है;
तो
वह व्यक्ति को जांच में सुने जाने का तथा अपने बचाव में साक्ष्य प्रस्तुत करने का
युक्तियुक्त अवसर प्रदान करेगा;
परन्तु
यह कि इस धारा की कोई बात,
जहाँ किसी साक्षी की साक्ष्य पर आक्षेप
लगाया गया है, लागू नही होगी।
धारा 17. शिकायतों की जांच
आयोग
मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जांच करते समय-
(i)
भारत सरकार या किसी राज्य सरकार या उसके
अधीनस्थ किसी अन्य प्राधिकारी या संगठन
से सूचना या प्रतिवेदन ऐसे समय के भीतर मंगवाएगा जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाएगा:
परन्तु
यह कि-
क. यदि वह सूचना या प्रतिवेदन आयोग द्वारा
निर्धारित समय के भीतर प्राप्त नहीं
होता है, तो वह स्वंय शिकायत की जांच करने के
लिये कार्यवाही करेगा:
ख. यदि सूचना या प्रतिवेदन के प्राप्त होने
पर, आयोग का इससे समाधान हो जाता है कि या तो आगे और जांच करना अपेक्षित
नहीं है या संबंधित सरकार या प्राधिकारी
द्वारा अपेक्षित कार्रवाई प्रारम्भ कर दी गई है या कर ली गई है, तो वह
2)
खण्ड 1 में
अन्तर्विष्ट किसी बात पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि शिकायत की प्रकृति को ध्यान में रखते
हुए, आवश्यक समझे तो जांच प्रारम्भ कर सकेगा।
18. जॉच के दौरान और जांच के पश्चात कारवाई
धारा 19. सशस्त्र बलों के संबंध में प्रक्रिया
1)
इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के
होते हुए भी, सशस्त्र बल के सदस्यों द्वारा
मानव
अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों को निपटाते समय, आयोग
निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाएगा अर्थात-
क.
वह या तो स्वप्रेरणा से या प्रार्थना के प्राप्त होने पर, भारत सरकार से एक प्रतिवेदन मंगवाएगा;
ख, प्रतिवेदन प्राप्त होने के बाद, वह या तो शिकायत पर कार्रवाई नही करेगा, या यथास्थिति उस सरकार को अपनी
सिफारिशे॔ करेगा।
2.
भारत सरकार उन सिफिरिशों पर की गई
कार्रवाई की सूचना आयोग को तीन माह या ऐसे और समय के भीतर देगा जो आयोग स्वीकृत
करेगा।
3)
आयोग अपने प्रतिवेदन को भारत सरकार को
की गई अपनी सिफारिशें एवं उन सिफारिशों
पर उस सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के साथ प्रकाशित करेगा।
4.
आयोग याची या उसके प्रतिनिधि को उपधारा 3 के अधीन प्रकाशित प्रतिवेदन की एक प्रति
देगा।
धारा 20 आयोग के वार्षिक एवं विशेष प्रतिवेदन
1)
आयोग भारत सरकार एवं संबंधित राज्य
सरकार को एक वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत
करेगा तथा किसी भी समय किसी भी ऐसे मामले पर, जो
उसकी राय में, तनी आवश्यकता एवं महत्त्व का है कि
वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किये जाने तक
उसे आस्थगित नहीं रखा जाना चाहिए,
विशेष प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।
2)
भारत सरकार या राज्य सरकार, यथास्थिति, आयोग के वार्षिक एवं विशेष प्रतिवेदनों को, आयोग की सिफारिशों पर की गई या की
जानेके लिये प्रस्तावित
कार्रवाईके ज्ञापन एवं उन सिफारिशों को
स्वीकार नही करने के कारणों,
यदि कोई हो, के
साथ संसद के प्रत्येक सदन या राज्य विधान सभा के साक्ष्य, यथास्थिति, प्रस्तुत करएगी।
धारा21. राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन
1)
एक राज्य सरकार, …………………. राज्य का नाम मानव अधिकार आयोग के रुप
में की जाने वाल एक संस्था का इस अध्याय के
अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में
तथा राज्य आयोग को समनुदेशित कार्यों को निष्पादित करने के लिये, गठन करेगी।
2राज्य आयोग, ऐसी तारीख से जो राज्य सरकार अधिसूचना
द्वारा विनिर्दिष्ट करे,
निम्न से मिलकर बनेगा-
क.
