एडम स्थिम| हैप्पीनेस इंडेक्स| सामाजिक न्याय |सब्सिडी टारगोटिंग |अमर्त्य सेन

अति लघुत्तरीय प्रश्न 
E- सहयोग योजना 
एडम स्थिम 
सस्ती व मंहगी मुद्रा नीति 
हैप्पीनेस इंडेक्स 
सामाजिक न्याय 
सब्सिडी टारगोटिंग 
वित्तीय समेकन 
अमर्त्य सेन 
E- सहयोग योजना 
E- सहयोग योजना आयकर विभाग द्वारा 27 अक्टूबर 2015 में शुरू की गई। यह केंद्र सरकार का डिजिटल इंडिया के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। म्- सहयोग योजना से आयकर दाता के लिए आयकर अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत होने की जरूरत नहीं है। अब वह स्वयं ऑनलाइन इनकम टैक्स रिटर्न भर सकता है।
एडम स्मिथ
1. ये 19वीं सदी में जन्मे महान यूरोपीय अर्थशास्त्री हैें। 2. इन्हें “अर्थशास्त्र का पितामह“ कहा जाता है। 3. एडम स्मिथ प्रसिद्ध स्कॉटिश, नीतिनेत्ता, दार्शनिक व अर्थशास्त्री थे। 4. एडम स्मिथ ने “ अहस्तक्षेप की अवधारणा“ का प्रतिपादन किया। 5. इनकी सबसे प्रमुख पुस्तक ‘द वेल्थ ऑफ नेशन‘ है।
सस्ती व मंहगी मुद्रा नीति 
बाजार में मांग बढ़ाने के लिए RBI द्वारा जब ऋणों पर ब्याज दरों को घटा दिया जाता है तो इसे सस्ती मुद्रा नीति कहा जाता है। 

मंहगाई बढ़ने पर RBI द्वारा मंहगाई को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को बढ़ा दिया जाता है, इसे मंहगी मुद्रा नीति कहा जाता है। 

हैप्पीनेस इंनेक्स 
1. 1972 में भूटान के राजा जिग्मे-सिग्में वांगचुक ने इसे प्रतिपादित किया। 2. 2012 में टोनी, मैथ्यू स्टेनर्ड और क्रिस हाइलैण्ड ने खुशहाली सूचकांक के बारे में बताया। 3. 2014 में इसे भारत में लागू किया गया। 4. हाल ही में मध्यप्रदेश में आनन्द विभाग का गठन किया गया। 
सामाजिक न्याय 
सामाजिक न्याय एक ऐसी अवधारणा है, जिसके अंतर्गत सभी नागरिकों को प्रत्येक सत्र में समान अधिकार प्राप्त हैं। सामाजिक न्याय का उल्लेख भारतीय संविधान की प्रस्तावना, नीति निर्देशक तत्व तथा मौलिक अधिकारों में किया गया है। 
सब्सिडी टारगेटिंग 
यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें उन लोगों को शामिल करना है, जिन लोगों को सब्सिडी की आवश्यकता नहीं है व उनके अंतर्गत आते हैं। उन लोगों की सब्सिडी को बंद करना है। जो लोग सब्सिडी के अंतर्गत आते हैं व उन्हें सब्सिडी नहीं मिलती तो ऐसे लोगों का चयन कर उन्हें सब्सिडी का लाभ पहुंचाना। अग्रलिखित माध्यम से हम उन्हें लाभ प्रदान कर सकते हैं। 
1.नकद लाभ हस्तांतरण योजना 2. जन - धन योजना 3. पहल योजना 
वित्तीय समेकन
वित्तीय समेकन से आशय है, ‘वित्त को समेटना‘। मंदी के समय लोगों को दी गई आवश्यकता से अधिक छूट जिससे की सरकार की स्थिति घाटे में जाने लगती है। जिसे नियंत्रण में लाने के लिए सरकार द्वारा कुछ उपाय किए जाते हैं। जैसे- 
1. टैक्स चोरी को रोकना। 2. जो व्यक्ति टैक्स के अंतर्गत आते हैं उनसे टैक्स जमा करवाना। 
अमर्त्य सेन 
1. भारत के प्रमुख अर्थशास्त्री। 2. जन्म 03 नवबंर 1933 को शांति निकेतन कोलकाता में हुआ। 3. सन् 1990 में पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक के साथ मिलकर मानव विकास सूचकांक का प्रतिपादन। 4. सन् 1998 में इन्हें अर्थशास्त्र विज्ञान के लिये नोबल पुरस्कार से सम्मानित हुये। 
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 
