स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य नीति | Health and Health Policy in India
भारत में स्वास्थ्य
स्वास्थ्य नीति
भारत में आज़ादी के 30 साल बाद पहली बार 1983 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति पेश की गई। इसके बाद साल 2002 में दूसरी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की शुरुआत की गई। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 के क़रीब 15 साल बीत जाने के बाद साल 2017 में तीसरी स्वास्थ्य नीति लाई गई।राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के उद्देश्य -
- स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश
- स्वास्थ्य सुविधा सेवाओं की व्यवस्था
- आर्थिक सहयोग
- रोगों की रोकथाम
- तकनीकी को बढ़ावा
- इस नीति का उद्देश्य सभी लोगों विशेषकर अल्पसेवित और उपेक्षित लोगों को सुनिश्चित स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराना है।
- इस नीति का उद्देश्य सभी विकास नीतियों में एक निवारक और प्रोत्साहक स्वास्थ्य देखभाल दिशा-निर्देश के माध्यम से सभी वर्गों के लिए स्वास्थ्य और कल्याण का उच्चतम संभव स्तर प्राप्त करना है।
- जिसके परिणामस्वरूप किसी को भी वित्तीय कठिनाई का सामना किए बिना बेहतरीन गुणवत्तापरक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करना है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 का लक्ष्य
- सभी उम्र के लिए स्वास्थ्य और आरोग्यता के
बेहतर संभावित स्तर को हांसिल करना,
- ग़रीबों पर बिना किसी आर्थिक दबाव के उत्तम इलाज उपलब्ध कराना
- स्वास्थ्य पर किए जाने वाले खर्च को 2025 तक कुल सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% तक करना
- सतत विकास लक्ष्यों के मूलभूत महत्त्व का भी उल्लेख स्वास्थ्य नीति 2017 किया गया है
- 2025 तक मौजूदा जीवन प्रत्याशा को 67.5 वर्ष से बढ़ा कर 70 वर्ष करना
- 2025 तक 5 साल से कम आयु वाले बच्चों की मृत्युदर को मौजूदा मृत्युदर से कम करना.
- 2020 तक मातृ मृत्यु दर को भी पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य
- 2018 - तक स्थानीय क्षेत्रों में कुष्ठ रोगों पर पूर्ण रूप से लगाम
- 2025 - तक T.B रोग को ख़त्म करने जैसे लक्ष्य भी स्वास्थ्य नीति 2017 में शुमार हैं
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 की मुख्य विशेषताएँ
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में सभी आयामों – स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का प्रबंधन और वित्त-पोषण करने, विभिन्न क्षेत्रीय कार्रवाई के जरिये रोगों की रोकथाम और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने,चिकित्सा प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध कराने,मानव संसाधन का विकास करने,चिकित्सा बहुलवाद को प्रोत्साहित करने, बेहतर स्वास्थ्य के लिये अपेक्षित ज्ञान आधार बनाने, वित्तीय सुरक्षा कार्यनीतियाँ बनाने तथा स्वास्थ्य के विनियमन और उत्तरोत्तर आश्वासन के संबंध में स्वास्थ्य प्रणालियों को आकार देने पर विचार करते हुए प्राथमिकताओं का चयन किया गया है। इस नीति का उद्देश्य सभी लोगों, विशेषकर अल्पसेवित और उपेक्षित लोगों को सुनिश्चित स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराना है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में रोकथाम और स्वास्थ्य संवर्द्धन पर बल देते हुए रुग्णता-देखभाल की बजाय आरोग्यता पर ध्यान केन्द्रित करने की अपेक्षा की गई है। हालाँकि नीति में जन स्वास्थ्य प्रणालियों की दिशा बदलने तथा उसे सुदृढ़ करने की मांग की गई है, इसमें निजी क्षेत्र से कार्यनीतिक खरीद पर विचार करने और राष्ट्रीय स्वास्थ्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने की भी नए सिरे से अपेक्षा की गई है। नीति में निजी क्षेत्र के साथ सुदृढ़ भागीदारी करने की परिकल्पना की गई है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में जन स्वास्थ्य व्यय को समयबद्ध ढंग से जीडीपी के 2.5% तक बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है। नीति में उत्तरोत्तर वृद्धिशील आश्वासन आधारित दृष्टिकोण की वकालत की गई है। इसमें ‘स्वास्थ्य और आरोग्यता केन्द्रों’ के माध्यम से सुनिश्चित व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल हेतु अधिक से अधिक धनराशि प्रदान करने की परिकल्पना की गई है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में प्रति 1000 की आबादी के लिये अस्पतालों में एक नहीं बल्कि 2 बिस्तरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है ताकि आपात स्थिति में ज़रूरत पड़ने पर इसका लाभ उठाया जा सके। इस नीति में वित्तीय सुरक्षा के माध्यम से सभी सार्वजनिक अस्पतालों में नि:शुल्क दवाएँ, नि:शुल्क निदान तथा नि:शुल्क आपात तथा अनिवार्य स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में आयुष प्रणाली के त्रि-आयामी एकीकरण की परिकल्पना की गई है जिसमें क्रॉस रेफरल, सह-स्थल और औषधियों की एकीकृत पद्धतियाँ शामिल हैं। इसमें प्रभावी रोकथाम तथा चिकित्सा करने की व्यापक क्षमता है, जो सुरक्षित और किफायती है। योग को अच्छे स्वास्थ्य के संवर्द्धन के भाग के रूप में स्कूलों और कार्यस्थलों में और अधिक व्यापक ढंग से लागू किया जाएगा।
