मुहम्मद गौरी के आक्रमण, मध्यकालीन भारत, दिल्ली सल्तनत
मुहम्मद गौरी के आक्रमण
- मुदम्मद गजवनी के बाद मुहम्मद गौरी ने 1175 से 1205 ईस्वी के बीच भारत पर अनेक आक्रमण किया, क्योंकि यहां के शासक शिया थे।
- 1191 ई. के तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गौरी पराजित हुआ लेकिन 1192 ई. में तराइन के द्वितीय युद्ध के में उसने पृथ्वी चौहान को पराजित किया तथा उसकी हत्या कर दी।
- 1194 ई. में मुहम्मद गौरी ने चंदावर के युद्ध में कन्नौज के राजा जयचंद्र को हराया। 1206 ई. मु. गौरी की मृत्यु के बाद ऐबक उसके भारतीय साम्राज्य का शासक बना तथा उसने यहां गुलाम वंश की नींव डाली।
मध्यकालीन भारत दिल्ली सल्तनत
- 1206 ई. से लेकर 1526 ई. तक के कुल 320 वर्षो तक दिल्ली पर मुस्लिम सुल्तानों का शासन रहा, इसे दिल्ली सल्तनत का काल कहा जाता है। कुतबुद्दीन ऐबक, दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था। दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत पांच पृथक वंशों का शासन रहा, जो इस प्रकार हैं-1. गुलाम- 1206-1290 ई. ( 84 वर्ष तक शासन किया )
- खिलजी वंश -1290-1320 ई. ( 30 वर्ष-सबसे छोटा शासन
- तुगलक वंश-1320-1414 ई. ( 96वर्ष-सबसे छोटा लंबा शासन )
- सैय्यद वंश-1414-1451 ई. ( 36 वर्ष )
- लोदी वंश-1451-1526 ई. (76 वर्ष )
विभिन्न शासकों का शासनकाल
गुलाम वंश: गुलाम वंश के 84 वर्षो के शासनकाल में 4 शासक हुये, जिनके नाम एवं शासनकाल इस प्रकार हैं-
- 1.कतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई. )
- 2. आरामशाह (1211 ई. )
- 3. इल्तुतमिश ( 1211-1236 ई. )
- 4. रूकनुद्दीन (1236 ई. )
- 5. रजिया ( 1236-40 ई. )
- 6. बहरामशाह (1240-42 ई. )
- 7. मसूदशाह (1242-46 ई. )
- 8. नासिरूद्दीन महमूद (1246-66 ई. )
- 9. गयासुद्दीन बलबन (1266-87 ई. )
- 10. कैकुबाद (1287-90 ई. )
2. खिलजी वंश:
इस वंश के 20 वर्ष के शासनकाल में 4 शासक हुये, जिनके नाम एवं शासनकाल इस प्रकार हैं-
- 1.जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ( 1290-1296 ई. )
- 2. अलाउद्दीन खिलजी (1296-1396 ई. )
- 3. कुतबुद्दीन मुबारक खां ( 1316-1320 ई. )
- 4. खुसरव शाह ( अप्रैल-सितंबर, 1320 ई.)
3. तुगलक वंश:
इस वंश के 96 वर्ष के शासनकाल में 8 शासक हुये, जिसके नाम एवं शासनकाल इस प्रकार हैं-
- 1. गियासुद्दीन तुगलक शाह (1320-1325 ई. )
- 2. मुहम्मद-बिन-तुगलक (1325-1351 ई. )
- 3. फिरोज तुगलक (1351-1388 ई. )
- 4. गियासुद्दीन तुगलक द्वितीय (1388-89 ई. )
- 5. अबू वक्र (1389 ई.)
- 6. नसिंरूद्दीन मुहम्मद शाह ( 1390-94 ई. )
- 7 अलाउद्दीन सिकंदरशाह या हुमायूं (1394-मात्र छःसप्ताह तक )
- 8. नसिरूद्दीन महमूदशाह ( 1394-1414 ई. )
4. सैय्यद वंश:
इस वंश के 36 वर्ष के शासनकाल के 4 शासक हुये, जिसके नाम एवं शासनकाल इस प्रकार हैं-
- 1. खिज्र खां ( 1414-1421 ई. )
- 2. मुबारक शाह (1421-1434 ई. )
- 3.मुहम्मद शाह (1434-1445 ई. )
- 4. अलाउद्दीन आलमशाह (1445-1450 र्इ्र. )
लोदी वंश:
इस वंश के 76 वर्ष के शासनकाल में 3 शासक हुये जिसके नाम एवं शासनकाल इस प्रकार हैं-
- 1.बहलोल लोदी ( 1451-1489 ई. )
- 2. सिकंदर लोदी ( 1489-1517 ई. )
- 3. इब्राहीम लोदी (1517-1526 ई. )
दिल्ली सल्तनत का राजनीतिक इतिहास
गुलाम वंश (1206-1290 ई. )
- 1206 से 1290 के मध्य दिल्ली सल्तनत के सुल्तान ‘ गुलाम वंश से सुल्तान ‘ के नाम से जाने जाते है। वैसे वे एक वंश के नहीं थे। सभी सुल्तान ‘ के तुर्क ‘ के थे एवं उनके वंश पृथक्-पृथक् थे।