कुटीर व लघु उद्योगों में अंतर बताइये। 
कुटीर व लघु उद्योगों को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है, जो एक बहुत बडे़ वर्ग को रोजगार उपलब्ध करातें हैं। प्रशुल्क आयोग के अनुसार “कुटीर उद्योग वे उद्योग हैं जो अंशतः परिवार के सदस्यों की सहायता द्वारा ही आंशिक या पूर्णकालिक कार्य के रूप में शुरू किये जाते हैं। 
कुटीर उद्योग व लघु उद्योग में निम्न-लिखित अंतर हैं:-
1. कुटीर उद्योग मुख्यतः  परिवार के सदस्यों द्वारा पूर्णकालीन या अंशकालीन व्यवसाय के रूप में चलाये जाते हैं, जबकि लघु उद्योग सामान्य रूप से मजदूरों व श्रमिकों की सहायता से चलाये जाते हैं। 2 . कुटीर उद्योग में हस्तक्रिया की प्रधानता रहती है, जबकि लघु उद्योग में ऐसा होना आवश्यक नहीं है। 3. कुटीर उद्योग में परम्परागत वस्तुएं बनाई जाती हैं जो सामान्यतया स्थानीय मांग की पूर्ति करती हैं, जबकि लघु उद्योगों में यांत्रिक प्रक्रिया अपनायी जाती है। और यह विस्तृत क्षेत्र की मांग की पूर्ति करते हैं। 4. कुटीर उद्योग में पूंजी का विनियोग नाममात्र का होता है, लेकिन लघु उद्योगों में अधिक पंूजी की आवश्यकता होती है। 5. कुटीर उद्योग सहायक उद्योग के रूप में चलाये जाते हैं, जबकि लघु उद्योग मुख्य उद्योग के रूप में। 6. कुटीर उद्योगों में स्थानीय कच्चा माल और कुशलता का उपयोग होता है, जबकि लघु उद्योगों में माल बाहर से मंगाया जा सकता है और तकनीकी कुशलता को भी बाहर से प्राप्त किया जा सकता है। कुटीर उद्योग व लघु उद्योगों के लिये सरकार द्वारा विभिन्न योजनायें चलाई गई हैं जैसे मुद्रा योजना स्टार्ट अप, स्टैड अप आदि, जो कि आर्थिक विकास की दिशा में अति आवश्यक स्तंभ हैं। 
 भारत एवं विश्व व्यापार संगठन में कृषि से संबंधित मुद्दे बताइये। 
विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत कृषि संधि में यह कहा गया है कि विकासशील राष्ट्र कृषि क्षेत्र में कुल उत्पादन के 10ः से अधिक सब्सिडी नहीं देंगे तथा विकासित राष्ट्रों के लिए यह नियम 5ः का है। तकनीकी रूप से अनुमति प्राप्त इन स्तरों को व्हाइट बॉक्स सब्सिडी कहा जाता है। अमेरिका तथा अन्य विकासित राष्ट्रों द्वारा यह कहा जाता है, कि भारत कृषि क्षेत्र में अनुमति से अधिक सब्सिडी देता है। भारत में खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 लागू करने के समय विश्व व्यापार संगठन के बाली सम्मेलन में विकासित राष्ट्रों द्वारा यह मुद्दा उठाया गया कि भारत अपनी सब्सिडी  की सूचना विश्व व्यापार संगठन को नहीं देता है। तब यह सहमति हुई कि भारत को इससे संबंधित स्थायी व्यवस्था 2017 तक प्रदान की जाएगी। तब तक भारत सब्सिडी देने के लिये स्वतंत्र है। इस सहमति को शांति संधि का नाम दिया गया। वर्ष 2014 में जब व्यापार सरलीकरण संधि का मुद्दा उठा तब भारत द्वारा यह घोषणा की गई कि जब तक हम कृषि संधि के संबंध में स्थायी समाधान प्राप्त नहीं कर लेते तब तक भारत द्वारा व्यापार सरलीकरण संधि में हस्ताक्षर नहीं किये जायेंगे। परिणाम स्वरूप भारत व अमेरिका के बीच बैठक हुई। अमेरिका ने विश्वास दिलाया कि वह भारतीय सब्सिडी का मुद्दा ूजव में नहीं उठायेगा, तब भारत द्वारा व्यापार सरलीकरण संधि पर हस्ताक्षर किये गये। 
भारत में कृषि सब्सिडी की आवश्यकता क्यों होती हैं? 