एक अध्यक्ष, जो उच्च न्यायालय का एक मुख्य न्यायाधिश
रहा है;
ख. एक सदस्य, जो
राज्य में उच्च न्यायालय का एक न्यायाधीश अथवा जिला न्यायाधीश के रुप में न्यूनतम सात
वर्षों के अनुभव के साथ जिला न्यायाधीशहै, या रहा है;
2006 के अधिनियम 43 की धारा 12 द्वारा
उपधारा 2 के स्थान पर प्रतिस्थापित। अन्त:स्थापित।
ग. एक सदस्य, जिसकी
नियुक्ति उन व्यक्तियों में से की जाएगी जिन्हें मानव अधिकारों से संबंधित मामलो का ज्ञान हो
या उसमें व्यावहारिक अनुभव हो।
3
एक सचिव होगा जो राज्य आयोग का मुख्य
कार्यापालक अधिकरी होगा तथा राज्य आयोग
की ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा एवं ऐसे कार्यों का निर्वहन करेगा जो उसे प्रत्यायोजित किये जाएंगे।
4.
राज्य आयोग का मुख्य कार्यालय ऐसे स्थान
पर होगा जो राज्य सरकार,
अधूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करेगी।
5.
राज्य आयोग संविधान की सातवी अनुसूची
में सूची 2 एवं सूची एवं सूची 3 में उल्लेखित प्रविष्टियों में किसी से
संबंधित मामलों के बारे में ही मानव अधिकारों
के उल्लँघन की जांच करेगा:
परन्तु यह कि यदि ऐसे किस मामले पर पहले से ही
आयोग या ततस्मय प्रवृत्त किसी विधि के
अधीन विधिवत गठित किसी अन्य आयोग द्वारा जांच की जा रही हो तो राज्य आयोग उक्त मामले में जांच नही करेगा:
परन्तु यह और कि जम्मू एवं कश्मीर मानव अधिकार
आयोग के संध में,
यह उपधारा इस प्रकार प्रभाव रखेगी जैसी की मानो “संविधान की सातवी अनुसूची में सुची 2 , 3 ” के शब्दों एवं अंकों के लिए “संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची 3 जो जम्मू कश्मीर राज्य पर तथा उन मामलों के
सॣबंध में प्रयोज्य है,
जिके संबंध में उस राज्य के विधान मण्डल को नियम
बनाने की शक्ति है”
शब्द एवं अंकों को प्रतिस्थापित किया गया है।
16.
दो या अधिक राज्य सरकारें, राज्य आयोग के अध्यक्ष या सदसय की
सम्मति से, ऐसे अध्यक्ष या यथास्थिति ऐसे सदस्य को
एक ही समय में अन्य राज्य आयोग के लिये
नियुक्त कर सकती है यदि ऐसा अध्यक्ष या सदस्य ऐसी नियुक्ति केलिए सम्मति दे:
परन्तु यह की इस उपधारा के अधीन की गई प्रत्येक
नियुक्ति, उस राज्य के संबंध में जिसके लिये शामिलाती अध्यक्ष या सदस्य, या दोंनों , यथास्थिति, नियुक्त किये जाने है, धारा 22 की
उपधारा 1 में निर्दिष्ट समिति की अनुशंसाए प्राप्त होने के पश्चात की जाएगी। ]
धारा 22. राज्य आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति
1)
अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा
अपने हस्ताक्षर एवं मुद्रा सहित अधिपत्र
द्वारा की जाएगी:परन्तु
यह कि इस उपधारा के अधीन प्रत्येक नियुकति, समिति
की, जिसमें निम्न होंगे,
क.
मुख्यमंत्री- अध्यक्ष;
ख.
विधान सभा का अध्यक्ष- सदस्य;
ग.
उस राज्य में गृह मंत्रालय का प्रभारी मंत्री- सदस्य;
घ.
