मेंडलीव सारणी ,आधुनिक आवर्त सारणी तथा आवर्त-नियम |Periodic Table Rule in Hindi
मेंडलीव सारणी ,आधुनिक आवर्त सारणी तथा आवर्त-नियम
- रूसी रसायनज्ञ दमित्री मेंडलीव 1834-1907 तथा जर्मन रसायनज्ञ लोथर मेयर 1830-1895 के प्रयासों के फलस्वरूप आवर्त-सारणी के विकास में सपफलता प्राप्त हुई। स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए दोनों रसायनज्ञों ने सन् 1869 में प्रस्तावित किया कि जब तत्त्वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु-भारों के क्रम में व्यवस्थित किया जाता है, तब नियमित अंतराल के पश्चात् उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणों में समानता पाई जाती है।
- लोथर मेयर ने भौतिक गुणों जैसे परमाण्वीय आयतन,गलनांक एवं क्वथनांक और परमाणु-भार के मध्य वक्र आलेखित (curve plotting) किया, जो एक निश्चित समुच्चय वाले तत्त्वों में समानता दर्शाता था। सन् 1868 तक लोथर मेयर ने तत्त्वों की एक सारणी का विकास कर लिया, जो आधुनिक आवर्त-सारणी से काफी मिलती-जुलती थी, लेकिन उसके काम का विवरण दमित्री मेंडलीव के काम के विवरण से पहले प्रकाशित नहीं हो पाया। आधुनिक आवर्त सारणी के विकास में योगदान का श्रेय दमित्री मेंडेलीव को दिया गया है।
- हालाँकि आवर्ती संबंधों के अध्ययन का आरंभ डॉबेराइनर ने किया था, किन्तु मेंडलीव ने आवर्त नियम को पहली बार प्रकाशित किया। यह नियम इस प्रकार है- तत्त्वों के गुणधर्म उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं।
- मेंडलीव ने तत्त्वों को क्षैतिज पंक्तियों एवं ऊर्ध्वाधार स्तंभों में उनके बढ़ते हुए परमाणु-भार के अनुसार सारणी में इस तरह क्रम में रखा कि समान गुणधर्मों वाले तत्त्व एक ही ऊर्ध्वाधर-स्तंभ या समूहों में स्थान पाएँ।
- मेंडलीव ने आवर्तिता के महत्त्व को पूर्ण रूप से समझा और तत्त्वों के वर्गीकरण के लिए अधिक विस्तृत भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्मों को आधार माना। मेंडलीव ने तत्त्वों द्वारा प्राप्त यौगिकों के मूलानुपाती सूत्रों तथा उनके गुणधर्मों की समानता को आधार माना।
- मेंडलीव की मात्रात्मक प्रागुक्तियों और कालांतर में उनकी सफलता के कारण उन्हें और उनकी आवर्त सारणी को काफी प्रसिद्धि मिली। मेंडलीव की सन् 1905 में प्रकाशित आवर्त सारणी इस प्रकार है -
मेंडलीव सारणी |
आधुनिक आवर्त-नियम तथा आवर्त सारणी
- सारणी का वर्तमान स्वरूप यहाँ यह बात ध्यान देने
योग्य है कि जब मेंडलीव ने आवर्त सारणी का विकास किया, तब
रसायनज्ञों को परमाणु की आंतरिक संरचना का ज्ञान नहीं था। बीसवीं शताब्दी के
आरंभ में अवपरमाणुक कणों का विकास हुआ। सन् 1913 में
अंग्रेज़ भौतिकी वैज्ञानिक हेनरी मोज़ले ने तत्त्वों के अभिलाक्षणिक x किरण
स्पेक्ट्रमों में नियमितता पाई और देखा कि Under root V (जहाँ v, x
किरण की आवृत्ति है) और परमाणु-क्रमांक (Z) के
मध्य वक्र आलेखित करने पर एक सरल रेखा प्राप्त होती, परंतु
परमाणु द्रव्यमान तथा under root v के
आलेख में सरल रेखा प्राप्त नहीं होती।
- अतः मोजले ने दर्शाया कि परमाणु-द्रव्यमान की
तुलना में किसी तत्त्व का परमाणु-क्रमांक उस तत्व के गुणों को दर्शाने में
अधिक सक्षम है। इसी के अनुसार मेंडलीव वे आवर्त नियम का संशोधन किया गया। इसे
आधुनिक आवर्त नियम कहते हैं। यह इस प्रकार है "तत्त्वों के भौतिक तथा
रासायनिक गुणधर्म उनके परमाणु-क्रमांकों के आवर्ती फलन होते हैं।"(The
physical and chemical properties of the elements are periodic functions of
their atomic numbers.)
