मौर्योत्तर काल ,मौर्योत्तरकाल की कला-शैलियां (After maurya empire)
- 200 ई.पू. से लेकर 300 ई. तक के काल को मौर्योत्तर काल कहा जाता है। इस काल में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद राजनितिक एकता समाप्त हो गयी तथा कई छोटे-छोटे राज्य बन गये। इस स्थिति का फायदा उठाकर कई विदेशी शक्तियों ने भारत में आक्रमण कर दिया।
मौर्यत्तर काल के जिन प्रमुख वंशों ने शासन किया उनमें प्रमुख थे-
- 1. शुंग ( 184 ई.पू.-75 र्इ्र.पू. ),
- 2. कण्व ( 75 ई.पू.-30 ई.पू. ),
- 3. सातवाहन ( 60 ई.पू.-लगभग250 ई.)
- 4. चेदि,
- 5. यूनानी या हिंद-यवन,
- 6. शक,
- 7. पहलव या पार्थियन एवं
- 8. कुषाण।
शुंग वंश ( 184 ई.पू.-75 ई.पू. )
- शुंग वंश की स्थापना पुष्यमित्र शुंग नामक एक ब्राह्मण ने की थी। उसने अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या करने के बाद अपने वंश की स्थापना की।
- ‘गार्गी संहिता ‘ नामक पुस्तक में पुष्यमित्र शुंग, यवन आक्रमण एवं अन्य शुंग शासकों के बारे में जानकारी मिलती है।
- पुष्यमित्र शुंग के समय की प्रमुख घटना यवनों का आक्रमण है।
- पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ किए थे।
- मनु तथा पतंजलि पुष्यमित्र के समकालीन और मित्र थे। मनु ने ‘ मनु संहिता ‘ तथा पतंजलि ने ‘ महाभाष्य‘ नामक पुस्तकें लिखीं।
- पुष्यमित्र के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र शासक बना। कालिदास के प्रसिद्ध ग्रंथ मालविकाग्निमित्र था।
- भागभद्र अथवा भागवत के समय में ही हेलियोडोरस ने विदिशा में एक गरूड़ स्तभं लेख खड़ा किया था।
- शुंग वंश का दसवां व अंतिम शासक देवभूति था।
कण्व वंश ( 75 ई.पू.-30 ई.पू. )
- वसुदेव ने अंतिम शुंग शासक देवभूति की हत्या कर 75 ई.पू. के कण्व वंश की स्थापना की।
- सुशर्मा इस वंश का अंतिम शासक था।
सातवाहन ( 60 ई.पू.-लगभग250 ई.)
- सातवाहन वंश का संस्थापक सिमुक था, जिसने कण्व वंश के अंतिम शासक सुशर्मा की हत्या करके सातवाहन वंश की स्थापना की।
- शातकर्णि प्रथम प्रारंभिक सातवाहन शासकों में सबसे शक्तिशाली था। शातकर्णि प्रथम के बाद उसकी पत्नी नागनिका से संरक्षिका के रूप में शासन किया।
- सातवाहन शासकों में माता का नाम जोड़कर नाम लिखने की परंपरा थीं, जैसे-गौतमीपुत्र शातकर्णि। इसमें शातकर्णि शासक का नाम एवं गौतमी उसकी माता का नाम था।
- सातवाहनों की राजधानी पैठन या प्रतिष्ठान थी।
- हाल सातवाहनों का एक प्रमुख शासक था। उसने ‘गाथासप्तशती , नामक गं्रथ लिखा तथा गुणाढ़्य ( बृहत्कथा ) और शर्ववर्मन ( संस्कृत व्याकरण ) को संरक्षण दिया।
- यज्ञश्री शातकर्णि सातवाहनों का अंतिम शक्तिशाली शासक था।
- सातवाहनों के पतन के बाद इक्ष्वाकुओं ने अपना स्वतंत्र शासक स्थापित किया।
- सातवाहन काल में भैड़ाच पश्चिमी तट का सर्वाधिक प्रसिद्ध बंरदगाह था। जिसे यूनानी लेखक ‘ बेरीगाजा ‘ कहते थे।
चेदि वंश
- चेदि वंश प्रथम शताब्दी ई.पू. में कलिंग में था।
- चेदि वंश का संस्थापक महामेघवाहन था। उस समय उनकी राजधानी सोत्थवती ( शुक्तिमती ) थी।
खारवेल
- इस वंश का महान शासक था। हाथीगुम्फा अभिलेख से उसके बारे में जानकारियां मिलती हैं। कलिंग युद्ध में अशोक ने इसी खारवेल का हराया था।
हिंद-यवन
- हिंद-यवन शासक बैक्ट्रिया के थे।
- भारत में प्रथम ज्ञात बैक्ट्रियाई यवन शासक डेमेट्रियस था। उसने शाकल या सियालकोर्ट को अपनी राजधानी बनाया।
- डेमेट्रियस के बाद यूक्रेटाइडिस भारत में हिंद-यवन शासक बना।
- हिंद-यवन शासकों में सबसे प्रसिद्ध सिनेण्डर था। ‘ मिलिंदपन्हों ‘ नामक ग्रंथो में इसके तथा प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक
