MP PSC MAINS ANSWER WRITING Paper 1 | इतिहास-भाग 04
अति लघुत्तरीय प्रश्न
1. चार्ल्स मेटकॉफ
2. बन्दा बहादुर
3. राजा शिताब राय
4. पेशवा
5. द एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल
6. पंच ककार
7. शेर-ए-मैसूर
8. गुरूमुखी लिपि
9. जोनाथन डंकन
10. नादिरशाह
11. रामदास
12. तख्तें ताऊस
13. भैरोवाल की संधि-1846
14. जॉन शोर
15. गुरू हरगोविंद
16. बंगाल गजट
17. एलिया इम्पे
18. चौथ
चार्ल्स
मेटकॉफ
इसे भारतीय प्रेस का
मुक्तिदाता भी कहा जाता है। इसने अपने छोटे से कार्यकाल में प्रेस पर नियंत्रण हटा
लिया।
बन्दा
बहादुर
इनका जन्म पुँछ जिले
में हुआ था। फर्रूखशियर के आदेश पर इनका कत्ल कर दिया गया।
राजा
शिताब राय
क्लाइव ने बंगाल के
सभी क्षेत्रों के लिए दो उप-दीवान नियुक्त किये। जिनमें से बिहार का उप-दीवान राजा
शिताब राय को बनाया गया।
पेशवा
यह मराठा साम्राज्य
को सेनापति हुआ करता था। इसका कार्य का प्रशासन और अर्थव्यवस्था की देख-रेख करना
था।
एशियाटिक
सोसायटी ऑफ बंगाल
इसकी स्थापना सर
विलियम जोन्स ने 1784 ई.
में की। इस समय वॉरेन हेस्टिंग्स का कार्यकाल था।
पंच
ककार
इसका अर्थ हैः केश, कंघा, कच्छा, कृपाण
और कड़ा। गुरू गोविंद सिंह ने इसे सिखों के लिए अनिवार्य कर दिया।
शेर-ए-मैसूर
शेर-ए-मैसूर के उपनाम
से टीपू सुल्तान को जाना जाता है। उसने राजधानी श्रीरंगपट्टनम में ‘ स्वतंत्रता
का वृक्ष‘ लगवाया।
गुरूमुखी
लिपि
यह लिपि सिखों के
गुरू, अंगद
द्वारा शुरू की गयी थी। सिखों का धर्मग्रन्थ ‘ गुरूग्रंथ साहब‘ इसी
लिपि में लिखा गया है।
जोनाथन
डंकन
इन्होंने 1782 ई.
में एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की। इस संस्कृत विद्यालय को इन्होंने बनारस
में स्थापित किया।
नादिशाह
यह ईरानी आक्रांता
था। जिसने 1739 ई.
में दिल्ली पर आक्रमण किया। आक्रमण के समय दिल्ली का शासक मुहम्मदशाह था।
रामदास
यह महाराष्ट्र के
महान संत थे। रामदास के उपदेशों का संकलन ‘ दशबोध‘ है।
तख्ते
ताऊस
इसे ‘ मयूर
सिंहासन के नाम से भी जाना जाता है। शाहजहाँ ने इसको बनवाया था। नादिरशाह इसे
लूटकर फारस ले गया।
भैरोवाल
की संधि-1846
यह संधि
अंग्रेजों और सिखों के मध्य हुयी। इस संधि के तहत राजा दलीप सिंह के संरक्षण
के लिये अंग्रेजी सेना का प्रवास पंजाब में मान लिया गया।
जॉन
शोर
इसका कार्यकाल लगभग 1793 ई.
से 1798 ई.
तक रहा। इसने ‘ अहस्तक्षेप
की नीति‘ अपनाई।
गुरू
हरगोविंद
ये सिखों के छठें
गुरू थे। इन्होंने अकाल तख्त का निर्माण करवाया। इनके बाद गुरू हरराय सिखों के
गुरू हुये।
बंगाल
गजट
यह 1798 ई.
में प्रकाशित होने वाला भारत का पहला समाचार-पत्र था। इसका प्रकाशन जेम्स ऑगस्टस
हिक्की ने किया था।
एलिया
इम्पे
यह कलकत्ता
उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश था। रेगुलेटिंग एक्ट के तहत 1774 ई.
