SC ST Act 1989 MPPSC {अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989}
अध्याय : 1 प्रारम्भिक ( धारा 1-2 )
अध्याय : 2 अत्याचार के अपराध(धारा 3-9)
अध्याय : 3 निष्कासन(धारा 10-13)
अध्याय : 4 विशेष न्यायलय(धारा 14-15 )
अध्याय : 4 A पीड़ित और साक्षी के अधिकार धारा 15A
अध्याय : 5 प्रकीर्ण (धारा 16-23)
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अध्याय : 1 प्रारम्भिक
1 सक्षिप्त नाम , विस्तार एवं प्रारम्भ - इसका विस्तार जम्मू -कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर होगा।
2 परिभाषाएँ- (क) अत्याचार - धारा 3 के अधीन (ख) सहिंतासे - दंड प्रक्रिया सहिंता अभिप्रेत (ग) एस ० सी \ एस टी जातियां -अनु० 366 के खंड 24 , 25 (घ) विशेष न्यायलय - धारा 14 में विशेष न्यायलय के रूप में विनिर्दिष्ट कोई सेशन न्यायलय .(ड) विशेष लोक अभियोजक -से विशेष लोक अभियोजक या धारा 15 में विनिर्दिष्ट अधिवक्ता (च) सहिंता या भारतीय दंड सहिंता में परिभाषित है वाही अर्थ होगा .
अध्याय : 2 अत्याचार के अपराध
3 अत्याचार के अपराधों के लिए दंड -
(1) खाने के लिए (2) फेकेगा (3) कपड़ें उतरेगा,या चहरा कला , घुमायेगा ,(4) भूमि को कब्जे (5) किसी भूमि , परिसर , या जल पर सदोष बेकब्जा करेगा (6) बधुआ , मजदूरी के लिए विवश करेगा या फुसलायेगा (7) मतदान (8) गलत वाद (9) लोक सेवक को मिथ्या जानकारी (10) अपमान (11) लज्जा भंग (12) मैथुन (13) तालाब दूषित करेगा (14) प्रथागत अधिकार से रोकेगा (15) माकन या गाँव या निवास स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करेगा या कराएगा , 6 माह से कम नहीं होगी , 5 वर्ष तक , और जुर्माना
4 कर्तव्यों की उपेक्षा के लिए दंड - लोक सेवक जो एस टी \एस सी नहीं है 6 माह से कम नहीं 1 वर्ष तक ( जुर्माना नहीं है )
5 पश्चातवर्ती दोषसिद्धि के लिए वर्धित दंड - 1 वर्ष से कम नहीं या उसी अपराध के दंड तक हो सकेगी
6 भारतीय दंड सहिंता के कतिपय उपबंधों का लागू होना - धारा 34 , 149, अध्याय 3,4,5,5क ,23
7 कतिपय व्यक्तियों की संपत्ति का समपहरण - जिनका उपयोग अपराध में किया गया है , विचरण के समय कुर्क की जायेगीं , दोषसिद्धि होने पर जुर्माना काटकर बापस की जाएगी
8 अपराधों के बारे में उपधारणा- अपराध में अभियुक्त की वित्तीय सहायता करेगा न्यायलय उपधरना करेगा व्यक्ति दुष्प्रेरण का दोषी है .
9 शक्तियों का प्रदान किया जाना -
अध्याय : 3 निष्कासन
11 ऐसे व्यक्ति का हटाया जाना जिसके द्वारा अपराध किये जाने की सम्भावना है - विशेष न्यायलय परिवाद या पुलिस रिपोर्ट पर , 2 वर्ष से अनधिक अवधि के लिए
12 किसी व्यक्ति द्वारा संबंधित क्षेत्र से हटाने में असफल रहने और वहां से हटने के पश्चात् उसमें प्रवेश करने की दशा में प्रक्रिया
13 ऐसे व्यक्तियों के , जिनके विरुद्ध धरा 10 के अधीन आदेश किया गया है , माप और फोटो आदि लेना -
(१) विशेष न्यायलय द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाने पर , किसी पुलिस अधिकारी को आपने माप या फोटो लेने देगा
(२) इंकार करने पर पुलिस अधिकारी कोई भी आवश्यक उपाय कर सकता है
(३) माप या फोटो का प्रतिरोध करने या इंकार करने को भा ० द० सा० की धारा १८६ के अधीन अपराध समझा जायेगा
(४)जहाँ आदेश प्रतिसह्रत कर दिया जाता है तो सभी बापस किया जायेगा .
