चालुक्य वंश का इतिहास | Chalyukya Vansh ka itiahs

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चालुक्य

दक्षिण भारत पर शासन करने वाले चालुक्यों की तीन शाखायें थीं
  • 01 बादामी के चालुक्य
  • 02 कल्याणी के चालुक्य तथा
  • 03 वेंगीं के चालुक्य।

बादामी के पश्चिमी चालुक्य (500-750  ई.)
  • छठी से आठवीं शताब्दी तक क्षिणापथ पर चालुक्य वंश की जिस शाखा का शासन रहा उसका स्थान वातापी था इसलिये उसे वातापी या बादामी का चालुक्य वंश कहते हैं। इसी शाखा को पूर्वकालीन पश्चिमी चालुक्य ‘ भी कहां जाता है। वातापी या बादामी वर्तमान कर्नाटक राज्य के बीजापुर जिले में स्थित था।
  • चालुक्य कन्नड़ थे।
  • बादामी के चालुक्य वंश का संस्थापक पुलकेशिन प्रथम (535  ईस्वी से 566  ईस्वी ) था।
  • कीर्तिवर्मन प्रथम प्रारंभिक चालुक्यों का एक महत्वपूर्ण शासक था। इसे वातापी का प्रथम निर्माता भी कहा जाता है।
  • मंगलेश ने वातापी में ‘ महाविष्णुगृह ‘ बनवाया। इसने बादामी के गुहा मंदिर का निर्माण भी पूरा कराया जिसका प्रारंभ कीर्तिवर्मन ने किया था।
  • पुलकेशिन द्वितीय चालुक्यों का सर्वाधिक शक्तिशाली तथा योग्य शासक था।
  • इसकी उपलब्धियों की जानकारी एहोल अभिलेख से मिलती है। इसे पल्लव शासक नरसिंह वर्मन प्रथम ने हराया।
  • पुलकेशिन ने शासक के 36 वें वर्ष में फारस के शासक खुसरो द्वितीय के दरबार में अपना एक दूतमंडल भेजा था।
  • विनयादित्य के समय पट्टडकल के विशाल मंदिर का निर्माण हुआ।
  • विक्रमादित्य द्वितीय भी चालुक्यों का एक प्रमुख शासक था। इसने पल्लवों की राजधानी कांची पर अधिकार कर लिया था।
  • कीर्तिवर्मन द्वितीय बादामी के चालुक्य वंश का अंतिम शासक था। इस राष्ट्रकूट नरेंश दंतिदुर्ग तथा कृष्ण तृतीय ने 757  ई. में हरा दिया।

कल्याणी के चालुक्य ( 750-1150  ई. )
  • कल्याणी के चालुक्य वंश का संस्थापक तैलप द्वितीय था।
  • विक्रमादित्य पंचम (1008-1015  ई. ) भी  चालुक्यों का एक प्रमुख शासक था।
  • सोमेश्वर प्रथम (1043-1068 ई. ) ने अपनी राजधानी मान्यखेत से कल्याणी स्थानांतरित की तथा वहां पर अनेक सुंदर भवनों का निर्माण करवाया। सोमेश्वर ने स्वेच्छा से तुंगगभद्रा नदी में डूबकर मृत्यु प्राप्त कर ली थी ।
  • विक्रमादित्य पष्ठ ( 1076-1226  ईस्वी ) कल्याणी के चालुक्यों का सबसे महान शासक था।
  • 1076  ई. में इसने राज्यारोहण के समय एक नया संवत चलाया जिसे ‘ चालुक्य-विक्रम संवत ‘ कहते हैं। इसने 50  वर्षों तक शासन किया।
  • उसके दरबार में विक्रमांकदेवचरित के रचयिता बिल्हण तथा मिताक्षरा के लेखक विज्ञानेश्वर निवास करते थे। बिल्हण उनके राजकवि थे तथा विज्ञानेश्वर उसके मत्री थे। इसने विक्रमपुर नामक एक नगर बसाया वहां भगवान विष्णु का मंदिर एवं एक विशाल झील का निर्माण कराया।
  • सोमेश्वर तृतीय (1126-1138  ई. ) ने मानसेल्लास नामक शिल्पशास्त्र के प्र्रसिद्ध ग्रंथ  की रचना की।
  • सोमेश्वर चतुर्थ ( 1181-1189  ईस्वी ) कल्याणी के चालुक्यों का अंतिम शासक था।

वेंगी के चालुक्य
  • वेंगी ( आधुनिक गोदावरी जिले में स्थित पेढ्ढवेगी ) का प्राचीन राज्य आधुनिक आंध्र प्रदेश की गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के मध्य में था।
  • वातापी के चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय ने इस जीतकर अपने छोटे भाई विष्णुवर्द्धन को यहां का उपराजा नियुक्त किया था जिसने आगे स्वतंत्र चालुक्य वंश की स्थापना की  जिसे पूर्वी चालुक्य वंश भी कहां जाता है।
  • विष्णुवर्द्धन वेंगी के चालुक्यों का पहला शासक था। इसने वेंगी को अपनी राजधानी बनाया तथा 615  ईस्वी से 633 ईस्वी तक शासन किया।
  • विजयादित्य द्वितीय ( 799-887  ई. ) भी इस वंश का एक प्रमुख शासक था। इसे 108  मंदिरों को बनवाने का श्रेय दिया जाता है।
  • विजयादित्य सप्तम इस वंश का अंतिम शासक था।

त्रिपक्षीय संघर्ष

  • राजपूत काल में कन्नौज ( आधुनिक उत्तरप्रदेश का फर्रूखाबाद जिला ) के प्रभुत्व को लेकर राष्ट्रकूट, पाल एवं गुर्जर-प्रतिहारों में लंबें समय तक युद्ध हुआ। इसे त्रिपक्षीय संघर्ष कहते हैं। इसमें अतं में गुर्जर-प्रतिहारों की विजय हुई।

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