सिवनी जिले का इतिहास |वर्तमान में सिवनी जिला |सिवनी जिले के नामकरण |Seoni Jile ka itihas| Seoni Jile ka Namkaran
वर्तमान में सिवनी जिला
- जबलपुर संभाग के अंतर्गत सिवनी आदिवासी वाहुल्य जिले का गठन वर्ष 1956 में किया गया था।सिवनी जिले को मध्यप्रदेश के लखनऊ के रूप में जाना जाता है।
- सिवनी जिला सतपुड़ा पठार के एक संकीर्ण, उत्तर-दक्षिण खंड पर स्थित है और अक्षांश 21 36 ′ और 22 57′ उत्तर और देशांतर 79 19 ′ और 80 17 देशांतर के बीच स्थित है।
- सिवनी जिले का क्षेत्रफल 8758 वर्ग किमी है और जिले की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से महिला कार्य सहभागिता की एक अच्छी संख्या के साथ कृषि पर निर्भर है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की कुल जनसंख्या 13,79,131 है, जिसमें से 12,15,241 ग्रामीण आबादी और 1,63,890 शहरी आबादी है।
- राज्य के औसत की तुलना में अनुसूचित जनजाति की आबादी 429104 है।सिवनी जिले की पुरुष और महिला साक्षरता दर क्रमशः 72.1 प्रतिशत और 63.7 है।
सिवनी जिले की जनगणना 2011
- ग्रामो की संख्या -1587
- परिवारों की संख्या-314215
- जनसंख्या-1379131
- साक्षरता दर-72.12
- लिंगानुपात-982
सिवनी जिला प्रशासनिक नजर से
- सिवनी जिले की आठ तहसीलों बरघाट, छपारा, धनोरा, घंसौर, केवलारी, कुरई, लखनादौन सिवनी मे कुल 645 ग्राम पंचायतों के अंतर्गत 1587 ग्राम है ,जिनमे 8 गाँव वीरान गाँव है ।
- जिले मे कुल 19 थाने एवं 5 पुलिस चौकियाँ स्थापित है ।
- सिवनी जिला 6 राजस्व उपखंडो , ग्रामीण विकास के लिए 8 विकास खंड एवं 03 नगरीय निकाय मे प्रशासकीय रूप से विभाजित है ।
सिवनी जिले के राजस्व उपखंड
सिवनी लखनादौन घंसौर केवलारी बरघाट कुरई
सिवनी जिले के ग्रामीण
विकासखंड
लखनादौन,छपारा,कुरई,केवलारी,बरघाट,धनोरा,घंसौर
सिवनी जिले के नगरीय
निकाय
- सिवनी (नगर पालिका परिषद )
- लखनादौन (नगर पंचायत )
- बरघाट(नगर पंचायत)
सिवनी जिले का गठन
सिवनी जिले का निर्माण सन 1923 में किया गया था। इसके बाद 1942 तक यह
स्वतंत्र जिला रहा। तत्पश्चात इसे छिन्दवाडा जिला में सम्मिलित किया गया। तब यह
छिन्दवाडा जिले का अनुभाग रह गया। सन 1956 में भारत में राज्यों का पुनर्गठन हुआ
और सिवनी जिला 1 नवंबर 1956 को पुनः स्वतंत्र जिला बना। नवीन जिला बनने पर प्रथम
कलेक्टर के रूप में जनाब ए.के.खान (आई.ए.एस.)
द्वारा एक अक्टूबर 1956 को पदभार ग्रहण किया गया। आप 14 नवंबर 1958 तक इस
पद पर रहे । इसके बाद दूसरे कलेक्टर श्री जे.एम. कोचर (आई.ए.एस.) 15 नवंबर 1958 से
11 अक्टूबर 1960 तक पदस्थ रहे।
सिवनी जिले का इतिहास Seoni Jile ka itihas
- इतिहास के पृष्ठों में यह जिला मंडला के गौंड राजाओं के 52 गंढों में से एक महत्वपूर्ण स्थल रहा है। नगर मुख्यालय में तीन गढ चावडी, छपारा और आदेगांव प्रमुख थे।
- गौंड राजाओं के पतन के पश्चात सन 1700 ई. में नागपुर के भोसले के साम्राज्य के अधीन आ गया। सत्ता का केन्द्र छपारा ही था। सन् 1774 में छपारा से बदलकर मुख्यालय सिवनी हो गया। इसी समय दीवानगढी का निर्माण हुआ और सन् 1853 में मराठों के पतन एवं रघ्घुजी तृतीय की मृत्यु निःसंतान होने के कारण यह क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभाव में आ गया।
- सन् 1857 की क्रान्ति के पश्चात कम्पनी का समस्त शासन ब्रिटिश हुकूमत के अधीन हो गया। मुख्यालय में दीवान साहब का सिवनी ग्राम, मंगलीपेठ एवं भैरोगंज ग्राम मिलकर सिवनी नगर बना।
- सन् 1867 में सिवनी नगरपालिका का गठन हुआ।
- सन् 1909 तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर द्वारा विस्तार करते हुए रेल्वे लाईन का विचार किया। सन् 1904 में बंगाल नागपुर नैरोगेज रेल्वे का आगमन हुआ।
- सन् 1938 में बिजली घर के निर्माण ने नगर में एक नये युग का सूत्रपात किया
- सन् 1939 से 1945 के मध्य द्वितीय विश्व युद्व ने अंग्रेजी साम्राज्य की जडे हिला दी।