- कुतबुद्दीन ऐबक ने ‘ कुत्बी ‘ इल्तुतमिश ने ‘ शम्मी ‘ तथा बलबनी ‘राजवंश की स्थापना की। इन सुल्तानों का गुलाम वंश का सुल्तान कहने के स्थान पर प्रारंभिक तुर्क सुल्तान ‘ अथवा ‘ दिल्ली के ममलूक ‘ सुल्तान कहना अधिक उचित है।
- दिल्ली सल्तनत के शासकों को‘ ‘पठान ‘ भी कहां जाता है, जबकि गुंलाम ,खिलजी, तुगलक एवं सैय्यद तुर्क थे, पठान या अफगान नहीं। केवल लोदी वंश ही पठान था।
- गुलाम वंश भारत का प्रथम मुस्लिम सुल्तान कुतबुद्दीन ऐबक ( 1206-1206 ई. ) था। ऐबक मूल रूप से तुर्किस्तान का था। वह मुहम्मद गौरी क गुलाम था लेकिन उसकी सेवा से प्रसन्न होकर गौरी ने उसे अपना प्रमुख बना लिया। 1206 में वह सुल्तान बना। कुतबुद्दीन ने अपनी पुत्री का विवाह अपने प्रमुख गुलाम इल्तुतमिश से कर दिया।
- कुतबुद्दीन ने केवल 4 वर्षों तक शासन किया और 1210 ईस्वी में पोलो में दौरान में चोटग्रस्त हो जाने से उसकी मृत्यु हो गई।
- उसने कुतुुबमीनार का निर्माण कार्य भी आरंभ किया था। यह बहुत दानी शासक था, जिसने कारण उसे ‘ लाखबख्श ‘ कहा जाता था।
- आरामशाह (1211 ईस्वी ) मात्र 1 वर्ष ही दिल्ली का सुल्तान रहा।
- आरामशाह के बाद इल्तुतमिश (1211-1236 ई. ) शासक बना। इल्तुतमिश बहुत ही योग्य शासक था।
- इल्तुतमिश को ‘ दिल्ली सुल्तनत का वास्वविक संस्थापक ‘ कहते हैं। उसने 1232 ई. में कुतुबमीनार का निर्माण पूरा किया। इसने शासन के सहायता देने के लिये अपने 40 गुलाम सरदारों का एक दल बनाया , जिसे ‘ चालीसा दल ‘ कहां जाता है। इसके समय फारसी भाषा का प्रभाव दिन्दी पर पड़ा, जिसके फलस्वरूप एक नवीन शैली का विकास हुआ, जो ‘खड़ी बोली ‘ कहलाई । इसी के समय उर्दू भाषा का भी जन्म हुआ । तबकात-ए-नासिरी के लेखक मिन्हाज-उस-सिराज,रूहानी एवं मलिक ताजुद्दीन रेजाब को इल्तुतमिश ने संरक्षण प्रदान जवामी-उल-हिकायत की रचना की।
- इस काल में भारतीय कला पर इस्लामी प्रभाव पड़ना प्रारंभ हुआ , जिसके कारण मुस्लिम तथा हिन्दू की एक नवीन शैली का जन्म हुआ।
- इल्तुतमिश ने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को राजधानी बनाया। इक्ता की शासन व्यवस्था तथा सुल्तान की सेना के निर्माण का विचार सर्वप्रथम इल्तुतमिश ने ही दिया।
- वह पहला तुर्क सुल्तान था, जिसने ‘ शुद्ध अरबी सिक्के ‘ चलाये। सल्तनत युग के दो महत्वपूर्ण सिक्के चांदी का ‘ टंका ‘ (175 ग्रेन ) तथा तांबे का ‘ जीतल ‘ उसी ने ही चलाया।
- इल्तुतमिश के बाद दरबारियों ने 1236 ईस्वी में रूक्नुद्दीन को शासन बना दिया। लेकिन कुछ ही महीनों में उसका वध कर दिया गया।
- रूक्नुद्दीन के बाद उसकी बहन रजिया (1236-40 ई. ) ने शासन संभाला। यह इल्तुतमिश की पुत्री थी।
- रजिया एकमात्र महिला सुल्तान थी, जो दिल्ली के सिंहासन पर बैठी।
- इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों में रजिया पहली तथा अंतिम सुल्तान थी, जिसने अपनी योग्यता और चरित्र बल से बल से दिल्ली से की सत्ता प्राप्त की। उसे जनता के शासक बनाया था। रजिया के पतन का मुख्य कारण अमीरों और मलिकों की महत्वाकांक्षाएं थीं।
- रजिया के बाद मुईजुद्दीन बहरामशाह (1240-42 ई. )
- सुल्तान बना। इसके समय तुर्क अमीरों को ‘ नायब-ए-मुमलिकत ‘ नियुक्त करने का भी अधिकार मिला। एतगीन को पहला ‘ नायब-ए-मुमलिकत ‘ बनाया गया। 1242 ई. में सैनिकोें द्वारा उसकी हत्या कर दी गयी।
- बहरामशाह के बाद मसूदशाह (1242-46 र्इ्र. ) शासक बना। इसके समय मुख्य शक्ति बलबन के हांथों में थी। जून, 1246 ई. में मसूदशाह को सिंहासन से हटा दिया गया। तथा कारागार में उसकी मृत्यु हो गयी तथा नसीरूद्दीन महमूद नया शासक बना।