13 धारा 10 के अधीन अननुपालन के लिए शास्ति - विशेष न्यायलय के आदेश का उल्लघंन करेगा कारावास जिसकी अवधि 1 वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी
अध्याय : 4 विशेष न्यायालय
14 विशेष न्यायलय-राज्य सरकार शीघ्र विचारण का उपबंध करने के प्रयोजन के लिए , उच्चा न्यायलय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से, प्रतेक जिले के लिए एक सेशन न्यायलय को विशेष न्यायलय के रूप में विनिर्दिष्ट करेगी
15 विशेष लोक अभियोजक- राज्य सरकार विशेष न्यायलय के लिए एक लोकाभियोजक नियुक्त करेगी
अध्याय : 4 प्रकीर्ण
16 राज्य सरकार की सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने की शक्ति - सिविल अधिकार संरक्षण अधि० १९५५ की धारा १० क के उपवंध लागू होगे
17 विधि और व्यवस्था तंत्र द्वारा निवारक कारवाही - (१) यदि , जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट या किसी पुलिस अधिकारी को , जो पुलिस उप- अधीक्षक की पांति से नीचे का न हो .शांति और सदाचार बनाये रखने तथा लोक व्यवस्था और प्रशांति बनाए रखने के लिए आवश्यक और निवारक दोनों कार्यवाही कर सकेगा
(२) सहित के अध्याय ८,१०.११. लागू
(३) राज्य सरकार स्कीम बना सकेगी
18 अधि० के अधीन अपराध करने वाले व्यक्तियों को संहिता की धारा 438 का लागू न होना - किसी व्यक्ति की गिरफ़्तारी के किसी मामले के सम्बन्ध में लागू नहीं होगी
19 इस अधि० के अधीन अपराध के लिए दोषी व्यक्तियों को सहिंता की धारा 360 या अपराधी परिवीक्षा अधि० के उपबंध का लागू न होना - 18 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति के सम्बन्ध में लागू नहीं होगे
20 अधि० का अन्य विधियों पर अध्यारोही होना - ये अधि० प्रभावी होगा
21 अधि० का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का सरकार का कर्त्तव्य -
22 सादभावपूर्वक की गई कारवाही के लिए सरंक्षण - कोई भी वाद ,या अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही , केंद्रीय या राज्य सरकार या सरकार के किसी अधिकारी या प्राधिकारी या किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी
23 नियम बनाने की शक्ति - केंद्र सरकार
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अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 विस्तार से
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अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 विस्तार से
- यह अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध किए गए अपराधों के निवारण के लिए है, अधिनियम ऐसे अपराधों के संबंध में मुकदमा चलाने तथा ऐसे अपराधों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए राहत एवं पुनर्वास का प्रावधान करता है। सामान्य बोलचाल की भाषा में यह अधिनियम अत्याचार निवारण (Prevention of Atrocities) या अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम कहलाता है।
- यह अधिनियम 11 सितंबर, 1989 को अधिनियमित किया गया था जबकि 30 जनवरी, 1990 से जम्मू-कश्मीर को छोड़कर संपूर्ण भारत में लागू है।
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत किए गए अपराध गैर-जमानती (Non Bailable), संज्ञेय (cognizable) तथा अशमनीय (Non-Compoundable) हैं।
पृष्ठभूमि (Background)
- भारतीय समाज को परंपरागत विश्वासों के अंधानुकरण तथा अतार्किक लगाव से मुक्त करना आवश्यक है। इसके लिए 1955 में अस्पृश्यता (अपराध निवारण) अधिनियम लाया गया था, लेकिन इसकी कमियों एवं कमजोरियों के कारण सरकार को इस कानूनी तंत्र में व्यापक सुधार करना पड़ा। 