परमाणु ऊर्जा को ऊर्जा का सर्वाधिक प्राचीन और नवीन स्त्रोत माना जा सकता है। सर्वाधिकप्राचीन से तात्पर्य है कि अपने प्राकृतिक रूप में इसकी खोज बहुत पहले कर ली गई थी। परमाणु ऊर्जा का पहली बार प्रयोग मैनहट्टन परियोजना अंतर्गत 1940 में हुआ था।
एल्बर्ट आइंस्टीन वैज्ञानिक ने द्रव्यमान तथा ऊर्जा का संबंध स्थापित करे हुए बताया कि यदि किसी वस्तु की मात्रा का द्रव्यमान परिवर्तित होता है तो उसमें निश्चित ही ऊर्जा परिवर्तन होगा।
भारत में 3 अगस्त 1954 को परमाणु के कार्यो के संपादन के लिए परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की गई थी। यह विभाग परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी के विकास, विकिरण प्रौधोगिकी के कृषि, दवाईयों और उद्योग में इस्तेमाल तथा मूलभूत संसाधन कार्याें में संलग्न है।
इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र कलपक्कम (तमिलनाडु) की स्थापना वर्ष 1971 में की गई। इस केन्द्र का मुख्य कार्य फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के संबंध में अनुसंधान का विकास करा है।
आटोहॉन तथा स्ट्रांसमैन (जर्मनी) दो वैज्ञानिकों ने सबसे पहे यूरेनियम पर न्यूट्रॉन की बमबारी कराकर इसके नाभिक को दो भागों में विभाजित किया था।
यूरेनियम-235 के नाभिक के इस विखण्डन से बहुत अधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती है, इस ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं।
यूरेनियम अकेला ऐसा रासायनिक तत्व है जो बीसवीं शताब्दी के मध्य से ही विश्व के सामरिक परिदृश्य पर पर छाया हुआ है। इसकी खोज मार्टिन हेनरिक क्लापोर्थ ने की थी।
भारत में नाभिकीय ऊर्जा की प्राप्ति की अपेक्षा नाभिकीय अनुसंधान हेतु विशेष रूप से अनेक अनुसंधान रिएक्टर्स का निर्माण किया गया है। ऊर्जा प्राप्ति में इन प्रायोगिक रिएक्टर्स का प्रयोग न किए जाने के कारण इन्हें जीरो पॉवर रिएक्टर भी कहते हैं।
तीव्रगामी कणें की बौछार से स्थायी नाीिाक को विघटित कर दूसरे नाभिक में परिवर्तित करने की क्रिया का कृत्रिम नाभिकीय विखंडन कहा जाता है।
एक ऐसी संलयन अभिक्रिया जिसमें विशाल ऊर्जा की प्राप्ति होत है, यह केव अत्याधिक तीव्र तापमान पर ही संभव है। ऐसी अभिक्रिया को ऊष्मा नाभिकीय अभिक्रिया कहते हैं।
परमाणु प्रौधोगिकी में परमाण्वीय अणु की प्रतिक्रिया को शामिल किया जाता है। परमाणु प्रौधोगिकी की खोज हेनरी बैकुरल ने की थी।
संलयन अभिक्रिया का उपयोग अभी मात्र हाइड्रोजन बमों के निर्माण में ही व्यापक रूप से किया जा सका है। इस कार्य में हाइड्रोजन के दो समस्थानिक ड्यूटेरियम और ट्रीटियम के नाभिकों का संलयन किया जाता है।
टोकामक संलयन रिएक्टर मूल रूप से सोवियन वैज्ञानिकों द्वारा डिजाईन किया गया सबसे पहला सफल परमाणु रिएक्टर है।
फास्ट ब्रीडर रिएक्टर में जितना परमाणु ई्रधन जलता है, उससे कहीं अधिक ईंधन पुनः उत्पन्न होता है।
मध्यप्रदेश सामान्य ज्ञान
अधिकांश रिएक्टर में मंदक के रूप में गुरूजल अर्थात ड्यूटेरियम ऑक्साइड का उपयोग किया जाता है।
नाभिकीय विखंडन के दौरान कई प्रकार की उच्च शक्ति और भेदन क्षमता वाली विकिरण उत्सर्जित होती हैं, जिनसे सुरक्षा के लिए रिएक्टर के चारों और कांक्रीट की मोटी-मोटी दीवारों का निर्माण किया जाता है। इन्हीं दीवारों को परिरक्षक कहा जाता है।
नाभिकीय विखंडन के दौरान बड़ी मात्रा में ऊष्मा निर्मुक्त होती है। इसे ठंडा करने के लिए प्रशीतक के रूप में जल और कार्बन डाइऑक्साईड एवं सोडियम का उपयोग किया जाता
