महाजनपद काल सामान्य ज्ञान |Mahajanpad Kaal Gk in Hindi
वैदिक युग के जन पहले जनपद और फिर अब महाजनपद
के रूप में विकसित हो गए। महाजनपदों का विस्तार उ.भारत में पाकिस्तान और दक्षिण
में गोदावरी तक हुआ। 15 महाजनपद नर्मदा से उत्तर में है जबकि
एक अश्मक, नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।
बौद्ध ग्रन्थ अगुत्तरनिकाय एवं महावस्तु तथा जैन ग्रन्थ भगवती सूत्र से 16 महाजनपदों के बारे में सूचना मिलती
है। उसी तरह भगवती सूत्र में बंग एवं मलय महाजनपद की चर्चा की गयी है। अंगुत्तर
निकाय में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। सबसे
अधिक जनपद गंगा घाटी में देखे जा सकते हैं।
महाजनपद
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राजधानी
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काशी
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वाराणसी
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कोशल
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श्रावस्ती
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अंग
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चम्पा
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चेदि
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शक्तिमती
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वत्स
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कौशाम्बी
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कुरु
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इंद्रप्रस्थ
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पांचाल
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अहिच्छत्र, काम्पिल्य
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मत्स्य
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विराटनगर
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सूरसेन
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मथुरा
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अश्मक
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पैठान/प्रतिष्ठान/पोतन/पोटिल
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अवन्ति
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उज्जैन, महिष्मति
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गांधार
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तक्षशिला
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कम्बोज
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हाटक/राजपुर
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वज्जि
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वैशाली
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मल्ल
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कुशीनगर, पावा
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मगध
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गिरिव्रज - राजगृह
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अंग- इसकी राजधानी चम्पा थी। यह आधुनिक भागलपुर
के निकट था। मगध के शासक बिम्बिसार ने यहाँ के शासक ब्रह्मदत को पराजित कर मगध
साम्राज्य में मिला लिया।
अवन्ति- पश्चिम भारत में यह मालवा एवं मध्य