- नसीरूद्दीन महमूद (1246-66 ई. ) ने स्वयं कभी शासन नहीं किया। शासन की वास्तविक शक्ति बलबन के हांथों में रहीं। सुल्तान महमूद एक धार्मिक सुल्तान था। उसके बारे में कहां जाता है कि वह कुरान की नकल कर उसे बेचता था तथा उसी से अपना खर्च चलाता था तथा उसकी बीबी स्वयं खाना बनाती थी।
- 36 वर्ष की अवस्था में 1265 ई. में सुल्तान की मृत्यु हो गयी। इसके बाद बलबन बना।
- गयासुद्दीन बलबन ( 1266-87 ई. ) ने एक नवीन राजवंश ‘ बलबन ‘ की नींव डाली। बलबन प्रारंभ में इल्तुतमिश के चालीसा गुलामों का एक सदस्य था लेकिन बाद में वह अपनी योग्यता से सुल्तान बन गया।
- बलबन से राजत्व के सिद्धांत का प्रतिपादन किया तथा सुल्तान की प्रतिष्ठा की स्थापना की।
- बलबन दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था , जिसने यह कहां कि सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और उसका स्थान केवल पैगम्बर के पश्चात् है।
- बलबन ने स्वयं को विद्वांन फिरदौसी की रचना शाहनामों के शूरवीर पात्र ‘ अफ्रीसीयाब ‘ का वंशज घोषित किया । बलबन के दरबार में ईरानी परंपराओं ‘ सिजदा ‘ ( साष्टांग दण्डवत ) तथा ‘ पैबोस ‘ ( सुल्तान के कदमों को चूमना ) को प्रारंभ किया। दरबार में प्रतिवर्ष ईरानी त्यौहार ‘ नौरोज ‘ मनाना शुरू किया गया।
- बलबन ने एक स्थायी सेना रखना प्रारंभ किया तथा इल्तुतमिश के समय बनाये गये चालीसा दल को समाप्त कर दिया। बलबन के बाद छः माह के लिये कैखुसरव शासक बना। फिर क्यूमर्स को सुल्तान बनाया गया लेकिन जलालुद्दीन खिलजी ने सत्ता हथिया कर दिल्ली में एक नये वंश खिलजी वंश की नींव डाली।
खिलजी वंश (1290-1320 ई. )
- जलालुद्दीन खिलजी (1290-1296 ई. ) ने दिल्ली में एक नवीन राजवंश ‘खिलजी वंश ‘ की स्थापना की। 13 जून, 1290 ई. को कैकुबाद द्वारा बनवाये गये ‘ किलोखरी‘ ( कीलूगढ़ी ) के महल में जलालुद्दीन का राज्याभिषेक हुआ तथा उसने ‘ जलालुद्दीन फिरोज ‘ की उपाधि धारण की।
- जलालुद्दीन के समय में उसके भतीजे तथा कड़ा-माणिकपुर के सूबेदार अलाउद्दीन ने 1296 ई. में दक्षिण भारत के राज्य देवगिरि पर आक्रमण किया था। यहां का राजा रामचंद्रदेव था। मुसलमानों का दक्षिण भारत में यह पहला आक्रमण था। 20 जुलाई, 1296 को नदी के किनारे ही अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन का वध करवा दिया।
- अलाउद्दीन खिलजी ( 1296-1216 ई . ) के बचपन का नाम अली गुर्शास्य था। अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का एक महान शासक था।
- अलाउद्दीन खिलजी ने ‘ सिकंदर द्वितीय ‘ ( सानी ) की उपाधि धारण की।
- अलाउद्दीन ने अपने शासन में इस्माल के सिंद्वातों का का पालन नहीं किया। उसने खलीफा से सुल्तान के पद की स्वीकृति नहीं ली तथा स्वयं ही ‘ यामीन उल खिलाफत नासिरी अमीर मुमनिन ‘ ( खलीफा का नाइब ) की उपाधि धारण की। अलाउद्दीन दिल्ली का पहला सुल्तान था, जिसने धर्म पर राज्य का नियंत्रण स्थापित किया।
- अलाउद्दीन ने राज्य के चौधरी, खुत तथा मुकद्दम, जो पुराने लगान अधिकारी थे तथा सभी हिन्दू थें, से लगान वसूल करने का अधिकारी छीन लिया और उनके विशेषाधिकार समाप्त कर दिये।
- अलाउद्दीन ने लगान ( खराज ) पैदावार का 1/2 भाग कर दिया। अलाउद्दीन ने भूमि की पैमाइश ‘ कराकर लगान वसूल करना प्रारंभ किया। इसके लिये एक बिस्बा ‘को इकाई माना गया। ऐसा करने वाला अलाउद्दीन पहला शासक था।
- अपनी लगान व्यवस्था को लागू करने के लिये अलाउद्दीन ने एक पृथक् विभाग ‘दीवान-ए-मुस्तखराज ‘ की स्थापना की तथा इसमें अनेक पदाधिकारियों को नियुक्त किया।
- अलाउद्दीन ने केंद्र की विशाल सेना के व्यय को वहन करने के लिये बाजार व्यवस्था लागू की।
