भारत की केन्द्रीय विधायिका का नाम संसद
है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है। अनुच्छेद 79 के अनुसार
भारत की विधायिका सहित दो सदन राज्य सभा एवं लोक सभा हैं।
परिचय Introduction of Central legislature of India
भारत ने
संसदीय लोकतंत्र अपनाया है। वेस्टमिंस्टर (इंग्लैण्ड) के नमूने पर ढाला गया है।
भारत शासन अधिनियम 1935 ई. मेँ परिसंघ की स्थापना की और इंग्लैण्ड की संसदीय प्रणाली की
नकल की।
संसद के निचले सदन को लोकसभा तथा उच्च सदन राज्यसभा कहते हैं।
लोकसभा मे जनता का प्रतिनिधित्व होता है,
राज्यसभा मेँ भारत के संघ राज्योँ का प्रतिनिधित्व होता है।
राज्यसभा मेँ 250 से अधिक सदस्य नहीँ हो सकते,
इसमें 238 सदस्य राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्रोँ के प्रतिनिधि एवं 12 सदस्य राष्ट्रपति
द्वारा नाम निर्दिष्ट किए जाते हैं।
राष्ट्रपति द्वारा नामित 12 व्यक्ति वह होते हैं,
जिन्हें साहित्य,
विज्ञान, कला, और सामाजिक सेवा के क्षेत्र मेँ विशेष ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव
हो।
राज्यसभा को कुछ विशेष शक्तियां प्राप्त है। यदि राज्यसभा संसद के राष्ट्रहित
मेँ जरुरी राज्य सूची मेँ शामिल किसी मामले के संबंध मेँ कानून बनाए और दो-तिहाई
बहुमत से राज्यसभा इस आशय का कोई संकल्प पारित कर देती है तो संसद समूचे भारत या
उसके किसी भाग के लिए विधियां बना सकती है।
इसके अलावा यदि राज्य सभा मेँ उपस्थित और मत देने वाले सदस्योँ मेँ कम से कम
दो तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित कर दें कि राष्ट्रीय हित मेँ
यह करना आवश्यक या समीचीन है तो संसद विधि द्वारा संघ और राज्योँ के लिए सम्मिलित
एक या अधिक भारतीय सेवाओं के सृजन के लिए उपबंध कर सकती है, (अनुच्छेद-312)।
प्रत्येक राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्योँ द्वारा आनुपातिक
प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा राज्यसभा के लिए अपने
प्रतिनिधियोँ का निर्वाचन किया जाता है।
भारत मेँ राज्योँ को राज्यसभा मेँ समान प्रतिनिधित्व नहीँ दिया गया है।
संघ राज्य क्षेत्रोँ के प्रतिनिधियों के द्वारा निर्वाचन की रीति संसद विधि
द्वारा निश्चित करती है।
लोकसभा मेँ अधिक से अधिक 552 सदस्य हो सकते हैं। इनमेँ से राज्योँ के प्रतिनिधि 530 एवं संघ राज्य
क्षेत्रोँ के प्रतिनिधि 20 से अधिक नहीँ हो सकते,
दो व्यक्ति राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय मेँ से नाम
निर्दिष्ट किए जा सकते हैं।
लोक सभा के सदस्योँ का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर राज्य की जनता के
द्वारा किया जाता है।
लोकसभा मेँ केवल अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण प्रदान किया गया है, अन्य किसी को नहीँ।
लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है, लेकिन इससे पूर्व भी इसका विकटन हो सकता है।
लोकसभा के लिए 25 वर्ष और राज्य सभा के लिए उम्मीदवार की उम्र 30 वर्ष से कम नहीं
होनी चाहिए।
लोकसभा नव-निर्वाचन के पश्चात् अपनी पहली बैठक मेँ जिसकी अध्यक्षता लोकसभा का
वरिष्ठतम सदस्य करता है, लोकसभा के अध्यक्ष का चयन करते हैं।
किसी संसद सदस्य की योग्यता अथवा अयोग्यता से संबंधित विवाद का अंतिम विनिमय
चुनाव आयोग के परामर्श से राष्ट्रपति करता है।
यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60
दिन की अवधि से अधिक समय के लिए सदन के सभी अधिवेशन से
अनुपस्थित रहता है तो सदन उसकी सदस्यता समाप्त कर सकता है।
संसद सदस्योँ को दिए गए विशेषाधिकारोँ के अंतर्गत किसी भी संसद सदस्य को
अधिवेशन के समय या समिति, जिसका वह सदस्य की बैठक के समय अथवा अधिवेशन या बैठक के पूर्व