भारत में स्वास्थ्य योजनाएं
1. जननी सुरक्षा योजना - 2005
- मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करना
2. प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान -
2016
- गर्भवस्था के दौरान और बच्चे को जन्म देते समय माता की मृत्यु दर और शिशु की मृत्यु दर को कम करना और बच्चे के जन्म को एक सुरक्षित प्रक्रिया बनाना
3. मिशन इंद्रधनुष - 2014
- मिशन इंद्रधनुष का उद्देश्य उन बच्चों का 2020 तक टीकाकरण करना है जिन्हें टीके नहीं लगे हैं या डिफ्थेरिया, बलगम, टिटनस, पोलियो, तपेदिक, खसरा तथा हेपिटाइटिस-बी रोकने जैसे सात टीके आंशिक रूप से लगे हैं।
4. पोषण अभियान - 2018 (National Nutrition Mission)
- बच्चो, बालिग बालिकाए, गर्भवती महिलाऐ एवं स्तनपान कराने वाली माताओ में पोषण की कमी को सुधारना है।
- बच्चो को विकास की कमी न हो, कुपोषण, एनीमिया न हो उस पर ध्यान देना
5. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का उद्देश्य 0 से 18 वर्ष के 27 करोड़ से भी अधिक बच्चों में चार प्रकार की परेशानियों की जांच करना है।
- विकार, बीमारी, कमी और विकलांगता सहित विकास में रूकावट की जांच शामिल है।
6. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
- मातृत्व सहयोग योजना के नाम को बदलकर प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत सरकार द्वारा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पहले जीवित जन्म के लिए 6000 रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है।
7. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM ) में दो मिशन शामिल हैं।
- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) - 2005
- राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM) - 2013
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में काम करता है।
- शिशु मृत्युदर और मातृत्व मृत्युदर में कमी लाना
- हर नागरिक को लोक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुलभ कराना
- संचारी और असंचारी रोगों की रोकथाम व नियंत्रण
- जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ लिंग व जन सांख्यिकीय संतुलन सुनिश्चित करना
- स्वास्थ जीवनचर्या और आयुष के माध्यम से वैकल्पिक औषधी पद्धतियों को प्रोत्साहित करना
- इसके तहत गावों को प्रशिक्षित महिला स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता आशा को भी लगाया गया
- ये कार्यक्रम शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यस्था को बेहतर बनाने के लिए शुरू की गई
8. आयुष्मान भारत ( प्रधानमंत्री जन आरोग्य
योजना )
- ये योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना को मिलाकर बनाई गई है। 25 सितम्बर 2018 से आयुष्मान भारत योजना पूरे भर में लागू है।
- इस योजना के तहत ग़रीबी रेखा के नीचे गुजर - बसर करने वाले वाले परिवारों को 5 लाख रूपये का हेल्थ कवरेज दिया जायेगा।
- सरकारी आंकड़ें के अनुसार आयुष्मान भारत योजना भारत के 10 करोड़ BPL ( लगभग 50 करोड़ लोग ) परिवारों को दी जाएगी।
- इस योजना के सफल होने के बाद माध्यम वर्ग के परिवारों को भी इसमें शामिल किया जायेगा। इस योजना का 60 % खर्च केंद्र सरकार और 40% खर्च राज्य सरकारों द्वारा किया जायेगा।
- ये एक स्वास्थ्य बीमा योजना थी। इसकी शुरुआत 1 अप्रैल 2008 को की गई थी।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का मुख्य उद्देश्य ग़रीबी रेखा के नीचे गुजर बसर कर रहे लोगों और प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना था।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ भी उन्ही लोगों को मिल सकता था जो 2011 की जनगणना के मुताबिक BPL कार्ड धारक थे।
- इस योजना के तहत BPL कार्ड धारकों के परिवार के लोगों को 30000 तक की धनराशि का इलाज मुफ्त किया जाता था।
स्वास्थ्य संकट की वजह
1. बढ़ती जनसंख्या
- जनसँख्या के कारण बेरोज़गारी, खाद्य समस्या, कुपोषण, प्रति व्यक्ति निम्न आय, निर्धनता में वृद्धि और कीमतों में वृद्धि जैसी दिक्कतें उभरकर सामने आयीं हैं। इसके अलावा कृषि विकास में बाधा, पूंजी निर्माण में कमी, जनोपयोगी सेवाओं पर अधिक व्यय, अपराधों में वृद्धि, पलायन और शहरी समस्याओं में वृद्धि जैसी दूसरी समस्याएं भी पैदा हुई हैं।
2. प्रदूषण