विधान सभा में विपक्ष का नेता- सदस्य:
परन्तु यह और कि जहाँ किसी राज्य में विधान
परिषद है, बहाँ उस परिषद का सभापति एवं परिषद में विपक्ष का नेता भी समिति
के सदस्य होंगे।
परन्तु यह भी कि उच्च न्यायालय का कोई आसीन
न्यायाधीश या आसीन जिला न्यायाधीश की नियुक्ति
संबंधी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बाद के सिवाय नही की जाएगी।
23. राज्य आयोग के अध्यक्ष या किसि सदस्य का त्यागपत्र तथा हटाया जाना
किसी राज्य आयोग का अध्यक्ष या कोई
सदस्य, राज्यपाल को संबोधित उसके द्वारा हस्ताक्षरित लिखित सूचना द्वारा
अपने पद का त्याग कर सकेगा।
1क. उपधारा 2 के उपबंधों के अध्यधीन, राज्य आयोग के अधयक्ष या किसी सदस्य को
उसके
पद से, राष्ट्रपति
के आदेश द्वारा, राष्टपति द्वारा उच्चतम न्यायालय को निर्देश दिये जाने पर, उच्चतम न्यायालय के द्वारा उस संबंध में
विहित प्रक्रिया के अनुसार की गई जांच पर यह
रिपोर्ट देने के बाद कि अध्यक्ष या ऐसॅसदस्य, यथासथिति, को
किसी ऐसे सिध्द कदाचार या अक्षमताके अधार पर हटाया जाना चाहिए, हटाया जाएगा।
2
4[उपधारा 1क ] में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति अध्यक्ष या किसी 5सदस्य को, आदेश
द्वारा पद से हटा देगा,
यदि अध्यक्ष या ऐसा 5सदस्य, यथास्थिति-
क.
दिवालिया न्यायनिर्णित कर दिया गया है;
ख.
अपने कार्यालय पदावधि में कार्यालय कर्तव्यों के बाहर किसी वैतानिक रोजगार में
लगता है; या
ग.
मस्तिष्क या शरीर की दुर्बलता के कारण पद पर बने रहने के लिए अयोग्य है; या
घ.
विकृत चित्त का है एवं सक्षम न्यायालय द्वारा इस प्रकार घोषित कर दिया गया है; या
ड.
किसी अपराध के लिए जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक पतन वाला है, सिध्ददोष हो गया है एवं उसे कारागार की
सजा दे दी
गई है।
2.-
2006 के अधिनियम 43 की धारा 14 द्वारा
शब्दों “राज्य आयोग के सदस्य का हटाया जाना ” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
3.-
2006 के अधिनियम 43 की धारा 14 द्वारा
उपधारा 1 के स्थान पर प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापन
के पूर्वउपधारा 1
निम्नानुसार थी-
“
1) उपधारा 2) के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, राज्य आयोग का अधयक्ष या किसी सदस्य को उसके पद से, राष्ट्रपति के आदेश द्वारा, उच्चतम न्यायालय को निर्देश दिये जाने पर, उच्चतम न्यायालय के द्वारा उस संबंध में
विहित प्रक्रिया के अनुसार की गई जांच पर यह
रिपोर्ट देने के बाद कि अध्यक्ष या ऐसे
सदस्य, यथास्थिति, को किसी ऐसे सिध्द कदाचार या अक्षमताके
अधार पर
हटाया जाना चाहिए, हटाया जाएगा।
24. राज्य आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की
पदावधि
अध्यक्ष के रुप में नियुक्त व्यक्ति उस दिनांक
से जिसको वह अपने पद पर प्रवेश करेगा, पाँच वर्ष की अवधि के लिए या जब तक वह
सत्तर वर्ष की आयु का नहीं होगा, इनमें जो भी पूर्व में हो, पद को धारित करेगा।
2)
सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति उस
दिनांक से जिसको वह अपने पद पर प्रवेश
करेगा, पाँच वर्ष की अवधि के लिए, पद को धारित करेगा तथा पाँच बर्षों की दूसरी अवधि के लिए पुनर्नियुक्ति
हेतु पात्र होगा:
परन्तु
यह कि कोई भी सदस्य सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद पद को धारण नही करेगा।
3)
पद पर नहीं रहने पर, अध्यक्ष या सदस्य राज्य सरकार या भारत
सरकार के अधीन आगे और नियुक्ति के लिये अपात्र होगा।]
1.-
2006 के अधिनियम 43 की धारा 15 द्वारा
धारा 24 के स्थान पर प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापन
के पूर्व धारा 24 निम्नानुसार थी-
धारा 25. कतिपय परिस्थितियों में सदस्य का
अध्यक्ष के रूप में कार्य करना या उसके कृृत्यों का निर्वहन
धारा 26. राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के निबंधन और शर्तें
सदस्यों
को संदेय वेतन एवं भत्ते,
एवं उनकी सेवा की अन्य शर्ते व निबन्धन, वे होंगी जो राज्य सरकार द्वारा विहित
की जाएगी:
परन्तु यह कि सदस्य के न तो वेतन एवं भत्ते और
न उसकी सेवा की शर्ते व निन्धन,
उसकी नियुक्ति के बाद उसके लिए अलाभकारी
रुप में परिवर्तित किये जाएंगे]
धारा 27. राज्य आयोग के अधिकारी एवं अन्य
कर्मचारी
1)
राज्य सरकार आयोग के लिये निम्न को
उपलब्ध कराएगी-
क.
