Sandhi Samas me antar { समास में अंतर ,कर्मधारय समास,बहुब्रीहि द्विगृ समास,संधि और समास में अंतर }
कर्मधारय समास और
बहुब्रीहि समास में अंतर-
Karmdharai sams aur Bahuvrihi samas me antar
- 01- इन दोनों समासों में अंतर समझने के लिए इनके विग्रगह पर ध्यान देना चाहिए। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है।
जैसे-
- ‘नीलगगन‘ में ‘नील‘ विशेषण है तथा ‘गगन‘ विशेष्य है। इसी तरह चरणकमल में ‘चरण‘ उपमेय और कमल उपमान है। अतः ये दोनों उदाहरण कर्मधाराय समास के हैं।
- 02- बहुब्रीहि समास में समस्त-पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है, जैसे- ‘चक्रधर‘ चक्र को धारण करता है। जो अर्थात् ‘श्रीकृष्ण‘
द्विगु और बहुब्रीहि
समास में अंतर-
Digu aur Baghuvrihi Samas me Antar
- द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुब्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है।
जैसे-
- चतुर्भुज- चार भुजाओं का समूह- द्विगु समास।
- चतुर्भुज- चा है भुजाएं जिसकी अर्थात् विष्णु- बहुब्रीहि समास
- पंचवटी- पॉच वटों को समाहार- द्विगु समास
- पंचवटी- पॉच वटों का घिरा एक निश्चित स्थल अर्थात दंडकारण्य में स्थित वह स्थान जहां वनवासी राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निवास किया था। बहुब्रीहि समास
- दशानन- दस आननों को समूह- द्विगु समास
- दशानन- दस आनन है जिसके अर्थात् रावण- बहुब्रीहि समास
द्विगु और कर्मधारय
समास में अंतर-
Digu aur Karmdharai Samas me antar
- 1- द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पर की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है।
- 2- द्विगु समास का पहला पद ही विशेषण बन कर प्रयोग में अता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पर का विशेषण हो सकता है।
जैसे-
- नवरत्न- नौ रत्नों का समूह- द्विगु समास
- चतुवर्ण- चार वर्णों का समूह- द्विगु समास
- पुरूषोत्तम- पुरूषों में जो है उत्तम- कर्मधारय समास
- रक्तोत्पल- रक्त है जो उत्पल- कर्मधारय समास
संधि और समास में
अंतर Sandhi aur Samas me Antar-
अर्थ की दृष्टि से
यद्यपि दोनों शब्द समान हैं अर्थात् दोनों का अर्थ ‘मेल‘ ही है तथापित दोनों में कुछ भिन्नताएं है जो निम्नलिखित हैं-
- 1- संधि वर्णों का मेल है और समास शब्दों का मेल हैं
- 2- संधि में वर्णों का योग है जो वर्ण परिवर्तन भी होता है जबकि समास में ऐसा नहीं होता हैं
- 3- समास में बहुत से पदों के बीच के कारक चिन्हों का अथवा समुच्चय बोधकों का लोप होता है।
जैसे-
विद्या +
आलय = विद्यालय - संधि
राजा का पुत्र = राजपुत्र
- समास
समास विग्रह
सामासिक पद
|
विग्रह
|
समास
|
अगोचर
|
न गोचर
|
नञ्ज
|
अचल
|
न चल
|
नञ्ज
|
अजन्मा
|
न जन्मा
|
नञ्ज
|
अठन्नी
|
आठा आनों का
समाहार
|
नञ्ज
|
अधर्म
|
न धर्म
|
नञ्ज
|
अनन्त
|
न अंत
|
नञ्ज
|
अनेक
|
न एक
|
नञ्ज
|
अनपढ़
|
न पढ़
|
नञ्ज
|
अनभिज्ञ
|
न अभिज्ञ
|
नञ्ज
|
अन्याय
|
न न्याय
|
नञ्ज
|
अनुचित
|
न उचित
|
नञ्ज
|
अपवित्र
|
न पवित
|
