रासायनिक संयोजन के नियम
रासायनिक संयोजन के नियम
तत्वों के संयोजन से यौगिक बनना निम्नलिखित मूल नियमों के अंतर्गत होता है।
- द्रव्यमान-संरक्षण का नियम
- स्थिर अनुपात का नियम
- गुणित अनुपात का नियम
- गै-लुसैक का गैसीय आयतनों का नियम
- गै-लुसैक का गैसीय आयतनों का नियम
- आवोगाद्रो का नियम
- डाल्टन का परमाणु सिद्धांत
द्रव्यमान-संरक्षण का नियम
इस नियम वेफ अनुसार द्रव्य न तो बनाया जा सकता है, और न ही नष्ट किया जा सकता है। इस नियम को आंतोएन लावूसिएन सन् 1789 में दिया था। उन्होंने दहन अभिक्रियाओं का प्रायोगिक अध्ययन ध्यान- पूर्वक किया और फिर ऊपर दिए गए निष्कर्ष पर पहुँचे। रसायन विज्ञान की बाद की कई संकल्पनाएँ इसी पर आधारित हैं। वास्तव में अभिकर्मकों और उत्पादों के द्रव्यमानों वेफ यथार्थपरक मापनों और लावूसिए द्वारा प्रयोगों को ध्यानपूर्वक करने के कारण ऐसा संभव हुआ।
स्थिर अनुपात का नियम
यह नियम फ्रान्सीसी रसायनज्ञ जोसेफ प्राउस्ट ने दिया था। उनके अनुसार, किसी यौगिक में तत्त्वों के द्रव्यमानों का अनुपात सदैव समान होता है। प्राउस्ट ने क्यूप्रिक कार्बोनेट के दो नमूनों के साथ प्रयोग किया, जिनमें से एक प्राकृतिक और दूसरा संश्लेषित था। उन्होंने पाया कि इन दोनों नमूनों में तत्त्वों का संघटन समान था. अतः स्त्रोत पर निर्भर न करते हुए किसी यौगिक में तत्त्व समान अनुपात में पाए जाते हैं। इस नियम को कई प्रयोगों द्वारा सत्यापित किया जा चुका है। इसे कभी-कभी ‘निश्चित संघटन का नियम’ भी कहते हैं.
गुणित अनुपात का नियम
यह नियम डाल्टन द्वारा सन् 1803 में दिया गया। इस नियम के अनुसार, यदि दो तत्त्व संयोजित होकर एक से अधिक यौगिक बनाते हैं, तो एक तत्त्व के साथ दूसरे तत्त्व के संयुक्त होने वाले द्रव्यमान छोटे पूर्णांकों के अनुपात में होते हैं।
गै-लुसैक का गैसीय आयतनों का नियम
यह नियम गै-लुसैक द्वारा सन् 1808 में दिया गया। उन्होंने पाया कि जब रासायनिक अभिक्रियाओं में गैसें संयुक्त होती हैं या बनती हैं, तो उनके आयतन सरल अनुपात में होते हैं, बशर्ते सभी गैसें समान ताप और दाब पर हों। गै-लुसैक के आयतन संबंधों के पूर्णांक अनुपातों की खोज वास्तव में आयतन के संदर्भ में ‘स्थिर अनुपात का नियम’ है। पहले बताया गया स्थिर अनुपात का नियम द्रव्यमान के संदर्भ में है। गै-लुसैक के कार्य की परिपर्ण सन् 1811 में आवोगाद्रो के द्वारा की गई।
आवोगाद्रो का नियम
सन् 1811 में आवोगाद्रो ने प्रस्तावित किया कि समान ताप और दाब पर गैसों के समान आयतनों में अणुओं की संख्या समान होनी चाहिए। आवोगाद्रो ने परमाणुओं और अणुओं वेफ बीच अंतर की व्याख्या की, जो आज आसानी से समझ में आती है।
यदि हम हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की जल बनाने की अभिव्रिफया को दुबारा देखें, तो यह कह सकते हैं कि हाइड्रोजन के दो आयतन और ऑक्सीजन का एक आयतन आपस में संयुक्त होकर जल के दो आयतन देते हैं और ऑक्सीजन लेशमात्रा भी नहीं बचती है।
डाल्टन का परमाणु सिद्धांत
हालाँकि द्रव्य के छोटे अविभाज्य कणों, जिन्हें एटोमोस अर्थात् ‘अविभाज्य’ कहा जाता था, द्वारा बने होने के विचार की उत्पत्ति ग्रीक दर्शनशास्त्री डिमेक्रिट्स (460.370 बी सी) के समय हुई, परंतु कई प्रायोगिक अध्ययनों के फलस्वरूप इस पर फिर से विचारकिया जाने लगा। सन् 1808 में डाल्टन ने रसायन-दर्शनशास्त्र की एक नई पद्धति (A New System of Chemical Philosophy) प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने निम्नलिखित तथा प्रस्तावित किए-
- द्रव्य अविभाज्य परमाणुओं से बना है।
- किसी दिए हुए तत्त्व के सभी परमाणुओं के एक समान द्रव्यमान सहित एक समान गुणधर्म होते हैं। विभिन्न तत्त्वों के परमाणु द्रव्यमान में भिन्न होते हैं।
- एक से अधिक तत्त्वों के परमाणुओं के निश्चित अनुपात में संयोजन से यौगिक बनते हैं।
- रासायनिक अभिक्रियाओं में परमाणु पुनर्व्यवस्थित होते हैं। रासायनिक अभिक्रियाओं में न तो उन्हें बनाया जा सकता है, न नष्ट किया जा सकता है।
डाल्टन के इस सिद्धांत से रासायनिक संयोजन के नियमों की व्याख्या की जा सकी।
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