Bhartiya Chitrakala | Bharat Ke Pramukh Chitrakar |भारतीय चित्रकला, भारत के आधुनिक विशिष्ट चित्र एवं चित्रकार

भारतीय चित्रकला

  • भारत की कला एवं संस्कृति में ‘चित्रकला‘ निर्माण की परम्परा लम्बे समय से चली आ रही है। ‘प्राक-इतिहास‘ से प्राप्त अवशेषों में ‘भारतीय चित्रकला‘ प्रवेशांक अंकित है।
  • भीमबेटका (मध्यप्रदेश) पाषाण काल के गुफा चित्रकला निर्माण का सौन्दर्य सामने लाता है, जो अनुमानित तौर पर 30 हजार वर्ष पूर्व निर्मित हुआ था।
  • अजन्ता की चित्रकलाओं में ‘भित्ति चित्र‘ एक नए रूप में सामने आया जो बौद्ध दर्शन तथा संस्कृति का प्रदर्शन करता है।
  • 17वीं शताब्दी से 19 वीं शताब्दी के बीच भारतीय चित्रकला की विविध प्रणालियों का विकास दृष्टिगत हुआ, जिस पर इस्लामिक तथा यूरोपीय चित्रकला शैलियों का प्रभाव स्वतः ही दिख जाता है।
  • प्राचीन साहित्यों में चित्रकला निर्माण ‘षड्अंग‘ की चर्चा मिलती है।

कामसूत्र (वात्स्यायन) में चित्रकला हनर्माण के जिस ‘षड्अंग) की चर्चा की है वे हैं-
  • रूपभेद (चित्रों में ‘प्रतीति‘ का ज्ञान)
  • प्रमाणम् ( मापन, सरंचना तथा उचित बोध)
  • भाव ( संवेदना के प्रकार)
  • सादृश्यता ( आकार की समानता )
  • लावण्य योजना ( भंगिमा तथा कलात्मकता का समन्वय )
  • वर्णिकाभंग ( ब्रश तथा रंगो के प्रयोग की कलात्मक व्यवस्था )

भारतीय चित्रकला की विविध शैलियां-
  • भारतीय चित्रकला के विस्तार को क्षेत्रीय तथा प्राकृतिक विशिष्टता के आधार पर विभिन्न प्रभागों में विभाजित किया जाता है। भारत में प्रचलित चित्रकला के निम्न प्रभाग भारतीय संस्कृति के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

गुफा-भित्ति चित्रकला शैली-
  • प्राचीन भारत में गुफा-भित्ति चित्रकला विस्तार मिलता है। यह दूसरी शताब्दी ई.पू. से 10वीं शताब्दी के बीच निर्मित किए गए थे।
  • भारत में 20 ऐसे क्षेत्रों का पता चला है जहाँ गुफा चित्रकला के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इनमें अजंता, बाघ, सित्तनवासल अरमामलाई, रावण छाया तथा एलोरा की गुफाओं में निर्मित गुफा चित्रकला महत्वपूर्ण हैं। गुफा-भित्ति चित्रकलाओं का संबंध बौद्ध, जैन तथा हिन्दू धर्म से है।
  • 11वीं-12वीं शताब्दीके गुफा-भित्ति चित्रकला में अधिकांशतः लघु रूप चित्रों का अंकन मिलता है। पाण्डुलिपि के रूप में शाल-पत्रों पर चित्रों का निर्माण बौद्ध तथा जैन धर्मों  से जुड़े हैं।