में कलकत्ता में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना हुयी थी।
चौथ
यह शिवाजी द्वारा
लगाया गया ‘कर‘ था।
यह किसी एक क्षेत्र को बर्बाद न करने के बदले दी जाने वाली रकम थी।
लघुत्तरीय प्रश्न
मीर
जाफर
प्लासी लड़ाई
जीतने के पश्चात क्लाइव ने इस बंगाल का नवाब बनाया। मीर जाफर ने पलासी
के युद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया। मीर जाफर को क्लाइव का गीदड़ ‘ कहां
जाता था नवाब बनने के बाद मीर जाफर ने क्लाइव को एक भारी रकम निजी तौर पर
भेंट की और अंग्रेजों कंपनी को 24 परगने की जमींदारी सौंपी। मीर जाफर ने
क्लाइव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उसे मुगल बादशाह आलमगीर द्वितीय
से ‘उमरा‘ की
उपाधि दिलवायी। 24 परगने
की जागीर को ‘क्लाइव
की व्यक्तिगत
जगीर ‘ के
रूप में भी जाना जाता है।
सरदेशमुखी
यह मराठा
राजा को उसके देशस्वामी ( देशमुख ) होने के नाते दिया जाने वाला पुराना
कर था। शिवाजी के अनुसार देश के वंशानुगत सरदेशमुख और सबसे बड़ा होने
के नाते और लोगों के हितों की रक्षा करने के बदले उन्हें सरदेशमुख लेने
का अधिकार था। गोलकुंडा में कर वसूलने वाला अधिकारी देशमुख होता था। इसकी
वसूली मराठा शासक स्वयं या अपने अधिकारियों के माध्यम से करते थे। यह कर
उन क्षेत्रों से प्राप्त जाता था। जो मराठा राज्य में सम्मिलित कर लिये गये
थे।
धन
का बहिर्गमन
धन के
बहिर्गमन के सिद्धान्त का प्रतिपादन दादा भाई नौरोजी, महादेव
गोविंद रानाडे
जैसे प्रसिद्ध राष्ट्रवादियों ने किया था। ब्रिटेन ने भारत की बढ़ती निर्धनता
की कीमत कर अपना विकास किया। ब्रिटेन द्वारा कच्चा माल, संसाधनों और
धन की इस लूट को नौरोजी और रानाडे जैसे नेताओं ने समझा। इसी की पृष्ठभूमि
में ‘ धन
के बहिर्गमन के सिद्धान्त‘
का
प्रतिपादन हुआ। दादा भाई नौराजी ने कहा था कि, ‘ ब्रिटिश
शासन भारत से निकलने वाला खून का एक दरिया है।‘ प्रसिद्ध अर्थशास्त्री आर.सी. दत्त ने
अपनी पुस्तक ‘ इकोनॉमिक हिस्ट्री
ऑफ इण्डिया‘ में
बहिर्गमन के सिद्धान्त पर बल दिया है। इस पुस्तक को
भारत के आर्थिक इतिहास पर पहली प्रसिद्ध पुस्तक माना जाता है।
बक्सर
का युद्ध
बक्सर का
युद्ध 22 अक्टूबर, 1764 ई.
को हुआ। इस युद्ध में एक तरफ मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय, अवध
के नवाब शुजाउद्दौला तथा मीर कासिम की संयुक्त सेनायें थीं
और दूसरी ओर अंग्रेजी सेना। इस युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व हेक्टर
मुनरो ने किया। यह एक निर्णायक युद्ध था। इस युद्ध के बाद बंगाल, बिहार
और उड़ीसा पर ब्रिटिश कम्पनी का पूरा प्रभुत्व कायम हो गया। इसी युद्ध
के बाद मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय पूरी तरह से अंग्रेजों की शरण में चले
गए। उल्लेखनीय है कि बक्सर की लड़ाई के दौरान मीर कासिम अपदस्थ था और इस
समय बंगाल का नवाब मीर जाफर था।
बंगाल
में द्धैध शासन
द्धैध शासन
का आरम्भ बंगाल में 1765 ई.
