मगध साम्राज्य
- छठी सदी ई.पू. मेँ सोलह महाजनपद मेँ से एक मगध महाजनपद का उत्कर्ष एक साम्राज्य के रुप मेँ हुआ। इसे भारत का प्रथम साम्राज्य होने का गौरव प्राप्त है।
- हर्यक वंश के शासक बिंबिसार ने गिरिब्रज (राजगृह) को अपनी राजधानी बना कर मगध साम्राज्य की स्थापना की।
- बिम्बिसार हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था।
- बिम्बिसार ने वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी राजनीतिक सुदृढ़ की और इसे अपनी समाजवादी महत्वाकांक्षा का आधार बनाया।
- बिंबिसार ने कौशल जनपद की राजकुमारी कौशल देवी कथा लिच्छवी की राजकुमारी चेल्लन से विवाह किया।
- बिंबिसार ने अंग राज्य पर अधिपत्य स्थापित करके उसे मगध साम्राज्य मेँ मिला लिया।
- बिंबिसार गौतम बुद्ध का समकालीन था। इसे ‘श्रेणिक’ नाम से भी जाना जाता है।
- बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को, अवंती नरेश चंद्रघ्रोत की चिकित्सा के लिए भेजा।
- 15 वर्ष की आयु मेँ मगध साम्राज्य शासन की बागडोर संभालने वाला बिम्बिसार ने 52 वर्षों तक शासन किया।
अजातशत्रु (492 ई.पू. से 460 ई.पू.)
- बिंबिसार की हत्या करने के उपरांत का पुत्र अजातशत्रु मगध का शासक बना। इसे ‘कुणिक’ कहा जाता है।
- अजातशत्रु ने साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई। उसने काशी तथा वाशि संघ को एक लंबे संघर्ष के बाद मगध साम्राज्य मेँ मिला लिया।
- बिच्छदियों के आक्रमण के भय से अजातशत्रु ने युद्ध में ‘इव्यमूसल’ तथा ‘महाशिलाकंटक’ शासक नए हथियारोँ का प्रयोग किया।
- प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन राजगीर के सप्तपर्णी गुफा मेँ आजादशत्रु के शासन काल मेँ हुआ।
- अजातशत्रु ने पुराणोँ के अनुसार 20 वर्ष तथा बौद्ध साहित्य के अनुसार 32 वर्ष तक शासन किया।
उदयिन (460ई.पू. से 444 ई.पू.)
- अजातशत्रु की हत्या करके उसका पुत्र उदयिन मगध साम्राज्य की गद्दी पर आसीन हुआ।
- उदयिन ने गंगा नदी के संगम स्थल पर ‘कुसुमपुरा’ की स्थापना की जो बाद मेँ पाटलिपुत्र के रुप मेँ विख्यात हुआ।
- उदयिन या उदय भद्र जैन धर्मावलंबी था।
- उदयिन के बाद मगध सिंहासन पर बैठने वाले हर्यक वंश के शासक अनिरुद्ध, मुगल और दर्शक थे।
- हर्यक वंश का अंतिम शासक ‘नागदशक’ था। जिसे ‘दर्शक’ भी कहा जाता है।
शिशुनाग वंश (412 ई.पू. से 344 ई.पू.)
- हर्यक वंश के शासकोँ के बाद मगध पर पर शिशुनाग वंश का शासन स्थापित हुआ।
- शिशुनाग नमक एक अमात्य हर्यक वंश के अंतिम शासक नागदशक को पदच्युत करके मगध की गद्दी पर बैठा और शिशुनाग नामक नए वंश की नींव डाली।
- शिशुनाग ने अवन्ति तथा राज्य पर अधिकार कर के उसे मगध साम्राज्य मेँ मिला लिया।
- शिशुनाग ने वज्जियों को नियंत्रित करने के लिए वैशाली को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
- शिशुनाग ने 412 से 300 ई. पू. तक शासन किया।
कालाशोक (395-366 ई.पू.)
- कालाशोक के शासन काल की राजनीतिक उपलब्धियोँ के बारे मेँ कोई स्पष्ट जानकारी नहीँ मिलती है।
- कालाशोक को पुराणोँ और बौद्ध ग्रंथ दिव्यादान मेँ कालवर्प कहा गया है।
- गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के के लगभग 100 वर्ष बाद कालाशोक के शासन काल के 10वें वर्ष मेँ वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था।
नंद वंश (344 ई.पू. से 322 ई. पू.)
- नंद वंश के शासक कालाशोक की मृत्यु के बाद मगध पर नंद वंश नामक एक शक्तिशाली राजवंश की स्थापना हुई।
- पुराणों के अनुसार इस वंश का संस्थापक महापद्मनंद एक शुद्र शासक था। उसने ‘सर्वअभावक’ की उपाधि धारण की।
- महापद्मनंद कलिंग के कुछ लोगोँ पर अधिकार कर लिया था। वहाँ उसने एक नहर का निर्माण कराया।
- महापद्मनंद ने कलिंग के गिनसेन की प्रतिमा उठा ली थी। उसने एकराढ़ की उपाधि धारण की।
- नंद वंश का अंतिम शासक घनानंद था।
- घनानंद के शासन काल मेँ 325 ईसा पूर्व मेँ सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था।
स्मरणीय तथ्य
- ईसा पूर्व छठी शताब्दी मेँ आर्थिक दशा मेँ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। व्यापार मेँ प्रगति, सिक्कों का प्रचलन और नगरों का उत्थान तीन महत्वपूर्ण परिवर्तन दृष्टिगोचर होते है।
- ‘रत्नीन’ प्रशासनिक अधिकारी थे। ये राजा के प्रति उत्तरदायी थे।
- मगध, वत्स, कोमल और अवंती ये 4 इस काल के शक्तिशाली राज्य थे।
- कंबोज, कौशाम्बी, कोसल तथा वारामसी व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र थे।
- कौशल की राजधानी श्रावस्ती की श्रवर्क कंबोज की राजधानी घटक थी।
- इस काल मेँ राजतंत्रात्मक राज्योँ के अतिरिक्त कुछ ऐसे गणराज्य भी थे, जो प्रायः हिमालय की तलहटी मेँ स्थित थे।
- ऐसा प्रतीत होता है कि इस काल मेँ उच्च अधिकारी और मंत्री अधिकतर पुरोहित अर्थात ब्राम्हणों मेँ से नियुक्त किए जाते थे।
- इस काल मेँ करारोपण प्रणाली नियमित हो गई। बलि, शुल्क और भाग नामक कर पूरी तरह से स्थापित हो गए।
- योद्धा और पुरोहित वर्ग के लोग करोँ के भुगतान से पूरीतरह से मुक्त थे। करों का अधिकांश बोझ किसानो पर पड़ता था जो मुख्यतः वैश्य थे।
- इस काल में पहली बार निवास की भूमि और कृषि की भूमि अलग-अलग कर दी गई। इस काल मेँ सर्वप्रथम स्थाई, नियमित और सुदृढ़ सेना का गठन हुआ।
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