विकलांग तथा अधिगम अशक्तता वाले बालकों की पहचान {Identifying the Disabled and Learning Disability Children }
विकलांग तथा अधिगम अशक्तता वाले बालकों की पहचान Identifying the Disabled and Learning Disability Children
विकलांग बालक Disabled Children
- विकलांग बालकों से तात्पर्य उन बालकों से है, जो मानसिक, शारीरिक या संवेगात्मक दृष्टि से दोषयुक्त होते हैं। इस प्रकार के बालकों में सामान्य बालकों की तुलना में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक या सामाजिक विकास में कमी या दोष होता है, जिसके कारण उन्हें अधिगम में कठिनाई होती है एवं इसका प्रतिकूल प्रभाव उनकी उपलब्धियों पर पड़ता है।
- क्रो एवं क्रो के अनुसार, “ऐसे बालक जिनमें ऐसा शारीरिक दोष होता है, जो किसी भी रूप में उसे साधारण क्रियाओं में भाग लेने से रोकता है या उसे सीमित रखता है, ऐसे बालक को हम विकलांग बालक कह सकते हैं। ”
- डी जी फोर्स के अनुसार, “जब शारीरिक दोषों के कारण उत्पन्न कठिनाइयों से बालक को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त नहीं होती है, तब उससे उत्पन्न मनोवैज्ञानिक दोषों में भी वृद्धि होती है।”
- ए एडलर के अनुसार, “एक बालक जो शारीरिक दोषों से ग्रस्त है उसमें हीनता की भावना उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार की भावना से बालक को थोड़ी-सी सन्तुष्टि और प्रसन्नता मिलती है, वह इसकी क्षतिपूर्ति, प्रतिष्ठा श्रेष्ठता या प्रसिद्धि प्राप्त करके करना चाहता है, इन सबसे उनको सन्तुष्टि प्राप्त होती है, जो उसके शारीरिक दोषों के कारण है।”
शारीरिक रूप से विकलांग बालक Physically Disabled Children
- बालकों के अधिगम एवं शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ेपन कारण शारीरिक विकलांगता भी हो सकती है।
- शिक्षा की दृष्टि से शारीरिक विकलांग बालक वे बालक हैं जिनके शरीर को कोई अंग अथवा ज्ञानेन्द्री इतनी असामान्य होती है कि उसके कारण उन्हें शिक्षा प्राप्त करने एवं समायोजन करने में विशेष कठिनाई होती है। उदाहरणस्वरूप, दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित, मूक या कहलाने वाले बालक।
- बालक की शारीरिक विकलांगता के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था की जाती है।
- शारीरिक रूप से विकलांग बालकों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है
- दृष्टि दोषों से युक्त बालक
- श्रवण दोषों से युक्त बालक
- माँसपेशियों एवं अस्थि दोषों से युक्त विकलांग बालक
- वाक्दोषों से युक्त विकलांग बालक
शारीरिक रूप से विकलांग बालकों की पहचान Identifying the Physically Disabled Children
अंग संचालन में दोषयुक्त छात्र
Defective Student in Physical Movement
- अंग संचालन के दोषों का सम्बन्ध माँसपेशियों और शरीर के जोड़ों से है, जो अंगों अथवा हाथ-पैरों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार की विषयताओं वाले छात्रों को, शिक्षण की उन गतिविधियों में, जिनमें शारीरिक क्रियाओं की आवश्यकता पड़ती है, सीखने में कठिनाई होती है।
- इस प्रकार के दोष सामान्यतः छात्रों की गर्दन, हाथ, अँगुलियों, कमर, पैर आदि में हो सकते है।
