जीव विज्ञान- Integumentary System, Skeleton System, Digestive System
अध्यावरणी तंत्र (Integumentary System)
उपचर्म (Epidermis )
त्वचा के कार्य
एल्बीनिज्मः
कंकाल तत्रं (Skeleton System)
पाचन तंत्र (Digestive System)
पोषण
- मानव का वैज्ञानिक नाम होमो सैपियंस है।
- अध्यावरणी तंत्र में त्वचा को अध्यावरण (Integument) भी कहते हैं।
- अध्यावरणी तंत्र एक जटिल तंत्र है क्योंकि त्वचा एवं उससे संबंधित अन्य भागों की रचना जटिल होती है। मनुष्य की त्वचा कोमल, चिकनी, शुष्क, मोटी एवं रोमयुक्त होती है।
मनुष्य की त्वचा दो
स्तरों की बनी होती है
- 1. उपचर्म (Epidermis )
- 2. चर्म (Dermis )
उपचर्म (Epidermis )
- उपचर्म शरीर की बाहरी परत है। चर्म शरीर की भीतरी परत है। चर्म में ही बालों के शेफ्ट, स्वेद (पसीना ) ग्रंथियां, रक्त वाहिकायें आदि पायी जाती हैं।
- बाह्म हानिकारक पदार्थों को शरीर में प्रवेश करने से रोकना, शरीर का बाह्म आवरण बनाना तथा शरीर के भीतरी कोमल अगों की रक्षा करना, वसा के रूप में खाद्य पदार्थों का संचय करना शरीर को एक निश्चित आकार प्रदान करना, कई उपयोगी पदार्थों का स्त्रावण करना जैसे-दुग्ध, त्वचा कंकाल का भी निर्माण करती है, जैसे-सिर की अस्थि। इसके अलावा त्वचा संवेदनाओं को ग्रहण करती है, पसीने के द्वारा हानिकारक पदाथों को शरीर से बाहर निकालती है तथा शरीर के घावों को भरने में सहायता करती है।
- मनुष्य की त्वचा का रंग मुख्ययतः ‘मिलैनिन‘ नामक वर्णक (Pigments) के कारण होता है। मिलैनिन का संश्लेषण ‘मिलैनोसाइट्स‘ नामक कोशिकायें करती हैं, जो उपचर्म में स्थित होती हैं। मनुष्य की त्वचा का रंग अलग-अगल पदार्थों के कारण अलग-अलग होता है।किरैटिन की उपस्थिति के कारण मनुष्य की त्वचा का रंग पीला नारंगी, ऑक्सीहीमोग्लोबिन के कारण लाल, हीमोग्लोबिन के कारण बैंगनी और मिलैनिन के कारण गेंहुआ, सांवला इत्यादि होता है।
- यह रोग त्वचा में त्वचा वर्णक बनने को रोक देता है। यह ऑटोसोम के अप्रबल जीन के कारण होता है। इस रोग से ग्रसित मनुष्य की त्वचा, आइरिस, रेटिना एवं बाल वर्णक रहित होते हैं।
- शरीर का आंतरिक ढांचा कई छोटी-बड़ी, लंबी तथा अनियमित आकार की हड्डियों से मिलकर बना होता है। मानव शरीर में इनकी संख्या 206 होती है। ये आपस में जुड़कर जोड़ों का निर्माण करती हैं।
- इस तंत्र का प्रमुख कार्य शरीर को दृढ़ता प्रदान करना, शरीर को एक निश्चित आकार प्रदान करना आंतरिक अंगों की बाह्म आघातों से रक्षा करना है।
मानव शरीर में पायी
जाने वाली विभिन्न अस्थियों के नाम इस प्रकार हैं-
- 1. भुजा की अस्थिः ह्मूमरस,
- 2. कोहनी-रेडियस और अल्ना,
- 3.हाथ-(1) कलाई-कार्पल्स, (2)हाथ का तल-मेटा कार्पल्स, -(3) ऊँगलियां-फेलांजेज,
- 4. जांघ-फीमर,
- 5.घुटना-टीबिआ तथा फिबुला,
- 6.पांव--(1) एड़ी-टार्सल्स, -(2) तलवा-मेटाटार्सल्स, -(3) ऊंगली-फेलांजेज,
- 7. कमर-पेल्विक गर्डल,
- 8. छाती-पेक्टोरल गर्डल,
- 9. पसली-स्टर्नम।
- शरीर की सबसे बड़ी हड्डी जांघ में ‘फीमर‘ तथा सबसे छोटी हड्डी कान में ‘स्टेप्स होती है।
- मानव की खोपड़ी में 22 हड्डियां होती हैं।
- जन्म के समय शिशु में लगभग 300 अस्थियां होती हैं, परन्तु शिशु के विकास के समय 94 अस्थियां आपस में जुड़कर वयस्क में केवल 206 रह जाती हैं।
पाचन तंत्र (Digestive System)