भारत में निम्न आधारों पर सब्सिडी को न्यायोचित ठहराया जा सकता है। 
1. भारत में कृषि को विकास का इंजन माना जाता है। 2. कृषि क्षेत्र पर ही औद्योगिक व सेवा क्षेत्रों की नींव टिकी हुई है। 3. यह सामाजिक न्याय सुनिश्चित करता है। 5. हरित क्रांति को सफल बनाने में सब्सिडी की अहम भूमिका है। 6. किसानों में आय स्थिरता प्रदान करने के लिए सब्सिडी की भूमिका है। 7. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना व्यापार बनाये रखने के लिए। 8. खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए। 9. बफर स्टॉक बनाये रखने के लिए। 10. मंहगाई को नियंत्रण में रखने के लिए। भारत में अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है अतः इस क्षेत्र में सब्सिडी देना न्यायोचित है। 
कई कारणों से कृषि सब्सिडी विवादस्पद बनी हुई है। 
1. भारतीय राजकोषीय घाटे का ऊंचा होना। 2. कृषि सब्सिडी परम्परागत तकनीकी को हतोत्साहित करती है। 3. भारत में सफल चक्र कृषि सब्सिडी के कारण प्रभावित हुआ है, क्योंकि किसान उन्हीं फसलों का उत्पादन करते हैं, जिनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक हो। इस प्रकार दाल व अन्य अनाजों के दाम कई बार बढ़ जाते हैं जिसे प्रोटीन मुद्रा स्फीति कहते हैं। हालांकि सब्सिडी वर्तमान में व भविष्य में आवश्यक है। कुछ प्रावधानों के अंतर्गत सब्सिडी दी जानी चाहिए 4. सब्सिडी  को एक समय सीमा के लिए सीमित कर देना चाहिए। 5. सब्सिडी निर्धारित करते समय खेत का आधार, भौगोलिक स्थिति, फसल का प्रकार, किसान की जररूतें सभी को देखा जाना चाहिए। 6. सब्सिडी राशनिंग करना  चाहिए। 7. नकद सब्सिडी प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण भी एक अच्छा प्रयास है। 8. सब्सिडी के प्रति किसानों को निशित व जागरूक करना चाहिए। 9. सब्सिडी का पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रभाव भी सीमित करना चाहिए। सब्सिडी सामाजिक कल्याण की दिशा में एक सकारात्मक कदम हैं अतः आवश्यकता है कि सब्सिडी को लक्ष्योन्मुखी रूप में लागू किया जाये ताकि उस व्यक्ति तक सब्सिडी पहुंचे जिसे इसकी आवश्यकता हैं 
आर्थिक सुधार क्या हैं व इन्हें कितनी पीढि़यों में बांटा गया है। 
आर्थिक सुधार से आशय आर्थिक संवृद्धि व आर्थिक विकास की दिशा में अर्थव्यवस्था में किए गए सुधारों से है, जैसे उदारीकरण, वैश्वीकरण व निजीकरण। भारत में आर्थिक सुधारों की शुरूआत 1991 से मानी जाती है। तत्कालीन समय से आर्थिक सुधारों की पीढि़यों का वर्गीकरण नहीं किया गया। बाद में सरकार ने माना कि अभी तक सुधारों की 3 पीढि़यों की घोषणा की जा चुकी है, वहीं विशेषज्ञों का मानना है 4 पीढि़यों के आर्थिक सुधार किए जा चुके हैं, लेकिन ये सरकार द्वारा अधिकृत नहीं हैं। 
