Praagaitihaasik Madhyapradesh | प्रागैतिहासिक मध्यप्रदेश
प्रागैतिहासिक काल मध्यप्रदेश Prehistoric Madhya Pradesh
प्रागैतिहासिक काल
- पाषाण काल 42 लाख ई.पू. से 4000 ई.पू.
- ताम्रपाषाण काल 2800 से 700 ई.पू.
प्रागैतिहासिक काल
- मनुष्य का निवास नदियों के किनारों और कंदराओं में औजार, पत्थर और हड्डियों के बने, जानवरों के शिकार में प्रयुक्त.
- भीमबेटका, होशंगाबाद, सागर, भोपाल, रायसेन, नेमावर, छनेरा, महेश्वर, पंचमढ़ी, आदमगढ़, मंदसौर से अवशेष प्राप्त एवं शैलचित्र।
पाषाण काल
- पुरापाषाण काल
- मध्यपाषाण काल
- उत्तर पाषाण काल
- नवपाषाण काल
पुरापाषाण काल
- पुरापाषाण काल में बिना बेंत/हत्थे वाले औजार जैसे हस्तकुठार, खुरचनी का प्रयोंग।
- पुरापाषाणकाल के अवशेष नर्मदा, चम्बल, सोनार, पार्वती, बेतवा, हिरण, वेनगंगा की घाटियों में मिले हैं।
मध्यपाषाणकाल
मध्यपाषाणकाल के औजार उच्च कोटि के पत्थरों से निर्मित थे, जो आकार में छोटे थे।
उत्तरपाषाण काल
- उत्तरपाषाण काल को लघु औजार पाषाणकाल भी कहते हैं। शल्क, बेधनी, खुरचनी प्रमुख औजार। मानव, पशु-पक्षी तथा मछली को भोजन में प्रयोग करता था।
- पूर्वी निमाड़, शहडोल, मंदसौर होशंगाबाद, रीवा, सीहोर, उच्चैन, मण्डला, छतरपुर, छिंदवाड़ा इस काल के क्षेत्र थे।
नवपाषाणकाल
- नवपाषाणकाल में मानव ने कृषि करना सीख गया।
- मृदभाण्ड बनाना, झोपड़ी बनाकर रहना, वस्त्रों का प्रयोग होने लगा।
- इस काल के औजार ऐरण, जबलपुर, दमोह, सागर से प्राप्त।
ताम्र पाषाणकाल 2800 से 700 ई.पू.
- मानव ने पत्थर के साथ ताँबे का प्रयोग सीखा।
- यह सभ्यता मोहनजोदड़ों और हड़प्पा के समकालीन थी।
- नर्मदा, चम्बल, बेतवा नदियों के किनारों और जबलपुर, बालाघाट, में इस सभ्यता का विकास हुआ।
- मालवा के कायथा, ऐरण, आवरा, नवदाटोली, डॉगवाला, बेसनगर से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं।
- कायथा म.प्र. की पहली ताम्रपाषाणकालीन बस्ती थी।
- डॉ. वी.श्री. वाकणकर ने नागदा, कायथा की खोज की।
- डॉ. सांकलिया ने महेश्वर, नवदाटोली की खोज की।
- घुमक्कड़ जीवन समाप्त, खेती, पशुपालन प्रारंभ। पशुओं में गाय, कुत्ता, बकरी पाले जाते थे।
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