Lok Seva Ayog Ke Bare Me Gk , Lok Seva ayog GK in details |लोक सेवा आयोग सामान्य ज्ञान


लोक सेवा आयोग सामान्य ज्ञान

संघ लोक सेवा आयोग के वर्तमान अध्यक्ष कौन हैं ? 

वर्तमान अध्यक्ष श्री अरविंद सक्सेना
लोकसेवा आयोग के संबंध में संवैधानिक उपबंध अनुच्छेद- 315 से अनुच्छेद-323


लोक सेवा आयोग की ऐतिहासिकता Historicity of Public Service Commission

भारत में योग्यता आधारित आधुनिक सिविल सेवा परीक्षा की अवधारणा 1854 में ब्रिटिश संसद की प्रवर समिति कि लार्ड मैकाले रिपोर्ट के पश्चात साकार हुई। लार्ड मैकाले रिपोर्ट के अनुसार प्रतियोगिता परीक्षा के द्वारा प्रवेश के साथ योग्यता आधारित के स्थाई सिविल सेवा प्रणाली लागू की जानी चाहिए इसी उद्देश्य से 1854 में लंदन में सिविल सेवा आयोग की स्थापना की गई।
लंदन में स्थापित सिविल सेवा आयोग द्वारा प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा 1855 से शुरू की गई प्रारंभ में भारतीय सिविल सेवा के लिए परीक्षाओं का आयोजन सिर्फ लंदन में लंदन में किया जाता था जिसके लिए अधिकतम आयु 23 वर्ष न्यूनतम आयु 18 वर्ष थी।
सत्येंद्र नाथ टैगोर पहले भारतीय थे जिन्होंने 1864 में सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्त की थी।
1922 से भारतीय सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन भारत में भी होने लगा ,सबसे पहले इलाहाबाद में तथा बाद में फेडरल लोक सेवा आयोग की स्थापना के साथ ही दिल्ली में भी इन परीक्षाओं का आयोजन आरंभ हुआ।
स्वतंत्रता पूर्व भारतीय (शाही) पुलिस के उच्च पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा प्रतियोगिता परीक्षा के माध्यम से की जाती थी थी. सेवा के लिए प्रथम खुली प्रतियोगिता का आयोजन जून 1893 में इंग्लैंड में हुई थी वन सेवा के संबंध में भारतीय ब्रिटिश सरकार ने 1864 में शाही  वन विभाग की शुरुआत की थी । तथा शाही वन विभाग के मामलों के सुनियोजन  हेतु 18 67 में शाही वन सेवा का गठन किया था। स्वतंत्रता पश्चात अखिल भारतीय सेवा अधिनियम 1951 के तहत 1966 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की गई।
भारत में लोक सेवा आयोग का उद्गम भारतीय संवैधानिक सुधारों पर भारत सरकार के 5 मार्च 1919 की प्रथम विज्ञप्ति में पाया जाता है जिसमें एक ऐसे स्थाई कार्यालय की स्थापना करने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया था जिसे सेवा मामलों के विनियमन का कार्यभार सौंपा जा सके। मुख्यतः सेवा मामलों के विनियमन से प्रभारित निकाय की संकल्पना को कुछ और अधिक व्यावहारिक रूप भारत सरकार अधिनियम 1919 में मिला ।अधिनियम की धारा 19 सी में भारत में लोक सेवा आयोग की स्थापना की व्यवस्था है जो "भारत में लोक सेवाओं के लिए भर्ती तथा नियंत्रण संबंधी कार्यों का वहन करेगा जो उसे परिषद में सेक्रेट्री आफ स्टेट द्वारा सौंपे जाएंगे।


ली आयोग Lee ayog

भारत सरकार अधिनियम 1919 की धारा 96 सी के प्रावधानों तथा लोक सेवा आयोग की स्थापना को लेकर ली आयोग द्वारा 1924 में की गई जोरदार सिफारिशों के बाद ही भारत में पहली बार लोक सेवा आयोग की स्थापना 1 अक्टूबर 1926 को की गई।  इसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त 4 सदस्य भी थे । यूनाइटेड किंग्डम सिविल सेवा के  सदस्य सर रास बार्कर  आयोग के प्रथम अध्यक्ष बने।
भारत सरकार अधिनियम 1935 में फेडरेशन के लिए लोक सेवा आयोग तथा प्रत्येक प्रांत व प्रांतों के समूह के लिए प्रांतीय लोक सेवा आयोग पर विचार किया गया । अतः भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल 1937 से प्रभावी होने के साथ ही लोक सेवा आयोग  फेडरल लोक सेवा आयोग बन गया।
26 जनवरी 1950 को भारत के संविधान के प्रारंभन उनके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 378 के खंड 1 के आधार पर फेडरल लोक सेवा आयोग संघ लोक सेवा आयोग के रूप में पहचाना जाने लगा तथा फेडरल  लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष सदस्य बन गए।