- स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2019 मुताबिक़ साल 2017 में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से 12 लाख भारतीयों की मौत हो गई है भारत में वायु प्रदूषण अब सभी स्वास्थ्य जोखिमों में मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के ही हैं। भारत में करीब 66 करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रहने को मजबूर हैं जहां हवा में प्रदूषण की मात्रा राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है।
3. ग़रीबी
- साल 2014 में, ग्रामीण इलाकों में 32 रुपए प्रतिदिन और कस्बों/शहरों में 47 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से गरीबी रेखा तय की गई थी। ग़रीबी रेखा को लेकर अलग-अलग समितियों की अलग अलग राय है। तेंदुलकर फॉर्म्युले में 22 फीसदी आबादी को गरीब बताया गया था जबकि सी. रंगराजन फॉर्म्युले ने 29.5 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा से नीचे माना था। भारत में ग़रीब कौन हैं और कितने हैं अभी यहीं स्पष्ट नहीं है। साल 2011 की जनगणना के आधार पर देश की क़रीब 22 फीसदी आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे जी रही है। वक़्त के साथ गरीबी में कमी तो आयी है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में कमी की दर अभी भी धीमा ही है। शहरी क्षेत्रों की 13.7% के मुक़ाबले ग्रामीण भारत की लगभग 26% आबादी गरीब है।
4. खाद्य असुरक्षा
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2018 के मुताबिक़ भारत जहां वैश्विक भूख सूचकांक में 119 देशों की सूची में 103 वे स्थान पर हैं तो वहीं ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक़ भारत में क़रीब चार करोड़ 66 लाख बच्चों का कुपोषण के चलते लंबाई और वजन नहीं बढ़ा है। खाद्य असुरक्षा में हिडेन हैंगर भी शामिल है। हिडेन हंगर की वजह से लोगों का विकास बाधित होता है, क्यूंकि लोगों के पास गुणवत्ता युक्त भोजन उपलब्ध नहीं होता।
5. डॉक्टरों व अस्पतालों की कमी
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में औसतन एक डॉक्टर पर क़रीब 11 हज़ार की जनसंख्या निर्भर हैं। WHO के तय मानकों के मुताबिक़ डॉक्टर-जनसंख्या का अनुपात 1: 1,000 होना चाहिए। ऐसे में ये आंकड़ा 10 गुना अधिक है।
6. स्वास्थ्य पर कम खर्च
- दुनिया की छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश भारत अपनी जीडीपी का मात्र 1 से 1.5 फ़ीसदी ही स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करता है, जो दुनिया के सबसे कम खर्च करने वाले देशों में से एक है। देश में क़रीब 7 लाख से अधिक डॉक्टरों की ज़रूरत। स्वास्थ्य क्षेत्र में ज़्यादा निवेश न हो पाने के कारण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की भारी मात्रा में कमी रहती है।
7. खर्चीला इलाज
- भारत में दवाओं की क़ीमत दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले काफी ज़्यादा है। स्वास्थ्य के खर्च में हो रही बढ़ोत्तरी परिवार की बढ़ती हुई आय और ग़रीबी कम करने वाली सरकारी योजनाओं को कमज़ोर कर रही है। बड़े निजी अस्पतालों के मुक़ाबले सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का काफी अभाव है। निजी अस्पतालों की वजह से बड़े शहरों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहतर है, लेकिन यहां भी सिर्फ संपन्न लोगों की ही पहुँच है।
8. केंद्र - राज्य संबंधों में तल्ख़ी -
- दरअसल स्वास्थ्य राज्य का विषय है। स्वास्थ्य राज्य का विषय है ऐसे में जब राज्य सरकारों का सहयोग केंद्र सरकार को नहीं मिलता तो स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हो जाती हैं।
9. झोला छाप डॉक्टर
- गैर-सरकारी संगठनों का दावा है कि भारत में डॉक्टरों की कमी का फायदा उठाते हुए झोला छाप डॉक्टरों की तादाद तेज़ी से बढ़ी है।विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 2016 की अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में एलोपैथिक डाक्टर के तौर पर प्रैक्टिस करने वाले एक तिहाई लोगों के पास मेडिकल की डिग्री नहीं है।
10. निजी अस्पताल
- क़रीब 72 फीसदी ग्रामीण आबादी को प्राइवेट हेल्थकेयर सेवाओं का इस्तेमाल करना पड़ता है। भारत में प्राइवेट सेक्टर में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ रही हैं लेकिन सरकारी क्षेत्र में विस्तार नहीं हो रहा है। इस समस्या के चलते बड़ी आबादी को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा से वंचित रहना पड़ रहा है।
11. सरकारी योजनाओं का अप्रभावी होना
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली अलग- अलग बीमा योजनाओं के बावजूद भी, कोई सुधार नहीं है। अस्पताल मरीजों को इन स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के बाद भी बेहतर सुविधा नहीं दे पा रहे हैं। भारत में हर साल क़रीब लगभग 55 मिलियन लोग स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च के चलते ग़रीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं।
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