प्रथम पीढ़ी के सुधार - 1991 में जो भी सुधार किये गये वे ज्यादातर प्रथम पीढ़ी के सुधार कहे जाते हैं, इनमें केन्द्र सरकार द्वारा पहल की गई थी। 
औद्योगिक क्षेत्र मे किए गए सुधार-
1. 1991 की नई आर्थिक नीति (एलपीजी-उदारीकरण, वैश्वीकरण, निजीकरण)। 2. लाइसेंस राज की समाप्ति। 3. निजी क्षेत्रों को बढ़ावा देना। 4. उत्पादकों का विविधीकरण। 5. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश व विदेशी पोर्टफोलियों। 
निवेश का विस्तार-
1. फेरा से फेमा की ओर प्रतिस्थापन। 2. चालू खाते में परिवर्तनीयता। 3. निजी व सर्वाजनिक क्षेत्रों में स्वायत्तता एवं वित्तीय क्षेत्र में किये गये सुधार। 4. निजी व विदेशी बैंकों को भारत में अनुमति। 6.सरकारी बैंकों को स्वायत्तता प्रदान की गई। 7.ब्याज दरों का विनियमीकरण हुआ। 8. ब्याज दरों में गिरावट आयी। 9. इंेम तंजम (बेस रेट) की अवधारणा। 10. अधिक पारदर्शिता व दक्षता पर बल दिया गया। 11. बेसल नीतियों की शुरूआत की गयी। 
कर व्यवस्था में सुधार - 
1. मूल्य वर्धन प्रणाली लागू हुयी। 2. करों की दरों में कमी आ गयी। 3. करों का सरलीकरण किया गया। 
व्यापार व निवेश नीति में सुधार-
1. निर्यात को बढ़ावा दिया गया। 
अन्य क्षेत्रों में किए गए सुधार-
1. रूपये का अवमूल्यन किया गया। 2. पूर्व की ओर देखो नीति (वर्तमान में एक्ट ईस्ट नीति) बनायी गयी। 3.सेबी की स्थापना हुयी। 4.शेयर बाजार का सुदृढ़ीकरण हुआ। 5. आयात निर्यात नीति का निर्माण हुआ। 6. एमआरटीपी एक्ट का अंत किया गया। 
द्वितीय पीढ़ी के आर्थिक सुधार-
प्रथम पीढ़ी के सुधारों को प्रभाची बनाने के लिए द्वितीय पीढ़ी के सुधारों की शुरूआत की गई। इसके अंतर्गत तीन तत्वों पर जोर दिया गया। 
तत्व 
राज्यों तक सुधारों का विस्तार - श्रम संबंधी सुधार - विधि तंत्रों का सही तरीके से क्रियान्वयन 
इसके अंतर्गत निम्न सुधार किये गये। 
1. सार्वजनिक क्षेत्र में सुधार जैसे विनिवेश। 2. गैर निष्पादन परिसंपत्तियों (एनपीए) को निर्धारित करने की समयसीमा को 2004 में 180 दिन से 90 दिन पर लाया गया। 3. वैधानिक व क्रांतिक क्षेत्र में सुधार किये गये, जैसे बिजली, पानी, सड़क, दूरसंचार आदि। 4. राजकोषीय संबंधी सुधार लागू किये गयें, जैसे वित्तीय उत्तर दायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 आये। 
तृतीय पीढ़ी के आर्थिक सुधार- 
इन सुधारों की शुरूआत इसवीं पंचवर्षीय योजना से मानी जाती है। इसका उद्देश्य एलपीजी के लाभों का विकेद्रीकरण करना तथा उनको जन सामान्य तक पहुंचाना था। इसके लिये पचांयती राज संस्थानों को और अधिक अधिकार दिये गये। 
चतुर्थ पीढ़ी के आर्थिक सुधार-