- इस प्रकार के शारीरिक विकारों से युक्त छात्रों को सामान्यतः बैठने, खड़े होने, चलने आदि में कठिनाई होती है।
- इस प्रकार के छात्र अंग विकृति के कारण प्रायः लिखने में कठिनाई अनुभव करते हैं।
दृष्टि दोषयुक्त छात्र Eyesight Defective
Student
- दृष्टि दोष युक्त छात्रों को भी समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत सभी सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा दी जाती है।
- दृष्टि दोष युक्त छात्र सामान्य पाठ्य-पुस्तक पढ़ने में अक्षम होते हैं। इनके लिए ब्रेल लिपि में लिखि पुस्तकों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- दृष्टि दोष युक्त छात्रों की भी कई श्रेणी होती हैं। कुछ छात्र ऐसे होते हैं, जिनमें सामान्य दृष्टि दोष होता है जिसके कारण वे पुस्तकों को झुककर पढ़ते हैं एवं अपनी आँखों को बार-बार मलते हैं।
- आँखों में भैंगेपन के कारण भी कुछ छात्रों को पढ़ने, लिखने में कठिनाई हो सकती है।
- दृष्टि दोष युक्त छात्रों के स्वास्थ्य का समय-समय पर परीक्षण किया जाना चाहिए।
श्रवण एवं वाणी दोषयुक्त छात्र Listen and Speech
Defective Students
- शैक्षिक सम्प्रेषण और सीखने में सुनने की क्रिया की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जो विद्यार्थी की श्रवण सम्बन्धी समस्याएँ, उसके अधिगम की क्षमता को प्रभावित करती है।
- श्रवण समस्याओं के कारण दोष उत्पन्न हो सकता है। इसलिए यह आवश्यक है कि ऐसे बालकों की पहचान करके उनमें सुधार करने की दिशा में उचित कदम उठाए जाएँ, जिससे कि उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।
- श्रवण दोष युक्त छात्रों की पहचान सरल है, इसके लिए उनके व्यवहरों का अवलोकन कर, उनके स्वास्थ्य की समय-समय पर जाँच की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
- श्रवण दोष के कई कारण हो सकते हैं, इनका अवलोकन इस प्रकार के दोषयुक्त छात्रों की पहचान में सहायक साबित होता है।
इस प्रकार के दोष के कुछ प्रमुख कारण है।
- कान की बनावट में दोष
- कानों का अक्सर बहते रहना
- कानों में बहुधा दर्द की शिकायत
- कानों को बहुधा खुजलाते रहना
- अच्छी तरह सुनने के लिए सिर को एक तरफ से दूसरी ओर घुमाना
- अध्यापक से, प्रायः निर्देशों और प्रश्नों को दोहराने के लिए निवेदन करना
- श्रुतिलेख में बहुत अधिक त्रुटियाँ करना
- सुनते समय अध्यापक के चेहरे को बहुत अधिक ध्यान से देखना
- बोलते समय वाणी में कठिनाई का परिलक्षित होना।
मानसिक रूप से विकलांग बालकों की पहचान Identifying the
Mentally Disabled Children
- मानसिक रूप से विकलांग बालकों की पहचान यह है कि उनकी बुद्धि-लब्धि बहुत कम होती है और वे पढ़ाई में बहुत अधिक कमजोर होते हैं।
- मानसिक रूप से विकलांग बालकों की पहचान उनके निम्नलिखित व्यवहारों से की जा सकती है।
- शैक्षिक उपलब्धियों का स्तर निम्न होना
- जल्दी भूलने की आदत/थोड़े समय के बाद पढ़े हुए पाठ को भूल जाना
- ध्यान में एकाग्रता की कमी होना, विषय पर कम समय तक ही ध्यान केन्द्रित कर पाना
- भौतिक, मूर्त सामग्री के प्रस्तुतीकरण पर अधिक निर्भरता