प्रदेश में स्थित था। उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जैन एवं दक्षिण अवन्ति की
राजधानी महिष्मति थी। गौतम बुद्ध के समय अवन्ति का शासक चण्डप्रद्योत था। मगध
सम्राट् शिशुनाग ने अवन्ति को मिला लिया।
अशमक- यह गोदावरी नदी के किनारे स्थित था। इसकी
राजधानी पतिन या पोतना थी। संभवत: अवन्ति ने इसे अपने राज्य में मिला लिया।
चेदि- यह यमुना नदी के किनारे स्थित था। इसकी
राजधानी सोत्थिवती थी। महाभारत में इस नगर का नाम शक्तिमती या शुल्डि-साह्य भी आया
है। छठी शताब्दी के मध्य में गंधम् के सिंहासन पर राजा पुक्कुसाति आसीन था। इसका
सबसे महत्त्वपूर्ण राजा शिशुपाल था, जिसकी चर्चा महाभारत में हुई है।
गांधार- इसके अन्तर्गत पाकिस्तान एवं
अफगानिस्तान का भाग आता था। इसकी राजधानी तक्षशिला थी। यह विद्या एवं व्यापार का
महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। प्रो. हेमचंद्र राय चौधरी के अनुसार, छठी सदी ई.पू. उत्तरार्ध में गांधार पर
फारस (इरान) का अधिकार हो गया।
काशी- इसकी राजधानी वाराणसी थी। प्रारंभ में यह
एक शक्तिशाली राज्य था। छठी सदी ई.पू. में काशी सम्भवत: सर्वाधिक शक्तिशाली था।
अनेक जातकों में वाराणसी को भारतवर्ष के प्रमुख नगरों में माना गया है। सोननन्द
जातक के अनुसार, काशी
के राजा मनोज ने कोशल, मगध और अंग राज्य के राजाओं को अपने अधीन कर लिया था। काशी की
महिमा-गरिमा के कारण पड़ोसी राज्य काशी पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए
प्रयत्नशील रहते थे। डॉ. हेमचन्द्र राय चौधरी ने काशी की तुलना प्राचीन बेबीलोन
तथा मध्यकालीन सेन से की है। कालान्तर में काशी कोशल के साम्राज्यवाद का शिकार हो
गया। जैन तीर्थकर पाश्र्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के राजा थे।
कोशल- कोशल राज्य के पश्चिम में गोमती, दक्षिण में रुचिका या स्यन्दिका
अर्थात् यह नदी, पूर्व
में विदेह से कोशल को अलग करने वाली सदा नीरा तथा उत्तर में नेपाल की पहाड़ियाँ
थीं। सरयू नदी इसे दो भागों में विभाजित करती थी। उ. कोशल की आरंभिक राजधानी
श्रावस्ती थी। बाद में वह साकेत या अयोध्या हो गई। द. कोशल की राजधानी कुशावती थी।
प्रसेनजित और विदुधान के प्रयास से कोशल राज्य का विस्तार हुआ। काशी, मल्ल और शाक्य को कोशल के साम्राज्यवाद
का शिकार होना पड़ा। अजातशत्रु ने कोशल को मगध साम्राज्य में मिला लिया।
कुरु- यह दिल्ली-मेरठ क्षेत्र में विस्तृत था।
इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी। सूतसोम जातक के अनुसार, कुरू राज्य का विस्तार 900 मी. था।
पालि ग्रंथों के अनुसार, इस राज्य पर युधिष्ठिला-वंश (युधिष्टिर के वंश) के राजा राज्य करते
थे। आधुनिक दिल्ली के पास इन्द्रपत्त या इन्द्रपत्तन (इन्द्रपत या इन्द्रप्रस्था)
कुरु की राजधानी थी।
कम्बोज- यह पश्चिमी सीमा का दूसरा महत्त्वपूर्ण
राज्य था। इसकी राजधानी हाटक या राजपुर थी। इसके दो महत्त्वपूर्ण शासक चन्द्रवर्धन
और सुदक्षिण थे। विविध शिलालेखों में कम्बोज तथा गान्धार को एक-दूसरे से सम्बद्ध
कहा गया है। गान्धार की भाँति कम्बोज भी सुदूर उत्तरापथ का राज्य था। महाभारत में
कम्बोजों को राजपुर नामक स्थान से सम्बन्धित कहा गया है। महाभारत में उल्लिखित
राजपुर नामक स्थान पुंछ के दक्षिण-पूर्व में था। कम्बोज ब्राह्मण विधा का
सुविख्यात केन्द्र था।
मगध- आधुनिक पटना, गया एवं शाहाबाद का क्षेत्र इस राज्य
में शामिल था। इसकी प्राचीन राजधानी गिरिव्रज (या राजग्रह) थी। मगध शब्द का उल्लेख
