Bharat me Samvidhan Ka Vikas {भारत में सवैधानिक विकास}
भारत में सवैधानिक विकास |
भारत में सवैधानिक विकास
भारतीय संविधान में जिन राजनीतिक संस्थाओं को स्थापित किया है, उनका विकास ब्रिटिश शासन के दो सौ वर्षों के लंबे शासनकाल के दौरा हुआ। ब्रिटिश शासन के दौरान हुए संवैधानिक विकास को दो चरणों में बॉटा जा सकता है।
- 01- ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में हुआ संवैधानिक विकास (1765 ई से 1857 तक) और
- 02- ब्रिटिश क्राउन के शासनकाल के अंतर्गत हुए संवैधानिक विकास ( 1858 ई. से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक)
दूसरे चरण में भारत में प्रतिनिधि और उत्तरदायी सरकार की स्थापना की शुरूआत हुई। इन दोनों चरणों में ब्रिटिश संसद द्वारा अनेक अधिनियम चार्टर पारित किए गए जिनका वर्णन नीचे किया गया है।
रेगुलेटिंग अधिनियम - 1773 Regulating Act 1773
- ब्रिटिश संसद में 1772 ई. में एक गोपनीय समिति की नियुक्ति की जिसकी सिफारिशों के फलस्वरूप 1773 ई. का रेगुलेटिंग अधिनियम पारित किया गया ।
- 1773 ई. के पहले बंगाल, बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसियाँ एक-दूसरे से अलग थीं। इस अधिनियम द्वारा बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी को बंगाल प्रेसीडेंसी के अधीन करकके बंगाल के गर्वनर जनरल को तीनों प्रेसीडेसियों का गर्वनर जनरल बनाया गया।
- गवर्नर जनरल परि/ाद में चार सदस्य होते थे। परिषद में निर्णय बहुमतसे लिये जाते थे, परंतु मत बराबर होने की स्थिति में गवर्नर जनरल निर्णायक मत दे सकता थां
- गवर्नर जनरल और उसकी परिषद इंग्लैण्ड स्थित निदेश बोर्ड के प्रति उत्तरदायी थी।
- भारत का प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स था।
- प्रथम चार पार्षद फिलिप फ्रांसिस, क्लुवेरिंग, मॉनसन और बरनैल थे।
- 1773 के रेगेलेटिंग एक्ट में एक उच्चतम न्यायालय के गठन का भी प्रावधान किया गया थां अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार 1774 ई. में कलकत्ता में चार सदस्यीय उच्चतम न्यायालय की स्थापना हुई। इसके निर्णयों के विरूद्व प्रिवी कॉसिल में ही अपील की जा सकती थी।
- इस प्रकार 1773 के अधिनियम द्वारा भारत में कंपनी के प्रशासन पर ब्रिटिश संसदीय नियंत्रण की शुरूआत हुई।
पिटस इंडिया अधिनियम- 1784 Pits India Act 1784
- इस अधिनियम द्वारा इंगलैण्ड में एक छह सदस्यीय नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई।
- इस प्रकार पिटस इंडिया अधिनियम के शासन के द्वैध प्रणाली की स्थापना की, जिसमें एक ओर कंपनी का निदेशक मंडल तो दूसरी और नियंत्रण मंडल शासन की दो मुख्य इकाई थे।
चार्टर अधिनियम- 1793 Chart Act 1793
- इस अधिनियम के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।
- चार्टर अधिनियम- 1813
- इस अधिनियम के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत के साथ व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। लेकिन इसके चीन के साथ व्यापार और चाय के व्यापार के एकाधिकार को बनाए रखा गया। इस अधिनियम ने भारत में शिक्षा और विज्ञान की प्रगति के लिए एक लाख रूपया वार्षिक निर्धारित किया।
चार्टर अधिनियम - 1833 Charter Act 1833
- 1833 तक भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का व्यापक विस्तार हो चुका था। अतः इस पर स्थायी नियंत्रण की आवश्यकता के फलस्वरूप 1833 का चार्टर अधिनियम पारित किया गया । इस अधिनियम के द्वारा प्रशासन का केन्द्रीयकरण किया गया। और कानून बनाने, प्रशासन एवं वित की समस्त शक्तियाँ सपरषिद गवर्नर जनरल के हाथों में दे दी गई।
- बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया। तथा बंबई, मद्रास, और अन्य प्रदेश गवर्नर जनरल के अधिकार में दे दिए गए।
- भारतीय कानूनों को संहिताबद्ध करने, सुधारने तथा संचित करने के लिए एक विधि आयोग के गठन का प्रावधान किया गया और एक कानूनी सदस्य जोड़ा गया।
- इस अधिनियम द्वारा कंपनी के प्रशासन के अधीन किसी पद के लिए सभी ब्रिटिश अथवा भारतीय प्रजा को धर्म, जन्म स्थान, वंशानुक्रम, और वर्ग के आधार पर समान रूप से योग्य माना गया।
चार्टर अधिनियम 1853- Charter Act 1853
- इस अधिनियम के द्वारा कंपनी को मिलने वाला 20 वर्ष के लीज को समाप्त कर दिया गया। इसका अर्थ यह था कि ब्रिटिश संसद अब किसी भी समय भारत में कंपनी के शासन को समाप्त कर सकती थी।
- इंग्लैण्ड में भी एक विधि के गठन के लिए उपबंध किया गया जो भारतीय विधि आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर विचार कर सकती थी।
भारत सरकार अधिनियम 1858- Bharat Sarkar Adhiniyam 1858
- इस अधिनियम के द्वारा भारत में कंपनी के शासन का अंत हुआ और उसके स्थान पर ब्रिटिश क्राउन ( ब्रिटिश सामा्रज्ञी) का निरपेक्ष शासन स्थापित हुआ।
- क्राउन की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए भारत के राज्य सचिव की नियुक्ति की गई जो ब्रिटिश मंत्रिमंडल का सदस्य होता था और अपने कार्यों के लिए ब्रिटिश ससंद के प्रति उत्तरदायी होता था।
- राज्य सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्यीय परिषद के गठन का उपबंध किया गया। जिस भारत परिषद की संज्ञा दी गई।
- गवर्नर जनरल का वायसराय की संज्ञा दी गई। वायसराय भारत में क्राउन का सीधा प्रतिनिध बन गया औरवह एक कार्यकारिणी परिषद की सहायता से कार्य करता था।
भारत परिषद अधिनियम 1861- Bharat Parisad Adhiniyam 1861
- इस अधिनियम के द्वारा भारत में संवैधानिक विकास का सूत्रपात किया।
- इस अधिनियम द्वारा वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में एक पॉचवा सदस्य सम्मिलित किया गया जो विधि विशेषज्ञ होता था।
- इस अधिनियम के द्वारा बंबई और मद्रास प्रांतो को अपने लिए कानून बनाने तथा उसमें संशोधन करने की शक्ति दी गई, लेकिन उस पर वायसराय की अनुमति आवश्यक थी। इस प्रकार स्पष्ट है कि 1861 के अधिनियम द्वारा विधान विकेन्द्रीकरण की नींव डाली गई।
- प्रांतो में विधायी परिषद की स्थापना की जा सकती थी। इसके लिए वायसराय की पूर्वानुमति आवश्यक थी।
- वायसराय का अध्यादेश जारी करने की शक्ति दी गई, जो 6 माह की अवधि तक प्रभावी रह सकता था।
- वायसराय लार्ड कैनिंग ने भारत में विभागीय प्रणाली की शुरूआत की केनिंग ने विभिन्न विभाग भिन्न-भिन्न सदस्यों को सौंप दिए जो उस विभाग के प्रशासन के लिए उत्तरदायी होता था। इस प्रकार भारत में मंत्रिमंडलीय व्यवस्था की नींव पड़ी।
भारतीय परिषद अधिनियम- 1892 Bharat Parisad Adhiniyam 1892
- 1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के पश्चात विधामंडलों में भारतीय जनता को प्रतिनिधित्व देने की माँग लगातार की जाती रही। 1892 भारतीय परिषद अधिनियम कांग्रेस की इस मांग से प्रभावित होकर किया गया था।
- इस अधिनियम द्वारा वायसराय भारत में संसदीय उत्तरदायी सरकार के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