भारत देश के पहले अनुसंधान रिएक्टर का नाम अप्सरा है। जिसे वर्ष 956 में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बार्क) में चालू किया गया था। यह मेगावाट क्षमता का स्वदेशी तकनीक से निर्मित स्वीमिंग पूल प्रकार का रिएक्टर है। क्योंकि इसमें ईंधन का एक सादे पानी के कुंड में लटकाया जाता हैं
वर्ष 1980 में कनाड़ा के सहयोग से साइरस परमाणु अनुसंधान रिएक्टर को स्थापित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य रेडियो आइसोटोप का उत्पादन तथा उनके प्रयोग एवं प्रशिक्षण में सहयोग देना था।
सम्स्थानिकों के उत्पादन एवं उन्नत नाभिकीय भौतिकी में अनुसंधान हेतु वर्ष 1985 में स्वदेशी तकनीक से 100 मेगावाट क्षमता के हाई इलेक्ट्रान न्यूट्रॉन फ्लक्स अनुसंधान रिएक्टर ध्रुव का निर्माण किया गया है।
भारत में कामिनी एक फास्ट ब्रीडर रिएक्टर है, जिसका निर्माण तमिलनाडु के कलपक्कम में किया गया है। इसमें विश्व में पहली बार ईंधन के रूप में प्लूटोनियम-239 तथा यूरेनियम कार्बाइड के मिश्रण का प्रयोग किया गया।
परमाणु विद्युत उत्पादन के कार्यान्वयन की दृष्टि से परमाणु विद्युत बोर्ड के स्थान पर वर्ष 1987 में भारतीय विद्युत निगम लिमिटेड़ की स्थापना की गई।
रावतभाटा परमाणु विद्युत गृह आरंभ में कनाड़ा के सहयोग से शुरू किया गया था, किन्तु बाद में इसे स्वदेशी तकनीक से पूरा किया गया।
उन्नत प्रौद्योगिकी केन्द्र ने विश्व के सबसे बड़े एक्सेलरेटर ‘लार्ज हेड्रोन कोलाइडर‘ (एलएचसी) के निर्माण मंे भारत की हिस्सेदारी सुनिश्चत की है।
नाभिकीय गति को नियंत्रित करने के लिए कैडमियम की छड़ों का उपयोग किया जाता है।
भारतीय नाभिकीय ऊर्जा का प्रथम चरण प्रेशराइज्ड हाई वाटर रिएक्टर के रूप मेें वर्ष 1960 में शुरू किया गया।
भारतीय नाभिकीय ऊर्जा का दूसरा चरण फास्ट ब्रीडर रिएक्टर्स के रूप में इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र (तमिलनाडु) के साथ शुरू हुआ।
भारतीय परमाणु कार्यक्रम का तीसरा चरण थोरियम-यूरेनियम-233 चक्र पर आधारित है।
सतत आधर पर ऊर्जा सुरक्षा देने के लिए भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का दीर्घावधि केन्द्रीय उद्देश्य थोरियम का प्रयोग है।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा प्लाजमा तकनीक का प्रयोग कर काली 500 ( किलो एम्पियर लिनियर इन्जेक्टर) का विकास किया गया है। इस युक्ति में सूक्ष्म तरंगों में कई प्रस्फोट एक के बाद एक किए जाते हैं।
भारत में सर्वप्रथम गर्म कोशिकीय तकनीक पर आधरित पुनर्प्रसंस्करण संयत्र ट्राम्बे में स्थापित किया था।
कांचन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अपशिष्ट को बोरोसिलिकेट के सॉचे में गतिहीन कर लगभग 1.3 मीटर ऊंचे लोहे के घन में रखकर समापन के लिए मैदान में गहरे गड्ढे में डाल दिया जाता है।
समस्थानिक ऐसे तत्व होते हैं जिनके परमाणु क्रमाक समान होते हैं, परन्तु द्रव्यमान भिन्न होते हैं।
भारत ने अपना दूसरा परमाणु परीक्षण वर्ष 1989 में राजस्थान जैसलमेर में खेतोलोई गांव के समीप किया था। इस परीक्षण का शक्ति नाम दिया गया था।
तमिलनाडु के ऊटकमण्डल के समीप नीलगिरी पहाडि़यों में स्वदेशी प्रौद्योगिकी से एक विशाल टेलीस्कोप की स्थापना की गई है।
प्लूटोनियम एक भारी रेडियोएक्टिव तत्व है। इसकी परमाणु संख्या 94 तथा परमाणु भार 244 है। यह एक्टिनाईड श्रेणी का तत्व है।
कुडनकुलम तमिनाड में रूस के सहयोग से भारत का 21वां परमाणु रिएक्टर स्थापित किया गया है।
आम तौर पर कोबाल्ट-60 विकिरण चिकित्सा में प्रयुक्त होती है क्योंकि इससे गामा किरण उत्सर्जित होती है।
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