लोकसेवा आयोग के संबंध में संवैधानिक उपबंध

अनुच्छेद- 315. संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
अनुच्छेद- 316. सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि
अनुच्छेद- 317. लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया जाना और निलंबित किया जाना
अनुच्छेद- 318. आयोग के सदस्यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति
अनुच्छेद- 319. आयोग के सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के संबंध में प्रतिषेध
अनुच्छेद- 320 लोक सेवा आयोगों के कृत्य
अनुच्छेद- 321. लोक सेवा आयोगों के कृत्यों का विस्तार करने की शक्ति
अनुच्छेद- 322. लोक सेवा आयोगों के व्यय
अनुच्छेद-323. लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन


लोकसेवा आयोग के कार्य Functions of Public Service Commission

संविधान के अनुच्छेद 320 के अंतर्गत, अन्‍य बातों के साथ-साथ सिविल सेवाओं तथा पदों के लिए भर्ती संबंधी सभी मामलों में आयोग का परामर्श लिया जाना अनिवार्य होता है। संविधान के अनुच्छेद 320 के अंतर्गत आयोग के प्रकार्य इस प्रकार हैं:

  • संघ के लिए सेवाओं में नियुक्‍ति हेतु परीक्षा आयोजित करना
  •  साक्षात्‍कार द्वारा चयन से सीधी भर्ती
  •  प्रोन्‍नति/ प्रतिनियुक्‍ति/ आमेलन द्वारा अधिकारियों की नियुक्‍ति
  •  सरकार के अधीन विभिन्‍न सेवाओं तथा पदों के लिए भर्ती नियम तैयार करना तथा उनमें संशोधन
  •  विभिन्‍न सिविल सेवाओं से संबंधित अनुशासनिक मामले
  •  भारत के राष्‍ट्रपति द्वारा आयोग को प्रेषित किसी भी मामले में सरकार को परामर्श देना


अनुच्छेद- 315. संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग

  •  इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के लिए एक लोक सेवा आयोग होगा।
  •  दो या अधिक राज्य यह करार कर सकेंगे कि राज्यों के उस समूह के लिए एक ही लोक सेवा आयोग होगा और यदि इस आशय का संकल्प उन राज्यों में से प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के सदन द्वारा या जहाँ दो सदन हैं वहाँ प्रत्येक सदन द्वारा पारित कर दिया जाता है तो संसद उन राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विधि द्वारा संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग की (जिसे इस अध्याय में संयुक्त आयोग कहा गया है) नियुक्ति का उपबंध कर सकेगी।
  •  पूर्वोक्त प्रकार की किसी विधि में ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध हो सकेंगे जो उस विधि के प्रयोजनों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक या वांछनीय हों।
  •  यदि किसी राज्य का राज्यपाल संघ लोक सेवा आयोग से ऐसा करने का अनुरोध करता है तो वह राष्ट्रपति के अनुमोदन से उस राज्य की सभी या किन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सहमत हो सकेगा।
  •  इस संविधान में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो संघ लोक सेवा आयोग या किसी राज्य लोक सेवा आयोग के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे ऐसे आयोग के प्रति निर्देश हैं जो प्रश्नगत किसी विशिष्ट विषय के संबंध में, यथास्थिति, संघ की या राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

अनुच्छेद- 316. सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि

  •  लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति, यदि वह संघ आयोग या संयुक्त आयोग है तो, राष्ट्रपति द्वारा और, यदि वह राज्य आयोग है तो, राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएगी
  •  परंतु प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से यथाशक्य निकटतम आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी-अपनी नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कम से कम दस वर्ष तक पद धारण कर चुके हैं और उक्त दस वर्ष की अवधि की संगणना करने में इस संविधान के प्रारंभ से पहले की ऐसी अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण किया है।
  • यदि आयोग के अध्‍यक्ष का पद रिक्त हो जाता है या यदि कोई ऐसा अध्‍यक्ष अनुपस्थिति के कारण या अन्य कारण से अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है तो, यथास्थिति, जब तक रिक्त पद पर खंड (1) के अधीन नियुक्त कोई व्यक्ति उस पद का कर्तव्य भार ग्रहण नहीं कर लेता है या जब तक अध्‍यक्ष अपने कर्तव्यों को फिर से नहीं संभाल लेता है तब तक आयोग के अन्य सदस्यों में से ऐसा एक सदस्य, जिसे संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में उस राज्य का राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उन कर्तव्यों का पालन करेगा।
  • लोक सेवा आयोग का सदस्य, अपने पद ग्रहण की तारीख से छह वर्ष की अवधि तक या संघ आयोग की दशा में पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक और राज्य आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में [बासठ वर्ष] की आयु प्राप्त कर लेने तक इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करेगा।