यह सुधार सरकार द्वारा अधिकृत नहीं है। 2002 में ही विशेषज्ञों ने चौथी पीढ़ी के सुधारों की चर्चा की। जिस पर सर्वाधिक बल सूचना व प्रौद्योगिकी पर दिया गया। उपरोक्त विवरण से कहा जा सकता है कि आर्थिक सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था की अवश्कता हैं। इस दिशा में सरकार विभिन्न योजनाओं द्वारा जैसे -डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी, मुद्रा योजना, जन-धन योजना आदि के द्वारा निरंतर क्रियाशील हैं। जनता की भागीदारी द्वारा नवीन प्रयासों से और अधिक बल मिल सकता है। 
औद्योगिक नीति क्या है व अभी तक भारत  सरकार द्वारा कितनी औद्योगिक नीतियों की घोषणा की जा चुकी है? 
किसी देश की औद्योगिक नीति वह नीति है जिसका उद्देश्य उस देश के निर्माण उद्योग का विकास करना एवं उसे वांछित दिशा देना होता है। औद्योगिक नीति का अर्थ सरकार के उन निर्णयों व घोषणाओं से हैं, जिससे उद्योगों के लिए अपनायी जाने वाली नीतियों का उल्लेख होता है। सरकार द्वारा बनाई गई औद्योगिक नीति से उस देश के औद्योगिक विकास के निम्मलिखित तथ्यों का पता चलता है-
1. औद्योगिक विकास की कार्य योजना एवं उसकी रणनीति क्या होगी। 2. औद्योगिक विकास में सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की भूमिका क्या होती। 3. औद्योगिक विकास में विदेशी उद्यामियों एवं विदेशी पूंजी निवेश की दिशा क्या होगी। 
भारत की औद्योगिक नीतियां -
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक भारत आठ बार औद्योगिक नीति की घोषणा कर चुका है, जो की निम्नलिखित हैं-
1. पहली औद्योगिक नीति 1948 2. द्वितीय औद्योगिक नीति 1956 3. तृतीय औद्योगिक नीति 1969 4. चौथी औद्योगिक नीति 1973 5. पांचवीं औद्योगिक नीति 1977 6. छठवीं औद्योगिक नीति 1980 7. सातवीं औद्योगिक नीति 1986 8. आठवीं औद्योगिक नीति 1991 
औद्योगिक क्षेत्र में विकास के लिये यह एक सकारात्मक कदम है तथा यह क्षेत्र आर्थिक विकास की दिशा को निर्धारित करता है।

अति लघुउत्तरीय प्रश्न 
  •  खाद्य सुरक्षा 
  • प्रत्यक्ष कर 
  • आर्थिक विकास के वत्व 
  • प्रवजन 
  • मौद्रिक नीति 
  • नगद आरक्षण अनुपात 
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
खाद्य सुरक्षा
  • खाघ सुरक्षा से तात्पर्य खाद्य पदार्थों की सुनिश्चित आपूर्ति एवं जनसामान्य के लिए भोज्य प्रदार्थोंे की सुनिश्चित उपलब्धता तथा उन तक पहुंच से है। 1974 में विश्व खाद्य सम्मेलन में ‘खाद्य सुरक्षा की   परिभाषा दी गई, जिसमें खाद्य आपूर्ति पर बल दिया गया।

प्रत्यक्ष कर
  • वह कर जिसकी भार उसी व्यक्ति पर पड़ता है, जिस पर वह लगाया जाता है, उसे प्रत्यक्ष कर कहा जाता है ,जैसे - आयकर ।
प्रवजन