- शहाना-ए-मण्डी ‘ के कार्यालय में सभी व्यापारियों को पंजीकरण कराना पडता था। इन कार्यो की देखभाल के लिये दीवान-ए-रियासत और ‘ शहाना-ए-मंण्डी ‘तथा ‘ मुनहीयान्स ‘ आदि पदाधिकारियों को भी नियुक्त किया गया।
- अलाउद्दीन ने केंद्र में एक स्थायी तथा बड़ी सेना रखी और उसे नकद वेतन दिया। ऐसा करने वाला वह दिल्ली का पहला शासक था।
- अलाउद्दीन ने सेना में अनेक सुधार किये। घोंड़ों को दागने तथा सैनिकों का हुलिया रखने की प्रथा प्रारंभ की गईं। सैनिकों की भर्ती ‘ आरिज-ए-मुमलिक द्वारा की जाने गली। इन सुधारों से अलाउद्दीन एक श्रेष्ठ सेना का निर्माण करने में सफल हुआ।
- अलाउद्दीन ने दक्षिण भारत की विजय के लिये अभियान किये। अलाउद्दीन के दक्षिण भारत के राज्यों में आक्रमण करने का उद्देश्य धन और विजय की इच्छा दोनों थे।
- अलाउद्दीन के समय में दक्षिण भारत की विजय का प्रमुख श्रेय मलिक काफूर को है, जिसे एक गुलाम के रूप में खरीदा गया था और जो अपनी योग्यता से राज्य शासन के सबसे बड़े पद नाइब तक पहुंचा था। मलिक काफूर एक हिजड़ा था।
- उसके समय दक्षिण भारत में चार संपन्न एवं शक्तिशाली राज्य थेः 1. होयसलः वीरवल्लाल तृतीया-राजधानी द्वारसमुद्र, 2.तेलंगाना का काकतीय राज्यः प्रताप रूद्रद्ेव द्वितीय-राजधानी वारंगल,3. पाण्ड्य राज्यः वीरपण्ड्य और संुदर पाण्ड्य में संघर्ष-राजधानी मदुरई एवं 4. यादवों का देवगिरी राज्यः शासक रामचंद्र देव-राजधानी देवगिरी।
- तेलंगाना पर आक्रमण के समय यहां के शासक प्रताप रूद्रदेव ने काफूर को विश्व-प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भी भेंट में दिया। अलाउद्दीन के समय में मंगोलों के सबसे भयंकर और अधिक आक्रमण हुये। परंतु अलाउद्दीन ने उन सभी के विरूद्ध सफलता प्राप्त की।
- 5 जनवरी, 1316 ई. को बीमारी से अलालद्दीन की मृत्यु हो गयी। उसके अंतिम समय में कलिक काफूर ने शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी।
- दक्षिण भारत पर विजय प्राप्त करने वाला अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था।
- अलाउद्दीन के दरबार में अमीर खुसरो और अमीर हसन देहलवी जैसे प्रसिद्ध विद्वान थे।
- उसने ‘हजार खभ्भा महल ‘ ‘ सीरी का किला ‘ तथा अनेक तालाब और सरायों का निर्माण करवाया। ‘ राजा कोई संगा-संबंधी नहीं होता। ‘ यह कथान अलाउद्दीन खिलजी ने कहां था।
- कुुतुबमीनार के निकट उसने ‘अलाई दरवाजा ‘ बनवाया। सीरी का किला ( कोश्क-ए-सीरी ) भी उसने 1203 ई. में बनवाया, जिसमें सात दरवाजे थे।
- कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी उदार शासक था लेकिन बाद में उसका मानसिक संतुलन बिगाड़ गया। वह स्त्रियों के कपड़े पहनकर दरबार में आने लगा।
- मुबारक ने स्वयं को खलीफा घोषित किया।
- 15 अप्रैल, 1320 ई. की रात्रि को खुसरव ने मुबारक का कत्ल करा दिया।
- इसकें बाद खुसरव शाह ( अप्रैल-सितंबर, 1320 ई. ) खिलजियों का नया सुल्तान बना। यह हिन्दू धर्म से परिवर्तित मुसलमान था। तथा उसने गुजराती हिन्दू सैनिकों का समर्थन प्राप्त था।
- गाजी कलिक तुगलक, दीपालपुर का सूबेदार तथा सीमा रक्षक था। उसने इंद्रप्रस्थ के निकट खुसरवशाह को पराजित कर दिया तथा तिलपट के निकट उसे पकड़कर उसका वध कर दिया। इसके बाद दिल्ली सल्तनत में एक नये राजवंश तुगलक वंश का शासन प्रारंभ हुआ।
तुगलक वंश (1320-1414 ई. )
