MP ka parmar vansh परमार वंश मध्यप्रदेश का इतिहास
परमार वंश Parmar Vansh मध्यप्रदेश का इतिहास
- प्रथम स्वतंत्रता शासक सिमुक (श्रीहर्ष) था।
- इस वंश का प्रसिद्ध राजा भोज था, राजधानी धार बनाई।
- राजा भोज ने भोजताल (भोपाल), सरस्वती मंदिर (धार) का निर्माण करवाया। (संस्कृत विद्यालय और विजय स्तम्भ)
- राजा भोज विद्वान संस्कृत ज्ञाता, कवि थे।
- समरांगण सूत्रधार (शिल्पशास्त्र), सरस्वतीकण्डभारण, सिद्धांत संग्रह, आयुर्वेंद सर्वस्व, राजमार्तण्ड, योसुत्र वृति, विद्या विनोद, चारूचर्चा, शब्दानुशासन, युक्ति कल्पतम (विधि ग्रंथ) आदि ग्रंथों की रचना राजा भोज ने की।
- इस वंश के राजा जयसिंह को हराकर भीम-सI (चालुक्य, ), तथा कर्ण (कल्चुरी, त्रिपुरी) ने मालवा पर अधिकार कर लिया।
परमार वंश के मध्यप्रदेश में अभिलेख
- मालवा के परमार चंदेलों से समकालीन थे। इस वंश का प्रारंभ उपेन्द्र ने किया था और उसके उत्तराधिकारी बने वैरीसिंह प्रथम, सियक प्रथम, वाक्पति प्रथम, वैरीसिंह द्वितीय, सियक द्वितीय और मुंज। मुंज के शासनकाल क 6 अभिलेख उज्जैन, गाँवरी और धरमपुर से प्राप्त हुए हैं। उसका उत्तराधिकारी सिन्धुराज था फिर भोज प्रथम आये जिनके बारह अभिलेख, जिन्हें विक्रम संवत् 1074-1092 के बीच का माना गया है, उज्जैन, देपालपुर, धार, बेटमा, भोजपुर और महन्दी से प्राप्त हुए हैं। ये भारतीय इतिहास के इस पौराणिक चरित्र के ऐतिहासिक और संस्कृतिक उपलब्धियों पर काफी प्रकाश डालते हैं।
- भोज का उत्तराधिकारी बना जयसिंह जिसका विक्रम संवत् 1112 का ताम्रपत्र लेख मान्धाता से प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख में शासक द्वारा किये गये कुछ दानों का विवरण है। जयसिंह का उत्तरधिकारी था उदयादित्य जिसके शासनकाल के बारह अभिलेख उज्जैन, उदयपुर, ऊन, धार और भोपाल से मिले हैं। उसने उदयपुर में नीलकंठेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया। उसकी स्वर्ण मुद्राएँ इन्दौर से मिली हैं।
- लक्ष्मदेव, उदयादित्य का उत्तराधिकारी था। अपने भाई नरवर्मन् के लिए उसने शीघ्र ही सिंहसन त्याग दिया। नरवर्मन का शासन काल विपत्तियों से भरा हुआ था और यह उसके समय के उज्जैन, उदयपुर, धार, भोजपुर, देवास और इन्दौर से प्राप्त अभिलेखों से पता चलता है। यशोवर्मन, नरवर्मन् का उत्तराधिकारी था। विक्रम सम्वत् 1192 का एक ताम्रपत्र उज्जैन से मिला है। गुजरात के चालुक्य जयसिंह सिद्धराज के आक्रमणों के कारण उसे बहुत सी विपत्तियों का सामना करना पड़ा। सिद्धराज ने न केवल मालवा पर अधिकार किया, बल्कि यशोवर्मन् को गिरफ्तार भी कर लिया। मालवा पर विक्रम संवत् 1195 तक चालुक्यों का अधिकार उज्जैन में पाए गए सिद्धराज के एक अभिलेख से प्रमाणित होता है।
- यशोवर्मन् के पुत्र जयवर्मन् ने सिद्धराज के अंतिम दिनों में मालवा पर दोबारा अधिकार कर लिया लेकिन यह अधिकार थोड़े समय के लिए ही था, क्योंकि मालवा पर चालुक्यों का अधिकार बारहवीं शताब्दीं के सातवें दशक तक कायम रहा। इसकी जानकारी उदयपुर से प्राप्त कुमारपाल के विक्रम संवत् 1229 के अभिलेख से होती है। परमार, चालुक्यों के सामंतों के रूप में शासन कर रहे थे और यह उज्जैन, पिपलियानगर, भोपाल और होशंगाबाद से मिले उनके अभिलेखों से पता चलता है।
- मालवा पर परमारों का दोबारा अधिकार जयवर्मन् के पुत्र विन्ध्यवर्मन् के शासन काल में हुआ लेकिन उसका शासनकाल कठिनाइयों से भरा हुआ था। उसके उत्तराधिकारी थे सुभटवर्मन् और अर्जुनवर्मन् अब तक अर्जुनवर्मन् के शासनकाल का एक शिलालेख धार से, एक ताम्रपत्र पिपलियानगर से और दो ताम्रपत्र भोपाल से मिले हैं। अर्जुनवर्मन् का उत्तराधिकारी देवपाल था। उज्जैन, उदयपुर, ओखला, करनावद, मान्धाता और हरसूद से मिले उसके अभिलेख संकेत देते हैं कि ये क्षेत्र अब भी उसके राज्य के राज्याधिकार में थे। अर्जुनवर्मन् के दो उत्तराधिकारी जैतुगिदेव और जयवर्मन् द्वितीय थे। जयवर्मन् द्वितीय के शासनकाल के चार अभिलेख गोदरपुरा, मोड़ी, राहतगढ़ और बमई से मिले हैं।
- जयसिंह द्वितीय जयवर्मन् द्वितीय का उत्तराधिकारी बना। उसके समय के उदयपुर, वलीपुर, और पठारी से मिले चार अभिलेख उसके शासनकाल में घटी घटनाओं पर प्रकाश डालते हैं। इस वंश के अंतिम तीन शासक क्रमश: अर्जुनवर्मन् द्वितीय, भोज द्वितीय और महलकदेव थे। चौदहवीं शताब्दी ई. के पहले दशक तक मालवा पर मुसलमानों का अधिकार हो गया।
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