कलिंगराज खारवेल | Kalingraj ka irtihas
कलिंगराज खारवेल
- प्राचीन भारत में कलिंग एक समृद्ध राज्य था। प्राचीन कलिंग के राज्य-क्षेत्र के अन्तर्गत पुरी और गंजाम के जिले, करक का कुछ भाग, उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम को कुछ प्रदेश तथा दक्षिण भारत के आधुनिक तेलगू भाषा-भाषी प्रान्त का कुछ क्षेत्र सम्मिलित था।
- कलिंग देश के निवासी स्वतंत्रता प्रेमी थे, यही कारण है कि अशोक उन पर आसानी से प्रभुत्व नहीं जमा सका।
- अशेाक की मृत्यु के उपरान्त जब साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई और उसके प्रान्त साम्राज्य से विलग हो अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने लगे तब कलिंग ने भी अपनी स्वतंत्रता का जयघोष कर दिया।
कलिंग चेदि राजवंश
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कलिंग के चेदि राजवंश का संस्थापक महामेघवाहन नामक व्यक्ति
था।अतः इस वंश का नाम महामेघवाहन वंश भी पङ गया।
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इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली
राजा खारवेल था। खारवेल प्राचीन भारतीय इतिहास के महानतम सम्राटों में से एक है।
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हाथीगुंफा अभिलेख खारवेल के राज्यकाल का इतिहास जानने
का एकमात्र स्रोत है।
कलिंग के चेदि राजवंश का संस्थापक महामेघवाहन नामक व्यक्ति
था।अतः इस वंश का नाम महामेघवाहन वंश भी पङ गया।
इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली
राजा खारवेल था। खारवेल प्राचीन भारतीय इतिहास के महानतम सम्राटों में से एक है।
हाथीगुंफा अभिलेख खारवेल के राज्यकाल का इतिहास जानने
का एकमात्र स्रोत है।
हाथी गुम्फा अभिलेख
- भुवनेश्वर (पुरी जनपद) से कुछ दूरी पर उदयगिरि की पहाड़ियों की जैन गुफाओं में हाथीगुम्फा नाम से विश्रुत एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। हाथी गुम्फा अभिलेख प्राकृत भाषा में है। इस अभिलेख में कलिगराज खारवल नरेश का विशद विवरण प्राप्त हुआ है।
- इस विवरण से महाराज खारवल के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
- खारवेल कलिंग पर आधिपत्य स्थापित करने वाले महामघ वाहन परिवार का था।
- सम्भवत: नन्दों के तीन सौ वर्षों के उपरान्त चेदि वंश का कलिंग राज्य पर प्रभुत्व स्थापित हुआ था।
- हाथी गुम्फा अभिलेख में प्रथम तथा दूसरे चेदि सम्राट् के स्पष्ट नाम नहीं मिलते। खारवेल चेदि वंश का तीसरा सम्राट् था।
- खारवेल की तिथि-निर्धारण में सर्वाधिक सहायता हमें हाथी गुम्फा अभिलेख से मिलती है। हाथी गुम्फा अभिलेख अतएव खारवेल का समय ई.पू. प्रथम शताब्दी मानना संगत और समीचीन होगा। अधिकांश विद्वानों ने इसी तिथि को समर्थन किया है।
खारवेल-एक योग्य शासक-
- खारवेल ने युवावस्था के प्रारम्भिक 15 वर्षों में विविध विद्याओं के अध्ययन में बिताये। लेख, गणित, अर्थशास्त्र एवं शासन-व्यवहार की शिक्षा युवराज के लिए आवश्यक थी।
- 24वें वर्ष में, राज्याभिषेक होने के बाद अपने शासन के दूसरे वर्ष में शातकर्णी की शक्ति की अवहेलना कर पश्चिम की ओर विशाल सेना (हाथी, घोडे, रथ एवं पैदल) भेजी, जिसने कृष्णा नदी (कन्हवेणानदी) पहुँच कर ऋषिक नगर (असिक नगर) को त्रस्त किया। किन्तु इस आक्रमण का रूप स्पष्ट नहीं है।
- खारवेल सेना का शातकर्णी से संघर्ष का कोई प्रमाण नहीं मिलता और न ही ऋषिक नगर (असिक) पर कलिंग के अधिकार का कोई उल्लेख आया है। संभवत: दोनों में मैत्री सम्बन्ध थे एवं खारवेल सेना ऋषिक नगर से बिना किसी परेशानी के गुजर गई।
- खारवेल मात्र विजेता ही नहीं था बल्कि एक सुशासक तथा कला पोषक भी था। अपने शासनकाल के प्रथम वर्ष में कलिंग में सार्वजनिक हित के कार्य किए। आधी से गिरे गोपुर, परकोटा आदि का जीर्णोद्धार करवाया एवं शीतल जल से सीढ़ियों से अलंकृत तड़ागो की रचना की, जिसमें एक लाख मुद्रायें व्यय हुई। प्रजा कल्याण हेतु 35 लाख मुद्रायें व्यय किये जाने का उल्लेख भी आया है।
- अपने शासन के तृतीय वर्ष में नागरिकों के आमोद-प्रमोद के लिए कलापूर्ण नृत्य संगीत, नाटक एवं भोज आदि सामाजिक उत्सवों का प्रबंध किया। उसने शासन के 5वें वर्ष में एक बड़ा कार्य पूर्ण किया।
- उसने शासन के पाँचवें वर्ष में तनसुलि से अपनी राजधानी में एक नहर का विस्तार करवाया जिसका निर्माण 300 वर्ष पहले मगध-नरेश नन्दराज ने किया था।
- अष्टम वर्ष में उसने उत्तर भारत पर आक्रमण किया। सकी सेना बारबरा पहाड़ियों (गया जिला) को पार करती हुई आगे बढ़ी। मार्ग में पड़ने वाले अनेक दुर्गों को नष्ट कर दिया। राजगृह को घेर लिया गया। उसके आक्रमण से यवन राजा दमित (डेमेट्रियस) की सेना में आतंक छा गया।
- शासन के नवें वर्ष में 38 लाख मुद्रायें व्यय कर एक महाविजय प्रसाद का निर्माण करवाया। 11वें वर्ष पलायित शत्रुओं के लूट के माल को (अनेक रत्न आदि), कब्जे में लेकर पिथुण्ड नामक प्राचीन नगर जिसकी स्थापना एक पूर्ववर्ती नरेश ने की थी, ध्वंस कर (ध्वंसित नगर) एक बड़े कृषि फार्म में परिवर्तित कर दिया।
- 13वें वर्ष में कुमारी पर्वत (उदयगिरि-खण्डगिरि पहाड़ी) पर जैन भिक्षुओं के वर्षाकाल के वास हेतु आश्रय गृह बनवाये। पाभार नामक स्थान पर तपस्वियों आदि के लिये स्तम्भों का निर्माण करवाया। जैन धर्मावलम्बी होते हुए भी सब धमों के प्रति आदर भाव रखता था, अत: वह सभी देवायतनों के जीर्णोद्धार हेतु सहयोग करता था। उसे सभी सम्प्रदायों का पूजक (सब पासंड पूजकों) कहा गया है।
- हाथी गुम्फा अभिलेख से ज्ञात होता है कि खारवेल ने कलिंगाधिपति की उपाधि धारण की थी। उसके लिए अप्रतिहित वाहिनी, बलचक्रधर, प्रवृत्तचक्र, एवं महाविजय आदि विशेषण प्रयुक्त हुए हैं जो उसकी सफलताओं के सर्वथा अनुरूप हैं।
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