- अभिव्यक्ति क्षमता की कमी
- तत्काल परिणामों/पुरस्कारों आदि की अपेक्षा करना
- असफल होने पर भयग्रस्त होना
- आत्म अवलोकन की शक्ति का अभाव, सम्प्रत्यय की निम्न धारणा रखना
- आत्मविश्वास का अभाव
- सीमित सम्प्रेषण का होना
- मांसपेशियाँ समन्वय का कम होना
- स्वयं के कार्यों को करने में कठिनाई का अनुभव करना; जैसे’-खाना, पहनना, नहाना आदि को लेकर स्वयं की उचित देखभाल न कर सकना
विकलांग बालकों की समस्याएँ Problem of Disabled
Children
- शीरीरिक अथवा मानसिक रूप से विकलांग बालकों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए इनकी समस्याओं पर विशेष ध्यान देकर इनका निदान करने की आवश्यकता पड़ती है।
- शारीरिक दोषों के परिणामस्वरूप बालकों को हर क्षेत्र में समायोजन सम्बन्धी कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- मानसिक रूप से विकलांग बालकों में संवेगात्मक परिपक्वता आने में कठिनाई होती है। इन बालकों में हीन भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं और ये अधिकतर क्रियाओं में भाग नहीं ले पाते। इन्हें अपनी इच्छाओं को दबाना पड़ता है। इनके मन में यह बात घर कर जाती है कि अन्य लोग भी इन्हें छुत मानते हैं। इस प्रकार के विचारों के परिणामस्वरूप इनका संवेगात्मक सन्तुलन स्थित नहीं रहता। लेकिन कई मामलों में देखा गया है कि इस प्रकार के कुछ बालक मानसिक रूप से तेज भी होते हैं।
- शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग बालकों के समायोजन एवं उनकी समस्याओं के समाधान के लिए शिक्षकों के सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाना चाहिए।
- यदि कक्षा कोई शारीरिक रूप अपंग बालक हो, तो उसके कक्षा में प्रवेश एवं उनके बैठने के लिए समुचित व्यवस्था किया जाना सर्वाधिक आवश्यक है। ऐसे बालकों के लिए कक्षा में विशेष प्रकार की कुर्सी-मेज की व्यवस्था करनी चाहिए।
- दृष्टि दोष युक्त छात्रों को भी बैठने की समस्या का सामना करना पड़ता है। इसलिए इनकी समस्याओं को समझते हुए इन्हें कक्षा में उपयुक्त स्थान पर बैठाया जाना चाहिए ताकि इन्हें कक्षा की कार्यवाही को समझने में कठिनाई न हो।
- दोषपूर्ण वाणी वाले बच्चों को हीन भावना की समस्या का सामना करना पड़ता है। अतः ऐसे बालकों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
- मानसिक रूप से अपंग बालकों को समायोजन सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना। पड़ता है, जैसे परिवार में समायोजन सम्बन्धी समस्या, स्कूल में समायोजन की समस्या समाज में समायोजन की समस्या। इस प्रकार के बालक अपनी असफलताओं से निराश होने लगता है और यह कुण्ठित रहने लगता है।
- समायोजन की समस्या के अतिरिक्त ऐसे बच्चों को संवेगात्मक समस्याओं और शारीरिक तथा मानसिक विकास की समस्याओं का भी समाना करना पड़ता है।
- उपरोक्त सभी समस्याओं की ओर अध्यापक और माता-पिता को ध्यान देना अनिवार्य है ताकि ऐसे अपंग बालकों का घर स्कूल, तथा समाज में उचित रूप से समायोजन हो सके और वे किसी पर बोझ न बनकर अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
