मध्य प्रदेश में वन एवं वन संपदा |Forest and Forest Estates in Madhya Pradesh
मध्य प्रदेश में वन
- मध्य प्रदेश वन संपदा की दृष्टि से समृद्ध एवं सजा-संवरा राज्य है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 30.72 % भाग वन क्षेत्र के तहत आता है। जो देश के कुल वन क्षेत्र का 12.4 % है।
- अभ्यारण्य तथा राष्ट्रीय उद्यानों के अंतर्गत वनक्षेत्र, राज्य की कुल वनक्षेत्र का 11.4 प्रतिशत है।
- मध्य प्रदेश में प्रमुख रूप से उष्ण कटिबंधीय वन पाये जाते हैं जिन्हे चार आधारों पर जलवायु, प्रादेशिक, प्रजाति, एवं प्रशासनिक आधार विभाजित किया गया है।
- जलवायु के आधार पर वनों को 3 भागों उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन , उष्ण कटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन , उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन मे वर्गीकृत किया गया है।
- प्रजाति के आधार पर भी तीन भागों में साल वन, सागोन वन, मिश्रित वन मे विभाजित किया गया है।
- प्रसाशनिक आधार पर संरक्षित वन, आरक्षित वन, अवर्गीकृत वन मे विभाजित किया है।
- प्रदेश के 51 जिलों को 16 क्षेत्रीय वन वृत्त, 63 क्षेत्रीय वन मण्डल , 135 उप वन मण्डल में बाँटा गया है। राज्य में कुल 925 वन ग्राम हैं जिनमें 98 वनग्राम राष्ट्रीय वन उद्यानों अभ्यारण्यों में स्थित, वीरान अथवा विस्थापित हैं।
- राज्य के जगलों में सागौन, साल, बाँस, खैर, हर्रा आदि वृक्ष प्रमुखता से पाए जाते हैं।
राज्य के वनों में वृक्ष
- सागौन- देवास,
हरदा, खंडवा,
नरसिंहपुर, छतरपुर,
पन्ना, जबलपुर,
सिवनी, मंडला आदि जिलों में सागौन के वृक्ष पाए जाते हैं।
- साल- मंडला,
बालाघाट, उमरिया सीधी, सिंगरौली
तथा शहडोल क्षेत्रों में प्रमुखता से पाए जाते हैं।
- बाँस- बालाघाट,
बैतूल, होशंगाबाद, मण्डला, शहडोल और सीधी के जंगलों में यह अत्यधिक मात्रा में होता
है।
- खैर वृक्ष- कत्था उद्योग में उपयोग
होने वाले खेर के वृक्ष सागर, जबलपुर, दमोह,
उमरिया और होशंगाबाद के वनों में पाए जाते हैं।
- हर्रा - छिंदवाड़ा, बालाघाट, मंडला और शहडोल के जंगलों में हर्रा का वृक्ष पाया जाता
है। औषधीय उपयोग के साथ ही चर्म शोधन में भी इसका उपयोग किया जाता है।
वन-विभाग Forest Department
- क्षेत्रीय स्तर पर प्रशासनिक दृष्टिकोण से समस्त क्षेत्रों को 16 क्षेत्रीय वन वृत्तों में विभाजित किया गया है।
राज्य वन विकास निगम
- मध्य प्रदेश में राज्य वन विकास
निगम का गठन 24
जुलाई, 1975 को किया गया ।
मध्य प्रदेश पारिस्थितिकी
पर्यटन विकास बोर्ड
- बोर्ड का गठन मध्य प्रदेश शासन, वन विभाग के अंतर्गत 12 जुलाई, 2005 से
किया गया है। बोर्ड में साधारण सभा से सभापति नवमंत्री हैं।
मध्य प्रदेश राज्य लघु वनोपज
व्यापार एवं विकास सहकारी संघ
- सहकारी संघ का गठन 1984 में किया गया था। प्रदेश वनोपज का संग्रहण एवं व्यापार इस
संस्था द्वारा किया जा रहा है। वनोपज के संग्रहण एंव विपणन की पूर्ति संपूर्ण
प्रदेश में वास्तविक संग्रहणकर्ताओं की सदस्यता से 1066 प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियाँ कार्यरत हैं। क्षेत्रीय
नवमंडलों के स्तर पर वर्तमान में 60 जिला
लघु वनोपज यूनियन बनाए गए हैं। इस त्रिस्तरीय सहकारी संरचना के शीर्ष स्तर पर
मध्य प्रदेश राज्य लघु वनोपज संघ पहले से ही कार्यरत है। प्रदेश के वनवासियों
को अराष्ट्रीयकृत वनोपजों,
जैसे- चिरौंजी, शहद,
महुआ, पत्ता,
आँवला, एवं औषधीय वनोपज, का
निःशुल्क संग्रहण करने की छूट दी गई है।
सामाजिक सुरक्षा जीवन बीमा
योजना