से माना जाता है। द्धैध शासन में वास्तविक शक्ति कंपनी के पास होती थी और
निजामत के कार्यो को संपन्न करती थी। द्धैध शासन के तहत नवाब की भूमिका
बस छाया मात्र थी। कंपनी और निजाम दोनों द्वारा होने वाले प्रशासन
व्यवस्था को ही बंगाल में द्धैध शासन कहा गया। दीवानी और निजामत अधिकार पा लेने
के बाद अंग्रेजो ने कर वसूली के लिए दो उप-दीवानों की नियुक्ति की। बिहार
में कर वसूली के लिए राजा शिताब राय को तथा बंगाल के लिए रजा खां को
उप-दीवान बनाया गया। आगे चलकर वारेन हेस्टिंग्स ने द्धैध शासन को समाप्त कर
दिया।
मीर
कासिंम
अंग्रेजो ने
मीर जाफर को नवाब के पद से हटाकर मीर कासिम को बंगाल का नवाब घोषित किया।
नवाब बनने के बाद मीर कासिम ने कुछ जिले स्थायी रूप से अंग्रेजों को दे
दिये। जिनमें मिदनापुर, बर्दवान
और चटगाँव शामिल था। इसके कासिम को सैन्य सहायता देने का भरोसा दिया। नवाब
बनने से पहले मीर कासिम पूर्णिया और रंगपुर के फौजदार के रूप में कार्य कर
चुका था। मीर कासिम ने अंग्रेजों के हस्तक्षेप से बचने के लिए अपनी राजधानी
को मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानांतरित की। इसने अपनी सेना का
पुनर्संगठन किया और उसे पूरोपीय ढ़ग से प्रशिक्षित किया।
स्थानी
बंदोबस्त
इस भू-राजस्व
व्यवस्था को कार्नवालिस ने 1793 ई. में लागू किया। इसे जमींदारी प्रथा, मालगुजारी
तथा बीसवेदारी आदि नाम से जाना जाता है। स्थानी बंदोस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा, बनारस
क्षेत्रों में लागू किया गया। इस भूमि व्यवस्था में पूरे ब्रिटिश भारत के
क्षेत्रफल का लगभग 19 फिसदी
हिस्सा शामिल
था। इस व्यवस्था में काश्तकारों से जमीन वापस छीन ली जाती थी। काश्तकार
पूर्ण रूप से जमींदारों पर निर्भर थे। स्थानी बंदोस्त प्रणाली के अन्तर्गत
जमींदारों की स्थिति बहुत मजबूत हो गयी। इस बंदोस्त में जमींदारों को
भूमि का पूर्ण स्वामी मान लिया गया था। इस व्यवस्था में लगान का थोड़ा भी
हिस्सा अदा ने होने पर जमींदारों के लगान सम्बन्धी अधिकार छीन लिए जाते थे।
काल
कोठरी की घटना
इस घटना
का सम्बन्ध कलकत्ता के नवाब सिराजुद्दौला से है। यह घटना 21 जून, 1756 ई.
में हुयी। कलकत्ता स्थित फोर्ट विलियम पर अधिकार करने के बाद नवाब सिराजुद्दौला
ने 146 अंग्रेज
बंदियों को एक कोठरी में बंद रखा। अगले दिन सुबह उन 146 अंग्रेजों में से सिर्फ 23 व्यक्ति
ही जिंदा बचें, शेष
घुटन और गर्मी
की वजह से मर गए। यहीं घटना‘ के नाम से प्रसिद्ध है। इसका उल्लेख उस कोठरी
से जीवित बच निकलने वाले अंग्रेज हालवेल ने किया है। इस घटना के बाद नवाब, कलकत्ता
को मानिकचंद को सौंपकर राजधानी मुर्शिदाबाद लौट आया।
प्लासी
का युद्ध, 1757
यह युद्ध
आधुनिक भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण युद्धों में एक है। पलासी की लड़ाई
कलकत्ता के नवाब सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के मध्य 23 जून, 1757 को लड़ी
गयी। वास्तव में यह एक छù
युद्ध
था। इस युद्ध में अंग्रेजों सेना का नेतृत्व क्लाइव कर रहा था तो वहीं दूसरी
ओर सिरोजुद्दौला की अग्रगामी टुकड़ी का नेतृत्व मीर मदान और मोहनलाल
ने किया। पलासी के युद्ध में केवल मीरमदान और मोहनलाल की नवाब के प्रति
वफादार रहें। इस निर्णायक युद्ध में अंग्रेज विजयी हुए और धूर्त मीर जाफर को
अंग्रेजों की मदद करने के एवज में क्लाइव ने बंगाल का नवाब घोषित किया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्नः
भारतीय धन का ब्रिटेन में पलायन कि रूपों में हुआ? स्पष्ट
कीजिये?
