सम्राट अशोक का इतिहास | Samrat Ashok ka Itihas
सम्राट अशोक का इतिहास
सम्राट अशोक (273 ई.पू.-232 ई. पू.)
- बिन्दुसार की मृत्यु के उपरांत अशोक मोर्य साम्राज्य का शासक बना।
- एकशासक के रूप में अशोक वोश्व इतिहास मेँ एक विशिष्ट स्थान रखता है।
- सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों का वध कर के मौर्य साम्राज्य का राजसिंहासन प्राप्त किया था।
- राज्याभिषेक बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 218 वर्ष बाद हुआ था।
- अभिलेखों एवं साहित्यिक ग्रंथों में उसे देवनामपियद्शी कहा गया है।
- अशोक ने अपने राजाभिषेक के 9वें वर्ष (260 ई.पू.) में कलिंग पर आक्रमण कर के अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार कलिंग को जीतना आवश्यक था, क्योंकि दक्षिण के साथ सीधे संपर्क के लिए एक स्वतंत्र राज्य के समुद्री और स्थल मार्ग पर नियंत्रण होना जरुरी था।
- कौटिल्य के अनुसार कलिंग हाथियों के लिए प्रसिद्द था। इन्हीं हाथियोँ को प्राप्त करने के लिए अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया किया था।
- कलिंग के हाथी गुफा अभिलेख से प्रकट होता है कि अशोक के कलिंग आक्रमण के समय कलिंग पर ‘नंदराज’ नाम का कोई राजा राज्य कर रहा था।
- कलिंग युद्ध तथा उसके परिणामों के विषय मेँ अशोक के 13वें शिलालेख मेँ विस्तृत जानकारी दी गईहै।
- अशोक के अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि उसका साम्राज्य उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (अफगानिस्तान), दक्षिण में कर्नाटक, पश्चिम में कठियावाड़ और पूर्व मेँ बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत था।
- पुराणों में अशोक को ‘अशोक वर्धन’ कहा गया है। मौर्य शासक बन्ने से पूर्व वह उज्जैन का गवर्नर रह चुका था।
- व्हेनसांग के अनुसार अशोक ने श्रीनगर की स्थापना की जो वर्तमान मेँ जम्मू कश्मीर की राजधानी है।
- अशोक ने नेपाल मेँ ललित पाटन नमक नगर का निर्माण करवाया था।
- दिव्यादान से पता चलता है कि अशोक के समय तो बंगाल मोर्य सामराज्य का अंग था। व्हेनसांग ने अपनी यात्रा के दौरान बंगाल मेँ अशोक द्वारा निर्मित स्तूप देखा था।
- कल्हण द्वारा रचित ग्रंथ राजतरंगिणी के अनुसार अपने जीवन के प्रारंभ मेँ अशोक शैव धर्म का उपासक था।
- बौद्ध ग्रंथों के अनुसार कलियुग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया।
- बौद्ध धर्म दिव्यादान के अनुसार उपयुक्त नामक बौद्ध भिक्षु ने अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
- अशोक के बौद्ध होने का सबसे सबल प्रमाण उसके (वैराट-राजस्थान) लघु शिलालेख से प्राप्त होता है, जिसमे अशोक ने स्पष्तः बुद्ध धम्म एवं संघ का अभिवादन किया है।
- अशोक के शासनकाल मेँ 250 धर्मावलंबियोँ को पुनर्गठित करने के लिए बौद्ध परिषद का तीसरा महासम्मेलन (संगीति) का आयोजन किया गया।
- मास्की के लघु शिलालेख मेँ अशोक ने स्वयं को बुद्ध भावय कहा है।
अशोक और उसका धर्म
- कलिंग युद्ध की विभीषिका ने अशोक के मन को बुरी तरह झकझोर दिया, क्योंकि इस युद्ध का कलिंग के लोगोँ पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा।
- युद्ध की नृशंसता और व्यापक हिंसा देखकर अशोक का मन पश्चाताप से भर गया। परिणामस्वरूप उसने आक्रमण और विजय की नीति त्यागकर धर्म घोष की नीति का अनुसरण किया।