- वर्ष 1991 से प्रदेश के समस्त तेंदूपत्ता संग्राहकों के कल्याण हेतु एक निःशुल्क सामाजिक सुरक्षा समूह बीमा योजना प्रारंभ की गई है। संग्राहकों की सामान्य मृत्यु होने पर उनके नामांकित व्यक्ति को 3500 रूपये राशि तथा यदि कोई संग्राहक की दुर्घटना में व्यक्ति पूर्णतः विकलांग हो जाता है तो उसके उत्तराधिकारी को 25000 रूपए की राशि देने का प्रावधान है।
प्रोत्साहन
पारिश्रमिक
- लघु वनोपज व्यवसाय से होने वाली संपूर्ण शुद्ध आय, प्राथमिक सहकारी वनोपज समितियों को उपलब्ध कराई जा रही है। इस व्यवस्था को लागू करने वाला मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य है। इस शुद्ध आय का 50 प्रतिशत भाग संग्राहकों को उनके द्वारा संगृहीत मात्रा में अनुपात में प्रोत्साहन पारिश्रमिक के रूप में नकद भुगतान करने का प्रावधान है।
वन विभाग की भूमिका
- वन
सुरक्षा के लिए प्रदेश में 363
परिक्षेत्र, 1334 उप परिक्षेत्र एवं 7685 बीट
हैं, जिनकी सुरक्षा के लिए परिक्षेत्राधिकारी, उपवन परिक्षेत्राधिकारी तथा बीट गार्ड स्तर के अधिकारियों
एवं कर्मचारियों की तैनाती की गई है। अपराध घटित होने पर इनका संज्ञान लेते
हुए वन अपराध प्रकरण कायम कर अपराधियों के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही की
जाती है। पुलिस विभाग की 2
विशेष सशस्त्र
बल की कंपनियाँ वन विभाग में तैनात हैं। जन सहयोग के लिए लगभग 14173 वन समितियों का गठन कर उन्हें विशिष्ट वन क्षेत्रों में
संबद्ध किया गया है तथा उनका प्राथमिक रूप से वनों की सुरक्षा कार्य में
सहयोग लिया जा रहा है। भोपाल एवं सागर वृत्त में वन स्ट्राइक बल का गठन किया
गया है। राज्य के सभी 16
वन क्षेत्रों
में एक-एक उड़न दस्ता बल बनाया गया था।
वन ग्राम विकास योजना
- राज्य में कुल 925 वन ग्राम हैं, जिनमें 98 वन ग्राम राष्ट्रीय उद्यान, अभ्यारण्य में स्थित हैं, या वीरान अथवा विस्थापित हैं। 817 वन ग्रामों का वन ग्राम विकास से संबंधित परियोजना प्रतिवेदन विभिन्न चरणों में भारत शासन को भेजा गया है।
संयुक्त वन प्रबंधन
- वन
संरक्षा वन विकास के समस्त कार्यों में जन भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए मध्य
प्रदेश शासन द्वारा अक्टूबर 2001 को
संशोधन संकल्प पारित किया गया है।
- तीन तरह
की संयुक्त वन प्रबंधन समितियों का गठन करने का प्रावधान हैः
- सघन वन क्षेत्र में वन सुरक्षा समिति,
- बिगड़े वन क्षेत्रों में ग्राम वन समिति और
- संरक्षित क्षेत्रों में पारिस्थितिकी विकास समिति।
पुरस्कार
- वन रक्षा एवं संवर्द्धन के क्षेत्र
में उत्कृष्ट कार्य करने वाली संस्था, व्यक्ति
एवं वन्यप्राणियों के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्ति हेतु
शहीद अमृता देवी बिश्नोई वन एवं वन्य-प्राणी पुरस्कार की स्थापना की गई है।
इसमें संस्था को एक लाख रूपए का पुरस्कार तथा व्यक्ति को 50 हजार रूपए का पुरस्कार दिया जाता है।
लोक वानिकी
- मध्य प्रदेश शासन द्वारा भूमिवासियों के निजी स्वामित्व के वनों के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए स्वराज्य धारण के अनुरूप यह योजना जनता के लिए, जनता की वानिकी योजना है। मध्य प्रदेश लोक वानिकी अधिनियम, 2001 के परिप्रेक्ष्य में लोक वानिकी नियम 2002 शासन द्वारा अधिसूचित किया गया है। नियम के प्रावधानों के अनुसार निजी भूमि, राजस्व भूमि पर खड़े वृक्षों को वैज्ञानिक प्रबंधन किये जाने के इच्छूक कृषक, पंचायतों को किसी भी व्यक्ति से प्रबंध योजना बनवानी होगी।
वन्य जीव एवं पक्षी
