सौर-वर्णक्रम
(Solar
spectrum) प्रकाश, लघु तरंग विकिरण एवं दीर्घ विकिरण तीनों का सम्मिलित रूप है।
तरंग विकिरण का तरंगदैर्ध्य सूक्ष्म
400 nm से कम होता है। सूक्ष्म तरंग विकिरण में कॉस्मिक, एक्स तथा पराबैंगनी किरणें पाई
जाती हैं।
प्रकाश, विद्युत-चुम्बकीय वर्णक्रम के एक निश्चित भाग के अंतर्गत
विद्युत-चुम्बकीय विकिरण है। ‘दृश्य-प्रकाश’ सामान्यतः मानव नेत्र को दृश्यमान और ‘दृष्टि-बोध’ को अभिव्यक्त करता है। दृश्य-प्रकाश
का तरंगदैर्ध्य 400-700 नमूने (नैनोमीटर) या 4.00 ×10-7 से 7.00 × 10-7 nm होता है। इसे प्रकाश संश्लेषी विकिरण (photosynthetically active radiation-PAR) भी कहा जाता है।
दृश्य प्रकाश अवरक्त (दीर्घ तरंगदैर्ध्य) और पराबैंगनी (लघु
तरंगदैर्ध्य) के बीच अवस्थित होता है। इस तरंगदैर्ध्य (400-700 nm) का तात्पर्य मोटे
तौर पर 430-750 टेराहर्टज़ (THZ) की आवृत्ति विस्तार
से है।
अवरक्त एक अदृश्य दीप्तमान ऊर्जा है। यह एक विद्युत-चुंबकीय विकिरण
है जिसका तरंगदैर्ध्य दृश्य-प्रकाश के तरंगदैर्ध्य से अधिक होता है। इसका
तरंगदैर्ध्य 740 नैनोमीटर से अधिक होता है।
साथ ही कमरे के ताप पर किसी वस्तु से उत्सर्जित तापीय विकिरण की
प्रकृति अवरक्त के समान होती है। अवरक्त का तरंगदैर्ध्य 1,00,000 नैनोमीटर तक हो
सकता है। इस तरह इसकी आवृत्ति सीमा 730THZ-300 GHZ है।
पराबैंगनी (UV) एक विद्युत चुम्बकीय विकिरण है, जिसका तरंगदैर्ध्य 100 nm से 400 nm और आवृत्ति सीमा 30 पेटाहर्टज़ (PHZ) से 750 टेराहर्ट्ज (THZ) है। ध्यातव्य है कि पराबैंगनी विकिरण का तरंगदैर्ध्य (100 nm - 400nm) दृश्य प्रकाश (400 nm - 700 nm) से कम होता है।
एक्स किरण का तरंगदैर्ध्य 0.01 nm-10 nm होता है, जो पराबैंगनी के तरंगदैर्ध्य से कम है।
सूर्य का प्रकाश सभी प्रकार के विकिरणों-अवरक्त, दृश्य व पराबैंगनी से युक्त होता है,
एक्स-किरण की आवृत्ति सीमा 30 PHZ (पेटाहर्टज़) - 30 EHZ (एक्साहर्ट्ज) है। एक्स-किरण एक्स तरंग (X-Wave) से भिन्न होती है।
तरंगदैर्ध्य के आधार पर पराबैंगनी विकिरण तीन प्रकार के होते हैं:
UV-C -
(100 से 280 nm)
UV-B -
(280 से 320 nm)
तथा
UV-A-
(320 से 400 nm)
इनमें UV-C अत्यधिक घातक होता है और UV-B भी जीवों के लिये काफी नुकसानदेह होता है।
पराबैंगनी विकिरण प्रकाश के
विभिन्न स्रोतों-इलेक्ट्रिक आर्क, पारा-वाष्प लैंपों (Mercury-vapour lamps), प्रदीप्त लैंप जैसे- कीट अवशोषक
ट्यूब (bug
zapper tubes), विद्युत बल्ब, LED के द्वारा भी उत्सर्जित हो सकते हैं। पराबैंगनी विकिरण का
प्रयोग चर्म रोगों समेत अन्य कवकीय और जीवाणुवीय संक्रमण के उपचार में भी होता है।
उल्लेखनीय है कि समतापमंडल में स्थित ओजोन परत पराबैंगनी विकिरणों
का अवशोषण बड़ी तेज़ी से करती है जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर पराबैंगनी किरणों का
अल्पांश ही पहुँच पाता है।
प्रकाश का प्रकार अर्थात्
तरंगदैर्ध्य, तीव्रता अर्थात् जूल में मापी