- आवर्त नियम के द्वारा प्राकृतिक रूप से पाए जाने
वाले 94 तत्त्वों में उल्लेखनीय समानताएँ मिलीं।
ऐक्टीनियम और प्रोटोक्टीनियम की भाँति नेप्ट्यूनियम और प्लूटोनियम भी
यूरेनियम के अयस्क पिच ब्लैंड में पाए गए। इससे अकार्बनिक रसायन शास्त्र में
प्रोत्साहन मिला और कृत्रिम अल्पायु वाले तत्त्वों की खोज हुई।
- आवर्त सारणी का आधुनिक स्वरूप जिसे आवर्त सारणी
का दीर्घ स्वरूप कहते हैं बहुत सरल तथा अत्यंत उपयोगी है । क्षैतिज पंक्तियों
जिन्हें मेंडलीव ने ‘श्रेणी’ कहा है
को आवर्त (periods) कहा
जाता है और ऊर्ध्वाधर स्तंभों को वर्ग (group) कहते
हैं। समान बाह्य इलेक्ट्रॉन विन्यास वाले तत्त्वों को ऊर्ध्वाधर स्तंभों में
रखा जाता है, जिन्हें ‘वर्ग’ या ‘परिवार’ कहा
जाता है। IUPAC के अनुमोदन के अनुसार, वर्गों
को पुरानी पद्धति IA...VIIA, VIII, IB...VII B, के
स्थान पर उन्हें 1 से 18 तक की
संख्याओं में अंकित करके निरूपित किया गया है।
- आवर्त-सारणी में कुल सात आवर्त हैं।
आवर्त-संख्या आवर्त में तत्त्व की अधिकतम मुख्य क्वांटम संख्या (n) को
दर्शाती है।
- प्रथम आवर्त में 2 तत्त्व
उपस्थित हैं। इसके बाद के आवर्तों में क्रमशः 8, 8, 18, 18 और 32 तत्त्व
हैं। सातवाँ आवर्त अपूर्ण आवर्त है।
- सैद्धांतिक रूप से छठवें
आवर्त की तरह इसमें तत्त्वों की अधिकतम संख्या क्वांटम संख्याओं के आधार पर 32 ही
होगी। इस रूप में आवर्त-सारणी के छठवें एवं सातवें आवर्त के क्रमशः
लेन्थेनाइड और ऐक्टिनाइड के 14-14 तत्त्व
नीचे अलग से दर्शाए जाते रहे हैं।’
- सारणी का वर्तमान स्वरूप यहाँ यह बात ध्यान देने
योग्य है कि जब मेंडलीव ने आवर्त सारणी का विकास किया, तब
रसायनज्ञों को परमाणु की आंतरिक संरचना का ज्ञान नहीं था। बीसवीं शताब्दी के
आरंभ में अवपरमाणुक कणों का विकास हुआ। सन् 1913 में
अंग्रेज़ भौतिकी वैज्ञानिक हेनरी मोज़ले ने तत्त्वों के अभिलाक्षणिक x किरण
स्पेक्ट्रमों में नियमितता पाई और देखा कि Under root V (जहाँ v, x
किरण की आवृत्ति है) और परमाणु-क्रमांक (Z) के
मध्य वक्र आलेखित करने पर एक सरल रेखा प्राप्त होती, परंतु
परमाणु द्रव्यमान तथा under root v के
आलेख में सरल रेखा प्राप्त नहीं होती।
आधुनिक आवर्त-नियम तथा आवर्त सारणी
|
तत्त्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास तथा
आवर्त-सारणी
- किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन की पहचान चार
क्वांटम संख्याओं से की जा सकती है।
- मुख्य क्वांटम संख्या (n) परमाणु
के मुख्य ऊर्जा स्तर, जिसे ‘कोश’
(shell) कहते हैं, को
व्यक्त करती है।
- किस तरह परमाणु में इलेक्ट्रॉन भिन्न-भिन्न
उप-कोशों में भरे जाते हैं, जिन्हें हम s, p, d, f कहते