उत्तरः 18वीं
शताब्दी के उत्तरार्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अबाध रूप से ब्रिटिश माल
के भारत में प्रवेश की नीति अपनाई। ब्रिटेन में कई औद्योगिक क्रांति के
कारण वहां मशीनों के द्वारा अधिक मात्रा में माल तैयार होने लगा और उन्हें
खपाने के लिये भारत अच्छा बाजार था। भारत से कच्चा माल ब्रिटेन भेजा जाने
लगा। एक तरफ भारत में ब्रिटेन से आयातित माल पर कम से कम आयात शुल्क लगाया
गया और दूसरी तरफ ब्रिटेन में भारतीय माल के प्रवेश पर भारी आयात शुल्क
लगाये इसका परिमाण यह हुआ कि भारत से भारी मात्रा में धन ब्रिटेन जाना
शुरू हो गया। यहां हम बिन्दुबार ब्रिटेन में भारतीय धन के पलायन के रूपों
को समझते हैं-
1. गृह व्यय
धन का यह व्यय भारत
राज्य सचिव और उसके द्वारा व्यय के रूप में था। इस गृह व्यय के अंतर्गत निम्नांकित
तत्व आतें थे।
2. सैनिक और असैनिक व्यय- गृह व्यय
के अंतर्गत आने वाले इस तत्व में ब्रिटेन में स्थित भारतीय प्रशासन से सम्बंधित
कार्यालय तथा कर्मचारियों,
युद्ध
के सचिवालय
अंग्रेजी सैनिक और असैनिक पदाधिकारियों के वेतन पेंशन आदि शालिम थे।
3. ईस्ट इंडिया कंपनी के भागीदारों को दिया
जाने वाला लाभांश भी गृह व्यय का ही एक भाग था।
4. भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने
क्षेत्र विस्तार के लिए अनेक युद्ध किये। भारत से बाहर अफगान, नेपाला
और वर्मा में भी अनेक युद्ध किये। इन सभी युद्धों में जिस धन का व्यय हुआ अनेक
लिए कंपनी ने ऋण लिया। इसके अलावा भारत में सिंचाई के विकास, रेलवे
और अन्य सार्वजनिक कार्य के लिये भी कंपनी ने ऋण ले लिया था। इस ऋण के मूलधन और ब्याज को चुकाने के
लिये बड़ी मात्रा में धन का पलायन हुआ।
5. भारत की अंग्रजी सरकार ब्रिटेन से
करोंड़ों रूपये का माल सैनिक-असैनिक तथा अन्य विभागों के लिये अंग्रेजी मंडियों
से खरीदती थी, यह
गृह व्यय का ही एक
हिस्सा था।
विदेशी बैंक, इंशयोरेंस
और नौवहन कम्पनियां
गृह व्यय के अलावा
बैंक, इंश्योरेंस
और नौवहन कंपनियों ने भी भारत से करोड़ों रूपयों का लाभ कमा कर विदेशों में भेजा।
विदेशी पूंजी निवेश
पर दिया जाने वाला ब्याज
व्यक्तिगत विदेशी
पूंजी निवेश पर दिया जाने वाला ब्याज और लाभ भी भारत की राष्ट्रीय आय
से निकास का एक प्रमुख माध्यम था। विदेशी पूंजीपतियों ने भारत के औद्योगिक
क्षेत्रों में अपनी पंूजी निवेश कर रखा था। वे लाभ के रूप में करोड़ों
रूपये प्रति वर्ष भारत से ले जाते थे।
उपर्युक्त वर्णन
के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पलासी युद्ध के बाद विभिन्न कारणों से
धन का पलायन तेज गति से हुआ। इस काल में इग्लैंड का भारतीय अर्थव्यवस्था
पर एकाधिकार हो गया और धन का इंग्लैंड की ओर प्रवाह शुरू हो गया।
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