MP ke ithas me Rashtrakut Vansh | MP History in hindi
राष्ट्रकूट वंश - मध्य प्रदेश के इतिहास में
- 7वीं सदी के अंत में इसकी दो शाखाओं ने बैतूल अमरावती और मान्यखेट (महाराष्ट्र) में शासन किया।
- बैतूल-अमरावती शाखा से दुर्गराज, गोंविदराज, स्वामिकराज और युद्रासुर के शासन के प्रमाण मिले हैं।
- युद्रासुर के ताम्रपत्र तितिरखेड़ी तथा मुल्ताई (बैतूल) से मिले है। मान्यखेट शाखा का प्रतापी राजा दंतिदुर्ग ने पहली शाखा को भी अपने राज्य मे मिला लिया।
- दंतिदुर्ग ने नर्मदा नदी के तट पर कई युद्ध किये।
- गोविंद-III ने नागभट्ट सस (गुर्जर) को परास्त कर उज्जैन में दरबार लगाया।
- ध्रुव ने मालवा पर अधिकार किया तथा वत्सराज (मालवा का प्रतिहार नरेश) तथा धर्मपाल (बंगाल का पाल नरेश) को हराया।
- इन्द्र III ने त्रिपुरी की कल्चुरी वंश की राजकन्या वैजंबा से विवाह किया। इसका अभिलेख इन्द्रगढ़ (मंदसौर) से मिलता हैं।
- इन्द्र III के समय अरबी यात्री अलमसूदी भारत आया।
राष्ट्रकूट वंश के मध्यप्रदेश में अभिलेख
- 7वीं-8वीं शताब्दी के दौरान राष्ट्रकूटों की प्रारंभिक शाखाओं में से एक बैतूल-अमरावती क्षेत्र में शासन कर रही थी। इस वंश के नन्नराज युद्धासुर के शक काल 553 और 631 के दो ताम्रपत्र क्रमशः तिवरखेड़ और मुलताई (दोनों ही बैतूल जिले में स्थित ) से प्राप्त हुए हैं। संभवत: आठवीं शताब्दी के अंत में दक्षिण में शासन कर रहे राष्ट्रकूटों की मुख्य शाखा ने इस शाखा का दमन किया था।
- मान्यखेट के राष्ट्रकूट वंश के शक्तिशाली शासक थे दन्तिदुर्ग, कृष्ण प्रथम, गोविन्द द्वितीय, ध्रुव और गोविन्द तृतीय। इनमें से अंतिम शासक ने राष्ट्रकूट गुर्जर प्रतिहार और पालो के बीच कन्नौज के लिए हुए त्रिपक्षीय संघर्ष में प्रभावी भागीदारी निभाई। मध्यप्रदेश से होकर राष्ट्रकूट सेना ने उत्तर भारत के लिए प्रस्थान किया। इन्द्रगढ़ (मन्दसौर) के शिालालेख में उसका और इन्द्र तृतीय का उल्लेख है। उसके उत्तराधिकारियों ने उत्तर भारत पर आक्रमण की नीति को जारी रखा। म. प्र. के बुंदेलखंड क्षेत्र पर कृष्ण तृतीय ने विजय प्राप्त की, यह सतना जिले में मैहर के निकट जूरा से प्राप्त शिलालेख से स्पष्ट होता है। छिन्दवाड़ा जिले में नीलकंठी से मिले दो शिलालेखों में भी कृष्ण तृतीय के शासन का उल्लेख है। राष्ट्रकूटों के कुछ सामंतों के शिलालेख म. प्र. से भी मिले हैं। ये हैं महासामंताधिपति गोल्हनदेव का बहुरी बंद जैन प्रतिमा शिलालेख, पिपरिया (दमोह) के महामांडलिक राणक जयसिंह का पाषाण-स्तंभ शिलालेख, राष्ट्रकूट परवल का पठारी (विदिशा) शिलालेख, और शक संवत् 708 की राष्ट्रकूट रानी का जेठवा (निमाड़) ताम्रपत्र लेख। इन अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि पूर्ववर्ती राष्ट्रकूटों ने म.प्र. के राजनैतिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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