1976 से इस अधिनियम का नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम के रूप में पुनर्गठन किया गया। अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के अनेक उपाय करने के बावजूद उनकी स्थिति दयनीय बनी रही। उन्हें अपमानित एवं उत्पीड़ित किया जाता रहा। उन्होंने जब भी अस्पृश्यता के विरुद्ध अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहा, उन्हें दबाने एवं आतंकित करने का कार्य किया गया। अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के उत्पीड़न रोकने तथा दोषियों पर कार्रवाई करने के लिए विशेष अदालतों के गठन को आवश्यक समझा गया। उत्पीड़न के शिकार लोगों को राहत, पुनर्वास उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती थी। इसी पृष्ठभूमि में अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 बनाया गया था। इस अधिनियम का स्पष्ट उद्देश्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदाय को सक्रिय प्रयासों से न्याय दिलाना था ताकि समाज में वे गरिमा के साथ रह सकें। उन्हें हिंसा या उत्पीड़न का भय न सताए। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अस्पृश्यता के व्यवहार को संज्ञेय अपराध घोषित किया गया तथा ऐसे किसी भी अपराध के लिए अधिनियम में कठोर सछाा का प्रावधान किया गया। हालाँकि अधिनियम समाज को समावेशी बनाने के उद्देश्य से लाया गया था। यह संरक्षात्मक भेदभाव (protective discrimination) के सिद्धांत पर आधारित है, लेकिन यह अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सका और 2010 में स्वयं केंद्रीय गृहमंत्री ने इस बात को स्वीकार किया था। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 से संबंधित बिल को लोकसभा में पेश करते समय इसके उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए कहा गया था कि अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के अनेक प्रयास करने के बावजूद वे असुरक्षित बने हुए हैं। कई बर्बर घटनाओं में उन्हें अपने जीवन एवं संपत्ति से वंचित होना पड़ता है। शिक्षा के प्रसार से जागरूकता बढ़ी है। लेकिन जब भी वे अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहते हैं या अपने विरुद्ध अस्पृश्यता से जुड़े व्यवहारों का विरोध करते हैं या सांविधिक न्यूनतम मजदूरी की मांग करते हैं या बंधुआ या बलात् श्रम करने से इंकार करते हैं तो निहित स्वार्थी तत्व उन्हें नीचा दिखाने एवं आतंकित करने का प्रयास करते हैं। जब भी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोग अपने आत्मसम्मान एवं अपने महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने का प्रयास करते हैं, वे शक्तिशाली एवं प्रभुत्वशाली लोगों की आँखों में खटकने लगते हैं।
- इन परिस्थितियों में नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 तथा भारतीय दंड संहिता के सामान्य प्रावधान अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों के निवारण में अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं। यह आवश्यक समझा गया कि न केवल अत्याचार (Atrocities) शब्द को परिभाषित किया जाए बल्कि ऐसे अत्याचार करने वालों को कठोर सछाा भी दी जाए। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्यों का उत्पीड़न रोकने के लिए राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों को कुछ विशिष्ट निवारक एवं दंडात्मक उपाय अपनाने की बात कही गई। जहाँ इस तरह का अत्याचार होता है वहाँ पर्याप्त राहत तथा पुनर्वास के लिए सहायता देने की बात कही गई। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की प्रभाविता सुनिश्चित करने, इसकी कमियों को दूर करने तथा समय अनुकूल बनाने के उद्देश्य से 2014 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अध्यादेश लाया गया था। 4 मार्च, 2014 को राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर किये। इसके अध्यादेश होने एवं अगले 6 महीने में संसद द्वारा स्वीकृति प्राप्त नहीं करने के कारण यह समाप्त हो गया। यह पुनः मंत्रिमंडल के पास वापस पहुँच गया है। इसमें अत्याचार की परिभाषा में कई नए कृत्यों को शामिल किया गया था। कुछ शब्दों को स्पष्ट किया गया था। इसके अलावा पहले के प्रावधानों में आंशिक परिवर्तन किया गया था।