हैं।
- परमाणु में इलेक्ट्रॉनों के
वितरण को ही उसका ‘इलेक्ट्रॉनिक विन्यास’ कहते
हैं।
- किसी तत्त्व की आवर्त सारणी में स्थिति उसके भरे
जाने वाले अंतिम कक्षक की क्वांटम-संख्याओं को दर्शाती है।
आवर्त में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
- आवर्त मुख्य ऊर्जा या बाह्य कोश के लिए n का मान
बताता है।
- आवर्त सारणी में प्रत्येक उत्तरोत्तर आवर्त (successive
period) की पूर्ति अगले उच्च मुख्य ऊर्जा स्तर n=1,
n=2 आदि से संबंधित होती है।
- यह देखा जा सकता है कि प्रत्येक आवर्त में
तत्त्वों की संख्या, भरे जाने वाले ऊर्जा-स्तर में उपलब्ध
परमाणु-कक्षकों की संख्या से दुगुनी होती है।
प्रथम आवर्त (n=1)
- प्रथम आवर्त
(n=1)
का प्रारंभ सबसे निचले स्तर (1s) के
भरने से शुरू होता है। उसमें दो तत्त्व होते हैं। हाइड्रोजन का विन्यास (1s1)
तथा हीलियम (1s2) है। इस प्रकार, प्रथम
कोश (K कोश) पूर्ण हो जाता है।
दूसरा आवर्त (n = 2)
- दूसरा आवर्त (n = 2) लीथियम
से आरंभ होता है ; (Li=1s2,2s1)] जिसमें
तीसरा इलेक्ट्रॉन 2s कक्षक में प्रवेश करता है। अगले तत्त्व बेरिलियम
में चार इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (1s2,2s2)
है। इसके बाद बोरॉन तत्त्व से शुरू करते हुए जब हम निऑन तत्त्व तक
पहुँचते हैं, तो 2p कक्षक पूर्ण
रूप से इलेक्ट्रॉनों से भर जाता है। इस प्रकार L कोश
निऑन (2s2 2p6) तत्त्व
के साथ पूर्ण हो जाता है। अतः दूसरे आवर्त में तत्त्वों की संख्या आठ होती
है।
तीसरा आवर्त (n = 3)
- आवर्त सारणी का तीसरा आवर्त (n =
3) सोडियम तत्त्व के साथ प्रारंभ होता है, जिसमें
इलेक्ट्रॉन 3s कक्षक में जाता है। उत्तरोत्तर 3s एवं 3p कक्षकों
में इलेक्ट्रॉनों के भरने के पश्चात् तीसरे आवर्त में तत्त्वों की संख्या
सोडियम से ऑर्गन तक कुल मिलाकर आठ हो जाती है।
चौथे आवर्त (n = 4)
- चौथे आवर्त (n = 4) का
प्रारंभ पोटैशियम से, 4s कक्षक के भरने के साथ होता
है। यहाँ यह बात महत्त्वपूर्ण है कि 4p कक्षक
के भरने से पूर्व ही 3d कक्षक का भरना शुरू हो जाता है, जो
ऊर्जात्मक (energetically रूप से
अनुकुल है। इस प्रकार, हमें तत्त्वों की 3d संक्रमण-श्रेणी
(3d
transtitian series) प्राप्त हो जाती है। यह स्केन्डियम
(Scandium : Z = 21) से प्रारंभ होती है, जिसका
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d1 4s2 होता है। 3d कक्षक
(Zn,
Z = 30) पर पूर्ण रूप से भर जाता है, जिसका
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d 10 4s2 है।
चौथा आवर्त 4p कक्षकों के भरने के साथ
क्रिप्ट्रॉन (Krypton) पर
समाप्त होता है। कुल मिलाकर चौथे आवर्त में 18 तत्त्व
होते हैं।