- नागार्जुन या नागसेन के साथ वाद-विवाद का विस्तृत वर्णन है।
शक
- भारत में शक पूर्वी ईरान के रास्ते आये थे।
- राजवुल या राजूल मथूरा का प्रथम शक क्षत्रप था।
- भारत के प्रारंभिक शक शासकों में माउस प्रमुख था।
- रूद्रदामन सबसे शक्तिशाली एवं सबसे प्रसिद्ध शक शासक था। रूद्रदामन ने 130 ई. से 150 ई. तक शासन किया। जूनागढ़ से 150ई.का उसका अभिलेख प्राप्त होता है। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया पहला अभिलेख है। चंद्रगुप्त मौर्य और द्वारा निर्मित सौराष्ट्र के सुदर्शन झील को अपने राज्यपाल सुविशाख के द्वारा रूद्रदामन् ने फिर से बनवाया था।
- रूद्र सिंह तृतीय अंतिम शक शासक था।
पहलव
- पहलव अथवा पार्थियन साम्राज्य की स्थापना मिथ्रदात प्रथम ( 171-130 ई.पू. ) ने की थी।
- पहलवों का सर्वोधिक शक्तिशाली शासक मिथ्रदात द्वितीय था।
- गोंदोफार्नीज सबसे प्रसिद्ध शक शासक था। ईसाई धर्मप्रचारक सेंट टॉमस, गोदोफर्नीज से शासनकाल में ही भारत आया था।
कुषाण
- मौर्योत्तर काल में भारत आने वाले विदशियों में कुषाण सबसे प्रसिद्ध थे क्योकि इन्होंने यहां एक स्थायी साम्राज्य की स्थापना की।
- भारत में कुषाण वंश का पहला प्रसिद्ध शासक कुजुल कडफिसस ( 45ई.-78ई. ) था।
- कुषाणों का सबसे प्रसिद्ध एवं महान शासक कनिष्क था। कनिष्क 78 ईस्वी में शासक बना।
- कनिष्क की राजधानी पुरूषपुर या पेशावर थी।
- कनिष्क के दरबार में कई विद्वान एवं दर्शनिक रहते थे।
- इनमें वसुमित्र, अश्वघोष, पार्श्व चरक, अग्निमित्र, नागार्जुन आदि प्रमुख थे।
मौर्योत्तरकाल की कला-शैलियां
- मौर्योत्तर काल में कला की मुख्य तीन शैलियां थीं- गांधार कला शैली, मथुरा कला शैली एवं अमरावती कला शैली।
- गांधार शैली: गांधार कला का उदय पहली सदी ई.पू. के मध्य में गांधार क्षेत्र ( अफगानिस्तान व पश्चिमोत्तर भारत ) में हुआ था। इस शैली का विषय ‘ बौद्ध ‘ है, पर संरचना में यह शैली ग्रीक देवताओं के समान है। इस शैली के अवशेष तक्षशिला में जौलियन व धर्मर्जिका में और जलालाबाद के निकट हद्दा में पाये गये हैं। इस काल की शैली में बुद्ध एवं बोधिसत्व की कई मूर्तियां बनायी गयीं। ये मर्तियां काले स्लेटी पत्थर , पकी मिट्टी एवं चूने से बनायीं गयी हैं। इस शैली को ‘ यूनानी-बौद्ध शैली भी कहां जाता है।
- मथुरा शैली: मथुरा शैली का उदय पहली सदी ई.पू. के अतं में हुआ। इस कला केंद्र मथुरा था। इस शैली में कुषाण शासक कनिष्क की एक खड़ी एवं सिर रहित मूर्ति भी पायी गयीं है।
- अमरावती शैली: यह काल शैली गोदावरी की निचली धाटी में अमरावती क्षेत्र में विकसित हुई। इस शैली की मूर्तियां श्रीलंका व दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में भी पायी गयी हैं।
- चरक, कनिष्क का राजवैद्य था। चरक ने ‘ चरक संहिता ‘ नामक पुस्तक लिखी। चरक को आयुर्वेद का जनक माना जाता है।
- कनिष्क के समय भारत के रोम से बहुत अच्छे व्यापारिक संबंध थे। इस समय भारत का कुछ समय के लिये विश्व प्रसिद्ध सिल्क रूट या रेशम मार्ग पर भी नियंत्रण रहा।
- भारत में गांधार कला का विकास कनिष्क के काल में ही हुआ। उसने पेशावर का स्तूप बनवाया।
- हमारा शक संवत कनिष्क के शासक बनने की तिथि ( 78 ईस्वी ) से ही माना जाता है।
- ‘ मनुस्मृति‘ की रचना ई.पू. दूसरी शती से ईसा की दूसरी शती के मध्य हुई। अश्वघोष ने ‘ बुद्धचरित ‘ नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। भास ने‘ स्वप्नवासवद् की रचना की थी ।
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