- नागपुर से जबलपुर एन.एच. 7 के मध्य सिवनी ना केवल प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था बल्कि जंगल अधिक होने के कारण अंग्रेजों के लिए सुरक्षित स्थान भी था।
- महात्मा गांधी के अथक प्रयासों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अमर बलिदान से 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ।
- सिवनी जिला सन् 1956 में पुनः जिला बना। जिला बनने पर प्रथम कलेक्टर श्री ए.एस. खान पदस्थ हुए।
सिवनी जिले के नामकरण Seoni Jile ka Namkaran
नामकरण के संबंध में धारणा
सिवनी
नगर का नाम सिवनी क्यों पडा इस संबंध में प्रथम धारणा यह है कि यहां कभी सेवन
वृक्षों का बाहुल्य था। कदाचित इसी कारण इस नगर का नाम सिवनी पडा है। आज भी जिले
में यत्र-तत्र सेवन के वृक्ष पाये जाते है।
धारणा 02
शैव
मत के अनुयायी शिव भक्तों का बाहुल्य एवं भगवान शिव के इष्टदेव के रूप में पूजा
अर्चना की अधिकता के कारण इस नगर का नाम शिवनी था, कलान्तर
में इसका रूप बिगडकर अप्रभ्रंश होने के बाद सिवनी हो गया होगा।
धारणा 03
वीरगाथा काल (सम्वत् 1050 से 1375 तक) में नैनागढ के गोंड राजा इन्दरमन (इन्द्रमन) की बहिन सोना रानी अनुपम सुन्दरी
थी। सोना रानी हिर्री नदी विकासखंड केवलारी ग्राम अमोदागढ के पास ग्राम खोहगढ में अपने भाई के साथ रहती थी। सोना रानी के पिता श्री सोमदेव ने उसकी
शादी के लिये एक शर्त रखी कि जो वीर शेर से लडने की क्षमता रखता हो उसे ही सोना
रानी का विवाह किया जायेगा।
आल्हा एवं उदल महोबा चंदेल राजा परमरद (राजा
परमाल) के महान पराक्रमी योद्वा (सेनानायक) थे। ऊदल
की इच्छा थी कि अल्हा का विवाह सोना रानी से हो। अतः उदल ने अपने बडे भाई आल्हा को
सोना रानी से विवाह कराने की सलाह दी। आल्हा ने कहा कि नैनागढ का राजा बहुत ही
बलशाली है तथा उसके पास अस्त्र-शस्त्र भी बहुत है। उसने सोना से विवाह करने की
इच्छा से आये 52 वीरवरों को बंदी बनाया लिया है। अतः
आल्हा ने विषम परिस्थिति को भांप कर मना कर दिया, किन्तु
उदल हतोत्साहित नहीं हुआ। उसने हमला बोल दिया। इन्दरमन के साथ घमासान युद्व हुआ और
ऊदल जीतकर सोना रानी को ले गया। तत्पश्चात आल्हा के साथ सोना रानी का विवाह
सम्पन्न हुआ। सोना रानी के नाम पर इस नगर का नाम सिवनी पडा।
धारणा 04
आद्य शंकराचार्य
दक्षिण दिशा से उत्तर भारत की यात्रा करते हुए जब यहां से निकले तो यहां की
प्राकृतिक सम्पदा से प्रभाविक होकर उन्होंने इसे श्रीवनी के नाम से विभूषित किया।
इसीलिये इसे सिवनी के नाम से जानते है।
श्रीवनी का अर्थ होता है बेल के फलों का वन।
इसके पत्ते शिवलिंग पर चढाते हैं और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इसके फल यज्ञ हवन में
काम आते है। सिवनी नगर में बेल के वनों की अधिकता के कारण इसका नाम श्रीवनी पडा हो
और संभव है कालान्तर में अप्रभ्रंश होकर इसका नाम सिवनी हो गया।
मुगलों का आक्रमण जब गढ मंडला में हुआ तब उस
आक्रमण को विफल करने के लिए नागपुर से राजा भोसले की सेना और गढ मंडला से गोंड
राजा की सेना गढ छपारा में आकर रूकी । सेना के रूकने के स्थान को छावनी कहा जाता
है सेना के रूकने के क्षेत्र धूमा, लखनादौन,छपारा,सिवनी, खवासा
रहे है। चूंकि सिवनी सैनिकों के लिए सर्वसुविधा युक्त स्थान था। अतः कुछ अंग्रेज
विद्वानों का मत है कि यह विशाल सैनिक क्षेत्र छावनी रहा है। कालान्तर में छावनी
का अपभ्रंश रूप सिवनी हो गया।
सिवनी जिले के पर्यटन स्थल
- दलसागर तालाब
- दिगम्बर जैन मंदिर
- मठ मंदिर
- शासकीय सुधारालय
- प्रोटेस्टेंट चर्च
- केथोलिक चर्च
- बड़ी जियारत
- अमोदागढ़
- शहीद स्मारक टुरिया
- संजय सरोवर, भीमगढ़
- बंजारी मंदिर छपारा
- भग्न किला छपारा
- वैष्णव मंदिर सिलादेही
- शिव मंदिर कातलबोड़ी
- ललिताम्बा मातृध्णाम कातलबोड़ी
- बैनगंगा उद्गम स्थल मुंडारा
- महाकालेश्वर
- अम्बामाई मंदिर आमागढ़
- काली मंदिर आष्टा
- गुरू रत्नेश्वर धाम दिघौरी
- पायरी विश्रामगुह घंसोर
- दिगम्बर जैन मंदिर लखनादौन
- रिछारिया बाब मंदिर धनौरा
- शिवधाम मठघोघरा
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