राजपुत चित्रकला शैली
  • राजस्थान की लोक चित्रकला में इस शैली का प्रमुख स्थान है। राजस्थान की चित्रकला में महलों, मंदिरों तथा हवेलियों का चित्रण मुख्य रूप रूप से किया गया है।
  • राजस्थान चित्र शैली का पहला वैज्ञानिक विभाजन आनन्द कुमार स्वामी ने वर्ष 1916 में किया। उनकी रचना ‘राजपूत पेण्टिंग्स‘ में राजपूत चित्रकला की विशिष्टताओं का विवरण है।
  • राजपूत चित्रकला शैली में लोक जीवन का सानिध्य विषयों की विविधता तथा श्रृंगार का विवरण प्रमुख है। प्रकृति का मानवीकरण इसकी अन्य मुख्य विशेषता है। ‘नारी सौन्दर्य‘ का चित्रण कलाकारों की सजगता को दर्शाता है।
  • राजपूत-चित्रकला को सांस्कृति आधार पर चार उपशैलियों में विभाजित किया गया है ये हैं- मेवाड़, मारवाड़, हड़ौती तथा ढूँढाड़ शैलियाँ।
  • किशनगढ़ की चित्रकला शैली, मारवाड़ चित्रकला शैली का हिस्सा है। किशनगढ़ की शैली में निहान चन्द प्रसिद्ध चित्रकार थे, जिनकी कृति ‘बनी-ठनी‘ भारतीय मोनालिसा की उपमा से अंलकृत की जाती है। यह पेण्टिंग राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में संरक्षित है।
  • बीकानेर की चित्रकला शैली भी मारवाड़ चित्रकला का हिस्स है। इस शैली में ‘राग मेघ मल्हार‘ का चित्रण किया गया था।

पहाड़ी चित्रकला शैली
  • मुगलों के वर्चस्व में वृद्धि के बाद राजस्थान के कई क्षेत्रों से चित्रकारों ने पलायन कर हिमालय से सटे राज्यों में शरण ली तथा पहाड़ी चित्रकला शैली को विकसित किया।
  • पहाड़ी चित्रकला शैली में बसोहली, मानकोट मण्डी, नूरपुर, गुलेरी, गढ़वाल, जम्मू तथा कांगड़ा चित्रकला शैलियां प्रमुख रूप से चर्चित हैं।
  • पहाड़ी शैली का विकास 17वीं से 19वीं शताब्दी के मध्य जम्मू, कांगड़ा तथा गढ़वाल में अधिक हुआ। कांगड़ा चित्रकला अपनी विशिष्टताओं के कारण अधिक प्रसिद्ध हुआ।
  • कांगड़ा चित्रकला शैली में राधा-कृष्ण के विविध रूपों का चित्रण किया गया है। जो जयदेव की प्रसिद्ध काव्य रचना ‘गीत गोविंद‘ से प्रभावित है।

मुगल शैली
  • भारतीय चित्रकला तथा फारसी चित्रकला की सफाविद शैली के उचित संशलेषण से मुगल चित्रकला शैली का सृजन हुआ।
  • 16वीं से 18वीं शताब्दी के दौरान मुगल शासकों ने इस चित्रकला को अत्याधिक प्रोत्साहित किया।
  • हुमायूँ के दरबार में अब्दल समद तथा मीर सैयद अली दो प्रसिद्ध चित्रकार थे। अकबर, शाहजहाँ तथा जहाँगीर के शासन में चित्रकला का अत्याधिक विकास हुआ।
  • अकबर के शासन काल में ‘तूतीनामा‘ तथा ‘हम्जानामा‘ नामक पाण्डुलिपि चित्रों का निर्माण किया गया। इस दौरान ‘पोर्टेªट‘ निर्माण को भी प्रोत्साहन मिला, जिस ‘गैर-इस्लामी‘ माना जाता था।
  • जहाँगीर के शासन काल में मुगल चित्रकला अपने चरम पर थी। इस समय यूरोपीय चित्रकला शैली का प्रभाव सामने आया तथा तैलीय चित्रों का निर्माण किया जाने लगा।
  • विशनदास तथा दसवन्त जहाँगीर के दरबारी चित्रकार थे।
  • शाहजहाँ तथा औरंगजेब के शासनकाल में मुगल चित्रकला का पतन होने लगा तथा दरबारी चित्रकारों ने पलायन करना आरम्भ कर दिया। औरंगजेब द्वारा चित्रकला का बहिष्कार किया गया। मुहम्मद शाह ‘रंगीला' के शासनकाल में चित्रकला पुनर्जीवित हुई, किन्तु उसका जीवन अल्पाकालिक ही रहा।