- तुगलक वंश की नींव ‘ गियासुद्दीन तुगलक ‘ ने डाली। गियासुद्दीन तुगलक का नाम गाजी तुगलक या गाजी बेग तुगलक था। इस कारण इतिहास में उसके उत्तराधिकारियों को भी ‘ तुगलक ‘ पुकारा जाने लगा और उसका वंश ‘ तुगलक वंश ‘ कहलाया। इइ वंश का प्रथम शासक गियासुद्दीन तुगलक ( 1320-1325 ई. ) था। इसका पिता कलिक तुगलक, बलबन का एक तुर्की गुलाम था तथा उसकी माता एक जाटनी थी। गियासुद्दीन ने कृषि योग्य भूमि में वृद्धि की तथा किसानों की स्थिति में सुधार किया। उसने लगान पिर्धारण के लिये भूमि की पैमाइश के तरीके को छोड़कर ‘ नस्क ‘ और ‘ बटाई ‘ की प्रथा जारी रखी। उसने बहुत से बाग लगवाये तथा सिंचाई की उचित व्यवस्था की।
- गियासुद्दीन ने पुलो एवं नहरों का निर्माण करवाया तथा सड़कें ठीक करायीं। उत्तम ‘ डाक व्यवस्था ‘ की स्थापना की। गियासुद्दीन एक कुशल सेनापति था। अतः उसने सैनिक व्यवस्था की ओर पूर्ण ध्यान दिया। ‘ दाग ‘ और हुलिया‘ की प्रथाओं को कठोरतापूर्वक लागू किया। गियासुद्दीन के समय औलियों ने कहा था‘ अभी दिल्ली दूर है। ‘ तुगलकाबाद से 3-4 किमी. दूर ‘ अफगानपुर ‘ नामक स्थान गियासुद्दीन का निधन हो गया। तथा इसके बाद मु. बिन तुगलक शासक बना।
- मुहम्मद-बिन-तुगलक (1325-1351 ई . ) ने शासक बनते समय ‘ जूना खां ‘ की उपाधि धारण की ।
- इसामी , बरनी तथा इब्नबतूता इसके तीन समकालीन इतिहासकार थे तथा इसके विवतरण से मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासनकाल के बारे में जानकारियां मिलती हैं। इसने अपने सिक्कों पर ‘ अल-सुल्तान-जिल्ली-अल्लाह ‘ ( सुल्तान ईश्वर की छाया है ) लिखवाया । इसने 1340 ई. में मिस्र के खलीफा के एक वंशज गियासुद्दीन मुहम्मद को दिल्ली बुलवाया, उसका सम्मान किया तथा उससे गर्दन पर पैर रखवाकर उसे उपहार दिया। मु. तुगलक प्रथम सुल्तान था, जिसने योग्यता के आधार पर पद देना प्रारभ किया। हिन्दूू तथा भारतीय मुसलमान दोनों को उसके शासन में उच्च पद प्राप्त करने का अवसर दिया। मु. तुगलक ने ‘ मकान तथा ‘चारागाह कर भी लगाया। मु. तुगलक ने पांच प्रमुख कार्य किये-राजधानी परिवर्तन ( दिल्ली से दौलताबाद या देवगिरी ), 2. सांकेेतिक मुद्रा चलाना, 3. खुरासान विजय की योजना, 4. कृषि के लिये एक नया विभाग ‘ दीवान-ए-कोही ‘ तथा 5. दोआब में कर में बढ़ोत्तरी।
- मु. तुगलक के समय दिल्ली सल्ततनत का सबसे अधिक विस्तार हुआ दिल्ली के सुल्तानों का सबसे बड़ा राज्य उसी का था।
- 1341 ई. में चीन के सम्राट तोगन तैमूर ने अपना एक राजदूत उसके दरबार में भेजा। 1342 ई. में उसने इब्नबतूता को अपना राजदूत बनाकर चीन भेजा। मु. तुगलक समय कई स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हुई। हरिहर एवं बुक्का ने 1336 ई. में दक्षिण में ‘ विजयनगर‘ की स्थापना की। 1347 ई. में बहमनशाह ने ‘ बहमनी साम्राज्य की स्थापना कर ली। जैन विद्वान ‘ जिन प्रभु सूरी ‘ को उसने दरबार में बुलाकर सम्मानित किया।
- मु. तुगलक ने दिल्ली के सुल्तानों में सबसे अधिक सैनिक जीवन बिताया।
- स्वर्गा दुआरी का निर्माण मुहम्मद तुगलक ने कराया था।
- सबसे अधिक विद्रोह मु. तुगलक के समय हुये थे।
- तुगलक वंश के पतन का प्रांरभ इसी के समय सें प्रारंभ हुआ। इसके बाद फिरोज तुगलक शासक बना।
- फिरोज तुगलक ( 1351-1388 ई. ) की माता राजपूत राजा रणमल की पुत्री थी।
- फिरोेज ने जागीर व्यवस्था को फिर से स्थापित कर किया।
- फिरोज ने इस्लामी कानून को द्वारा स्वीकृत केवल चार कर लगाये। उसने हिंदू ब्राह्माणें से भी जजिता ििलया तथा सिचाई कर ( हक्क-ए-शर्ब ) लिया।
- फिरोज ने अपने समय के 24 कठोर करों ‘ को समाप्त कर दिया। फिरोज तुगलक ने लोगों के कल्याण के लिये अनेक कार्य किये। उसने 100 सरायें, 100 अस्पताल, 40 मस्जिदें, 30 विद्यालय, 20 महल, 5 मकबरे, 100 सार्वजनिक स्नानागृह, 10 स्तंभ, 150 पुल तथा अनेक बाग एवं सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों का निर्माण करवाया। फिरोज ने 1200 के फलों बाग लगवाये, जिससे राज्य की आय बढ़ी।