- अशोक के धर्म का उद्देश्य एक ऐसी मानसिक प्रवृत्ति की आधारशिला रखना था जिसमेँ सामाजिक उत्तरदायित्व को एक व्यक्ति के दूसरे पति के प्रति व्यवहार को पत्र अत्यधिकक महत्वपूर्ण समझा जाए।
- अशोक के धर्म मेँ महिमा की स्वीकृति प्रदान करने समाज की क्रियाकलापोँ मेँ नैतिक उत्थान की भावना का संचार करने का आग्रह था।
- अशोक का धर्म वस्तुतः विभिन्न धर्मोँ का समन्वय है। वह नैतिक आचरणों का एक संग्रह है, ‘जो जियो और जीने दो’ की मूल पद्धति पर आधारित था।
- इसमेँ कोई संदेह नहीँ है कि अशोक का व्यक्तिगत धर्म बौद्ध धर्म ही था। लेकिन यह भी सच है कि अशोक सभी धर्मोँ का आदर करता था और सभी पंथों और सम्प्रदायों के नैतिक मूल्यों के बीच पाई जाने वाली एकता मेँ विश्वास करता था।
- रोमिला थापर ने अशोक के धर्म की तुलना अकबर के दीन-ए-इलाही धर्म से की है। उनके शब्दोँ मेँ अशोक का धर्म औपचारिक धार्मिक विश्वास पर आधारित सद्कार्यों से प्रसूत नैतिक पवित्रता तक ही सीमित नहीँ था, बल्कि वह समाजिक दायित्व बोध से प्रेरित भी था।
- वस्तुत यह कहा जा सकता है कि अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए अशोक ने जिन आचारो की संहिता प्रस्तुत की उसे उसके अभिलेखों में धर्म कहा गया है।
अशोक के उत्तराधिकारी
- अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर ऐसे अनेक कमजोर शासक असीन हुए, जो मौर्य साम्राज्य की प्रतिष्ठा को बचा पाने मेँ असमर्थ साबित हुए।
- अशोक के बाद मौर्य साम्राज्य के उत्तराधिकारियों का क्रम इस प्रकार है- मुजाल, दशरथ, सम्प्रति, सलिसुक, देवबर्मन और सतधनवा।
- मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक वृहद्रथ था। जिसकी हत्या करने के पश्चात उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 105 ई. पू. मेँ शुंग वंश की।
स्मरणीय तथ्य
- मौर्य काल में साधारण जनता की भाषा पालि थी। इसलिए अशोक ने अपने सभी अभिलेख इसी भाषा में उत्कीर्ण करवाए।
- यूनानी और लैटिन लेखकों ने पाटलिपुत्र को ‘पालिब्रोथा’ के रूप में उल्लिखित किया है।
- अशोक के अभिलेखों की तुलना इराकी शासक डेरियस-I से की जाती है।
- मेगस्थनीज ने भारत में खात गातियों या वर्गों का उल्लेख किया है, जिसमे किसानों की संख्या सर्वाधिक थी।
- अशोक के कलिंग अभिलेख से पता चलता है की प्रान्तों में हो रहे अत्याचारों से वह बड़ा ही चिंतित था।
- अर्थशास्त्र में 18 अधिकरण तथा 180 प्रकरण हैं।
- संभ्रात घरों की स्त्रियों को प्रायः अनिष्कासिनी कहा गया है।
- मौर्य शासन काल में वस्त्र उद्योग एक महत्वपूर्ण उद्योग था और राज्यों द्वारा संचालित होता था।
- मनुस्मृति तथा अर्थशास्त्र से पता चलता है की शूद्रों को संपत्ति का अधिकार प्राप्त था।
- एरियन ने पाटलिपुत्र में स्थित चन्द्रगुप्त के राजप्रसाद को ‘सूसा’ और ‘एकबतना’ के प्रसादों से सुन्दर बताया है।
- स्तम्भो में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अशोक द्वारा निर्मित सारनाथ का सिंह स्तंभ है, जिसके शीर्ष पर 4 सिंह एक-दुसरे से पीठ सटाये बैठे हैं।
- मेगास्थनीज की कृति ‘इंडिका’ है, जबकि मुद्राराक्षस की रचना विशाखदत्त द्वारा की गयी है।
- मास्की शिलालेख में अशोक के नाम की खोज 1915 में बीडन द्वारा की गयी है।
Post a Comment