विकलांग छात्रों की शिक्षा व्यवस्था Educational System of
Disabled Students
- विकलांग बालकों के शरीर के विभिन्न आंगों की हड्डियों, ग्रन्थियों या जोड़ों में विकार होता है। इसी विकार के करण उन्हें विभिन्न प्रकार के कार्यों को सुचारू रूप से सम्पन्न करने कठिनाई होती है।
- विकलांग जन्म से भी हो सकती है अथवा किसी दुर्घटना के कारण भी ऐसा होना सम्भव है। विकलांग बालकों को भी सामान्य बालकों के साथ शिक्षा दी जानी चाहिए।
- विकलांग बच्चों को समय-समय पर डॉक्टारों के पास ले जाना चाहिए एवं उनके
- स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए।
- शारीरिक दोष के अनुसार उनके बैठने के लिए कुर्सी-मेज की व्यवस्था होनी चाहिए ।
अधिगम अशक्तता Leaning Disability
कुछ छात्र पढ़ने, लिखने, मौखिक, अभिव्यक्ति, शब्दों की वर्तनी
करने, गणित एवं तर्कशक्ति
को समझने आदि में अशक्त अथवा कमजोर होते हैं। इस प्रकार की अशक्तता को ही अधिगम अशक्तता
कहा जाता ।
अधिगम अशक्तता के कई प्रकार है
मौखिक रूप से सीखने व भाषा सम्बन्धी अशक्तता अफेज्या,
डिस्फेजिया पढ़ने की अशक्तता
एलेक्सिया,
डिस्लेक्सिया
- लिखने की अशक्तता अग्रेफिया, अप्रेक्सिया, डिस्ग्राफिया, आँसिम्बोलिया, डिस्प्रैक्सिया
- शब्दों की वर्तनी सम्बन्धी अशक्तता इस प्रकार की अशक्तता के कारण बालक वर्तनी में त्रुटियाँ करता है। वह शब्दों के विभिन्न अक्षरों को क्रम से नहीं लिख पाता एवं उसके स्थान बदल देता है। जैसे-लड़की के स्थान पर वह लकड़ी एवं सरल के स्थान सलर लिखता हैं।
- गणित सम्बन्धी समस्याएँ डिस्कैल्कुलिया
कुछ प्रमुख अधिगम अशक्तता Some Important Leaning Disability
अफेज्या Aphasia
भाषा एवं सम्प्रेषण अधिगम अशक्तता को अफेज्या कहा
जाता है। इससे पीडि़त छात्र मौखिक रूप सीखने एवं अपने विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान
करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। सामान्यतया मस्तिष्क में किसी प्रकार की क्षति
से यह विकार उत्पन्न होता है। मस्तिष्क से क्षति के कारण बातचीत करने में आंशिक या
पूर्णतः अक्षमता को डिस्फेजिया (क्लेचींेपं) कहा जाता है।
अलेक्सिया Alexia
मस्तिष्क
में किसी प्रकार की क्षति के कारण पढ़ने में अक्षमता को अलेक्सिया कहा जाता है। इसे
शब्द अन्धता या पाठ्य अन्धता या विजुअल अफेज्या भी कहा जाता है। यह (अर्जित) अक्वायर्ड
डिस्लेक्सिया (।मुनपतमक क्लेसगपं) है। अलेक्सिया के कारण अफेज्या एवं डिस्ग्राफिया
जैसी अधिगम अशक्तता होना भी सम्भव है, किन्तु प्रत्येक स्थिति में यह आवश्यक नहीं।
डिस्लेक्सिया Dyslexia
डिस्लेक्सिया एक व्यापक शब्द है, जिसका सम्बन्ध पठन विकार से है। इस अधिगम अशक्तता
में बालक को पढ़ने के कठिनाई होती है, क्योंकि वह कई शब्दों के कुछ अक्षरों जैसे से इ एवं क में विभेद
नहीं कर पाते डिस्लेक्सिया से पीडि़त बच्चों ष्ेंूष् और ष्ूंेष् ष्दनबसमंत और ष्नदबसमंतष्
में अन्तर नहीं कर पाते ।
अप्रेक्सिया Apraxia
अप्रेक्सिया ऐसा शारीरिक विकार है, जिसके कारण व्यक्ति मांसपेशियों के संचालन से सम्बद्ध
सूक्ष्म गतिक कौशल जैसे-लिखने चलने, टहलने, बोलने में निपुण नहीं हो पाता । यह मस्तिष्क के सेरेब्रम में क्षति के कारण होता