या पश्चात 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तारी से उमुक्ति प्रदान की गई है।
संसद सदस्योँ को दी गई यह गिरफ्तारी से उन्मुक्ति केवल सिविल मामलोँ मेँ है, आपराधिक मामलोँ
अथवा निवारक निरोध की विधि के अधीन गिरफ्तारी से छूट नहीँ है।
लोकसभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष संसद के जीवन काल तक अपना पद धारण करते हैं।
अध्यक्ष दूसरी बार नव-निर्वाचित लोक सभा की प्रथम बैठक के पूर्व तक अपने पद पर बना
रहता है।
यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष लोक सभा के सदस्य नहीँ रहते हैं, तो वह अपना पद
त्याग करेंगे।
अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष,
अध्यक्ष को त्यागपत्र देता है।
14 दिन की पूर्व सूचना देकर लोकसभा के
तत्कालीन समस्त सदस्योँ के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को
पद से हटाया जा सकता है।
अध्यक्ष निर्णायक मत देने का अधिकार है।
कोईविधेयकधनविधेयकहैअथवानहीँइसकानिश्चयलोकसभाअध्यक्षकरता है तथा उसका निश्चय अंतिम होता है।
दोनो सदनो की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।
राज्य सभा का सभापति भारत का उपराष्ट्रपति होता है तथा राज्य सभा अपना एक
उपसभापति भी निर्वाचित करती है।
साधारण विधेयक तथा संविधान संशोधन विधेयक किसी भी सदन मेँ प्रारंभ किए जा
सकते हैं।
धन विधेयक केवल लोकसभा मेँ ही प्रारंभ किया जा सकता है तथा धन विधेयक मेँ
राज्यसभा कोई संशोधन नहीँ कर सकती।
धन विधेयक कि परिभाषा अनुच्छेद 110
में वर्णित है तथा धन विधेयक को राज्यसभा 14 दिन में अपनी
सिफारिशोँ के साथ वापस कर देती है।
साधारण विधेयक को छह माह तक रोका जा सकता है तथा किसी विधेयक पर (धन विधेयक
को छोड़कर) दोनो सदनोँ मेँ मतभेद हो जाने पर राष्ट्रपति दोनो सदनोँ का संयुक्त
अधिवेशन आयोजित कर सकता है।
संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है, लेकिन यदि वह
उपस्थित न हो तो सदन का उपाध्यक्ष,
यदि वह भी अनुपस्थित हो जाए तो राज्य सभा का उपसभापति, यदि वह भी
अनुपस्थित हो तो ऐसा अन्य व्यक्ति अध्यक्ष होगा जो उस बैठक मेँ उपस्थित सदस्य
द्वारा निश्चित किया जाए।
लोकसभा मेँ अध्यक्ष की अनुपस्थिति मेँ उपाध्यक्ष, उपाध्यक्ष की
अनुपस्थिति मेँ राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए वरिष्ठ सदस्यों के पैनल मेँ कोई व्यक्ति
पीठासीन होता है।
राज्यसभा मेँ सभापति की अनुपस्थिति मेँ उपसभापति तथा उपसभापति की अनुपस्थिति
मेँ निर्धारित पैनल का सदस्य अध्यक्ष होता है तथा संविधान संशोधन विधेयक पारित
करने के लिए दोनो सदनों की संयुक्त बैठक नहीँ होती है।
साधारण विधेयक पर दोनो सदनोँ मेँ पृथक रुप से तीन वाचन होते हैं, तो वह राष्ट्रपति
के अनुमति हस्ताक्षर से अधिनियम बन जाता है।
भारत की संचित निधि पर राष्ट्रपति,
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, लोकसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, राष्ट्र राज्य सभा
के सभापति व उप सभापति के वेतन भत्ते आदि तथा उच्चं न्यायालय के न्यायाधीशों की
पेंशन भारित होती है।
संसद राज्य सूची के किसी विषय पर विधि का निर्माण कर सकती है। जब राज्यसभा
मेँ उपस्थित और मत देने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्य उस विषय को राष्ट्रीय महत्व
का घोषित करेँ।
राज्य सभा, सदन मेँ उपस्थिति एवं मतदान देने वाले सदस्योँ के दो-तिहाई
बहुमत से यह संकल्प पारित कि संघ एवं राज्योँ के हित के लिए किसी नई अखिल भारतीय
सेवा के सृजन की आवश्यकता है, तो नई अखिल भारतीय सेवा का सृजन किया जा सकता है।
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