एक अधिकारी जो राज्य सरकार के सचिव के रेंक के नीचे का नही होगा जो राज्य आयोग का
सचिव होगा; एव
ख. एक ऐसे अधिकारी के अधीन जो महानिरिक्षक, पुलिस के रेंक से नीचे का नहीं होगा, ऐसी
पुलिस एवं अन्वेषणकर्ता कर्मचारी एवं ऐसे अन्य अधिकारी एवं अन्य कर्मचारी जो राज्य आयोग के कार्यों के
कुशलतापूर्वक निष्पादन के लिए आवश्यक होंगे।
2.
ऐसे नियमों के अध्यधीन जो इस संबंध में
राज्य सरकार द्वारा बनाएं जाएंगे,
राज्य आयोग ऐसे अन्य प्रशासनिक, तकनीकी एंव वैज्ञानिक स्टाफ नियुक्त
करेगा जिसे वह आवश्यक समझेगा।
3)
उपधारा 2 के
अधीन नियुक्त अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियोँ के वेतन, भत्ते एवं उनकी सेवा की शर्ते वे होंगी
जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाएगी÷
धारा 28. राज्य आयोग के वार्षिक एवं विशेष
प्रतिवेदन
1)
राज्य आयोग राज्य सरकार को एक वार्षिक
प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा तथा किसी भी
समय किसी भी मामले
पर, जो
उसकी राय में, इतनी आवश्यकता एवं महत्त्व का है कि वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किये
जाने तक उसे आस्थगितनही रखा जाना चाहिए, विशेष प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।
2)
राज्य सरकार, राज्य आयोग के वार्षिक एवं विशेष
प्रतिवेदनों को, आयोग की सिफारिश पर की गई या की जाने के लिये
प्रस्तावित कार्रवाई के ज्ञापन एवं उन सिफारिशों
को स्वीकार नही करने के कारणों,
यदि कोई हो, के साथ राज्य विधान मण्डल के जहाँ इसके दो सदन हो, प्रत्येक सदन या जहाँ विधान मन्डल में
केवल एक सदन हो, उस सदन के समक्ष प्रस्तुत कराएगी।
धारा 29. राष्ट्रीय आयोग से संबंधित कुछ उपबन्धों
का राज्य आयोगों पर प्रयोज्य होना
धाराएँ 9, 10, 12, 13, 14, 15, 16, 17 एवं 18 के
उपबन्ध राज्य आयोग पर लागू होंगे
तथा निम्नलिखित उपान्तरनों के अध्यधीन होंगे, अर्थात’
क.
“आयोग” के
सन्दर्भ का अर्थ “राज्य आयोग” के सन्दर्भ में किया जाएगा;
ख.
धारा 10 की उपधारा 3 में, शब्द
“महासचिव” के
स्थान पर शब्द “सचिव” प्रतिस्थापित
किया जाएगा;
ग.
धारा 12 में खण्ड च को विलोपित किया जाएगा;
घ.
धारा 17 के खण्ड I में, शब्द, “भारत सरकार या कोई” विलोपित किये जाएंगे।
धारा 30 . मानव अधिकार न्यायालय
मानव अधिकारों के उल्लंघन से उत्पन्न अपराधों
के शीघ्र विचारण का उओबन्ध करने के
लिये, राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की
सहमति से, अधिसूचना द्वारा प्रत्येक जिले के लिये
उक्त अपराधों पर विचारण करने के लिए एक
सत्र न्यायालय को मानव अधिकार न्यायालय होने के रुप में विनिर्दिष्ट करेगी:
परन्तु
यह कि इस धारा में की कोई बात लागू नहीं होगी यदि—
क.
सत्र न्यायालय को पहले ही विशेष न्यायालय विनिर्दिष्ट किया गया है, या
ख.