है। अप्रेक्सिया का ही एक प्रकार डिस्प्रेक्सिया (क्लेचतंगपं) है, जिसमें व्यक्ति मस्तिष्क में क्षति के कारण सूक्ष्म
गतिक कौशलों में निपुण नहीं हो पाता। वह हाथ एवं आँखों के बीच समन्वय एवं सन्तुलन स्थापित
नहीं कर पाता। डिस्प्रेक्सिया तन्त्रिका तन्त्र सम्बन्धी विकार है, जिसे सेन्सरी इन्टेग्रेशन डिस्ऑर्डर कहा जाता है।
डिस्ग्राफिया Disagraphia
डिस्ग्राफिया लिखने सम्बन्धी अशक्तता को कहा जाता
है। इसमें या तो बच्चा ठीक से लिख नहीं पाता अथवा उसकी लिखावाट ठीक नहीं हो पाती। सामान्यतः
इसका कारण हाथ, हथेली या अँगुलियों
सम्बन्धी गड़बडि़याँ होती हैं। इसके अतिरिक्त मस्तिष्क सम्बन्धी कुछ गड़बडि़यों के
कारण भी यह अधिगम अशक्तता सम्भव है।
डिस्कैल्कुलिया Discalculia
यह ऐसी अधिगम अशक्तता है, जिसमें बच्चे गणित (अंकगणित) को समझने में कठिनाई
का अनुभव करते हैं। इसे न्यूमलेक्सिया (छनदसमगपं) भी कहा जाता है। डिस्कैल्कुलिया कई
प्रकार के होते हैं -ग्राफिकल डिस्कैल्कुलिया, लैक्सिकल डिस्कैल्कुलिया, वर्बल डिस्कैल्कुलिया, पै्रक्टोग्नोस्टिक डिस्कैल्कुलिया, ओडियोग्नॉटिक डिस्कैल्कुलिया ।
डिस्थीमिया Dysthymia
डिस्थीमिया गम्भीर तनाव की अवस्था को कहा जाता है।
इस मनोविकार का प्रतिकूल प्रभाव बालक के अधिगम पर पड़ता है। डिस्थीमिया की अवस्था में
व्यक्ति की मनःरिथति
(रचितवृत्ति) हमेशा निम्न रहती है।
डिस्मोरफिया Dysmorphia
डिस्मोरफिया एक ऐसा मनोविकार है, जिसमें व्यक्ति को यह भ्रम हो जाता है कि उसके शरीर
के कुछ अंग बहुत छोटे या अपूर्ण हैं। वह अपने शरीर के विभिन्न अंगों की तुलना दूसरे
लोगों से करने लगता है, इसका प्रतिकूल प्रभाव उसके अधिगम पर पड़ता है।
अधिगम अशक्तता वाले छात्रों की पहचान Identifying the Leaning disabled children
- अधिगम अशक्तता वाले छात्रों की पहचान अत्यन्त सरल है।
- इस प्रकार के छात्रों में निम्नलिखित प्रकार की समस्याएँ देखी जाती हैं।
- छात्र उचित प्रकार से पढ़ नहीं पाता, यद्यपि उसके मौखिक उत्तर बुद्धिमतापूर्ण होते हैं।
- छात्र उचित प्रकार से पढ़ तो पाता हैं, किन्तु मौखिक अभिव्यक्ति में वह कठिनाई का अनुभव करता हैं।
- कुछ छात्र वर्तनी में त्र ुटियाँ करते हैं। वे शब्दांे के अक्षरों को सही क्रम में नहीं लिखते या
- शब्दों के कई अक्षरों को लिखते समय छोड़ देते हैं। इस प्रकार के छात्र सख्याओं को लिखने में भी गलतियाँ करते हैं, जैसे -12 को 21 एवं 89 को 98 लिखना, आदि।
- मन उचाट रहना, समय-सारणी के अनुसार कार्य न कर पाना, आदि इनकी समस्याएं होती हैं।
- सदैव मलिन रहना, गृहकार्य को विलम्ब से करना, कक्षा में देरी से आना।
- चतुर प्रतीत होने एवं कोई भी शारीरिक दोष न होने के बावजूद पढ़ाई में कमजोर होना एवं परीक्षा का निष्पादन ठीक से नहीं कर पाना।
- कभी-कभी इतना अधिक उत्तेजित हो जाना कि वह किसी भी कार्य को पूरा कर पाने में असमर्थ होता है।
- पढ़ते समय शब्दों या पंक्तियों को छोड़ देना।
- शब्दों में निहित अक्षरों को अलग-अलग करके पढ़ना।
- शब्दों एवं ध्वनि के बीच साम्य स्थापित करने में कठिनाई।