गई ऊर्जा और अवधि यानी दिन की अवधि जीवों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है। किंतु दिन
के समय और अक्षांश प्रकाश की तीव्रता को प्रभावित करते हैं, प्रकाश या तरंगदैर्ध्य को नहीं।
ध्यातव्य है कि प्रकाश द्वारा पौधों में प्रकाश संश्लेषण, वृद्धि, तथा प्रजनन प्रभावित होते हैं।
बीज-अंकुरण, पादप-गति और पुष्पण प्रकाश के
प्रकार (तरंगदैर्ध्य) से प्रभावित होते हैं। प्रकाश की अवधि पौधों की घटना-विज्ञान
(Phenology)
को
नियंत्रित करती है। घटना-विज्ञान का आशय पादपों का बदलते पर्यावरण के सापेक्ष
ट्टतुनिष्ठ गतिविधियों के समय से है। पुष्पण और फलन पादप घटना विज्ञान क्रियाओं के
उदाहरण हैं। अतः कहा जा सकता है कि प्रकाश की अवधि पौधों में पुष्पण और फलन को
नियंत्रित करती है।
बहुत से प्राणियों में
प्रवासियता, शीतनिष्क्रियता तथा प्रजनन व्यवहार दिन और रात की तुलनात्मक अवधि
से नियंत्रित होते हैं।
गहरे पानी जैसे-झील और समुद्र
आदि जलीय तंत्र में पौधे के लिये प्रकाश सदैव एक सीमाकारी कारक होता है। इस तरह से
जलीय तंत्र में प्रकाश की मौजूदगी उत्पादक तथा उपभोक्ता की उपस्थिति निर्धारित
करती है, जो जैविक क्रियाओं को प्रभावित
करती है।
पादपप्लवक (phytoplanktons)
जल की
प्रकाशित सतह पर जबकि नितलस्थ (benthic) जीव झील आदि के तलछट पर निवास करते हैं।
प्रकाश की भेदता के आधार पर झील
को तीन भागों यथा-वेलांचल क्षेत्र (littoral zone), सरोजाबी क्षेत्र (limentic
zone) और
गंभीर-क्षेत्र (profundal zone) में बाँटा जाता है।
वेलांचल क्षेत्र: यह जल की
छिछली सतह होती है, अधिकांश जड़युक्त वनस्पतियाँ इसी क्षेत्र में पनपती हैं।
प्रकाश इस क्षेत्र को आसानी से भेद कर अंदर तक जाता है।
सरोजाबी क्षेत्र: यह वेलांचल
क्षेत्र के आगे का खुला क्षेत्र है। जल की स्वच्छता के आधार यहाँ प्रकाश 20 से 40 मीटर तक की गहराई में पहुँच
सकता है। ध्यातव्य है कि इस क्षेत्र में पादपप्लवकों की वृद्धि प्रचुर मात्र में
होती है।
गंभीर क्षेत्र: यह जल का ऐसा
क्षेत्र है जहाँ प्रकाश नहीं पहुँच पाता। उल्लेखनीय है कि नितलस्थ का निर्माण
झीलों और तालाबों के अवसादों द्वारा होता है, जो घोंघा, स्लगों (slugs)
और
सूक्ष्मजीवों का निवास स्थल भी होता है।
अक्षांश, ऊँचाई, स्थलाकृति, के साथ वनस्पति तथा ढलान
तापांतर को प्रभावित करते हैं। तापमान पौधे के लिये उद्दीपन का कार्य करता है साथ
ही उनकी वृद्धि का समय भी निर्धारित करता है।
तापकालिकता का आशय दिन-रात के
तापक्रम में अंतर से है। उल्लेखनीय है कि तापकालिकता कुछ पौधों के अनुकूल वृद्धि
के लिये आवश्यक है, जैसे-ठंडा वातावरण कुछ पौधों में बीजों के अंकुरण के लिये आवश्यक
है तथा कुछ पौधों में यह पुष्पण को भी प्रेरित करता है।
सामान्य ” ह्रास दर का आशय पृथ्वी की सतह
पर उर्ध्वाधर तापमान प्रवणता से है, जोकि प्रति हजार मीटर पर 6.5°C
है। इसके
अंतर्गत ऊँचाई बढ़ने पर तापमान में ” ह्रास होता है।
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