  •  मनुष्य  के निवास स्थान के स्थायी परिवर्तन की घटना को प्रवजन कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार - प्रवजन निवास स्थान को परिवर्तित करते हुये भौगोलिक इकाई से दूसरी भौगोलिक इकाई से विचरण का एक प्रकार है।
मौद्रिक नीति
  • जिस नीति के अनुसार किसी देश की मुद्रा प्राधिकारी मूद्रा की आपूर्ति का नियमन करता हैै। उसे मौद्रिक नीति कहा जाता है। इसका उदेद्श्य राज्य का आर्थिक विकास एवं आर्थिक स्थायित्व सुनिश्चित करना होता है।
नगद आरक्षित अनुुपात ( सीआर आर ) 

  • रिर्जव बैंक अधिनियम की धारा 42 (1) के तहत किये गये प्रावधान के तहत अनुुुसूचित बैंको अपने पास जमाओं का कुछ निश्चित भाग रिर्जव बैंक के पास नगद रूप में जमा रखना अनिवार्य किया गया हैै। इसे नगद आरंक्षित अनुपात कहा जाता है। वर्तमान में यह 4 ़10 है।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
  • (Regional rural banks) भारत में ग्रामीण साख की कमी को दूर करने के  उदेद्श्य से सरकार ने 26 सितंबर 1975 को एक अध्यादेश द्वारा देशभर मेें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित करने की घोषणा की। 2 अक्टूबर 1975 को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किये गये। इस बैंक की हिस्सा पूंजी में केन्द्रीय सरकार द्वारा 500/0 राज्य सरकार द्वारा 15 प्रतिशत तथा लीड बैंक द्वारा 35 प्रतिशत का योगदान जाता है।

प्रश्न - 1  मुद्रा स्फीति क्या है? तथा इसके कारण/ प्रकार बताएँ?
उत्तर - वस्तुओं एवं सेवाओं की सामान्य कीमत स्तर में होने वाली वृद्धि को मुद्रा स्फीति कहते हैं। इसके कारण मुद्रा की क्रय क्षमता घट जाती है।

मुद्रा स्फीति के कारण


  • 1 मांग जनित मुद्रास्फीति - उत्पादों की मांग और आपूर्ति में असंतुलन आने से ऐसी मुद्रास्फीति होती है। अढ़ता सरकारी व्यय ही नार्य प्रबंधन बैंकों द्वारा ‘ अधिक मात्रा में ऋण देना आदि जिसके फलस्वरूप जनता की क्रय क्षमता बढ़ जाती है, इसे ही मांग जनित मुद्रास्फीति कहलाते हैं।
  • 2  लागत जनित मुद्रा स्फीति - जब उत्पादों का उत्पादन मूल्य बढ़ जाता है, तो फलस्वरूप जो मुद्रास्फीति होती है। उसे लागत जनित मुद्रास्फीति कहते है। इसमें मजदूरों अथवा वेतनों में वृद्धि, अप्रत्यक्ष कर ऊंची दर, जो सामान्य रूप से वस्तुओं की मूल्य में वृद्धि लाती है। ऋण लागत में वृद्धि, कृषिगत उत्पादों के मूल्य में वृद्धि आदि। इन दोनों के प्रकारों के अलावा अर्थव्यवस्था में  पूर्ति की मात्रा में कमी भी मुद्रास्फीति का एक महत्वपूर्ण कारक है। जैसे बाढ़, सूखा इत्यादि आने से उत्पादन में कमी आयी, कच्चे माल  की कमी, श्रमिकों की हड़ताल, पूजी की अनुपलब्धता इत्यादि के कारण मुद्रास्फीति जैसी परिस्थिति उत्पन्न होती है।

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