- शब्दों के उच्चारण में कठिनाई ।
- अधिगम अशक्तता वाले बालकों की शिक्षा Education of Leaning Disabled Children
- इन बालकों के परिवार के वातावरण को सुधारकर इनके प्रति सकारात्मक व्यवहार अपनाने के लिए सभी को प्रेरित किए जाने की आवश्यकता होती है।
- इनके सुधार के लिए विद्यालय के वातावरण एवं शिक्षकों का इनके प्रति व्यवहार भी सुधारा जाना चाहिए।
- इन बालकों का उपचार मनोवैज्ञानिक विधियों द्वारा किया जा सकता है।
- यदि इनका अन्धापन ऐनक से ठीक न हो, तो इसके लिए विशेष ऐनकों का प्रबन्ध किया जाना चाहिए। यदि इसके बाद भी इस समस्या का समाधान न हो, तो इसका तात्पर्य है कि बालक पूर्ण रूप से अन्धता का शिकार है। ऐसी स्थिति में उसके लिए विशेष प्रकार की शिक्षा व्यवस्था की जानी चाहिए।
- दृष्टि दोष से युक्त छात्रों की विशेष शिक्षा व्यवस्था का तात्पर्य है उनके लिए ब्रेल लिपि की पाठ्य-पुस्तकों की व्यवस्था करना। इस दोष से युक्त छात्रों की शिक्षा की व्यवस्था भी सभी सामान्य बालकों के साथ होनी चाहिए।
पूर्ण रूप से बहरे और अपूर्ण बहरे बालकों की शिक्षा
Education of Complete Deaf and Uncomplete Deaf
Children
- बहरें छात्रों के लिए विशेष प्रकार के स्कूलों की व्यवस्था की जानी चाहिए। इन स्कूलों में विशेष प्रविधियों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है।
- कम बहरे छात्रों के लिए अलग से स्कूलों की व्यवस्था अनिवार्य नहीं है इन्हें अपने अध्यापकों के होठों को चलते हुए देखकर संवाद का अनुमान करने में शिक्षित किया जा सकता है, जिसके बाद इन्हें सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा दी जा सकती है।
हकलाने वाले या दोषपूर्ण वाणी वाले बालकों की शिक्षा
Education Structure of Defective Voice
Children
- दोषपूर्ण वाणी में हकलाना, तुतलाना, बहुत धीरे बोलना या बहुत मोटी आवाज में बोलना या बिल्कुल ही न बोलना इत्यादि दोष शामिल होते हैं। अस्पष्ट बोलना भी वाणी दोष है। इन दोषों के कारण छात्रों में हीन भावना, आत्मविश्वास में कमी, संवेगात्मक अस्थिरता आदि का उत्पन्न होना स्वाभाविक है। इनके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार होना चाहिए।
- अध्ययन की गलत आदतों पर नियन्त्रण कर इनमें आशातीत सुधार किया जा सकता है।
- शल्य क्रिया के द्वारा भी इस प्रकार के कुछ विकारों का इलाज सम्भव है।
- इनमें विशेष शब्दों का बार-बार उच्चारण करवाकर भी इनका निदान सम्भव है।
- इस प्रकार के बालकों को अभिव्यक्ति कौशल में निपुण करने के लिए विशेष प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जा सकती है।
मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की शिक्षा Education of Mental
Retarded Children
- मानसिक रूप से पिछड़े छात्रों पर शिक्षकों द्वारा विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
- इनके माता-पिता को भी इनकी समस्याओं से अवगत कराकर उनके सहयोग के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
- इस प्रकार के बालकों के लिए विशेष शिक्षा व्यवस्था भी की जा सकती है।
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