भारतीय परिषद अधिनियम 1909 Bhartiya Parisad Adhiniyam 1909
- इसे मार्ले मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है।
- सर अरून्डेल समिति की रिपोर्ट के आधार पर फरवरी 1909 मेें यह अधिनियम पारित किया गया।
- केन्द्र और प्रांत दोनों की विधान परिषदों का विस्तार किया गया।
- इस अधिनियम के द्वारा मुस्लिम संप्रदाय के लिए पृथक निर्वाचक मंडल और पृथक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गयी। इस प्रकार इस अधिनियम द्वारा पहली बार साम्प्रदायित प्रतिनिधितव के घातक सिद्धांत को लागू किया गया था।
भारत सरकार अधिनियम 1919 Bharat Sarkar Adhiniyam 1919
- इस अधिनियम को मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से भी जाना जाता है।
- 20 अगस्त 1947 को भारत के राज्य सचिव मांटेग्यू ने हाउस ऑफ कामंस में एक ऐतिहासिक वकत्वय दिया, जिसमें भारत में एक उत्तरदायी सरकार के गठन का वादा किया गया। इस वक्तव्य को मांटेग्यू चेम्सफोर्ड घोषणा के नाम से जाना जाता है।
- 1917 ई. में चेम्सफोर्ड को भारत का वायसराय बनाया गया। भारत के राज्य सचिव मांटेग्यू के साथ वेभारत आए और भारतीय नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर दोनांे ने एक संयुक्त रिपोर्ट प्रस्तुत की । यही रिपोर्ट 1919 ई. के अधिनियम का आधार बनी।
- 1919 के भारत सरकार अधिनियम ने भारतीय राज्य सचिव के अधिकारों को कम कर दिया। एक नये पदाधिकारी भारतीय उच्चायुक्त के पद का सृजन हुआ। जिसे राज्य सचिव के कुछ कार्यों को सौंप दिया गया। भारतीय उच्चायुक्त ब्रिटेन में वायसराय के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था और उसे वेतन भारतीय राजस्व से ही दिया जाता था।
- वायसराय, जिसे अब तक भारतीय राजस्व से वेतन मिलता था, अब ब्रिटिश राजस्व से मिलता था।
- इस अधिनियम के द्वारा केन्द्र में द्विसदस्यीय विधायिका स्थापित हुई। ये सदन थे-राज्य परिषद और विधान सभा।
- प्रशासन की सुविध के लिए विषयों को दो सूचियों में बाँटा गया- केन्द्रीय सूची और प्रांतीय सूची।
- प्रांतीय शासन व्यवस्था में अधिक व्यापक परिवर्तन किए गए। प्रांतों में द्वैध शासन की शुरूआत की गयी।
साइमन आयोग- 1927 Simon Commission 1927
ब्रिटिश सरकार ने 1919 ई. के अधिनियम को पारित करते समय यह घोषणा की थी कि वह 10 वर्षों के पश्चात इन सुधारों की समीक्षा करेगा, किन्तु नवम्बर 1927 ई. में ही इस कार्य के लिए सर साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किय गया , जिसकी रिपोर्ट जून 1928 में प्रकाशित की गई।
साइमन आयोग के मुख्य सुझााव निम्नलिखित थे-
01- भारत में एक संघ की स्थापना हो, जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांत ओर देशी रियासत शामिल हों।02- केन्द्र में उत्तरदायी शासन की स्थापना हो।
03- वायसराय और प्रांतीय गवर्नरों को विशेष शक्तियाँ दी जायें।
04- द्वैध शासन को समाप्त कर प्रांतो को स्वायत्ता दी गई।
05- मताधिकार का विस्तार किया जाए। लेकिन साम्प्रदायिक निर्वाचन चलता रहे।
06- एक लचीले संविधान का निर्माण हो।
नेहरू रिपोर्ट 1928- Nehru Report 1928
भारतीयों ने जब साइमन आयोग का विरोध किया तो भाारत के राज्य सचिव र्लाउ बर्केनहेड ने भारतीय नेताओं को चुनौती दी कि वे भारतीय संविधान के लिए ऐसा मसौदा बनाकर दें जो सभी दलों को स्वीकार हो। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस चुनौती को स्वीकार किया और मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसने भारतीय संविधन के लिए एक मसौदा तैयार किया। इसी मसौदे को नेहरू रिपोर्ट का गया।नेहरू रिपोर्ट की संस्तुतियाँ निम्नलिखित थीं-