पटना कलम शैली
  • मुगल दरबार से पलायन करने वाले चित्रकारों ने पटना जैसे वाणिज्यिक केन्द्रों में शरण ली तथा एक नए प्रकार की चित्रकला शैली को विकसित किया, जिसे पटना कलम के नाम से अंलकृत किया गया ।
  • यूरोपीय अधिकारियों तथा व्यापारियों के प्रोत्साहन से के कारण इसे ‘कम्पनी शैली‘ भी कहा गया। जिसमें सामान्य जीवन से जुड़ी गतिविधियों को चित्रों के रूप में उकेरा गया। 18वी-19वीं शताब्दी में यह अत्याधिक विकसित हुई थी।
  • लालचन्द्र तथा गोपालचन्द्र पटना कलम शैली के दो प्रसिद्ध चित्रकार थे।
  • बनारस के शासक ईश्वरी नारायण सिंह ने पटना कमल शैली को अत्याधिक प्रोत्साहित किया। पटना में दल्लूला की शबींहे अत्याधिक लोकप्रिय थीं।
  • ईश्वरी प्रसाद वर्मा भारत में पटना कलम शैली के अंतिम चित्रकार थे। इसी शैली के चित्रकार राधेमेहन प्रसाद ने ‘पटना आर्ट कालेज‘ की स्थापना की थी।
  • पटना कलम शैली में अधिकांश चित्रकार पुरूष थे। अतः इस चित्रकला शैली को पुरूषों की चित्रशैली कहा जाता है।

मिथिला चित्रकला शैली
  • बिहार के उत्तरी जिलों दरभंगा तथा मुधबनी में जिस चित्रकला शैली का विकास हुआ, उसे ‘मधुबनी चित्रकला‘ अथवा ‘मिथिला चित्रकला‘ शैली कहा जाता हैं
  • मिथिला चित्रकला में भित्ति चित्र, अरिपन, कोहबर चित्रकला इत्यादि का विकास हुआ। अब यह चित्रकला कागजों पर भी निर्मित हैं
  • प्राकृतिक पदार्थों से रंगो का निर्माण किया जाता है। देवी-देवताओं जैसे शंकर, दुर्गा, राधा-कृष्ण, सीता-राम, इत्यादि को चित्रों में स्थान दिया जाता है।
  • यह चित्रकला लो जीवन से जुड़ी हैं महासुन्दरी देवी, बउआ देवी, महालक्ष्मी देवी इत्यादि प्रसिद्ध चित्रकार हैं जिन्हें राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है।
तंजौर चित्रकला-

  • तंजौर चित्रकला शैली का विकास 9वीं शताब्दी में तमिलानाडु में चोल सामा्रज्य के दौरान किया गया।
  • तंजौर चित्रकला में हिन्दू देवी देवताओं को चित्रित किया गया हैं इस चित्रकला में चित्रों का निर्माण कई चरणों से हुआ है। पहले लकड़ी अथवा कपड़े को रंगा जाता था।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2007-2008 में भौगोलिक संकेतक (जीआई) के अंतर्गत तंजौर चित्रकला को शामिल किया है।

भारत के आधुनिक विशिष्ट चित्र एवं चित्रकार



चित्र
चित्रकार
लेड़ी विद द लैम्प
हेमेन मजुमदार
चारूलता श्रृंखला
सुदीप रॉय
भारत माता
अबनीन्द्रनाथ टैगोर
सेल्फ पोर्टेट
रबीन्द्रनाथ टैगोर
शकुन्तला
राजा कवि वर्मा
जक्खा औ जक्खी
रामकिंकर बैज
डॉल श्रृखंला
विकास भट्टाचार्य
हार्सेस श्रृखंला
एमएफ हुसैन
जेसस
जेमनी रॉय
सीरीज ऑन बंगाल फेमीन
जैनल आबदीन
महिषासुर
तैयब मेहता
ग्रुप ऑफ थ्री गर्ल्स
अमृत शेर गिल
प्रकृति पुरूष
सैयद हैदर रजा

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