वर्तमान में प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन ऐसे अपराधों के लिए विशेष न्यायालय
पहले ही गठित किया गया है।
धारा 31. विशिष्ट लोक अभियोजक
प्रत्येक
मानव अधिकार न्यायालय
के लिय, राज्य
सरकार, अधिसूचना द्वारा उस न्यायालय में मामलों
को संचलित
करने के प्रयोजनार्थ एक विशिष्ट लोक
अभियोजक के रुप में किसी एक लोक अभियोजक
को विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे एडवोकेट को नियृक्त करेगी जो एडवोकेट के रूप में कम से कम सात वर्षों
से प्रेक्टीस में रहा है।
धारा 32. भारत सरकार द्वारा अनुदान
1)
भारत सरकार, इस संबंधमें कानून के अनुसार इस संबंध
में संसद द्वारा
विनियोजन करने के बाद, अनुदान के रुप में आयोग को ऐसी धनराशि
का संदाय
करेगी जिसे भारत सरकार इन अधिनियम के
प्रयोजनार्थ उपयोग किये जाने हेतु उपयुक्त
समझेगी।
2)
आयोग इस अधिनियम के अधीन कार्यों को
निष्पादित करने के लिए ऐसी राशि व्यय करेगी
जो वह उचित समझे,
तथा ऐसी राशि को उपधारा 1 में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदेय व्यय के रुप में समझा
जाएगा।
धारा 33. राज्य सरकार द्वारा अनुदान
1)
राज्य सरकार, इस संबंध में कानून के अनुसार इस संबंध
में विधान मण्डल
द्वारा विनियोजन करने के बाद, अनुदान के रुप में राज्य आयोग को ऐसी
धनराशि का संदाय करेगा जिसे राज्य सरकार इस
अधिनियम के प्रयोजनार्थ उपयोग किये जाने
हेतु उपयुक्त समझेगी।
2)
राज्य आयोग अध्याय पाँच के अधीन कार्यों
के निष्पादन के लिए ऐसी राशि व्यय
करेगी जो वह उचित समझे,
तथा ऐसी राशि को उपधारा 1 में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदेय व्यय के रुप में
समझा जाएगा
धारा 34. लेखे एवं लेखा परिक्षा
आयोग
उचित लेखे एवं सुसंगत
अभिलेख रखेगा तथा लेखों का वर्षिक विवरण
ऐसे प्रपत्र में तैय्यार करेगा जो भारत
के नियन्त्रक एवं महालेखा परिक्षक के परामर्श से भारत सरकार द्वारा विहित किया जाएगा।
2)
आयोग के लेखों की लेखा परिक्षा नियन्त्रक एवं
महालेखा परीक्षकद्वारा ऐसे अन्तरालों पर
कराई एगी जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएंगे एवं ऐसी लेखा परिक्षा के संबंध में किया गया कोई भी व्यय आयोग
द्वारा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक
को संदेय होगा।
3)
नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक एवं इस
अधिनियम के अधीन आयोग के लेखों की लेख
परिक्षा के संबंध मेंउसके द्वारा नियुक्त किया गया कोई भी व्यक्ति, ऐसी लेखा परिक्षा के संबंध में वे ही अधिकार, विशेषाधिकार एवं प्रादिकार रखेगा जो नियन्त्रक एवं महालेखा परिक्षक
सामान्यता सरकारी लेखों की लेखा परीक्षा के
संबंध में रखता है,
एवं विशेष रुप से, उसे आयोग की पुस्तकों, लेखों, संबंधित
वाउचरो॔ एवं अन्य दस्तावेजों एवं कागजों को मांगने का, तथा आयोग के कार्यालयों का निरिक्षण करने का अधिकार
होगा।
4)
नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक या इस
संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य
व्यक्ति द्वारा किया यथा प्रमाणित, आयोग
के लेखों को, उस पर लेखा परिक्षा प्रतिवेदन के साथ आयोग द्वारा
हर वर्ष भारत सरकार को अग्रेषित किया जाएगा
तथा भारत सरकार से प्राप्त करने के बाद यथा शक्य शीघ्र, संसद के पर्त्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत
करवाएगी।
धारा 35. राज्य आयोग के लेखे एवं लेखा परिक्षा
