डाक व्यवस्था- भारतमें संचार व्यवस्था, तटीय मैदान उतर भारत का मैदान
- भारत में दनिया का सबसे बड़ा डाकघर नेटवर्क है।
- विश्व में सबसे अधिक डाक घर भारत में हैं।
- भारत में डाक व्यवस्था का शुभांरभ का श्रेय लार्ड क्लाईव को दिया जा सकता है उसने 1776 मेें डाक प्रणाली की शुरूआत की थी।
- 1854 के डाकघर अधिनियम के माध्यम से डाक प्रणाली की पूरी व्यवस्था को सुधारा गया था।
- 1863 में रेल डाक सेवा प्रारंभ की गई थी।
- 1877 में वीपीपी एवं पार्सल सेवा का शुभारंभ किया गया था।
- 1880 मेें मनी आर्डर सेवा प्रारंभ की गई थी।
- 1911 में एयरमेल सेवा प्रारंभ की गई थी।
- 1970 में पिन कोड़ व्यवस्था का शुभारंभ किया गया था।
- पिन कोड प्रणाली 6 अंको की एक संख्या होती है। जिसमें पहला अंक जोन दूसरा अंक उपजोन तीसरा छटांई जिला तथा अंतिम तीन डिलेवरी डॉकघर को दर्शाते हैं।
- 1984 में डाक बीमा जीवन बीमा प्रारंभ की गई।
- 1985 में डॉक एवं टेलीकॉम विभाग को पृथक कर दिया गया।
- 1986 में स्पीड़ पोस्ट सेवा प्रारंभ की गई।
- 1995 में ग्रामीण डाक जीवन योजना प्रारंभ की गई।
- 1996 में मीडिया डाक सेवा तथा 1997 में बिजनेस डाक सेवा प्रारंभ की गई।
- 1998 में उपग्रह डाक सेवा तथा 199 में डाटा सेवा एवं एक्सप्रेस डाक सेवा प्रांरभ हुई।
तटीय मैदान उतर भारत का मैदान
तटीय मैदान
- प्रायद्वीपीय भारत के पठार के दोनों तरफ नदियों ने जलोढ़ निक्षेपण के फलस्वरुप मैदानी भाग का निर्माण किया है, जिसे तटीय मैदान कहा जाता है जलोढ़ निक्षेपण के फलस्वरुप समुद्र पीछे हट गया है।
पश्चिमी तटीय मैदान
- पश्चिमी तटीय मैदान का विस्तार गुजरात से लेकर कन्याकुमारी या केपकमोरिन या कुमारी अंतरीप तक है।
- पश्चिमी तटीय मैदान की सर्वाधिक चौड़ाई नर्मदा और तापी नदी के मुहाने पर है।
- गुजरात से गोवा तक – कोंकण तट
- गोवा से मंगलौर तक – कन्नड़ तट
- मंगलौर से कन्याकुमारी तक – मालाबार तट
- मालाबार तट का अधिकांश हिस्सा केरल में आता है अतः इसे केरल तट कहा जाता है।
- मालाबार तट पर अधिक लैगून झीलें पाई जाती हैं।
- समुद्र का वह जल जो चारों तरफ से भू भाग से गिरा है लैगून झील कहलाता है। लैगून झील का जल खारा होता है, क्योंकि यह समुद्र के संपर्क में रहता है। केरल में स्थानीय रूप से लैगून झीलों को कयाल कहते हैं।
- पश्चिमी घाट का ढाल अत्यधिक तीव्र होने के कारण पश्चिमी घाट से बहने वाली नदियों को प्रवाह बहुत तेज होता है, जिसके कारण नदियां अरब सागर में मिलने से पहले डेल्टा का निर्माण नहीं करती हैं बल्कि यह एस्चुअरी ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं।
- नदिया तेजी से समुद्र में घुसने का प्रयास करती हैं तथा समुद्र के पानी को पीछे धकेलती है, जिससे यहां ज्वारीय स्थिति उत्पन्न हो जाती है जैसे - गुजरात में नर्मदा और तापी नदी
- हुगली नदी के मुहाने से कन्याकुमारी तक पूर्वी तटीय मैदान का विस्तार है।
- पूर्वी तटीय मैदान की सर्वाधिक चौड़ाई तमिलनाडु में है। उत्कल तट – उड़ीसा
- आंध्र प्रदेश में गोदावरी और कृष्णा नदी के बीच के भू भाग को उत्तरी सरकार तट कहते हैं।
