MP Ke Pramukh Lok Sahitykar | Lok Sahityakar MP |मध्यप्रदेश के लोक साहित्यकार
मध्यप्रदेश के लोक साहित्यकार |
मध्यप्रदेश के लोक साहित्यकार MP folk literature in hindi
संत सिंगाजी
तत्कालीन बड़वानी स्टेट के ग्राम खजुरी में संवत
1571 को जन्में सिंगाजी ने युवावस्था में
यहां के राजा राव के यहाँ डाक लाने-ले जाने की नौकरी कर ली थी। इसी यात्रा के
दौरान स्वामी मनरंग से उनकी भेंट हुई और वे बैरागी बन गए। वे पिपलिया (खंडवा) गांव
में आकर रहने लगे और अपनी मृत्यु तक यहीं रहे, समीप
ही उनकी समाधि है जहां प्रतिवर्ष मेला लगता है, उनका
समाधि स्थल अब ‘सिंगाजी गांव‘ का रूप ले चुका है।
संत सिंगाजी की रचनाएँ-
- कबीरदासजी के समकालीन संत सिंगाजी कबीर की भांति ‘साखिया‘ गाते थे। निमाड़ी बोली में ‘सात वार‘ ‘बारहमासी‘ , पन्द्रह तिथि, दोषबोध, नरद, शरद, आदि उन्होंने रचे उनके शिष्य खेमदास ने उनके जीवन परिचय पर ‘परचुरी‘ की रचना की।
जगनिक
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार जागनिक का जन्म संवत 1230 है। कालिंजर नरेश परिमल देव दरबारी जागनिक न सिर्फ कवि थे, बल्कि योद्धा भी थे। उन्होंने परिमल रासो और आल्हा खण्ड लिखे।
- अंग्रेज लेखक इलियट ने आल्हाखण्ड को सर्वप्रथम लिपिबद्ध किया और मुंशी राम स्वरूप ने हिन्दी में अनुवादित किया। ‘आल्हाखण्ड कांलिजर के दो महान योद्धाओं आल्हा और ऊदल के शौर्य का बनाफरी बोली में गीत रूप में प्रस्तुतिकरण है। आल्हाखंड में 52 युद्धों का वर्णन ओजमयी शैली में हुआ है। इस दृष्टि से यह विश्व की सबसे लंबी लोक कथा है।
ईसुरी
संवत 1898 को
मऊरानीपुर (झांसी, उ.प्र.) में जन्में ईसुरी बचपन में ही
अनाथ हो गए थे। उनकी सबसे बड़ी देन थी फाग का अवष्किार है ।
ईसुरी की रचनाएँ
- बुंदेलखंडी लोक बोली में ईसुरी ने लोक साहित्य की रचना की। ओरछा नरेश की सहायता से उन्होंने ईसुरी की फागों का खूब प्रचार-प्रसार करवाया। कृष्णानंद गुप्त ने ईसुरी फागें, पं गौरीशंकर द्विवेदी ने ‘ईसुरी प्रकाश‘ तथा लोकेन्द्रसिंह नागर ने ‘ईसुरी सतसई‘ द्वारा ईसुरी साहित्य को लिपिबद्ध कर सुरक्षित किया।
घाघ दुबे
- संवत् 1753 के लगभग कन्नौज या निकट के गाँव में जन्में कृषि पंडित घाघ को कविता, ज्योतिष और नीति संबंधी अच्छा ज्ञान था। घाघ ने कृषि को सर्वोत्तम व्यवसाय घोषित किया।
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