अत्याचार निवारण अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ (Salient features of Atrocities Act)
- अत्याचार निवारण अधिनियम को मुख्यतः तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। यह अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदाय की समाज में स्थिति तथा उनके विरुद्ध विभिन्न प्रकार के किए जाने वाले अपराधों के संदर्भ में हैं-
- पहले श्रेणी के अंतर्गत आपराधिक कानूनों से संबंधित प्रावधान हैं। इसमें कई प्रकार के अत्याचारों को आपराधिक कृत्य घोषित किया गया है तथा इनसे संबंधित मुकदमा चलाने का प्रावधान है।
- दूसरे श्रेणी के अंतर्गत अत्याचार पीड़ितों के लिए राहत एवं क्षतिपूर्ति (Relief and Compensation) का प्रावधान किया गया है।
- तीसरे श्रेणी के अंतर्गत अधिनियम के कार्यान्वयन एवं निगरानी के लिए विशेष प्राधिकरणों (Special Authorities) के गठन का प्रावधान किया गया है।
- अत्याचार निवारण अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित को शामिल किया जा सकता है-
- भारतीय दण्ड संहिता तथा नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 में शामिल अपराधों से अलग नए प्रकार के अपराधों का सृजन
- केवल विशिष्ट प्रकार के व्यक्तियों द्वारा किए गए अत्याचार को अपराध घोषित करना। इसके अंतर्गत गैर-अनुसूचित जाति/ जनजाति वर्ग के व्यक्ति द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय के व्यक्ति पर किए गए अत्याचारों के लिए ही मुकदमा चलाया जा सकता है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के बीच के अत्याचार या इन दोनों समुदायों के आपसी अत्याचार संबंधी कृत्य इस अधिनियम के क्षेत्राधिकार में नहीं आते हैं।
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध विभिन्न प्रकार के अत्याचारों को परिभाषित करता है।
- इस प्रकार के अत्याचारों के लिए कठोर सछाा का प्रावधान किया गया है।
- कुछ अत्याचारों के संदर्भ में सछाा बढ़ाता है।
- लोकसेवकों के संदर्भ में न्यूनतम सछाा में वृद्धि करता है।
- लोकसेवकों द्वारा उनके कर्त्तव्यों के संदर्भ में लापरवाही बरतने पर सछाा का प्रावधान करता है।
- संपत्ति के कुर्की एवं जब्ती (Attachment and Forfeiture) का प्रावधान करता है।
- संभावित अपराधियों को किसी विशेष जगह से निर्वासन (Exterment) का प्रावधान करता है।
- शीघ्र विचारण (Speedy trial) के लिए सेशन न्यायालय को विशेष न्यायालय (Special Court) के रूप में विर्निदिष्ट करने का प्रावधान करता है।
- मामले की जाँच 30 दिनों के भीतर कम से कम डिप्टी एसपी स्तर के अधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए।
- विशेष लोक अभियोजकों (Special Public Prosecutors) की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
- सामूहिक जुर्माना लगाने के लिए सरकार को सशक्त करता है।
- अत्याचार के पीड़ितों या उनके कानूनी वारिस (Legal Heirs) के लिए क्षतिपूर्ति, राहत एवं पुनर्वास का प्रावधान करता है।
- अत्याचार संभावित क्षेत्रों की पहचान करता है।
- राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर समय-समय पर आवश्यक निगरानी के लिए निगरानी व्यवस्था (Monitoring System) की स्थापना का प्रावधान करता है।
- अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित कृत्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति या समुदाय के विरुद्ध किए गए अत्याचार माने गए हैंः-
- कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है, वह किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को यदि अखाद्य या घृणित (Inedible or Obnoxious) पदार्थ या वस्तु खाने-पीने के लिए बाध्य करे।
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति के घर या पड़ोस में मल, अपशिष्ट पदार्थ, मरे हुए जानवर या अन्य घृणित पदार्थ फेंक कर या डालकर उसे चोट पहुँचाने, अपमान करने या कष्ट पहुँचाने का प्रयास करे।