1) राज्य आयोग उचित लेखे एवं सुसंगत अभिलेख तैयार करेगा तथा लेखों का वार्षिक विवरण
ऐसे प्रपत्र में तैयार करेगा जो भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परिक्षक
के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा विहित किया जाएगा।
2) राज्य आयोग के लेखों की लेखा परीक्षा नियन्त्रक एवं महालेखा
परीक्षक द्वारा ऐसे अनतरालों पर कराई जाएगी
जो उसके द्वारा विनिलदिष्ट किये ज एगें एवं ऐसी लेखा परिक्षा के संबंध में
किया गया कोई भी व्यय राज्य आयोग द्वारा नियन्त्रक एवं महालेखा परिक्षक को
संदेय होगा।
3) नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक एवं इस अधिनियम के अधीन राज्य आयोग
के लेखों की लेखा परीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किया गया
कोई भी व्यक्ति, ऐसी लेखा परिक्षा के संबंध में वे
ही अधिकार, विशेषाधिकार एवं प्राधिकार रखेगा जो नियन्त्रक एवं
महालेखा परिक्षक सामान्यतया सरकारी लेखों की लेखा परीक्षा के संबंध में रखता
है, एवं विशेष रुप से, उसे आयोग की पुस्तकों, लेखो, संबंधित वाउचरों
एवं अन्य दसतावेजों एवं कागजातों को मागंने का, तथा राज्य आयोग
के कार्यालयों का निरिक्षण करने का अधिकार होगा।
धारा 36. मामले जो आयोग की अधिकारिता में नहीं
आते
1)
आयोग ऐसे किसी मामले में जांच नहीं
करेगा जो राज्य आयोग या वर्तमान में प्रवृत्त
किसी विधि के अधीन किसी अन्य आयोग के समक्ष लम्बित है।
2)
आयोग या राज्य आयोग उस तारीख से जिसको
कि मानव अधिकारों के उल्लंघन करने वाला
कृत्य किये जाने का आरोप किया गया है, एक
वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद
किसी मामलें जांच नहीं करेगा।
धारा 37. विशेष अन्वेषण दल का गठन
वर्तमान
में प्रवृत्त
किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी
बात के होते हुए भी,
जहाँ सरकार ऐसा करने का विचार करती हो, मानव अधिकारों के उल्लंघन के उत्पन्न
अपराधों के
अन्वेषण एवं अभियोजन के लिये आवश्यक एक
या अधिक विशेष अन्वेषण दलों,
जिनमें पुलिस अधिकारी होंगे, का गठन करेगा।
धारा 39. सदस्य एवं अधिकारी लोक सेवक होंगे
आयोग, राज्य आयोग का प्रत्येक सदस्य एवं इस अधिनियम के
अधीन कृत्यों का प्रयोग करने के लिए आयोग
या राज्य आयोग द्वारा नियुक्त प्रत्येक अधिकारी को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 21 के
अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझा जाएगा।
धारा 40 भारत सरकार की नियम बनाने की शक्ति
1)
भारत सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को निष्पादित
कराने के लिये, अधिसूचना द्वारा, नियम बना सकती है।
2)
विशेष रूप से तथा पूर्वोक्त शक्ति की
सामान्यतया पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ये नियम निम्नलिखित सभी या किनही मामलों
के लिए उपबन्ध कर सकते है,
अर्थात-
क.
धारा 8 के अधीन 1[अध्यक्ष
एवं सदस्यों] के वेतन एवं भत्ते तथा उनकी सेवा की अन्य शर्ते;
ख, शर्ते जिनके अध्यधीन अन्य प्रशासनिक, तकनीकी एवं वैज्ञानिक स्टाफ की नियुक्ति आयोग द्वारा की जाएगी तथा धारा
11 की उपधारा 3 के अधीन अधिकारियों एवं अन्य स्टाफ के वेतन एवं भत्ते;
ग.
धारा 13 की उपधारा 1 के खण्ड च के अधीन विहीत किये जाने हेतु
अपेक्षित सिविल न्यायालय की कोई अन्य शक्ति;
घ.
प्रपश्र जिसमें धारा 34
की उपधारा 1 के अधीब आयोग द्वारा लेखों का वार्षिक
विव रण तैयार किया जाना है;
एवं
ड.
