- भारतीय समाज के किसी
अन्य वर्ग की अपेक्षा जनजातीय आंदोलनों की संख्या सबसे अधिक है।
- सन्यासी लोग शंकराचार्य
के अनुयायी थे तथा गिरि मत को मानते थे।
- सन्यासियों ने बोगरा
व मैमनसिंह में अपनी सरकार बनाई थी।
- सन्यासी विद्रोह का
दमन वारेन हेस्टिंग ने किया था।
- बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय
के प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनन्द मठ’ का कथानक सन्यासी विद्रोह पर आधारित है।
- चुआर विद्रोह में
राजाओं ने आत्मविनाश की नीति अपनाई थी।
- पाइक विद्रोह का क्षेत्र
उड़ीसा था तथा इस विद्रोह का नेतृत्व पहले खुर्दा के राजा और बाद में जगबन्धु ने किया।
- वीर पांडया ने कट्टाबोमन
के विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया था।
- त्रावणकोर के दीवान वेलू थम्पी को मरने के बाद भी
फांसी पर लटकाया गया।
- राजा भारमल की हार
के बाद कच्छ को सहायक संधि करनी पड़ी।
- कोलियों का विद्रोह
1824-25, 1828, 1839 और 1849 मेंगुजरात में हुआ था।
- रामोसी विद्रोह 1822-29
का नेतृत्व चित्तुर सिंह ने किया था।
- कोल्हापुर व सावंतवाड़ी
विद्रोहों में भाग लेने वाले वंशानुगत सैनिक जाति को गाडकारी कहा जाता था।
- गाडकारियों ने समनगढ़
व भूदरगढ़ के किले जीते थे।
- ‘भूमि पर ईश्वर का अधिकार है’ - यह फरैजियों की धारणा थी।
- हाजी शरियातुल्ला
ने फरैजियों को नेतृत्व प्रदान किया था।
- वहाबी आन्दोलन ने
एक वक्त में बंगाल, बिहार, पंजाब व मद्रास को समेट लिया था।
- भारत में बहाबियों
का केन्द्र पटना था।
- आरम्भ में यह सिक्खों
के विरूद्ध लड़ाई थी।
- बालाकोट की लड़ाई
में सैयद अहमद की मृत्यु हुई थी।
- पागलपंथी सम्प्रदाय
के संस्थापक करम शाह थे।
- कूका आन्दोलन में
मूर्ति विखण्डन तथा कसाइयों की हत्या की गयी थी।
- वासुदेव बलवंत फड़के
पहले राष्ट्रवादी थे, जिन्होंने डकैतों
की मदद से ‘सामाजिक लूटपाट’
की।
- बाजीराव द्वितीय के
विद्रोही मंत्री त्रायम्बकजी ने अंग्रेजों
द्वारा आधिपत्य जमाने के विरोध में भीलों को उकसाया था।
- 1825 में भील विद्रोह
का नेतृत्व सेवरम ने किया था।
- छोटानागपुर में बुधो
भगत के नेतृत्व में कोल विद्रोह 1831-32 का मुख्य कारण इनकी भूमि इनसे छीन कर मुस्लिम
कृषकों व सिक्खों को दिया जाना था।
- रम्पा क्षेत्र में
कोय जनजातियों का विद्रोह 1840, 1845, 1858, 1861, 1862, 1879-80, 1884 व 1922-24 में हुआ।
- खोंड जनजाति ने अपनी
नरबलि की प्रथा-‘मेरिया’
को रोकने के प्रयास के विरोध में विद्रोह किया।
- 1856-57 में पर्लियाखमेदी
में राधाकृष्ण दण्डसेना के नेतृत्व में सवार विद्रोह हुआ था।
- 1855-56 का संथाल
विद्रोह ‘हूल’
के नाम से विख्यात है।
- भागलपुर से राजमहल
के बीच के क्षेत्रा को ‘दामन-ए-कोह’
कहा जाता था।
- सीदू व कान्हो ने
संथालों का नेतृत्व किया था।
- ‘भगनाडीह की सभा’ में सथालों ने विद्रोह करने का निर्णय लिया था।
- 1855 में सीदो मारा
गया तथा 1866 में कान्हो पकड़ लिया गया।
- रवीन्द्रनाथ टैगोर
ने इस विद्रोह के नायकों का स्मरण सम्मानपूर्वक किया है।
- संथाल विद्रोह के
बाद इसी क्षेत्रा में 1870 के दशक में ‘खेरवाड़ व सपफाहार आन्दोलन’ हुआ था।