- 1-भारत को अधिराज्य का दर्जा दिया जाए।
- 2- भारत को एक संघ के रूप में गठित किया जाय, जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रंांत और देशी रियासतें सम्मिलत हों।
- 3- साम्प्रदायित निर्वाचन प्रणाली को त्याग करके संयुक्त निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था हो।
- 4- प्रधानमंत्री के नेतृत्व में संसदीय व्यवस्था की स्थापना हो।
- 5- केन्द्रीय विधायिका में दो सदन हों- प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित निम्न सदन और प्रांतीय विधायिका के सदस्यों द्वारा निर्वाचित उच्च सदन ।
- 6- प्रांतो का गठन भाषा के आधार पर हो।
- 7- प्रांतो में भी मुख्यमंत्री के नेतृत्व में केबिनेट व्यवस्था का गठन हो।
- 8- भारत को धर्म निरपेक्ष राज्य बनाया जाय।
भारत सरकार अधिनियम 1935- Bharat Sarkar Adhiniyam 1935
- इस अधिनियम में कुल 321 अनुच्छेद और 10 अनुसूचियाँ थीं। भारत का संवैधानिक ढाँचा बहुत कुछ इसी अधिनियम से प्रभावित है।
- इस अधिनियम में एक अखिल भारतीय संघ के गठन का प्रस्ताव किया गया। जिसमें इकाइयाँ थीं- ब्रिटिश भारतीय प्रांत और देशों की रियासतें।
- प्रस्तावित संघ में देशी रियासतों को सम्मिलित होने या न होने की स्वतंत्रता दी गयी थी और जब तक आधे से अधिक देशी रियासतें इसके लिए सहमत न होती, प्रस्तावित संघ नहीं बन सकता था।
- अन्ततः देशी रियासतों की सहमति के अभाव में प्रस्तावित संघ नहीं बन सका।
- इस अधिनियम ने विधायी शक्तियों को केन्द्र और प्रांतो के लिए दो विषयों में विभाजित किया, केन्द्रीय विषय और प्रांतीय विषय।
- सरकार के कार्यो को तीन सूचियों के बॉटा गया- 1 संघ सूची 2. राज्य सूची और 3. समवर्ती सूची। अवशिष्ट शक्तियाँ तथा कुछ आपातकालीन अधिकार वायसराय को सौंपे गए।
- केन्द्र मेें द्वैध शासन की स्थापना की गई। सुरक्षित विषय वायसराय के अधिकार क्षेत्र में दिए गए और हस्तांतरित विषय मंत्रियों के अधिकार क्षेत्र में।
- प्रांतों में द्वैध शासन को समाप्त कर दिया गया।
- केन्द्रीय विधायिका के दोनों सदनों की सदस्य संख्या बढ़ा दी गई। केन्द्रीय विधानसभा में 375 और राज्य परिषद में 260 सदस्य संख्या निश्चित की गयी।
- छह प्रांतो में द्विसदनीय विधानमंडल की व्यवस्था की गई, जबकि शेष प्रांतो में एक ही सदन ोि।
- इस अधिनियम द्वारा एक संघीय न्यायालय की स्थापना हुई, जिसे संविधन की व्याख्या कर प्राथमिक और उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरूद्ध अपीलीय अधिकार प्राप्त था।
- इस अधिनियम द्वारा भारत सचिव की परिषद को समाप्त कर दिया गया और उसे मंत्राणा देने के लिए कुछ परामर्शदाता दे दिए गए।
- साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व का और अधिक विस्तार कर दिया गया।
- रेलवे के प्रशासन को चलाने के लिए इस अधिनियम द्वारा संघीय रेले अथॉरटी की स्थापना की गयी।
- यह अधिनियम 14 अगस्त 1947 तक प्रभावी रहा।
अगस्त प्रस्ताव 1940- August Prastav 1940
- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार के बीच जारी गतिरोध को सुलझाने के लिए वायसराय लिनलिथगो ने 8 अगस्त 1940 को एक प्रस्ताव रखा जिसे अगस्त प्रस्ताव कहा जाता है।