- तमिलनाडु के तटीय मैदान को कोरोमंडल तट कहते हैं।
- पूर्वी तटीय मैदान पर भी लैगून जिले हैं। चिल्का झील – उड़ीसा
- पुलिकट झील – आंध्र प्रदेश }आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के सीमा पर
- पुलीकट झील के बीचो-बीच श्रीहरिकोटा द्वीप है तथा इसी द्वीप पर इसरो का सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र है।
- पूर्वी घाट की नदियां डेल्टा का निर्माण करती हैं।
- नदियों का ढाल मंद होने के कारण इनका प्रवाह बहुत धीमा होता है जिसके कारण जब यह समुद्र की तेज लहरों से टकराती है तब इन का जल सैकड़ों धाराओं में बट जाता है और नदियां अपने जलोढ़ निक्षेपों को मंद गति होने के कारण यही बिछा देती हैं या छोड़ देती हैं जिसके परिणाम स्वरुप डेल्टा का निर्माण होता है। डेल्टा निरंतर समुद्र की ओर भागता रहता है। जैसे – महानदी की डेल्टा, गोदावरी की डेल्टा, कृष्णा एवं कावेरी नदियों का डेल्टा।
- पूर्वी तटीय मैदान का निर्माण सैकड़ों नदियों के डेल्टा क्षेत्र के मिलने से हुआ है इसलिए यह जलोढ़ निक्षेप का क्षेत्र है इसलिए पूर्वी तटीय मैदान बहुत उपजाऊ है तथा धान की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
उत्तर भारत का मैदान
- नदिया हिमालय से बड़े-बड़े शिलाखंडों को अत्यधिक तीव्र ढाल होने के कारण बहाकर लाती हैं और शिवालिक के गिरीपाद क्षेत्रों में मंद ढाल होने के कारण जमा कर देती हैं, कयोंकि इसके बाद नदियों का ढाल अत्यधिक कम होने के कारण यह जलोढ़ निक्षेपों या शिलाखंडों को बहाने में सक्षम नहीं होती हैं। (नदियों का वेग कम हो जाता है) जिसके कारण नदिया इन जलोढ़ निक्षेपो को छोड़कर आगे बढ़ जाती हैं।
- शिलाखण्डों वाले क्षेत्र को भाबर प्रदेश कहते हैं।
- भाबर शिवालिक के दक्षिण में है, इन गोल गोल शिलाखण्डों के बीच गैप होता है जिसके कारण नदियों का जल गैप में प्रवेश कर जाता है जिसके कारण सतह पर नहीं दिखाई देती है। अतः भाबर प्रदेश में नदियां विलुप्त हो जाती है।
- भाबर प्रदेश शिवालिक के गिरिपाद में सिंधु नदी से तीस्ता नदी तक पाया जाता है।
- शिलाखण्डों से बाहर निकलने के बाद नदियों का जल बहुत तीतर – बितर हो जाता है तथा कई धाराओं में बट जाता है। जिसके कारण दलदली क्षेत्र का निर्माण हो जाता है जिसे तराई क्षेत्र कहा जाता है। तराई क्षेत्र के बाद समतल मैदान है।
बांगर
- बाढ़ के दौरान गंगा नदी से दूर उत्तर भारत के मैदान में बाढ़ का पानी प्रवेश नही कर पाता जिसके कारण यहाँ नया जलोढ़ निक्षेपड नही हो पाता जिसके कारण इसे बांगर कहते है।
खादर
- बाढ़ के दौरान गंगा नदी के आसपास के उत्तर भारत के मैदान में बाढ़ का पानी प्रवेश करता है और जलोढ़ निक्षेपों को बिछा देता है, ऐसे जगह को खादर भूमि कहते हैं।
- खादर प्रदेश में प्रत्येक साल नए जलोढ़ निक्षेपो की परत बिछ जाती है। अत्यधिक उपजाऊ
बागर
- उत्तर भारत के मैदान को सिंधु गंगा एवं ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहते हैं।
- उच्चावच के दृष्टिकोण से उत्तर भारत के मैदान को चार भागों में बाटते हैं।
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