पाँचवाँ आवर्त (n = 5)
- पाँचवाँ आवर्त (n = 5) रूबिडियम
से शुरू होता है, चौथे आवर्त के समान है। उसमें 4d इट्रियम
(itrrium,
Z=39) से 4d संक्रमण
श्रेणी (4d transition series) शुरू
होती है। यह आवर्त 5p कक्षकों के भरने पर जीनॉन (Xenon)
पर समाप्त होता है।
छठवें आवर्त (n = 6)
- छठवें आवर्त (n = 6) में 32 तत्त्व
होते हैं। उत्तरोत्तर इलेक्ट्रॉन 6s, 4f, 5d तथा 6p कक्षकों
में भरे जाते हैं। 4f कक्षकों का भरना सीरियम (cerium,
Z=58) से शुरू होकर ल्यूटीशियम (Lutetium,
Z=71) पर समाप्त होता है। इसे 4f आंतरिक
संक्रमण श्रेणी या लेन्थैनॉयड श्रेणी (Lenthanoid Series) कहते
हैं।
सातवाँ आवर्त (n=7 )
- सातवाँ आवर्त (n=7 )छठवें
आवर्त के समान है, जिसमें इलेक्ट्रॉन उत्तरोत्तर 7s,
5f, 6d और 7p कक्षक
में भरते हैं। इनमें कृत्रिम विधियों (artificial methods) द्वारा
मानव-निर्मित रेडियोधर्मी तत्त्व हैं। सातवाँ आवर्त 118वें
परमाणु क्रमांक वाले (अभी खोजे जाने वाले) तत्त्व के साथ पूर्ण होगा, जो
उत्कृष्ट गैस-परिवार से संबंधित होगा।
- ऐक्टिनियम (Actinium, Z = 89) के
पश्चात् 5f कक्षक भरने के फलस्वरूप 5f आंतरिक
संक्रमण-श्रेणी (5f inner transition series) प्राप्त
होती है। इसे ‘ऐक्टिनॉयड श्रेणी’ कहते
हैं। 4f तथा 5f आंतरिक
संक्रमण-श्रेणियों को आवर्त सारणी के मुख्य भाग से बाहर रखा गया है, ताकि
इसकी संरचना को अक्षुण्ण रखा जा सके और साथ ही समान गुणधर्मों वाले तत्त्वों
को एक ही स्तंभ में रखकर वर्गीकरण के सिद्धांत का भी पालन किया जा सके ।
Important Fact
§ तत्वों
को उनके गुणधर्मों में समानता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
* डॉबेराइन ने
तत्वों को त्रिक में वर्गीकृत किया जबकि न्यूलैंड्स ने
अष्टक का सिद्धांत दिया।
§ मेन्डेलीफ
ने तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम तथा रासायनिक गुणधर्मो के आधार
पर वर्गीकृत किया।
§ मेन्डेलीफ
ने आवर्त सारणी में खाली स्थानों के आधार पर नए तत्वों की भविष्यवाणी की।
§ तत्वों
को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित करने से होने वाली विसंगतियाँ, परमाणु
संख्या के आरोही क्रम में व्यवस्थित करने से दूर हो गई। तत्व के इस आधारभूत
गुणधर्म अर्थात संख्या की खोज मोज्ले ने की।
§ आधुनिक
आवर्त सारणी में तत्वों को 18 उर्ध्व
स्तंभों, जिन्हें
समूह कहते हैं तथा 7 क्षैतिज पंक्तियों, जिन्हें
आवर्त कहते हैं, में
व्यवस्थित किया।
§ इस
प्रकार व्यवस्थित तत्व, परमाणु
साइज, संयोजकता
या संयोजन क्षमता तथा धात्विक एवं अधात्विक अभिलक्षण जैसे गुणधर्मो में आवर्तिता
प्रदर्शित करते हैं.
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