- उसने अशोक के दो स्तंभों को दिल्ली मंगाया। इनमें से एक मेरठ तथा दूसरा खिजाबाद से लाया गया था। सिचाई की सुविधा के लिये फिरोज ने पांच बडी नहरों का निर्माण कराया, 150 झीलों एवं तलाबों का निर्माण करवाया। उसने 300 नये नगर बसाये। उसके द्वारा बसाये गये प्रमुख नगरों में-फिरोजशाह, जौनपुर, फतेहाबाद, हिसार और फिरोजाबाद प्रमुख हैैं। यमुना नदी के तट पर बसाया गया दिल्ली के लाल किले निकट आधुनिक फिरोजबाद कोटला फिरोज ने मुस्लिम अनाथ स्त्रियों और विधवाओं को अर्थिक सहायता के लिये एक नया विभाग ‘ दीवान-ए खैरात ‘ स्थापित किया।
- फिरोज ने सैनिक सेवा को वंशानुगत कर दिया। अधिकांश सैनिकों को वेतन जागीर के रूप में दिया जाता था। दिल्ली के सुल्तानों में फिरोज पहला सुल्तान था, जिसने इस्लाम के कनूनों और उलेमा वर्ग को राज्य के शासन में प्रधानता दी। फिरोेज ने खलीफा से दो बार अपने सुल्तान के पद की स्वाकृति ली। उसने अपने को ‘ खलीफा का नाइब‘ पुकारा तथा दिल्ली सल्तनत के इतिहास में पहली बार सिक्कों पर खलीफा का नाम लिखवाया। फिरोज ने अपनी आत्मकथा फुतूहात-ए-फिरोजशाही लिखी। ‘ जियाउद्दीन बरनी ‘ तथा शम्श-ए-सिराज अफीफ ‘ को उसने संरक्षण प्रदान किया। बरनी ने फतवा-ए-जहांदारी तथा तारीख-ए-फिरोजशाही ( उर्दू में ) लिखी। शम्श-ए-सिराज अफीफ ने भी तारीख-ए-फिरोशाही ( फारसी में ) लिखी। उसने अनेक संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद करवाया, उनमें से एक दर्शन और नक्षत्र विज्ञान की पुस्तक दलायत-ए-फिरोजशाही भी थी।
- फिरोज ने दासों के लिये एक नया विभाग ‘ दीवानेे-बंदगान‘ बनाया।
- उसने ‘ अद्धा तथा ‘बिख ‘ नामक दो सिक्के चलाये।
- हेनरी इलियट तथा एल्फिन्सटन नामक दो विद्वानों के फिरोज को ‘ सल्तनत युग का अकबर ‘ कहां है।
- फिरोज तुगलक की मृत्यु के बाद गियाउद्दीन तुगलक द्वितीय शासक बना।
- गियाउद्दीन तुगलक द्वितीय (1388-89 ई. ) तथा हुमायंू ने थोड़े समय के लिये शासन किया।
- नसिरूद्दीन महमूवशाह ( 1394-1412 ई. ) तुगलक वंश का अंतिम शासक था।
- नसिरूद्दीन महमुद के समय जौनपुर के स्वतंत्र राज्य की स्थापना हुई। इसी के समय 1398 ई. में तैमूर लंग का आक्रमण हुआ था।
- 1412 ई. में नसिरूद्दीन की मृत्यु हो गयी। इसकी मृत्यु से तुगलक वंश का शासन समाप्त हो गया।
- सैय्यद वंश ( 1414-1451 ई. )
- सैयद वंश का प्रथम शासक खिज्र खां ( 1414-1421 ई. )
- था उसने ‘ रैयत-ए-आला ‘ की उपाधि धारण की। 20 मई, 1421 ई. को इसकी मृत्यु के बाद मुबारक शाह शासक बना।
- मुबारक शाह ( 1421-1434 ई . ) ने खलीफा का स्वामित्व स्वीकार नहीं किया। सैय्यद स ुल्तानों में मुबारक शाह सबसे योग्य शासक था।
- मुबारक ने यमुना नदी के तट पर एक नवीन नगर ‘ मुबारकाबाद‘ बसाया तथा उसमें एक अच्छी मस्जिद का निर्माण करवाया। उसने तत्कालीन विद्वान ‘ याहिया-सरहिन्दी ‘को संरक्षण दिया, जिसने उसके समय के इतिहास तारीख-ए-मुबारकशाही को लिखा।
- मुबारकशाह के पश्चात् उसके भाई का पुत्र मुहम्मद-बिन-फरीद खां मुहम्मद शाह ‘ के नाम से गद्दी पर बैठा।
- मुहम्मद शाह ( 1434-1445 ई. ) की 1445 ई. में मृत्यु हो गई।इसके बाद ‘ अलाद्दीन आलमशाह ‘ शासक बना।
- अलाउद्दीन आलमशाह ( 1445-1450 ई. ) सैय्यद वंश का अंतिम शासक था।
- इसकेे समय बहलोल मोदी ने शासन की पूरी शक्ति अपने हाथों में ले ली तथा दिल्ली सल्तनत में एक नये राजवंश की स्थापना की।
लोदी वंश ( 1451-1526 ई.