- अगस्त प्रस्ताव में यह कहा गया कि युद्व के बाद भारतीयों की एक समिति बनायी जाएगी जो भारतीय संविधान की रूपरेखा निश्चित करेगी।
- अगस्त प्रस्ताव को कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया।
क्रिप्स मिशन 1942- Krips Mission 1942
- ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने मार्च 1942 में यह घोषणा कि भारत की संवैधानिक समस्याओं का हल खोजने के लिए सर स्ट्रैफोर्ड क्रिप्स भारत का दौरा करेंगे।
- क्रिप्त ने भारत में विभिन्न दलों और जनता के प्रतिनिधियों से विचार विमर्श करने के पश्चात एक संविधान निर्माता सभा के गठन का सुझााव दिया जो प्रंातीय विधायिका के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार चुनी जायेगी। इसमें देशी रियासतों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित होंगे।
- इन प्रस्तावों को सभी दलों ने अस्वीकार कर दिया । अंततः 11 अप्रैल 1942 को क्रिप्स प्रस्ताव वापस ले लिया गया।
कैबिनेट मिशन 1946- Cabinet Mission 1946
- 24 मार्च 1946 को ब्रिटिश मंत्रिमंडल ने तीन सदस्य 1. वेंथिक लारेंस 2. सर स्ट्रोफर क्रिप्स 3. ए.वी. अलेक्जेंडर को भारत की संवैधानिक समस्या के समाधान के लिए भारत भेजा गया। इसे कैबिनेट मिशन के नाम से जाना गया।
- 16 मई 1946 को प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कैबिनेट मिशन ने भारत में एक संघ बनाए जाने का सुझाव दिया। जिसमें देशी रियासतों और ब्रिटिश भारतीय प्रांत दोनों सम्मिलत हों।
- संघ में अवशिष्ट शक्तियां प्रांतो के पास हों।
- एक संविधान सभा का गठन हो जिसमें कुल 379 सदस्य हों।
- संविधान सभा के सदस्य विभिन्न समुदायों द्वारा उनकी जनसंख्या के आधार पर चुने जायें।
- प्रत्येक 10 लाख की जनसंख्या पर एक सदस्य चुना जाये।
- कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार नवंबर 1946 ई. में संविधान सभी के लिए चुनाव सम्पन्न हुआ, जिसमें कुल 296 सदस्यों में से 211 सदस्य कांग्रेस के और 73 सदस्य मुस्लिम लीग के चुने गए। शेष स्थानी खाली रहे।
- संविधान सभा की पहली बैठक दिसम्बर 1946 ई. को डॉ. सच्चिानंद सिन्हा की अध्यक्षता में हुई, लेकिन मुस्लिम लीग ने बैठक का बहिष्कार किया।
- 11 दिसम्बर 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसार को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुन लिया गया।
माउण्टबेटन योजना- 1947 Mauntbaiten Yojan 1947
- 20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा कि जून 1948 से पहले अंग्रेज भारत छोड़ देंगे तथा सत्ता उत्तरदायी भारतीयों को सौंप दी जाएगी।
- इस योजना को कार्यरूप देने के लिए 22 मार्च 147 ई. को लार्ड माउंटबेटन को वायसराय बनाकर भारत भेजा गया।
- 3 जून 1947 को माउंटबेटन ने अपने प्रस्ताव की घोषणा की , जिसे माउंटबेटन योजना कहा जाता है।
- माउंटबेटन योजना में भारत के विभाजन को स्वीकार को स्वीकार कर लिया गया और इसे दो राज्यों में विभाजित कर 15 अगस्त 1947 के पहले सत्ता का हस्तांतरण कर दिया गया।
- मांउटबेटन योजना में भारत और पाकिस्तान के लिए अलग-अलग संविधन सभा के गठन की घोषणा की गई।
- भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947-
- माउंटबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया जो 15 अगस्त 1947 से प्रभावी हो गया।
- इस अधिनियम के अनुसार 15 अगस्त 1947 ई. को भारत और पाकिस्तान नामक दो संप्रभु राष्ट्र बने।
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