सर्वप्रथम अथर्ववेद में आया है। मगध की गाथाओं की प्राचीनता के विषय में कहा गया
कि यह उतनी ही प्राचीन हैं जितनी की यजुर्वेद। बाद में इसकी राजधानी पाटलिपुत्र हो
गई। पुराणों के अनुसार इस वंश का प्रथम शासक शिशुनाग था। किन्तु बौद्ध लेखक इसकी
वंशावली हर्यक वंश के प्रथम शासक बिम्बिसार से प्रारंभ करते हैं। उसका शासन काल
544 ई.पू. से 492 ई.पू. था। इसका वृज्जि (लिच्छवि) कोशल एवं मद्र क्षेत्रों से
वैवाहिक संबंध था। वैवाहिक संबंध के बदले कोशल से इसे काशी का गाँव प्राप्त हुआ, जिसका राजस्व एक लाख सिक्के वार्षिक
था। इससे संकेत मिलता है कि उस समय भू-राजस्व का आकलन मुद्रा में होने लगा था।
बिम्बिसार ने अंग के शासक ब्रह्मदत को पराजित करके अंग को मगध साम्राज्य में मिला
लिया। बिम्बिसार ने 80 हजार ग्राम भोजकों की एक सभा बुलाई। मगध के पुनर्गठन का
श्रेय भी बिम्बिसार को दिया जाता है। शासन कार्य में राजा की सहायता के लिए
बहुत-से महामात्र होते थे। इनकी तीन श्रेणियाँ होती थीं- (i) सब्बधक (सामान्य मामलों का
कर्ता-धर्ता), (ii) सेनानायक
महामत्त, (iii) वोहारिक
महामत्त (न्यायाधीश वर्ग)। राज्य के सामान्य प्रशासन के पदाधिकारियों को सत्वात्थक
कहा जाता है गांधार के शासक पुष्कासीरिन से इसके राजनयिक संबंध थे। अवन्ति के शासक
चन्द्रप्रद्योत महासेन की चिकित्सा के लिए उसने अपने राजवैद्य जीवक को भेजा। इसने
मगध साम्राज्य की राजधानी गिरिव्रज की स्थापना की। उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसकी
हत्या कर दी। बिम्बिसार श्रेणिक के नाम से जाना जाता था। उसका उत्तराधिकारी
अजातशत्रु (492 ई.पू.-460 ई.पू.) हुआ।
अजातशत्रु कुणिक के नाम से जाना जाता था। उसने
अपने पिता की साम्राज्यवादी नीति को आगे बढ़ाया। उसने कोशल को पराजित किया और
प्रसेनजित की पुत्री वजीरा से शादी की। माना जाता है कि उसने वृज्जि संघ की शक्ति
को तोड़ दिया। अपने मंत्री सुनीध एवं वर्षाकार की मदद से वह वज्जि संघ में फूट
डलवाने में सफल रहा और फिर उसने इस संघ को समाप्त कर दिया। भगवती सूत्र के अनुसार, अजातशत्रु ने 9 लिच्छवियों, 9 मल्लों तथा काशी कोशल के 18
गणराज्यों के संघ को परास्त किया। पुराणों के अनुसार, अजातशत्रु का निकटतम उत्तराधिकारी
दर्शक था। किन्तु जैन एवं बौद्ध लेखक उदयन को उसका उत्तराधिकारी मानते हैं। उदयन
को यह श्रेय दिया जाता है कि उसने कुसुमपुर या पाटलिपुत्र की नींव डाली।
मल्ल- मल्ल प्रदेश दो भागों में विभक्त था। एक
की राजधानी कुशीनरा थी। तथा दूसरे की पावा। मल्ल में राजतंत्रात्मक शासन-व्यवस्था
थी तथा इक्ष्वाकु और महासुदासन यहाँ के प्रसिद्ध सम्राट् थे। बाद में यहाँ
गणतंत्रात्मक शासन-व्यवस्था स्थापित हुई। अजातशत्रु ने मल्ल को अपने राज्य में
मिला लिया था।
मत्स्य- यह भरतपुर, जयपुर एवं अलवर क्षेत्र में विस्तृत
था। इसकी राजधानी विराटनगर थी। मत्स्य को चेदि के द्वारा मिला लिया गया।
पांचाल- यह प. उत्तर प्रदेश में स्थित था। इसकी
राजधानी अहिच्छत्र और कांपिल्य थी।
सूरसेन- यह मथुरा प्रदेश में स्थित था। इसके
शासक यदु या यादव कहलाते थे।
वृज्जि- वज्जि संघ में आठ गणराज्य शामिल थे।
इसमें वज्जि, विदेह
और लिच्छवि प्रमुख थे।
वत्स- इसकी राजधानी कौशांबी थी। माना जाता है
कि कुरु वंशज ने एक बाढ़ के कारण हस्तिनापुर को छोड़ दिया और उन्होंने नये जनपद
वत्स को जन्म दिया।
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