- मध्य प्रदेश के वन्य जीव और पक्षी अपनी विविधता एवं संख्या के कारण सदैव आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। प्रदेश में राष्ट्र की कुल वन धरोहर का 13 प्रतिशत (95000 वर्ग किमी.) एवं वन्य प्राणी संरक्षित क्षेत्र का लगभग 7 प्रतिशत (10800 वर्ग किमी.) आता है। प्रदेश में 12 राष्ट्रीय उद्यान एवं 31 वन्य प्राणी अभ्यारण्य हैं, इनमें से 07 बाघ परियोजना क्षेत्र, (कान्हा, बांधवगढ़, पन्ना, सतपुड़ा, संजय, पेंच राष्ट्रीय उद्यान एवं शताषानी अभयारण्य), 2 अभ्यारण्य (करेरा एवं घाटीगाँव) लुप्त प्रायः दुर्लभ पक्षी सोन चिडि़या के संरक्षण के लिए, 02 अभ्यारण्य (सैलाना एवं सरादरपुर ) लुप्त प्रायः दुर्लभ पक्षी खरमौर के लिए एवं 03 अभ्यारण्य (चंबल, केन एवं सोन) जलीय प्राणियों की संरक्षा के लिए गठित किए गए हैं (2 जीवाश्म संरक्षण उद्यान)।
- तेंदुआ
- 2005
की वन्य पशु
गणना के अनुसार राज्य में इसकी संख्या 1108 है।
- चिंकारा - चिंकारा आकार में कृष्ण मृग जैसा ही दिखाई देता है। सागर, रीवा और ग्वालियर संभाग के साथ ही ताप्ती एवं परेन नदी
घाटी के बीच पाया जाता है।
- गौर
- (इंडियन बायसन)-
सिवनी, छिंदवाड़ा जिले में मुख्यतः।
- बारहसिंघा - मध्य प्रदेश का राज्य पशु बारहसिंघा को 1 नवंबर,
1981 को राज्य की रजत
जयंती पर राज्य वन प्राणी घोषित किया गया था। यह भारत के मध्य, उत्तर और पूर्वी भाग में पाया जाता है। वर्ष 2004 में हुई वन्या प्राणियों की गणना के अनुसार राज्य में 349 बाहरसिंघा है।
सिंह
पुनर्वास कार्यक्रम -
- देश के विलुप्त प्रायः एशियाई
सिंहों की प्रजाति के संरक्षण के लिए एशियाई सिंहों के पुनर्वास हेतु केन्द्र
सरकार की पहल पर राज्य में कूनो का चयन किया गया था। पालपुर अभ्यारण्य
श्योपुर में,
वर्तमान में
चीतों के संरक्षण का कार्यक्रम प्रस्तावित है।
राज्य के पक्षी
- विविधताओं को अपने में समेटे मध्य
प्रदेश में पक्षिओं की विभिन्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं। दूधराज मध्य प्रदेश
का राज्य पक्षी है।
- खरमौर -राज्य के धार, मंदसौर
और रतलाम जिले में वर्षा प्रारंभ होने पर यह दिखाई देता है।
- दूधराज - इसे महारानी, शाह
बुलबुल, हुसैनी बुलबुल के नाम से भी जाना
जाता है।
- भारत
में वन्यजीवों का संरक्षण एवं प्रबंध वन्यप्राणी (संरक्षण) अधिनियम 1972 एवं वन्यप्राणी संरक्षण 1974 के
आधार पर किया जाता है। इस अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित प्रजातियों को 5 अनूसूचियों में बाँटा गया है। अनुसूची-1 में ऐसे वन्यप्राणी शामिल किए गए हैं, जिनकी संख्या खतरनाक स्थिति तक काम हो चुकी हैं।
प्रोजेक्ट टाइगर योजना के अंतर्गत भारत शासन द्वारा 50 प्रतिशत आवर्ती व्यय हेतु तथा 100 प्रतिशत अनावर्ती व्यय हेतु राशि प्राप्त होती है।
पारिस्थितिकी
विकास कार्यक्रम -
- योजना के तहत प्रदेश के राष्ट्रीय
उद्यान एवं अभ्यारण्यों के आसपास स्थित ग्रामों के ग्रामीणों के सहयोग से ईको
विकास कार्यक्रम चलाने के लिए, जिससे
ग्रामीणों का दबाव संरक्षित क्षेत्रों से कम कर किया जा सके, केन्द्र शासन द्वार 100 प्रतिशत
सहायता दी जाती है।
अन्य कार्यक्रम -
वन्यप्राणी संरक्षण के लिए निम्न कदम उठाए गए है-
- वर्ष 1995 से वन विभाग एवं पुलिस विभाग में एक संयुक्त संस्था टाइगर सेल का गठन किया गया है, जिसके माध्यम से वन्यप्राणियों के अवैध शिकार एवं व्यापार के नियंत्रण हेतु दोनों विभागों द्वारा समन्वित कार्यवाही की जाती है।
- राष्ट्रीय
उद्यानों एवं अभ्यारण्यों में विकास निधि की व्यवस्था की गई है। इन इकाइयों
के द्वारा पर्यटन से अर्जित समस्त राशि इस विकास निधि में जमा की जाती है। इस
राशि को राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्य के विकास के लिए उपयोग किया गया है।
- प्रदेश में वर्ष
1971 में मध्य प्रदेश टाइगर फाउंडेशन का गठन किया गया है। यह
संस्था निजी दाताओं से वन्यप्राणी संरक्षण हेतु राशि दान प्राप्त कर सकती है।
- जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा महाविद्यालय में एक वन्यप्राणी स्वास्थ्य पर्यवेक्षण केन्द्र गठन किया गया है।
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