- उपरोक्त समुदाय के किसी व्यक्ति के बलपूर्वक कपड़े उतारने, नंगा करने या उसके चेहरे या शरीर को पोत कर परेड करवाने या मानव गरिमा के लिए अपमानजनक कोई ऐसा ही कार्य करे।
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाली या किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे आवंटित भूमि को गलत तरीके से प्राप्त करता है या उस पर खेती करता है।
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को उसके भूमि या भवन से गलत तरीके से हटाता है या उसके भूमि, भवन या जल से जुड़े अधिकारों के प्रयोग में हस्तक्षेप करता है।
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति से बलात् या प्रलोभन देकर बेगार या इसी प्रकार के अन्य बलात् या बंधुआ मजदूरी (Bonded Labour) करवाता है। अपवाद स्वरूप सरकार सार्वजनिक उद्देश्य के लिए आवश्यक सेवा करने को कह सकती है।
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को कानूनी प्रावधान से अलग बलपूर्वक या धमकी से किसी विशेष उम्मीदवार को मत देने या नहीं देने को कहा जाता है।
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के विरुद्ध मिथ्या (False), दुर्भावनापूर्ण या तंग करने के उद्देश्य से मुकदमा किया जाता है या आपराधिक या अन्य कानूनी कार्यवाही की जाती है।
- किसी लोकसेवक को मिथ्या एवं दुर्भावनापूर्ण जानकारी दी जाती है जिसके आधार पर वह लोकसेवक किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के विरुद्ध चोट या कष्ट पहुँचाने वाला कानूनी कार्रवाई करता है।
- अपमानित करने के इरादे से किसी सार्वजनिक स्थल पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को अपमानित करता है या धमकाता है।
- अपमानित करने या शील भंग करने के उद्देश्य से अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला को चोट पहुँचाता है या उसके विरुद्ध बल प्रयोग करता है।
- किसी ऐसे पद पर आसीन है जहाँ अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी महिला की इच्छा को नियंत्रित किया जा सकता है तथा ऐसे पद का दुरूपयोग उसका शारीरिक शोषण करने में करता है जिसके लिए वह महिला अन्यथा सहमत न होती।
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा सामान्य रूप से प्रयोग किए जाने वाले झरनों, तालाबों या अन्य जल स्रोतों को गंदा या खराब करता है जिससे यह सामान्य रूप से उपयोग किए जाने की तुलना में कम उपयोगी हो जाता हो।
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी सार्वजनिक स्थल से गुजरने के उसके परंपरागत अधिकारों में बाधा डालता हो जबकि अन्य लोग उसका प्रयोग कर रहे हों।
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति को उसके घर, गाँव या आवास के अन्य स्थलों को छोड़ने के लिए दबाव डालता हो या छोड़ने का कारण बनता हो। इस स्थिति में दोषी व्यक्ति को कम से कम छह महीने से पाँच वर्ष तक की सछाा के साथ जुर्माना भी किया जा सकता है।
- इसके अलावा यदि कोई गैर-अनुसूचित जाति/जनजाति का सदस्य मिथ्या साक्ष्य के माध्यम से अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य को ऐसे मुकदमे में उलझा देता है जिसकी सछाा जुर्माने के साथ आजीवन कारावास होती है तो मिथ्या या गलत साक्ष्य देने वाले व्यक्ति को मृत्युदंड (Death) की सछाा दी जा सकती है। अनुसूचित जाति/जनजाति के किसी सदस्य के संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से आग या अन्य प्रकार के विस्फोटक पदार्थ से शरारत करता है तो दोषी व्यक्ति को जुर्माने के साथ छह महीने से सात साल तक जेल की सछाा हो सकती है।
- सार्वजनिक कर्तव्यों के निर्वहन में यदि कोई लोकसेवक जानबूझकर लापरवाही बरतता है तो उसे छह माह से एक साल तक जेल की सछाा हो सकती है। लेकिन यह प्रावधान अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लोकसेवक पर लागू नहीं होता जिसके कारण इस प्रावधान की कई बार आलोचना की गई है।
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