प्रबन्धः अर्थ, प्रकृति, महत्व एवं कार्य (Management: Meaning, Nature, Importance and function)
- ‘प्रबन्ध‘ एक व्यापक शब्द है, जिसे आधुनिक व्यावसायिक एवं औद्योगिक जगत् में कई अर्थों में प्रयोग किया जाता है। भिन्न-भिन्न विद्वानों द्वारा दी गई अलग-अलग परिभाषाएं दी गई हैं। इनमें से महत्वपूर्ण परिभाषाएं निम्न हैं-
हेनरी फेयाल के अनुसार प्रबन्ध की परिभाषा
- ‘‘प्रबन्ध से आशय पूर्वानुमान लगाना एवं योजना बनाना, संगठित करना, आदेश देना, समन्वय करना तथा नियंत्रण करना है।‘‘
स्टेनले वेन्स के अनुसार प्रबन्ध की परिभाषा
- ‘‘ प्रबन्ध केवल निर्णय करने एवं मानव की क्रियाओं पर नियंत्रण करने की विधि है ताकि नियत लक्ष्यों की प्राप्ति हो जाए।‘‘
सी.डब्ल्यू. विल्सन के अनुसार प्रबन्ध की परिभाषा
- ‘‘ निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय शक्तियों के प्रयोग एवं निर्देशन की प्रक्रिया प्रबन्धन कहलाती है।‘‘
प्रबन्ध के लक्षण या विशेषताएं-
- प्रबन्ध का सम्बन्ध संगठन से है।
- प्रबन्ध की आवश्यकता सभी स्तरों पर होती है।
- प्रबन्ध एक प्रक्रिया है।
- प्रबन्ध एक मानवीय क्रिया है।
- सामूहिक उद्देश्यों की प्राप्ति।
- प्रबन्ध सार्वभौमिक महत्व की क्रिया है।
- प्रबन्ध का संबंध हमेसा सामूहिक प्रयास से होता है।
- प्रबन्ध का अपना पृथक अस्तित्व होता है।
- प्रबन्ध का महत्व- प्रबन्ध के महत्व के निम्नलिखित कारण हैं
- उत्पादन का विशाल एवं जटिल पैमाना
- वैज्ञानिक एवं तकनीकी सुधारों का लाभ लेने के लिए
- तीव्र प्रतियोगिता का सामना करने के लिए
- आधुनिक व्यवसाय का सर्वोपरि तत्व
- औद्योगिक समाज का नेतृत्व
- श्रम समस्याओं का समाधान एवं मानवीय संसाधन विकास
- साधनों का श्रेष्ठतम उपयोग
- संस्थाओं के आंतरिक तथा बाह्य पक्षों में समन्वय बनाना
- मूलभूत आर्थिक-सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए
प्रबन्ध के कार्य-
- हार्टले विर्दश ने मुद्रा के बारे में कहा था कि ‘‘ मुद्रा वह है, जो मुद्रा का कार्य करें। यह बात हम प्रबन्ध के बारे में कह सकते हैं कि ‘‘ प्रबन्ध वह है जो प्रबन्ध करता है।‘‘ यह प्रबन्धकीय कार्याें का पूर्ण विवरण है, लेकिन इससे प्रबन्ध के कार्यों को स्पष्ट नहीं किया जा सकता। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से प्रबन्ध को निम्न भागों में बांटा जा सकता है।
- नियोजन प्रबन्ध का प्रथम कार्य माना जाता है। जो किसी भी उपक्रम में संतोषप्रद परिणाम प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। नियोजन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रबन्धक भविष्य के बारे में सोचता है तथा उपक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनुकूलतम मार्ग का चुनाव करता है।
संगठन Organisation
- प्रबन्ध प्रक्रिया में नियोजन के पश्चात संगठन का स्थान है? क्योंकि नियोजन के अंतर्गत निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए श्रम, पूंजी, मशीन, कच्चा माल आदि जुटाने होते हैं। इनका प्रभावपूर्ण उपयोगएक अच्छे संगठन या तन्त्र द्वारा संभव है। किसी भी उपक्रम में सफलता बहुत किसी इसी तथ्य पर निर्भर करती है कि उस उपक्रम की संगठन सरंचना योजना लक्ष्यों के अनुरूप की गई है या नहीं।
नियुक्तियां Recruitment