नञ्ज
|
अलौकिक
|
न लौकिक
|
नञ्ज
|
अनुकूल
|
कुल के अनुसार
|
अव्ययीभाव
|
अनुरूप
|
रूप में ऐसा
|
अव्ययीभाव
|
आसमुद्र
|
समुद्रपर्यन्त
|
अव्ययीभाव
|
आजन्म
|
जन्म से लेकर
|
अव्ययीभाव
|
आशलता
|
आशा रूपी लता
|
कर्मधारय
|
आपबीती
|
आप पर बीती
|
सप्तमी तत्तपुरूष
|
आकशवाणी
|
आकाश से वाणी
|
पंचमी
तत्तपुरूष
|
आनन्दाश्रम
|
आनन्द का आश्रम
|
षष्ठी तत्तपुरूष
|
उपकूल
|
कूल के निकट
|
अव्ययीभाव
|
कठफोडि़या
|
काठ को फोड़ने वाला
|
द्वितीय तत्तपुरूष
|
कपीश
|
कपियों में ईश
है जो हनुमान
|
बहुब्रीहि
समास
|
कर्महीन
|
कर्म से हीन
|
पंचमी तत्तपुरूष
|
कर्मनिरत
|
कर्म में निरत
|
सप्तमी
तत्तपुरूष
|
कविश्रेष्ठ
|
कवियों में श्रेष्ठ
|
सप्तमी तत्पुरूष
|
कापुरूष
|
कायर पुरूष
|
कर्मधारय
|
कुम्भकार
|
कुम्भ को बनाने वाला
|
उपपद तत्तपुरूष
|
काव्यकार
|
काव्य की रचना करने वाला
|
उपपद
तत्तपुरूष
|
कृषिप्रधान
|
कृषि में प्रधान
|
सप्तमी तत्तपुरूष
|
कुसुमकोमल
|
कसुम के समान
कोमल
|
कर्मधारय
|
कपोतग्रीवा
|
कपोत के समान ग्रीवा
|
कर्मधारय
|
कपड़ा लता
|
कपड़ा और लता
|
द्वन्द्व
|
कृष्णार्पण
|
कृष्ण के लिए अर्पण
|
चतुर्थी तत्तपुरूष समास
|
क्षत्रियाधम
|
क्षत्रियों
में अधम
|
सप्तमी
तत्तपुरूष समास
|
खगेश
|
खगों का ईश है जो वह गरूड़
|
बहुब्रीहि समास
|
गंगाजल
|
गंगा का जल
|
षष्ठी
तत्तपुरूष समास
|
गगनचुम्बी
|
गगन को चूमने वाला
|
द्वितीया तत्तपुरूष समास
|
गाड़ी घोड़ा
|
गाडी और घोड़ा
|
द्वन्द्व समास
|
ग्रामोद्धार
|
ग्राम का उद्धार
|
षष्ठी तत्तपुरूष समास
|
गिरहकट
|
गिरह को काटने
वाला
|
द्वितीया
तत्तपुरूष समास
|
गिरिधर
|
गिरि को धारण करे जो वह
|
बहुब्रीहि समास
|
गुरूसेवा
|
गुरू की सेवा
|
षष्ठी
तत्तपुरूष
|
गोपाल
|
गो का पालन जो करे
|
बहुव्रीहि समास
|
गौरशंकर
|
गौरी और शंकर
|
द्वन्द्व समास
|
गृहस्थ
|
गृह में स्थित
|
उपपद तत्तपुरूष समास
|
गृहागत
|
गृह को आगत
|
कर्म
तत्तपुरूष समास
|
घनश्याम
|
घन के समान श्याम
|
बहुव्रीहि समास
|
घर-द्वार
|
घर और द्वार
|
द्वन्द्व समास
|
चक्रधर
|
चक्र को जो धारण करता है वह
|
बहुव्रीहि समास
|
चक्रपाणि
|
चक्र को हाथ
में जिसके
|
बहुव्रीहि
समास
|
चतुरानन
|
चार हैं आनन जिनके ब्रम्हा
|
बहुव्रीहि समास
|
चन्द्रभाल
|
भाल पर
चन्द्रमा जिसके है वह
|
बहुव्रीहि
समास
|
चवन्नी
|
चार आने का समाहार
|
द्विगु समास
|
चन्द्रोदय
|
चन्द्र का उदय
|
षष्टी
तत्तपुरूष समास
|
चन्द्रबदन
|
चन्द्रमा के समान बदन
|
कर्मधारय समास
|
चरणकमल
|
कमल के समान
चरण
|
कर्मधारय समास
|
चिड़ीमार
|
चिडि़या को मारने वाला
|
द्वितीय तत्तपुरूष समास
|
चौपाया
|
चार पांव वाला
|
द्विगु समास
|
जलज
|
जल में उत्पन्न होता है वह
|
बहुव्रीहि समास
|
जलद
|
जल देता है जो
वह बादल
|
बहुव्रीहि
समास
|
जन्मान्ध
|
जन्म से अंधा
|
तृतीय तत्तपुरूष
|
जीवनमुक्त
|
जीवन से मुक्त
|
पंचमी
तत्तपुरूष
|
जेबघड़ी
|
जेब के लिए घड़ी
|
चतुर्थी तत्तपुरूष
|
ठाकुरसुहाती
|
मालिक के लिए
रूचिकर बात
|
चतुर्थी
तत्तपुरूष
|
तिलपापड़ी
|
तिल से बनी पापड़ी
