संगम वंश | Sangam kalin rajya
संगम युग
- मौर्य काल में दक्षिण भारत में कृष्णा एवं तुगंभद्रा नदियों के पास तीन छोटे-छोटे राज्य-चोल, चेर तथा पाण्ड्य थे। इन्हें ही संगमकालीन राज्य एवं इस युग को संगम युग कहा जाता ह। इन राज्यों के रोम के साथ व्यापारिक संबंध थें। तमिल भाषा में संघ या परिषद् के लिए‘ संगम‘ शब्द का प्रयोग किया गया है। संगम तमिल कवियों, विद्वानों, आचार्यों , ज्योतिषियों तथा अन्य बुद्धिजीवियों की एक परिषद् थी। संगम का गठन पाण्ड्य राजाओं के संरक्षण में क्रमशः तीन संगमों का आयोजन किया गया।
- दक्षिण भारत में आर्य संस्कृति का प्रसार अगस्त्य ने किया था।
- इन्होंने ही तमिल भाषा के प्रचीनतम व्याकरण की रचना भी की थी।
- प्रथम संगम आयोजन ऋषि अगत्तियनार या अगस्त्य की अध्यक्षता में मदुरै में किया गया था। इस संगम कुल सदस्यों की संख्या 549 थी। इसके कार्यकपालों का केंन्द्र पाण्ड्यों की प्रचीन राजधानी मदुरई थी। यह संगम 4400 वर्ष तक चला।
- द्वितीय संगम का आयोजन कपाटपुरम् अथवा अलवै में किया गया था। इसकी अध्यक्षता प्रारंभ में अगस्त्य एवं बाद में तोलकप्पियर ने की। इस संगम के सदस्यों की संख्या 49 थी। संगम 3700 वर्षो तक चला। तृतीय संगम का आयोजन उत्तरी मदुरई में नक्कीरर की अध्यक्षता में किया गया था। यह 1850 वर्ष तक चला। इस संगम में 49 सदस्य थे।
संगमकालीन राज्य
- संगमकालीन राज्यों में चोलों का सबसे पहले उदय हुआ।
- चोलों का प्रथम ऐतिहासिक शासक उरूवप्पहरेंइलंजेतचेन्नि था।
- करिकाल और कोच्येगणान चोलों के दो प्रसिद्ध शासक थे पहले चोलों की राजधानी ‘ उत्तरी मनलूर‘ तथा बाद में उरैयूर बन गयी।
- चेर राज्य में कोचीन, उत्तरी त्रावनकोर एवं दक्षिणी मालाबार के क्षेत्र सम्मिलित थे। चेर राज्य की दो राजधानियां थीं-वंजि तथा तोण्डी।
- चेरों की ज्ञात आरंभिक शासक-उदियंजेरल था। उसके बाद नेड्डंजेरल आदन शासक बना।
- शेनगुट्टवन चेरों का सबसे प्रसिद्ध शासक था। पारी को अंतिम चेर शासक माना जाता है।
- पाण्ड्य राज्य चोल के राज्य दक्षिण में कन्याकुमारी से लेकर कोरकै तक फैला हुआ था। पहले पाण्ड्यों की राजधानी तिरूनेवेल्ली थी लेकिन आगे चलकर उन्होंने मदुरई को अपनी राजधानी बना लिया।
- बदिमबलनवन्नि पाण्ड्यों का पहला शासक था। लेकिन नेड्डजेलियन पाण्ड्यों के पहला प्रसिद्ध शासक था।
- सातवाहनों एवं पल्लवों ने पाड्य राज्य को समाप्त कर दिया।
- तमिल ग्रंथो तोलकाप्पियम, ‘ इरैयनार‘ तथा ‘ कलविलय ‘ में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख मिलता है।
- सती प्रथा का उल्लेख मणिमेकलै नामक ग्रंथ में किया गया है।
- ‘ शिप्पादिकारम्‘ नामक ग्रंथ में मनोरंजन के विभिन्न साधनों का उल्लेख मिलता है। समाज में दास-प्रथा का अभाव था।
- संगम साहित्य‘ कुरल ‘ में संगमकालीन राजनीतिक एवं प्रशासनिक स्थिति की विस्तृत जानकारी मितली है। संगम काल के सभी राज्य संघात्मक थे। शासन-व्यवस्था राजतंत्रात्क तथा वंशानुगत थी।
- संगम काल में शासन में सहयोग के लिए दो प्रकार की सभाएं थीं-नगर सभा तथा ग्राम सभा। ग्राम सभा को ‘ मनरम्‘ तथा नगर सभा को ‘ उर‘ कहतें थे।
- राजा का न्यायालय मनरम ‘ कहलाता था।
- ‘ मुरूगन या ‘ सुब्रह्मण्य ‘ संगम युग से सबसे प्रमुख देवता थे।
कदम्ब एवं गंग राजवंश
कदम्ब राजवंश
- कदम्ब ब्राह्मण थे। कदम्ब प्रारंभ में पल्लवों के अधीन थे।
- मयूरशर्मन ने स्वतंत्र कदम्ब राजवंश की स्थापना की। उसने ‘ बनवासी को राजधानी तथा पालासिका को उप-राजधानी बनाया।
- काकुत्सवर्मन इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। इसने तालगुण्ड में एक विशाल तालाब बनवाया।
- मृगेशवर्मन का पलासिका तथा। बनवासी दोनों पर अधिकार था। मृगेशवर्मन एक कुशल योद्धा, विद्वान, बुद्धिमान एवं दानी शासक था। इसने अपने पिता की स्मृति में पलासिका में एक जैन मंदिर बनवाया।
- अजवर्मन के समय चालुक्यों ने कदम्ब राज्य पर अधिकार कर लिया।
गंग राजवंश
- गंगों के राज्य आधुनिक मैसूर के दक्षिण में कदम्बों एवं पल्लवों के राज्यों बीच में था। इस स्थानों को ‘ गंगवाडि़ भी कहते थे।
- गंगों की प्रारंभिक राजधानी कुवलाल ( कोलर ) थी, जो बाद में तलकाड हो गयी।
- कोंकणिवर्मा इस वंश का प्रथम शासक था।
- माधव प्रथम विद्वान शासक था, जिसके दत्तक सूत्र पर एक टीका लिखी।
- दुर्विनीत ( लगभग 540-600 ई. ) इस वंश का एक प्रतापी शासक था। यह संस्कृत का महान विद्वान था।
- श्रीपुरूष अपनी राजधानी तलकाड में ‘ मान्यपुर ‘ ले गया। 1004 ई. में चोल शासक राजराजा प्रथम ने गंग राज्य पर अधिकार कर लिया।
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