- एक उपक्रम की संगठन संरचना का निर्धारण हो जाने के पश्चात नियुक्ति की आवश्कयत होती है। उस संगठन में सृजित विभिन्न पदों पर योग्या व्यक्तियों की नियुक्तियां हो। नियुक्तियों का यह कार्य प्रबन्धकीय कार्य है और इस प्रक्रिया का भाग है।
निर्देशन एवं नेतृत्व Decision and Leadership
- एक उपक्रम में लक्ष्यों के अनुरूप संगठन संरचना व आवश्यक नियुक्तियां कर लेने के बाद निर्देशन की आवश्यकता होती है। कर्मचारियों को दिशा-निर्देश प्रदान करने की , ताकि वे लक्ष्य की ओर बढ़ सकें। इस प्रकार निर्देशन प्रबन्धकीय प्रक्रिया का महत्वपूर्ण चरण के रूप में प्रबन्ध का एक प्रमुख कार्य है।
अभिप्रेरणा Motivation
- अभिप्रेरणा प्रबन्ध का एक प्रमुख कार्य है। यद्यपि अभिप्रेरणा का कार्य निर्देशन या नेतृत्व का ही एक भाग है, परन्तु अधिकांश प्रबन्धशास्त्री आधुनिक समय में अभिप्रेरणा के महत्व को स्वीकारते हुए इसको प्रबन्ध पृथक कार्य के रूप में ही प्रदर्शित करते हैं। एक कुशल निर्देशन वही माना जाता है, जो अपने अधीनस्ाि कर्मचारियों के मनोबल को ऊँचा रखकर उन्हें उपक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अभिप्रेरितकर सके।
सम्प्रेषण या संदेशवाहन Communication
- प्रबन्धकीय प्रक्रिया में अभिप्रेरण के बाद सम्प्रेषण का स्थान है यह प्रबन्ध का महत्वपूर्ण कार्य है। उचित सम्प्रेषण के अभाव में कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने की प्रत्येक योजना निर्रथक सिद्ध होगी। यदि अभिप्रेरण के द्वारा योजना को सफल बनाना है तो यह आवश्यक है कि उच्च प्रबन्ध द्वारा बनायी गयी योजनाएं व उनके विचार सही रूप में और शीघ्रता के साथ कर्मचारियों तक सम्प्रेष्ज्ञित हो और उनके संबन्ध में कर्मचारियों की प्रक्रिया तथा सुझााव उच्च प्रबन्ध तक पहुँचते रहें।
नियंत्रण Control
- नियंत्रण प्रबन्धकीय प्रक्रिया का अंतिम चरण है। नियंत्रण से आशय ऐसी प्रक्रिया से है, जिसमें यह सुनिश्चत किया जाता है कि कार्य योजनानुसार हो रहा है या नहीं।
समन्वय co-ordination
- कुछ प्रबन्धशास्त्री समन्वय को प्रबन्ध का कार्य मानते हैं तो कुछ अन्य इसे प्रबन्ध का सार मानते हैं। परन्तु इसे जो कुछ माना जाय, यह अवश्य है कि एक उपक्रम में कुशल संचालन के लिए उपक्रम के विभिन्न विभागों व उप-विभागों के मध्य समन्वय किया जाना आवश्यक है। अन्यथा परिणाम असंतोषजनक होंगे ओर लक्ष्य प्राप्त कर पाना असम्भव होगा।
सहायक कार्य
निर्णयन Decision- प्रबन्धक जो भी कार्य करता है, वह निर्णय पर आधारित होता है। किसी भी कार्य को करने के लिए अनेक वैकल्पिक साधन हो सकते हैं किन्तु उनमें से सर्वोत्तम साधन का चुनाव के लिए ही निर्णय लिया जाता है। निर्णय जितना अधिक सही होगा, व्यवसाय उतनी ही अधिक प्रगति करेगा।
नवाचार Innovation
- इसका अर्थ उत्पादन के लिए एक नये डिवीजन, एक नई उत्पादन पद्धति, नई विपणनी तकनीक तथा नवीन कार्य से लगाया जाता है। व्यवसाय के विकास के लिए यह आवश्यक है कि परम्परागत तरीकों के बजाय सभी क्षेत्रों में नवीन पद्धतियों का प्रयोग किया जाये।
प्रतिनिधित्व Leadership
- वर्तमान में प्रबन्ध के इस कार्य को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। इससे हमारा आशय व्यावसायिक संस्था का प्रतिनिधत्व करने से है। प्रबन्ध उपक्र्रम का प्रतिनिधि होता है। और इसलिए उसका सामाजिक दायित्व हो जाता है कि वह विभिन्नहित रखने वालेे पक्षकारों इत्यादि के समक्ष संगठन का प्रतिनिधित्व करे।
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