कोई अन्य मामला जिसे विहित किया जाना है या विहित किया जाएगा।
3
इस अधिनियम के अन्तर्गत बनाया गया
प्रत्येक नियम, उसके बनाए जाने के बाद यथाशक्य शीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के
समक्ष जब वह तीस दिन की कुल अवधि के लिए
सत्र में हो जो एक सत्र या दो या दो से अधिक क्रमिक सत्रों को मिलकरहो सकती है, प्रस्तुत
रखा जाएगा एवं यदि उस सत्र या कर्मिक सत्रों के ठिक बाद वाले सत्र की समाप्ति से पूर्व, दोनों सदन नियमों में कोई उपान्तरण करने के लिए सहमत हो जाते है या दोनो सदन यह
सवीकार करते है कि नियम नही बनाये जाने
चाहिए, तो वह नियम उसके बाद उस उपान्तरित रूप
मे ही प्रभाव रखेगा या
यथास्थिति, निष्प्रभावी होगा, किन्तु तथापि यह कि ऐसा को भी उपान्तरण
या निराकरण से उस नियन के अधीन पूर्व में
की गई किसी चीज की विधिमान्यता पर प्रतिकुल
प्रभाव नहीं पडेगा।
धारा 41. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति
1)
राज्य सरकार, इस अधिनियम के उपबन्धों को निष्पादित
कराने के लिए, अधिसूचना द्वारा, नियम बना सकती है।
2_
विशेष रुप से तथा पूर्वोक्त शक्ति की
सामान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ये नियम निम्नलिखित सभी या किन्ही
मामलों के लिए उपबन्ध कर सकते है,
अर्थात-
क.
धारा 26 के अधिन 1[अध्यक्ष
एवं सदस्यों] के वेतन एवं भत्ते तथा उनकी सेवा की अन्य शर्ते;
ख. शर्ते जिनके अध्यधीन अन्य प्रशासनिक, तकनिकी एवं वैज्ञानिक स्टाफ की नियुक्ति राज्य आयोग द्वारा की जाएगी
तथा धारा 27 की उपधारा 3 के अधीन अधिकारियों एवं अन्य स्टाफ के वेतन एवं
भत्ते;
ग.
प्रपत्र जिसमें धारा 35
की उपधारा 1 के अधीन लेखों का वार्षिक वि वरण तैयार
किया जाना है।
3)
इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक
नियम, उसके बनाये जाने के बाद, यथा शक्य शीघ्र, राज्य विधान मण्डल के जहाँ दो सदन हो, प्रत्येक सदन के समक्ष या जहाँ विधान मण्डल का एक सदन हो, उस सदन के समक्ष रखा जाएगा।
.1-
2006 के अधिनियम 43 की धारा 19 द्वारा
शब्द “सदस्यो” के
स्थान पर प्रतिस्थापित।
धारा 42. कठिनाइयों के निराकृत करने की शक्ति
1)
यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को
क्रियान्वित करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती
है तो भारत सरकार,
शासकीय राजपत्र में प्रकाशित आदेश
द्वारा, ऐसे उपबन्ध करेगी, जो इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत
नहीं होंगे, तथा जो कठिनाई के निराकरण के लिए आवश्यक या
समीचीन होना प्रतीत होते हो:
परन्तु
यह कि ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ होने की तारीख से दो वर्ष की अवधि
समाप्त होने के बाद नहीं किया जाएगा।
2)
इस धारा के अधीन दिया गया प्रत्येक आदेश, उसके बनाए जाने के बाद यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के सामने रखा
जाएगा।
धारा 43. निरसन एवं व्यावृत्ति
1)
मानव अधिकार संरक्षण अध्यादेश, 1993 को एतदद्वारा निरस्त किया जाता है।
2)
ऐसे निरसन के होते हुए भी, उक्त अध्यादेश के अधीन की गई कोई चीज या
कोई कार्रवाई को, इस अधिनियम के तदनुसार उपबन्धों के अधीन
किया हुआ या लिया हुआ
समझा जाएगा।
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Quick Revision
- मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 संपूर्ण देश में 28 सितम्बर, 1993 से लागू हुआ।
- जम्मू-कश्मीर के मामले में संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लेखित कुछ निश्चित प्रवर्तित विषयों तक ही इसका क्षेत्राधिकार है।
- मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में मानव अधिकार को परिभाषित किया गया है।
- इसे व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा गरिमा से संबंधित बताया गया है जिसे संविधान द्वारा गारंटी प्रदान की गई है।
- ये अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं (International Covenants) में समाविष्ट हैं तथा भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय (enforceable) हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा का तात्पर्य सिविल और राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा तथा 16 दिसंबर, 1966 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए ऐसे अन्य प्रसंविदा या अभिसमय (Covenant or Convention) से है जिसे केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट (Specify) करे।
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