- शुरू में यह सुधारवादी
आन्दोलन था पर बाद में राजस्व बन्दोबस्तके विरूद्ध अभियान के रूप में बदल गया।
- नायकड़ा के जनजाति
सहस्रवाद में आस्था रखते थे तथा उन्होंने धर्मराज्य स्थापित करने का प्रयास किया।
- कच्छनागाओं ने सांबुदान
के नेतृतव में कछार क्षेत्रा में विद्रोह किया।
- मुंडाओं ने 1899 व
1900 के मध्य विद्रोह किया था।
- इस विद्रोह को ‘उल्गुलान’ के नाम से भी जाना जाता है।
- मुंडाओं के सामूहिक
भू-स्वामित्व की प्रणाली को ‘खूँटकट्टी’
कहा जाता था।
- मुंडाओं ने ‘दिकू’ शब्द का प्रयोग सभी बाहरी लोगों के लिए किया था।
- बिरसा के गुरु आनन्द
पाण्डेय थे।
- बिरसा की मृत्यु रांची
जेल में हैजा से हुई थी।
- 1908 के ‘छोटानागपुर टेनंसी एक्ट’
ने मुंडाओं को राहत प्रदान की।
- गोविन्द गुरु के नेतृत्व
में 1913 का भील विद्रोह शुरू में एक शुद्धि आन्दोलन था।
- 1914-15 में जात्रा
भगत द्वारा चलाये गये आन्दोलन को ‘तानाभगत आन्दोलन’
भी कहते हैं।
- ‘रानी गौडिनिल्यू’ को ‘जॉनआर्क ऑफ नागालैंड’
कहा जाता है।
- 1836 से 1854 के बीच
मोपलाओं द्वारा 22 विद्रोह हुए।
- आर्थिक मांगों को
लेकर किसान विद्रोहों में सबसे व्यापक व जुझारू विद्रोह 1859-60 का ‘नील विद्रोह’ था।
- इस विद्रोह का नेतृत्व
दिगम्बर विश्वास व विष्णु विश्वास ने कियाथा।
- इस विद्रोह में रैयतों
ने पैसा जुटाकर कानूनी लड़ाई भी छेड़ी थी।
- बुद्धिजीवियों और मिशनरियों
ने इस विद्रोह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- 1860 की अधिसूचना
से रैयतों को राहत मिली।
- पाबना विद्रोह 1873-76
बंगाल में हुई थी।
- 1859 के एक्ट ‘एक्स’ द्वारा पाबना के काश्तकारों ने दखली अधिकार प्राप्त किया था।
- इस विद्रोह के दौरान
पाबना के किसानों ने युसुपफशाही परगना में किसान संघ की स्थापना की थी।
- इस विद्रोह का नेतृत्व
ईशानचन्द्र राय व शंभुपाल ने किया।
- यह लड़ाई मुख्यतः
कानूनी मोर्चे पर ही सीमित थी और हिंसक वारदातें नाममात्र की ही हुईं।
- द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर
(रवीन्द्रनाथ के बड़े भाईद्) ने पाबना आन्दोलन का विरोध किया था।
- 1885 के बंगाल काश्तकारी
कानून से किसानों को राहत मिली।
- 1875 के दक्कन उपद्रव
में हिसंक वारदातें बहुत कम हुईं।
- किसानों व बलूटादारों
ने महाजनों का सामाजिक बहिष्कार किया।
- पूना सार्वजनिक सभा
ने इस विरोध का समर्थन किया था।
- दक्कन-कृषक राहत अधिनियम
1879 से किसानों को महाजनों के खिलापफ संरक्षण प्राप्त हुआ।
- में होने वाले बिजोलिया
आन्दोलन का नेता सीतारामदास नामक एक साधु था।
- भूप सिंह उर्फ विजयसिंह पथिक, सचिन सान्याल के समूह का एक भूतपूर्व क्रान्तिकारी था।
- युद्ध ऋण में किसानों का योगदान करने से इन्कार करना बिजोलिया
आन्दोलन का एक अन्य कारण था।
- चम्पारण में आन्दोलन
के मुख्य कारण तिनकठिया, शरहवेशी (बढ़ा हुआ
लगान) तथा तावान (एकमुश्त मुआवजा) थे।
- 1908 में पहले इनका
विरोध हो चुका था।
- 1917 में राजकुमार
शुक्ल ने गाँधीजी को चम्पारण आने का निमंत्रण दिया।
- बगान मालिक अंततः
अवैध वसूली का 25 पफीसदी वापस करने को राजी हो गये।
