Gupt kal in History of MP| मध्यप्रदेश के इतिहास में गुप्तकाल
मध्यप्रदेश के इतिहास में गुप्तकाल Gupt kal in History of MP
- इस वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की।
- चंन्द्रगुप्त- का शासन इलाहाबाद से म.प्र. तक था।
- समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त के 9 गणराज्यों को अपने अधीन कर लिया यथा मालवा, अर्जुनयन, यौधेय, मद्रक आमीर/अहिरवाड़ा, पार्जुन, सनकानिक (विदिशा), काक, खरपरिक (दमोह)।
- समुद्रगुप्त ने वाकाटक वंश और नागवंश से वैवाहिक संबंध बनाये।
- एरण (सागर) समुद्रगुप्त का स्वभोग नगर बन गया। इसने शक राज्य (उज्जैन) को छोड़कर संपूर्ण म.प्र. पर अधिकार कर लिया।
- समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी रामगुप्त था जो शकों से परास्त हुआ।
- चंद्रगुप्त-सस/ विक्रमादित्य ने शकों को हराकर उज्जैन पर अधिकार किया और उसे राजधानी बनाया। यही उसके दरबार में नौरत्न रहते थे। कालिदास, बेतालभट्ट, वराहमिहिर, धन्वतरी, अमरसिंह, वररूचि, घटकपर, क्षणपक, शुक।
- उदयगिरि गुफा लेख से उसके विदिशा अभिलेख का पता चलता हैं।
- चन्द्रगुप्त- II के उत्तराधिकारी कुमारगुप्त की मंदसौर प्रशस्ति के अनुसार सेनापति बंधुवर्मा ने सूर्यमंदिर के लिए दान दिया था।
- गुना के तुमैनशिलालेख में तुंबवन के शासक घटोत्कक्ष गुप्त का वर्णन मिलता हैं।
- स्कंदगुप्त के समय 459 ई. में हूण आक्रमण (चीनी जनजाति) हुए।
- पुनः 5वीं सदी के तोरमाण ने नेतृत्व में हूण आक्रमण हुए।
- एरण की बराहमूर्ति अभिलेख से तोरमाण का पता चलता हैं।
- तोरमाण का पुत्र मिहिरकुल ने प. मालवा तक अधिकार कर लिया था। इसकी पुष्टि ग्वालियर अभिलेख से होती है ।
- मीटर और कहोम अभिलेख स्कंदगुप्त से संबधित हैं। जिसका अधिकार मालवा, विन्ध्य और महाकौशल पर था।
- भानुगुप्त के हूणों से युद्ध के दौरान सेनापति गोपीराज मारा गया जिसकी विधवा के सती होने का उल्लेख एरण अभिलेख में हैं।
गुप्त वंश के मध्य प्रदेश में अभिलेख
- समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख से ज्ञात होता है कि अपने विजय अभियान के अन्तर्गत उसने मध्यप्रदेश के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था। एरण से मिले एक अभिलेख के अनुसार शहर के आस-पास का क्षेत्र "स्वभोग-नगर" कहलाता था जहां समुद्रगुप्त विश्राम करने के लिये आता था।
- गुप्तों के इतिहास में एक अन्य विवादास्पद व्यक्ति था रामगुप्त। लेकिन विदिशा में मिले तीन जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों के पादपीठ पर लिखे उसके शासन काल के अभिलेख ने उसकी पहचान करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उसके सिक्के भी विदिशा के उत्खनन में मिले हैं।
- उदयगिरी की पहाड़ियों में प्राप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय के सांधिविग्रहिक, वीरसेन का अभिलेख भी एक महत्वपूर्ण लिखित साक्ष्य है। इसी क्षेत्र में चन्द्रगुप्त द्वितीय के सामंत सनकानिक महाराज का भी एक अभिलेख मिला है। इसे गुप्त संवत् 82 (401-2ई.) का माना गया है।
- गुप्त संवत् 93 का एक अभिलेख साँची से भी प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख में चन्द्रगुप्त के एक कर्मचारी, आम्रकार्दव का उल्लेख है, जिसने काकनादबोट (साँची) में स्थित महाविहार को कुछ दान दिया था।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के उत्तराधिकारी, कुमारगुप्त प्रथम के गुप्त संवत् 116 का एक शिलालेख तुमैन में मिला है जिसमें तुम्बवन के शासक घटोत्कचगुप्त का उल्लेख है। इसी तरह से कुमारगुप्त प्रथम के शासन की जानकारी मंदसौर में मिले मालव संवत् 493 के एक शिलालेख में भी है। इसमें सामंत सेनापति बंधुवर्मन का उल्लेख है जो मंदसौर पर शासन कर रहा था। मंदसौर में बंधुवर्मन से पहले के दो शासकों के भी अभिलेख मिले हैं जिन्हें मालब संवत् 461 और 476 का माना गया है। गुप्त संवत् 106 का उदयगिरी शिलालेख भी कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल का है।
- कुमारगुप्त के उत्तराधिकारी स्कंदगुप्त ने राज्यपाल नियुक्त किये थे जिनमें से कुछ म.प्र. के भागों पर शासन कर रहे थे। इस प्रकार से मालव संवत् 524 का मंदसौर का शिलालेख स्कंदगुप्त का है। इसी प्रकार सूपिया का स्तंभ लेख जिसे गुप्त संवत् 141 का माना जाता है, स्कंदगुप्त के विंध्यप्रदेश पर शासन को दर्शाता है।
- स्कंदगुप्त के बाद क्रमशः पुरुगुप्त, बुधगुप्त, नरसिंहगुप्त, कुमारगुप्त द्वितीय (या तृतीय) और विष्णुगुप्त उनके उत्तराधिकारी बने। बुधगुप्त के शासन काल का एक स्तंभ लेख एरण में पाया गया है जिसमें मातृविष्णु और धन्यविष्णु का उल्लेख है, जो गुप्त संवत् 165 का माना जाता है। शंकरपुर (सीधी जिले) से मिले एक ताम्रपत्र, जिसे गुप्त संवत् 166 का माना गया है, से संकेत मिलता है कि गुप्त साम्राज्य तब तक अखंड था। लेकिन एरण से मिले एक शिलालेख के अनुसार ऐसा लगता है कि गुप्त संवत् 191 तक इस साम्राज्य का पतन हो गया था क्योंकि इस शिलालेख में एक राजकुमार भानुगुप्त का उल्लेख है जो इस साम्राज्य पर स्वतंत्र रूप से शासन कर रहा था। उसके कर्मचारी गोपराज की मृत्यु संभवतः हूण शासक तोरमाण के विरूद्ध हुये युद्ध में हुई थी।
- इसके अतिरिक्त पूरे मध्यप्रदेश से गुप्त लिपि के कुछ अभिलेख मिले हैं जिन पर तिथि नहीं है।
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