Chandel Vansh ka itihas |चंदेल वंश-मध्यप्रदेश का इतिहास
चंदेल वंश-मध्यप्रदेश का इतिहास
- चंदेल का वंश संस्थापक नन्नुक था।
- चंदेलों ने महोबा (खजुराहों, बुंदेलखंड) में राज्य स्थापित।
- चंदेल प्रारंभ में प्रतिहारों के सामंत थे।
- जयशक्ति के नाम पर ही बुंदेलखंड का नाम जेजाकभुक्ति पड़ा।
- यशोवर्मन ने कांलिजर का किला जीता तथा खजुराहों में विष्णु मंदिर बनवाया। विष्णु मूर्ति उसने प्रतिहार नरेश देवपाल को हराकर कन्नौज से प्राप्त की थी।
- यशोवर्मन का पुत्र धंग देव था। जिसने प्रतिहारों से पूर्ण स्वतंत्र चंदेल राज्य की स्थापना की।
- धंगदेव ने खजुराहों के पार्श्वनाथ, विश्वनाथ, जिन्ननाथ, वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
- धंगदेव का पुत्र गंगदेव ने 1008 ई. में महमूद गजनवी के विरूद्ध बनाये गये संघ से भाग लिया।
- खजुराहों के जगदंबे और चित्रगुप्त मंदिर गंगदेव के शासन में बनाये गये।
- गंगदेव का पुत्र विद्याधर हुआ। इसने हिन्दू संघ से भागे राजा राज्यपाल (प्रतिहार) की हत्या कर दी।
- विद्याधर ने महमूद गजनी (तुर्क) से राज्य की रक्षा की।
- कंदरिया महादेव मंदिर विद्याधर ने बनवाया था।
- कीर्तिवर्मन ने सोने के सिक्के चलायें। कीर्तिसागर जलाशय महोबा में बनवाया।
- सुलक्षण वर्मन ने परमार शासकों के मालवा को लूटा और त्रिपुरी के कल्चुरी शासक को हराया।
- मदनवर्मन के 6 अभिलेख म.प्र. के खजुराहों, अजयगढ़ (पन्ना), छतरपुर से प्राप्त हुए हैं। रीवा से 48 चाँची के सिक्के भी मिले हैें।
- मदनवर्मन ने मालवा के यशोवर्मन परमार से विदिशा जीता।
- मदनवर्मन का पौत्र परर्दिदेव के 6 अभिलेख म.प्र. के अजयगढ़, मदनपुर, सेमरा, अहाड़, चरखारी से प्राप्त हुए।
- आल्हा उदल परमदर्दिदेव के साले और योद्धा थे। जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान (अजमेर) से युद्ध के दौरान जान गवाई।
- परमदर्दिदेव ने कुतुबुद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली। जिससे उसने मंत्री अजयदेव ने परमर्दिदेव की हत्या कर दी।
चंदेल वंश के मध्यप्रदेश में अभिलेख
- बुन्देलखण्ड क्षेत्र में चंदेल, गुर्जर-प्रतिहारों के उत्तराधिकारी बने। उनके राज्य में केवल बुंदेलखंड बल्कि उत्तरप्रदेश के भाग भी सम्मिलित थे, जहां उनके बहुत से अभिलेख पाए गए हैं। उन्होंने नौवीं शताब्दी के पहले चौथाई भाग से लेकर तेरहवीं शाताब्दी ई. के अंत तक शासन किया। इस वंश का सबसे प्रारंभिक अभिलेख ई (916-925ई.) का है जिसमें उसके द्वारा शत्रुओं को परजित करने का उल्लेख है। इसके बाद के तीन अभिलेख धंग (950-1002ई.) के हैं जो खजुराहो से मिले हैं। विक्रम संवत् 1011 और 1059 के अभिलेखों के साथ ये दर्शाते हैं कि धंग इस वंश का पहला शासक था जिसने प्रतिहारों की अधीनता को अस्वीकार कर खुद को स्वंतत्र घोषित कर दिया था।
- अगला अभिलेख कुंडेश्वर से प्राप्त विद्याधर का ताम्रपत्र है जिसे विक्रम संवत् 1060 (1004 ई.) का माना गया है। चरखारी से मिला विक्रम संवत् 1108 के देववर्मा का ताम्रपत्र लेख, अगला लिखित अभिलेख है। एक और ताम्रपत्र ननौरा से मिला है जो वि. सं. 1107 का था। उसका काल विपत्तियों से भरा हुआ था क्योंकि त्रिपुरी के कलचुरियों ने उसे हरा दिया था। जयवर्मा के शासन का खजुराहो से प्राप्त एक अभिलेख, जिसे वि. सं. 1173 का माना गया है, अगला लिखित अभिलेख है।
- चन्देल इतिहास में मंदनवर्मा का शासनकाल तेजस्वी रहा। उसके शासकाल के तेरह अभिलेखों में से 6 अजयगढ़, छतरपुर, खजुराहो औपपरा से मिले हैं अन्य उत्तरप्रदेश से साम्राज्य की प्रतिष्ठा को उसके उत्तराधिकारी परमर्दिदेव ने बनाए रखा। उसके शासन काल के बारह अभिलेख अब तक मिल चुके हैं। इनमें से सात म. प्र. में अजयगढ़, अहाड़, चरखारी, मदनपुर, सेमरा और कुंडेश्वर तथा अन्य उ. प्र. से प्राप्त हुए हैं।
- त्रैलोक्यवर्मा परमर्दिदेव का पुत्र और उत्तराधिकारी था। उसके शासनकाल के आठ अभिलेख अब तक मिले हैं। इनमें से सात म. प्र. में रीवा, अजयगढ़, सागर, गर्रा और रामवन से मिले। अगला शासक उसका पुत्र वीरवर्मा था जिसके दस में से आठ अभिलेख म.प्र में अजयगढ़, गुड़हा, चरखारी और दाही से प्राप्त हुए हैं। वीरवर्मा का उत्तराधिकारी बना भोजवर्मा। उसके शासनकाल के तीन अभिलेख अजयगढ़, और एक ईश्वरमऊ में पाए गए हैं। इन अभिलेखों से स्पष्ट होता है कि उसका अधिकार अपने राज्यों के साथ डाहल मंडल पर भी था। उसके उत्तराधिकारी हम्मीरवर्मा के तीन अभिलेख अजयगढ़, चरखारी और बम्हनी से मिले हैं। वीरवर्मा द्वितीय का एक अभिलख लडवारी से मिला है। यह अभिलेख क्षतिपूर्ण हैं। 14वीं शताब्दी के पहले दशक तक जेजाकभुक्ति के चंदेल वंश के साम्राज्य का पतन हो चुका था।
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