|
कर्मधारय समास
|
तिलचट्टा
|
तिल को चाटने
वाला
|
द्वितीय तत्तपुरूष समास
|
दयासागर
|
दया का सागर
|
षष्टी तत्तपुरूष समास
|
दहीबड़ा
|
दही में
भिगोया बड़ा
|
मध्यपद लोपी
कर्मधारय समास
|
दानवीर
|
दान में वीर
|
सप्तमी तत्तपुरूष
|
दिनादुनिन
|
दिन प्रतिदिन
|
अव्ययीभाव
समास
|
दुखसंतप्त
|
दुःख से संतप्त
|
तृतीय तत्तपुरूष
|
देशभक्ति
|
देश के लिए
भक्ति
|
चतुर्थी
तत्तपुरूष समास
|
देशनिकाला
|
देश से निकाला
|
पंचमी तत्तपुरूष समास
|
देश-विदेश
|
देश और विदेश
|
द्वन्द्व समास
|
देवासुर
|
देव और आसुर
|
द्वन्द्व समास
|
देशगत
|
देश को गया
हुआ
|
द्वितीय
तत्तपुरूष
|
धनहीन
|
धन से हीन
|
पंचमी तत्तपुरूष
|
धर्माधर्म
|
धर्म और अधर्म
|
द्वन्द्व समास
|
धर्मविमुख
|
धर्म से विमुख
|
पंचमी तत्तपुरूष समास
|
नरोत्तम
|
नरों में
उत्तम
|
सप्तमी
तत्तपुरूष समास
|
नवयुवक
|
नव युवक
|
कर्मधारय समास
|
नीलोत्पल
|
नील उत्पल
|
कर्मधारय समास
|
नीलाम्बर
|
नीला अम्बर
|
बहुव्रीहि समास
|
नेत्रहीन
|
नेत्र से हीन
|
पं. तत्तपुरूष
समास
|
पकौड़ी
|
पकी हुई बड़ी
|
मध्यपदलोपी कर्मधारय समास
|
पददलित
|
पद से दलित
|
तृतीय
तत्तपुरूष समास
|
पदच्युत
|
पद से च्युत
|
पंचमी तत्तपुरूष
|
प्रत्येक
|
प्रति एक
|
अव्ययीभाव
समास
|
प्रतिदिन
|
दिन- दिन
|
अव्ययीभाव समास
|
परमेश्वर
|
परम ईश्वर
|
कर्मधारय समास
|
पल-पल
|
हर पल
|
अव्ययीभाव समास
|
परीक्षोपयोगी
|
परीक्षा के लिए
उपयोगी
|
चतुर्थ
तत्तपुरूष समास
|
पाकिटमार
|
पाकिट को मारने वाला
|
द्वितीय तत्तपुरूष समास
|
पाप-पुण्य
|
पाप और पुण्य
|
द्वन्द्व समास
|
पादप
|
पैरे से पीने वाला
|
उपपद तत्तपुरूष
|
पीताम्बर
|
पीला है अम्बर
जिसका वह
|
बहुव्रीहि
समास
|
पुत्रशोक
|
पुत्र के लिए शोक
|
चतुर्थ तत्तपुरूष समास
|
पुस्तकालय
|
पुस्तक का आलय
घर
|
ष. तत्तपुरूष
समास
|
बार-बार
|
हर बार
|
अव्ययीभाव समास
|
मनमौजी
|
मन से मौजी
|
तृतीया
तत्तपुरूष समास
|
मनगढ़त
|
मन से गढ़ा हुआ
|
तृतीया तत्तपुरूष समास
|
महाशय
|
महान आशय
|
कर्मधारय समास
|
मदमाता
|
मद से माता
|
तृतीय तत्तपुरूष समास
|
महारानी
|
महती रानी
|
कर्मधारय समास
|
मालगोदाम
|
माल के लिए गोदाम
|
चतुर्थ तत्तपुरूष समास
|
मुरलीधर
|
मुरली को धरे
रहे वह
|
बहुव्रीहि
समास
|
मृगनयन
|
मृग के समान नयन
|
कर्मधारय समास
|
यथाक्रम
|
क्रम के
अनुसार
|
अव्यययीभाव
समास
|
यथाशक्ति
|
शक्ति के अनुसार
|
अव्ययीभाव समास
|
यथेष्ट
|
यथा इष्ट
|
अव्ययीभाव
समास
|
रसोईघर
|
रसोई के लिए घर
|
चतुर्थ तत्तपुरूष समास
|
राधा-कृष्ण
|
राधा और कृष्ण
|
द्वन्द्व समास
|
रामायण
|
राम का अयन
|
ष. तत्तपुरूष समास
|
राजकन्या
|
राजा की कन्या
|
ष. तत्तपुरूष
समास
|
लम्बोदर
|
लम्बा है उदर जिसका वह
|
बहुव्रीहि समास
|
लौहपुरूष
|
लौह सदृश
पुरूष
|
कर्मधारय समास
|
वजा्रयुध
|
वज्र है आयुध जिसका
|
बहुव्रीहि समास
|
विद्यार्थी
|
विधा का अर्थी
|
ष. तत्तपुरूष
समास
|
वीणापाणि
|
वीणा है पाणि में जिसके सरस्वती
|
बहुव्रीहि समास
|
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