- शरीर के जिस भाग द्वारा पाचन की क्रिया संपन्न होती है, उसे आहार नली कहा जाता है। पचे हुए भोजन का अवशोषण मुख्यतः छोटी आंत में होता है।अपाचित एवं अवशोषित पदार्थ गुदा मार्ग से बाहर हो जाते हैं।
- पाचन नली के विभिन्न भाग इस प्रकार होते हैं-(1) ग्रासनली (oesophagus) (2) आमाशय (stomach), (3) छोटी ऑत (small lntestine), (4) बड़ी ऑत (large lntestine) एवं (5) गुदा द्वार (aanus)।
- भोजन का पाचन मुख से प्रारंभ हो जाता है। यहां लार में टायलिन नामक एंजाइम स्टार्च को शर्करा में परिवर्तित कर देता है। मुख के बाद, भोजन तथा एन्जाइम आमाशय में प्रवेश करता है।
- मुख से निकली लार लगभग उदासीन होती है। यह भोजन के साथ मिलकर भोजन को सुपाच्य बनाती है।
- आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निकलता है जो अम्लीय माध्यम का निर्माण करता है। यह माध्यम पेप्सिन पर क्रिया करता है। साथ ही भोजन में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट करता है।
- आमाशय में जठर रस तथा एन्जाइम्स का स्त्रावण होता है, जो भोजन में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट करते हैं तथा प्रोटीन्स और वसा के पाचन में सहायता करते हैं। भोजन के इस परिवर्तित रूप को ‘चाइम‘ कहते हैं, जो ड्यूडोनम द्वारा छोटी आंत में प्रवेश करता है।
- भोजन का अधिकांश पाचन छोटी आंत में होता है।
- छोटी आंत में भोजन में अग्नाशय रस (अग्नाशय द्वारा) ‘पित्त रस (यकृत द्वारा) तथा आंत्र रस (छोटी ऑत) द्वारा मिला दिए जाते हैं, जो पाचन‘ अवशोषण तथा उत्सर्जन में सहायता करते हैं। भोजन के इस परिवर्तित रूप को ‘चाइल‘ कहते हैं।
- इसके बाद भोजन बड़ी आंत में प्रवेश करता है। यहां अवशोषण द्वारा भोजन में उपस्थित लाभदायक पदार्थ रक्त में पहुंच जाते हैं। अनावश्यक पदार्थ मलद्वार तथा मूत्राशय की सहायता से समय-समय पर शरीर के बाहर निकाल दिए जाते हैं।
- भोजन का अधिकांश अवशोषण इलियम होता हैं
मनुष्य की जीभ में
स्वाद क्षेत्र इस प्रकार होते हैं- नमकीनः मीठा क्षेत्र से थोड़ा नीचे, मीठाः जीभ का सबसे अगला भाग, खट्टाः जीभ के बगल में तथा कड़वाः जीभ के सबसे पीछे
का भाग।
दांत- दांत हमारे शरीर का सबसे सख्त और मजबूत हिस्सा है। दांत कैल्शियम, फॉस्फोरस और अन्य खनिजों से बने होते हैं। दाँत की ऊपरी परत को इनेमल कहते हैं। यह हमारे शरीर का सबसे सख्त पदार्थ है। इसके भीतर डैन्टिन होता है, जो खनिजों से बना हड्डियों जैसा सख्त हिस्सा है। डैन्टिन भीतर पल्प होता है, जिसमें खून की नसें होती हैं और सिमैन्टम वह हिस्सा है, जो दाँत को हमारे जबड़े की हड्डी से जोड़ता हैं।
- दांत चार प्रकार के होते हैं-कर्तक, भेदक, पूर्वचर्वक एवं चर्वक। दांत की ऊपरी सतह ऐनेमल कहलाती है। इसी के कारण दांत चमकीले दिखाई देते हैं।
1. पोलीफायोडन्ट-
- निम्न कशेरूकी प्राणियों में दांत के कई बार टूटने तथा पुनः नए दांत बनने की स्थिति पोलाफायोन्ट कहलाती है।
- यह स्थिति, उच्च कशेरूकी प्राणियों जैसे-मनुष्य आदि में पायी जाती है। सिर्फ एक बार दांत टूटने के बाद नए दांत निकलते हैं। यदि इसके बाद दांत टूटता है तो उस स्थान पर खाली जगह बनी रहती है। इस प्रकार के जीव डायफायोडॉन्ट कहलाते हैं। आम बोल-चाल की भाषा में इसे ‘दूध के दांत गिरना कहते हैं।
कर्तक (lncisors) काटने एवं कुतरने, भेदक (canines) भोजन में छेंद करने , पूर्वचर्वक (premolar) दबाने एवं चर्वक (molar) पसाने का कार्य करते हैं। मनुष्य में 20 दूध के दांत तथा 32 स्थायी दांत होते हैं।
पूर्ण रूप से वयस्क