- लोदी वंश, सल्तनत युग दिल्ली के सिंहासन पर राज्य करने वाले राजवंशों में अंतिम था।
- इस वंश की स्थापना बहलोल लोदी ( 1451-1489 ई . ) ने की थी।
- बहलोल ने जौनपुर को दिल्ली में मिलाया तथा बहलोली सिक्के चलाये। इसके बाद सिकंदर लोदी शासक बना।
- सिकंदर लोदी ( 1489-1517 ई. ) का मूल नाम निजाम खां था। सिकंदर लोंदी वंश का सर्वश्रेष्ठ सुल्तान था। सिकंदर ने भूमि की नाप के लिये 30 इंच का एक नया पैमाना ‘गज-ए-सिकंदरी ‘ चलाया।
- उसने मुहर्रम पर ‘ ताजिया‘ निकालना बंद करवा दिया तथा मुसलमान स्त्रियों को ‘पीरों ‘ तथा ‘संतों ‘ की मजार पर जाने से रोक दिया।
- सिकंदर ने 1506 ई. में आगरा नामक नगर बसाया।
- सिकंदर ने अनेक संस्कृत ग्रथों का फारसी में अनुवाद करवाया। इसी प्रकार का एक आयुर्वेंदिक ग्रंथ, जिसका फारसी में अनुवाद हुआ है, का नाम फरहंग-ए-सिकंदरी रखा गया। उसके समय में गान विद्या के एक श्रेष्ठ गं्रथ लज्जत-ए-सिकंदरशाही की रचना हुई। सिकंदर के बाद इब्राहीम लोदी का शासक बना।
- इब्राहीम लोदी ( 1517-1526 ई . ) न केवल लोदी वंश अपितु पूरे दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक था।
- उसके समय में 12 अप्रैल, 1526 को पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ। इसमें बाबर ने इब्राहीम लोदी को हरा दिया तथा मार डाला।
- इसकी मृत्यु के साथ ही दिल्ली सल्तनत समाप्त हो गया। तथा बाबर ने भारत में मुगल वंश की नींव डाली।
दिल्ली सल्तनत की शासन-व्यवस्था
केंद्रीय शासन
- दिल्ली सल्तनत में ‘ इस्लाम ‘ राजधर्म था। शासक-वर्ग इस्लाम धर्म से संबंधित था।
- दिल्ली सल्तनत में शासक कुरान के नियमों के अनुसार शासन करते थे।
- दिल्ली सल्तनत का प्रमुख सुल्तान कहलाता था। प्रशासन के सभी प्रमुख कार्य वही करता था। वह शासन का सर्वोच्च प्रशासक, न्याय का भी सबसे बड़ा अधिकारी तथा सर्वोच्च सेनापति था।
- प्रशासन में सुल्तनत का प्रमुख सुल्तान को सहायता देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी। जिसे ‘ मजलिस-ए-खलवत ‘ कहते थे।
- जलाउद्दीन खिलजी ने व्यय के कागजात की देखभाल हेतु दीवान-ए-वकूफ की स्थापना की।
- अलाउद्दीन खिलजी ने दो नए विभाग बनाये थे-दीवान-ए-रियासत ( वाणिज्य मंत्रालय ) तथा दीवान-ए-मुस्तखराज ( वित्त विभाग )।
- फिरोज तुगलक के दो निजी विभाग थे-दीवान-ए-बंदगान ( गुलामों में संबंधित ) , दीवान-ए-खैरात ( दान ), साथ ही, लोक निर्माण विभाग भी उसने बनवाया था।
- दिल्ली सल्तनत के प्रमुख पदाधिकारी इस प्रकार थे-1.नाइब-सुल्तान के बाद दूसरा सबसे प्रमुख अधिकारी, 2. वजीर-वित्त या स्वराज्य विभाग का प्रधान, 3. मुसरिफ-महालेखाकार, 4. मुस्तौफी- महालेखा परीक्षक, 5. दीवान-ए-आरिज-सेना विभाग का प्रमुख, 6. दीवान-ए-इंशा- शाही पत्र व्यवहार, 7. काजी-उल-कुजात-न्याय विभाग का प्रधान, 8. सद्र-उस-सुदूर-धर्म विभाग का प्रधान, 9.बरीद-ए-मुमालिक-गुप्तचर विभाग का प्रधान, 10. मजमुआदार-आय-व्यय विभाग का प्रमुख, 11. दीवान-मुस्तखराज-अतिरिक्त करों का प्रबंधक, 12. दीवान-ए-वकूूफ-व्यय के कागजातों की देखभाल करना, 13. दीवान-ए-अमीर कोही-अनुपयोगी भूमि को खेती के योग्य बनाना, 14. खजीन ( खजांची )-कोषाध्यक्ष, 15. बारबक-राजदरबार का प्रबंधक, 16. वकील-ए-दर-राजमहल तथा सुल्तान के व्यक्तिगत सेवकों का प्रबंधक, 17. अमीर-मजलिस-सभाओं, दावतों, विशेष उत्सवों आदि का प्रबंधक, 18. अमीर-ए-शिकार-शिकार स्थलों का प्रबंधक, 19. अमीर-ए-हाजिब-लोगों को सुल्तान के सामने पेश करने वाला, 20. सर-ए-जहांदार-सुल्तान के व्यक्तिगत अंगरक्षकों का प्रधान, 21. अमीर-ए-आखुर-अश्वशाला प्रधान, 22. दाीवान-ए-इस्तिहाक-पेंशन विभाग का अध्यक्ष।
- प्रांतीय शासन
- प्रांतीय शासन भी केंद्रीय शासन के समान होता था।