परंतु

  • लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति को और राज्य आयोग की दशा में राज्य के राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; 
  • लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को, अनुच्छेद 317 के खंड (1) या खंड (3) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा।
  • कोई व्यक्ति जो लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में पद धारण करता है, अपनी पदावधि की समाप्ति पर उस पद पर पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।
  • अनुच्छेद- 317. लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया जाना और निलंबित किया जाना
  • खंड (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष या किसी अन्य सदस्य को केवल कदाचार के आधार पर किए गए राष्ट्रपति के ऐसे आदेश से उसके पद से हटाया जाएगा जो उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति द्वारा निर्देश किए जाने पर उस न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 145 के अधीन इस निमित्त विहित प्रक्रिया के अनुसार की गई जाँच पर, यह प्रतिवेदन किए जाने के पश्चात्‌ किया गया है कि, यथास्थिति, अध्‍यक्ष या ऐसे किसी सदस्य को ऐसे किसी आधार पर हटा दिया जाए।
  • आयोग के अध्‍यक्ष या किसी अन्य सदस्य को, जिसके संबंध में खंड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय को निर्देश किया गया है, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में राज्यपाल उसके पद से तब तक के लिए निलंबित कर सकेगा जब तक राष्ट्रपति ऐसे निर्देश पर उच्चतम न्यायालय का प्रतिवेदन मिलने पर अपना आदेश पारित नहीं कर देता है।
  • खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, यदि लोक सेवा आयोग का, यथास्थिति, अध्‍यक्ष या कोई अन्य सदस्य  
  1. दिवालिया न्यायनिर्णीत किया जाता है,या
  2.  अपनी पदावधि में अपने पद के कर्तव्यों के बाहर किसी सवेतन नियोजन में लगता है,या
  3.  राष्ट्रपति की राय में मानसिक या शारीरिक शैथिल्य के कारण अपने पद पर बने रहने के लिए अयोग्य है, तो राष्ट्रपति, अध्‍यक्ष या ऐसे अन्य सदस्य को आदेश द्वारा पद से हटा सकेगा।

 यदि लोक सेवा आयोग का अध्‍यक्ष या कोई अन्य सदस्य, निगमित कंपनी के सदस्य के रूप में और कंपनी के अन्य सदस्यों के साथ सम्मिलित रूप से अन्यथा, उस संविदा या करार से, जो भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा या निमित्त की गई या किया गया है, किसी प्रकार से संपृक्त या हितबद्ध है या हो जाता है या उसके लाभ या उससे उद्‌भूत किसी फायदे या उपलब्धि में भाग लेता है तो वह खंड (1) के प्रयोजनों के लिए कदाचार का दोषी समझा जाएगा।

 अनुच्छेद- 318. आयोग के सदस्यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति

संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में उस राज्य का राज्यपाल विनियमों द्वारा
आयोग के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों का अवधारण कर सकेगा; और
आयोग के कर्मचारिवृंद के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों के संबंध में उपबंध कर सकेगा:
परंतु लोक सेवा आयोग के सदस्य की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात्‌ उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद- 319. आयोग के सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के संबंध में प्रतिषेध

पद पर न रह जाने पर

संघ लोक सेवा आयोग का अध्‍यक्ष भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी भी और नियोजन का पात्र नहीं होगा;

किसी राज्य लोक सेवा आयोग का अध्‍यक्ष संघ लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में अथवा किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा;

संघ लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष से भिन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष के रूप में या किसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा;

किसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष से भिन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष या किसी अन्य सदस्य के रूप में अथवा उसी या किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा।

