मध्य प्रदेश में भाषा एवं साहित्य | Language and literature in Madhya Pradesh
मध्य प्रदेश में भाषा एवं साहित्य
भाषा शब्द संस्कृत की भाष् धातु से निर्मित है, जिसका अर्थ है-बोलना या कहना। अर्थात्
भाषा वह साधन है, जिसके माध्यम से बोला या कहा जाता है।
वस्तुतः भाषा ध्वनि प्रतीकों की एक सुव्यवस्थित व्यवस्था है, जिसके द्वारा मानव समुदाय परस्पर अपने
भावों व विचारों की अभिव्यक्ति अथवा संप्रेषण करता है।
भाषा के प्रकार
- मौखिक भाषा
- लिखित भाषा
- सांकेतिक भाषा
मौखिक भाषा- भाषा का वह रूप, जिसके द्वारा हम अपने विचार एवं भाव
बोलकर प्रकट करते हैं मौखिक भाषा कहलाता है।
लिखित भाषा- भाषा का वह रूप, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को
किसी दूसरे के सामने लिखकर प्रकट करता है, लिखित भाषा कहलाता है।
सांकेतिक भाषा- भाषा का वह रूप, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को
किसी दूसरे के सामने संकेतों के द्वारा प्रकट करता हो, सांकेतिक भाषा कहलाता है।
मध्य प्रदेश में भाषा का विकास
भारत में 4 भाषा परिवार पाए जाते हैं
- भारोपीय
- द्रविड़
- आस्ट्रिक
- चीनी तिब्बती
भारत एवं मध्य प्रदेश की राजकीय भाषा हिन्दी
भारोपीय परिवार की भाषा है।
भारत में विभिन्न भाषा भाषी लोगों के प्रतिशत
के आधार पर भारोपीय परिवार भारत का सबसे बड़ा भाषा परिवार है। लगभग 73 प्रतिशत भारतीय इसी भाषा परिवार
भाषाएं बोलते हैं।
मध्य प्रदेश की प्रमुख बोलियां
- बुंदेली
- मालवी
- बघेली
- निमाड़ी
- ब्रजभाषा
- मध्य प्रदेश हिन्दी भाषी राज्य है, जहां हिन्दी अभिव्यक्ति का मुख्य माध्यम है, किन्तु इसके विभिन्न भागों में बुंदेली, मालवी, बघेली, निमाडी एवं ब्रज आदि बोलियां बोली जाती हैं। राज्य की राजधानी भोपाल , सिरोंज, बुरहानपुर, कुरवाई आदि क्षेत्रों में हिन्दी एवं उर्दू भाषा के मिश्रित रूप तथा जबलपुर जिले में बुँदेली एवं बघेली के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता है।
- मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की करेली तहसील के मोहद गांव में संस्कृत भाषा का प्रयोग किया जाता है।
- भारतीय संविधान के भाग 17 का शीर्षक राजभाषा है, जिसके अंतर्गत अनुच्छेद-343 से 351 तक संघ, राज्यों, उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के लिए भाषा संबंधी प्रावधान तथा हिन्दी भाषा के विकास के लिए निर्देश दिये गये हैं।
- मध्य प्रदेश में सामाजिक एवं सांस्कृतिक विभिन्नता होने के कारण अनेक प्रकार की बोलियाँ बोली जाती हैं। बोली भाषायी विकास की दृष्टि से प्रारंभिक अवस्था में होती है जिसका मूल संबंध किसी क्षेत्र विशेष में लोकभाषा के रूप में किया जाता है।
बुँदेली बोली
- पश्चिमी हिन्दी की प्रमुख बोली बुँदेली का विकास शैरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। इसका नामकरण ब्रिटिश कालीन भाषाविद् जार्ज ग्रियर्सन द्वारा किया गया । बुँदेली प्रदेश के छतरपुर, पन्ना, दमोह, सागर, टीकमगढ़ दतिया एवं नरसिंहपुर जिलों में विस्तृत है। इसके अतिरिक्त बुँदेली महराष्ट्र एवं उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती जिलों में भी बोली जाती है।
- बुंदेली का कुछ उपबोलियां पंवारी, लौंधाती तथा खटौला हैं। जबकि भदावरी, कोष्ठी, निभट्टा तथा कुण्डरी बुँदेली का मिश्रित रूप हैं।