मनुष्य में 16 दांत निचले जबड़े
में होते हैं। मनुष्य का दंत सूत्र इस प्रकार होता है-
कर्तक-भेदक-पूर्वचर्वक-चर्वक
ऊपरी जबड़ा 2-1-2-3
निचला जबड़ा 2-1-2-3
लार ग्रंथि (salivary gland)
इसके तीन जोडे़ मुँह में होते हैं-
1. पैरोटिड ग्रंथिः कान
के नीचे
2. सब-मैक्सिलरी ग्रंथिः
जीभ की जड़ के ठीक ऊपर या मुँह में पीछे की ओर तथा
3. सब-लिंगुअल ग्रंथिः
जीभ के ठीक नीचे।
इन ग्रंथियों से लार
का स्त्रावण होता है, जिसमें म्यूकस और
दो इन्जाइम्स-टायलिन और माल्टेज हैं, जो कार्बोहाइड्रेट पर क्रिया करते हैं।
मम्प्स (Mumps)
- एक वायरस द्वारा फैलाया जाने वाला संक्रामक रोग है, पैरोटिड लार ग्रंथि पर आक्रमण करता है जिससे इसमें सूजन आ जाती है। इस अवस्था में मुंह का खुलना या खाद्य पदार्थ का निगलना कठिन हो जाता है। साथ ही लार का स्त्रावण भी कम हो जाता है।
- सांप की लार ग्रंथियां, विष ग्रंथियों में परिवर्तित हो जाती हैं।
यकृत (liver)
- मनुष्य के शरीर की यह सबसे बड़ी ग्रंथि है। यकृत, डायफ्राम के पीछे दांयी ओर होता है, जिसके दो भाग होते हैं। नाशपाती के आकार का ”पित्ताशय“ (gall bladder) यकृत के पिछली सतह पर स्थित होता है। पित्ताशय, यकृत द्वारा स्त्रावित पित्त (bile) का संग्रह करता है एवं पाचन क्रिया के दौरान इसे स्त्रावित करता है।
यकृत के प्रमुख कार्य
हैं-
- पित्त रस पाचन क्रिया में सहायता करना, रक्त में चीनी की मात्रा को नियंत्रित करना यह जरूरत से ज्यादा ग्लूकोज को ग्लायकोजन में बदल देता है तथा उसका संग्रह कर देता है। यकृत, भ्रूण अवस्था में रक्त का कण बनाता है तथा रक्त का थक्का बनने के लिए यह ”फाइब्रिनोजन“ तथा प्रोथ्रोम्बिन बनाता व संग्रहित करता है। रक्त संचारण, सुगम बनाए रखने लिए ‘हीपेरिन‘ का निर्माण करता है। अग्नाशय शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि है। इससे अग्नाशय रस निकलता है।
- भोजन में निम्नलिखित पोषक तत्व पाए जाते हैं-कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन वसा, खनिज पदार्थ एवं जल।
- कार्बोहाइड्रेटः यह शरीर को कार्य करने के लिये आवश्यक ऊर्जा देता है। इसके मुख्य स्त्रोत हैं- चावल, आलू आदि।
- प्रोटीनः यह शरीर का रचनात्मक अवयव है। प्रोटीन में आमीनों अम्ल होते हैं। आमीनों अम्ल 20 प्रकार के होते हैं। प्रोटीन के मुख्य स्त्रोत हैं- मांस, दूध, अण्डे, दाल, सोयाबीन आदि।
- वसाः वसा से कार्बोहाइड्रेट या प्रोटीन की तुलना में लगभग दुगनी ऊर्जा प्राप्त होती है। रक्त में प्रवाहित होने वाली वसा डाइग्लिसराइड प्रकार के होती है। रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा का आकलन, वसा के गुण एवं मात्रा से किया जाता है।
- खनिज पदार्थः ये सूक्ष्म पोषक तत्व कहलाते हैं। शरीर का 4 प्रतिशत भाग खनिज पदार्थ के रूप में रहता है। ये कई प्रकार के कार्य करते हैं। शरीर में सोडियम, क्लोरीन, कैल्शियम पोटैशियम, सल्फर एवं मैग्नीशियम खनिज पाए जाते हैं।
- विटामिनः यह एक कार्बनिक पदार्थ है। यह शरीर के विकास के लिए आवश्यक तत्व है। विटामिन अधिकांशतः वनस्पतियों या जन्तुओं द्वारा उत्पन्न होते है। मुख्यतः विटामिन A,B,C,D,E और K प्रकार होते है। विटामिनों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-
- (a) वसा में घुलनशील विटामिन: A,B.E एवं K विटामिन।
- (b) जल में घुलनशील विटामिन: B एवं C।
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