- खेड़ा आन्दोलन में
विट्ठलभाई व वल्लभभाई दोनों ने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
- खेड़ा के 559 गाँवों
में से केवल 70 गाँवों में ही सत्याग्रह सपफल रहा था।
- उत्तर प्रदेश किसान
सभा का गठन 1918 में गौरीशंकर मिश्र, इन्द्रनारायण द्विवेदी और मदन मोहन मालवीय के प्रयासों
से हुआ।
- 1919 में प्रतापगढ़
में ‘नाई-धोबी बंद’
सामाजिक बहिष्कार की संगठित कार्यवाही की गयी।
- 1920 में बाबा रामचन्द्र
से मिलने के पश्चात् ही जवाहरलाल नेहरू का ‘किसानों के बीच भ्रमण’ शुरू हुआ।
- 1920 में ‘अवध किसान सभा’ का गठन हुआ।
- बाराबांकी क्षेत्र
का एका (एकताद्) आन्दोलन का नेतृत्व मदारी पासी ने किया था।
- असहयोग आन्दोलन के
वापिस ले लिये जाने के बाद भी यह आन्दोलन जारी रहा।
- 1921 के मोपला आन्दोलन
और खिलाफत आन्दोलन ने एक दूसरे को प्रभावित
किया।
- एक स्थानीय नेता व
धर्मिक गुरु अली मुसलियार को पकड़ने के लिए जब सरकार ने तिरूरांगड़ी के मस्जिद पर छापा
मारा तो विद्रोह भड़क उठा।
- सैनिक शासन लागू होते
ही विद्रोह का चरित्र बदल कर साम्प्रदायिक हो गया।
- पोडनूर की काल कोठरी
- मोपला विद्रोह की एक घटना है।
- बारदोली से गांधीजी ने असयोग आन्दोलन शुरू करने का फैसला लिया था पर ऐसा सभव नहीं हो सका।
- 1927 के वार्षिक कालिपराज
(अश्वतेजनद्) सम्मेलन की अध्यक्षता गांध्ीजी ने की थी और ‘कालिपराज’ का नाम बदल कर‘रानीपराज’ कर दिया था।
- 1926 में लगान में
30 प्रतिशन बढ़ोतरी को घटाकर 21.97 फीसदी कर दिया गया था। अन्ततः मैक्सवेल ब्लूमपफील्ड
समिति ने इसे घटाकर 6.03 पफीसदी कर दिया।
- इस संघर्ष में मीठबेन
पेटिट, भक्तिबा, मनीबेन पटेल, शारदाबेन शाह और शारदा मेहता जैसी महिलाओं ने सक्रिय भूमिका
निभाई थी।
- वल्लभभाई पटेल का
नाम खेड़ा सत्याग्रह, नागपुर झंडा सत्याग्रह, व बलसाड सत्याग्रह
से जुड़ा है।
- प्रपुफल्लसेन (हुगलीद्)
के बाबा राघवदास (गोरखपुर) को इनके इलाके का ‘गांधी’ कहा जाता था।
- आंध्र प्रांतीय रैयत
एसोसिएशन की स्थापना एन.जी. रंगा द्वारा 1923 में हुई थी।
- 1933 में एन.जी. रंगा
ने ‘भारतीय किसान परिषद्’
का गठन किया था।
- 1929 में स्वामी सहजानंद
ने ‘बिहार प्रादेशिक किसान सभा’
का गठन किया था।
- 1936 में स्वामी सहजानंद
ने अखिल भारतीय किसान संघ की स्थापना लखनउ में की।
- मुंगेर जिले में बकाश्त
आन्दोलन का नेतृत्व कार्यानन्द शर्मा ने किया था।
- 1936 का फैजपुर अधिवेशन जमींदारी उन्मूलन के मामले में चुप्पी
साध गया।
- 1937 में पंजाब किसान
समिति का गठन हुआ था।
- 1945 में वरली आन्दोलन
बम्बई के निकटवर्ती क्षेत्रों में हुआ था।
- 1946 के तेभागा आन्दोलन
में बंगाल के किसानों ने फैसला किया था वे आधा
की जगह जोतदारों को एक-तिहाई उपज ही
देंगे।
- 1946 में त्रावनकोर
में पुन्नप्रा-वायलार आन्दोलन शुरू हुआ।
- दीवान सी.पी. रामास्वामी
अयंगर का ‘अमरीकी नमूना’ का मकसद था कि अंग्रेजों के जाने के बाद एक स्वतन्त्रा
त्रावणकोर उसके नियंत्रण में रहे।
- 1946 से 1951 के मध्य
तेलंगाना में सबसे बड़ा कृषक छापामार युद्ध चला।
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