- बुँदेली भाषा साहित्य की दृष्टि से समृद्ध बोली है। केशव, पदमाकर, लाल कवि गंगाधर व्यास आदि बुँदेली साहित्य के प्रमुख रचनाकार हैं।
- कवि महेश कुमार कटारे सागर ने बुँदेली शब्दकोश का संकलन किया है। इन्हें वर्ष 2017 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मालवी
- राजस्थानी हिन्दी की प्रमुख बोलियों में मालवी बोली का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। मालवी मूल रूप से मारवाड़ी से संबंधित है, जबकि शब्द भंडार की दृष्टि से इसमें बंुदेली, गुजराती एवं राजस्थानी का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
- डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने इसे दक्षिणी राजस्थानी कहा, जबकि डॉ. कृष्ण लाल हंस के अनुसार ध्वनि तथा रूप की दृष्टि से मालवी पश्चिमी हिन्दी है।
- मालवी विशुद्ध रूप से इंदौर, उज्जैन, देवास, रतलाम, एवं धार में बोली जाती है। जबकि होशंगाबाद, गुना नीमच, भोपाल आदि में मालवी कुछ परिवर्तित स्वरूप में बोली जाती है।
बघेली भाषा
- पूर्वी हिन्दी की बोली बघेली का विकास अर्द्धमागधी अपभ्रंश से हुआ है। बघेली बघेलखण्ड के सीधी, सतना, रीवा, एवं शहडोल में बोली जाती है।
- तिरहरि एवं गरोहा बघेली की उपबोलियां हैं। इसे बघेलखण्डी , रिमही और रिवई भी कहा जाता हैं।
- डॉ. श्री निवास शुक्ल सीधी ने बघेली शब्दकोश का संकलन किया है। साहित्य रचना की दृष्टि से बघेली का विशेष प्रोत्साहन नहीं मिला, फिर भी महाराज विश्वनाथ सिंह की परम धर्म विजय और विश्वनाथ प्रकार जैसी रचनाओं के अतिरिक्त बघेली में कृुछ लोकगीतम एवं लोक कथाओं का भी सृजन हुआ है।
निमाड़ी
- पश्चिमी हिन्दी की बोली निमाड़ी का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। जॉर्ज ग्रियर्सन ने इसे दक्षिणी हिन्दी कहा है।
- निमाड़ी बोली मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र खंडवा, खरगोन, बड़वानी, धार में विस्तृत है। इस बोली पर मुख्यतः मालवी, मारवाड़ी, गुजराती एवं मराठी का प्रभाव देखा जाता है।
- निमाड़ी बोली में साहितय का पर्याप्त सृजन हुआ है। इस क्षेत्र के प्रसिद्ध साहित्यकार संत सिंगाजी है, तथा निमाड़ी साहित्य का इतिहास नाम पुस्तक डॉ. श्रीराम परिहा ने लिखी है।
ब्रज
- ब्रज पश्चिमी हिन्दी की प्रधान बोली है। यह बोली ग्वालियर, भिण्ड एवं मुरेना में प्रचलित है। ब्रजभाषा साहित्य सृजन क दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। सूरदास, मीराबाई एवं रसखान इस भाषा के प्रमुख रचनाकार हैं।
मध्य प्रदेश की जानजातीय बोलियाँ
- भीली
- गोंडी
- कोरकू
भीली
- भीली भारतीय आर्य परिवार की भाषा है। यह भाषा मध्य प्रदेश के भील बाहुल्य क्षेत्र झाबुआ एवं अलीराजपुर में बोली जाती है।
गोंडी
- गोंडी मध्य प्रदेश की गोण्ड जनजातियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है, जो मध्य प्रदेश के मुख्यतः शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, बालाघाट, छिंदवाड़ा, मंडला, सिवनी, डिंडौरी जिलों में बोली जाती हैं
कोरकू
- कोरकू, कोरकू आदिवासियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है, जो ऑस्ट्रो एशियाई भाषा परिवार की मुण्डा शाखा की एक भाषा है। यह भाषा मध्य प्रदेश के होशंगाबाद एवं छिंदवाड़ा जिलों में कोरकू जनजाति द्वारा बोली जाती है।
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