अनुच्छेद- 320 लोक सेवा आयोगों के कृत्य

  • संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों का यह कर्तव्य होगा कि वे क्रमशः संघ की सेवाओं और राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाओं का संचालन करें।
  • यदि संघ लोक सेवा आयोग से कोई दो या अधिक राज्य ऐसा करने का अनुरोध करते हैं तो उसका यह भी कर्तव्य होगा कि वह ऐसी किन्हीं सेवाओं के लिए, जिनके लिए विशेष अर्हताओं वाले अभ्यर्थी अपेक्षित हैं, संयुक्त भर्ती की स्कीमें बनाने और उनका प्रवर्तन करने में उन राज्यों की सहायता करे।
यथास्थिति, संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग से--
  • सिविल सेवाओं में और सिविल पदों के लिए भर्ती की पद्धतियों से संबंधित सभी विषयों पर,
  • सिविल सेवाओं और पदों पर नियुक्ति करने में तथा एक सेवा से दूसरी सेवा में प्रोन्नति और अंतरण करने में अनुसरण किए जाने वाले सिद्धांतों पर और ऐसी नियुक्ति, प्रोन्नति या अंतरण के लिए अभ्यर्थियों की उपयुक्तता पर,
  • ऐसे व्यक्ति पर, जो भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार की सिविल हैसियत में सेवा कर रहा है, प्रभाव डालने वाले, सभी अनुशासनिक विषयों पर, जिनके अंतर्गत ऐसे विषयों से संबंधित अभ्यावेदन या याचिकाएँ हैं,
  • ऐसे व्यक्ति द्वारा या उसके संबंध में, जो भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन या भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन सिविल हैसियत में सेवा कर रहा है या कर चुका है, इस दावे पर कि अपने कर्तव्य के निष्पादन में किए गए या किए जाने के लिए तात्पर्यित कार्यों के संबंध में उसके विरुद्ध संस्थित विधिक कार्यवाहियों की प्रतिरक्षा में उसके द्वारा उपगत खर्च का, यथास्थिति, भारत की संचित निधि में से या राज्य की संचित निधि में से संदाय किया जाना चाहिए,
  • भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार या भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन सिविल हैसियत में सेवा करते समय किसी व्यक्ति को हुई क्षतियों के बारे में पेंशन अधिनिर्णित किए जाने के लिए किसी दावे पर और ऐसे अधिनिर्णय की रकम विषयक प्रश्न पर परामर्श किया जाएगा और इस प्रकार उसे निर्देशित किए गए किसी विषय पर तथा ऐसे किसी अन्य विषय पर, जिसे, यथास्थिति, राष्ट्रपति या उस राज्य का राज्यपाल उसे निर्देशित करे, परामर्श देने का लोक सेवा आयोग का कर्तव्य होगा :
  • परंतु अखिल भारतीय सेवाओं के संबंध में तथा संघ के कार्यकलाप से संबंधित अन्य सेवाओं और पदों के संबंध में भी राष्ट्रपति तथा राज्य के कार्यकलाप से संबधित अन्य सेवाओं और पदों के संबंध में राज्यपाल उन विषयों को विनिर्दिष्ट करने वाले विनियम बना सकेगा जिनमें साधारणतया या किसी विशिष्ट वर्ग के मामले में या किन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों में लोक सेवा आयोग से परामर्श किया जाना आवश्यक नहीं होगा। 
  • खंड (3) की किसी बात से यह अपेक्षा नहीं होगी कि लोक सेवा आयोग से उस रीति के संबंध में, जिससे अनुच्छेद 16 के खंड (4) में निर्दिष्ट कोई उपबंध किया जाना है या उस रीति के संबंध में, जिससे अनुच्छेद 335 के उपबंधों को प्रभावी किया जाना है, परामर्श किया जाए।
  • राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा खंड (3) के परंतुक के अधीन बनाए गए सभी विनियम, बनाए जाने के पश्चात्‌ यथाशीघ्र, यथास्थिति, संसद के प्रत्येक सदन या राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के समक्ष कम से कम चौदह दिन के लिए रखे जाएँगे और निरसन या संशोधन द्वारा किए गए ऐसे उपांतरणों के अधीन होंगे जो संसद के दोनों सदन या उस राज्य के विधान-मंडल का सदन या दोनों सदन उस सत्र में करें जिसमें वे इस प्रकार रखे गए हैं।

अनुच्छेद- 321. लोक सेवा आयोगों के कृत्यों का विस्तार करने की शक्ति

 यथास्थिति, संसद द्वारा या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाया गया कोई अधिनियम संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा संघ की या राज्य की सेवाओं के संबंध में और किसी स्थानीय प्राधिकारी या विधि द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या किसी लोक संस्था की सेवाओं के संबंध में भी अतिरिक्त कृत्यों के प्रयोग के लिए उपबंध कर सकेगा।

 अनुच्छेद- 322. लोक सेवा आयोगों के व्यय

 संघ या राज्य लोक सेवा आयोग के व्यय, जिनके अंतर्गत आयोग के सदस्यों या कर्मचारिवृंद को या उनके संबंध में संदेय कोई वेतन, भत्ते और पेंशन हैं, यथास्थिति, भारत की संचित निधि या राज्य की संचित निधि पर भारित होंगे।

 अनुच्छेद-323. लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन

संघ आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर उन मामलों के संबंध में, यदि कोई हों, जिनमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अस्वीकृति के कारणों को सपष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन की प्रति संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।

राज्य आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राज्य के राज्यपाल को आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और संयुक्त आयोग का यह कर्तव्य होगा कि ऐसे राज्यों में से प्रत्येक के, जिनकी आवश्यकताओं की पूर्ति संयुक्त आयोग द्वारा की जाती है, राज्यपाल को उस राज्य के संबंध में आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और दोनों में से प्रत्येक दशा में ऐसा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर, राज्यपाल उन मामलों के संबंध में, यदि कोई हों, जिनमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन की प्रति राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.