- राज्य को छोटी-छोटी इकाइयों में बाटां गया था, जिन्हें ‘ इक्ता ‘ कहा जाता था। इक्ता का प्रधान मुक्ति, नाजिम, नाइब सुल्तान अथवा वली के नाम से पुकारा जाता था। इक्ते में एक अन्य पदाधिकारी ‘ ख्वाजा ‘ होता था, जो वित्तीय मामलों में वली की सहायता करता था। इसकी नियुक्ति वजीर करता था। अपने-अपने इक्ताओं में मुक्ति या वली को वे संपूर्ण अधिकार प्राप्त उत्तदायित्व भी उन्हीं पर था।
- राजस्व-वसूली के लिए अनेक कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती थी। इनमें ‘ नाजिर ‘ तथा ‘वाकुफ ‘ े प्रमुख थे। प्रांतों में काजी तथा कुछ अन्य निम्न श्रेणी के कर्मचारी भी होते थे।
- इक्ताओं को शिकों में बाटा गया था। इसका प्रमुख अधिकारी ‘ शिकदार ‘ होता था, जो एक सैनिक अधिकारी था।
- शिकों को परगनों में बाटा गया था। परगने का सबसे बड़ा अधिकारी आमिल था। आमिल के अलावा एक मुशरिफ, एक खजांची तथा दो क्लर्क मुख्य अधिकारी थे।
- शासन की सबसे इकाई गांव थे। गांवों में चौकीदार, पटवारी, चौधरी, खुत, मुकद्दम आदि पैतृक अधिकारी थे, जो शासन को लगान वसूल करने में सहायता देते थे। इसके अतिरिक्त गांव में पंचायतें होती थीं जो शिक्षा, न्याय, सफाई आदि स्थानीय कार्य भी करती थीं।
राजस्व व्ववस्था
- दिल्ली सल्तनत की आय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नियमित साधन भू-राजस्व या लगान ही था।
- राजस्व के लिए सल्तनत काल में भूमि को चार भागों में बांटा गया था-(1) खालसा भूमि, (2) मुसलमान विद्वान् अथवा संतों को इनाम, मिल्क अथवा वक्फ के रूप में दी गई भूमि तथा,(3) मुक्तियों को दी जाने वाली क्लोम-विभक्त भूमि तथा(4) सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर लेने वाले हिंदू सामंतों की भूमि।
- खालसा भूमि का प्रबंधन केंद्रीय सरकार द्वारा किया जाता था। इनाम, मिल्क अथवा तक्फ भूमि राजस्व से मुक्त थी। सल्तनत काल में राजस्व की प्राप्ति के लिए पांच प्रकार के कर लगाए जाते थे, जो इस प्रकार थे-1. उश्रः मुसलमानों से लिया जाने वाला भूमि कर, 2. खराजः गैर-मुसलमानों से लिया जाने वाला भूमि कर, 3. खम्सः लूटे हुये धन, खानों अथवा भूमि में गड़े हुये खजानों से प्राप्त सम्पत्ति का 1/5 भाग,4. जकातः मुसलमानों पर धार्मिक कर एवं 5. जजियाः गैर -मुसलमानों पर धार्मिक कर।
- फिरोजशाह तुगलक ने ब्राह्मणों से भी जजिया लिया था।
न्याय व्यवस्था
- मुस्लिम कानून के चार स्त्रोत थे-कुरान, इजमा, हदीस तथा कयास।
- ‘कुरान‘ मुस्लिम कानून का मुख्य स्त्रोत था। कानून का स्त्रोत ‘इजमा ‘ कहलाता था।
- कार्यों का उल्लेख है।
- इस्लामी कानूनों की व्याख्या करने वाले ‘ मुजतहिद ‘ कहे जाते थे।
- दिल्ली सल्तनत में न्याय विभाग को ‘ दीवान-ए-कजा ‘ के नाम से जाना जाता था। सुल्तान की अनुपस्थिति में मुख्य काजी सबसे बड़ा न्यायाधीश होता था।
- बड़े नगरों में ‘ अमीर-ए-दाद ‘ नामक पदाधिकारी होता था,जिसका कार्य आधुनिक सिटी मजिस्टेªट के समान था। इसकी सहायता के लिये ‘नाइब-ए-दाद बक ‘ नामक पदाधिकारी था।
- सैनिक संगठन
- दिल्ली स्थित सुल्तान की सेना ‘ हश्म-ए-क्लब ‘ कहलाती थी तथा सेना विभाग का प्रमुख दीवान-ए-अर्ज होता था। प्रांतों में यह उत्तरदायित्व ‘ प्रांतीय आरिज ‘ निभाते थे।
- सुल्तान के सैनिक ‘ खासखेल ‘ कहे जाते थे। सुल्तान की सेना में शाही गुलाम तथा रक्षक ‘ जांदार ‘ तथा ‘ अल्फाज-ए-क्लब ‘ कहे जाते थे।
- सर्वप्रथम स्थायी सेना की नींव अलाउद्दीन ने डाली तथा अनेक सैनिक सुधारों को लागू किया।
- फिरोजशाह तुगलक ने सैन्य-तंत्र को फिर से सामंती संगठन में परिणत कर दिया।
- लोदियों की सेना कबीलों के आधार पर संगठित थी।
- सेना को दशमलव पद्धति के आधार पर संगठित किया जाता था। सुल्तान सबसे बड़ा सेनापति होता था।
- फिरोज तुगलक ने सैनिकों भी वेतन भू-राजस्व के रूप में देने की प्रथा प्रारंभ की थी।
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