Social media ki Utpatti | सोशल मीडिया की उत्पत्ति | Origin of Social Media
सोशल मीडिया की परिभाषा Definition of Social Media
सोशल मीडिया दो शब्दों से मिलकर बना है सोशल और
मीडिया यहां सोशल का अर्थ समाज से है और मीडिया का अर्थ माध्यम या जनमाध्यम से हें
अर्थात ऐसा जनसंचार माध्यम जिसमें समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने विचार प्रकट कर
सके।
सोशल मीडिया की अन्य परिभाषाएं-
"Social Media is best understood as a group of new kinds of online media, which share most or all of the following characteristics, like participation, openness, conversation, community, contentedness etc."
सोशल नेटवर्किंग साइटें कहें या सोशल मीडिया
दोनों एक ही बात है, सोशल नेटवर्किग प्रदान करने में फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, लिंक्ड इन, यू-ट्यूब आदि नेटवर्किग साइटें वर्तमान
में मौजूद हैं। जो सोशल मीडिया की अनोखी और इंटरेक्टिव दुनिया से व्यक्तियों को
रूबरू करा रही हैं।
सोशल मीडिया की उत्पत्ति Origin of Social Media
जाने-माने संचार वैज्ञानिक मैगीनसन के अनुसार ‘‘सांचार समानुभूति की प्रक्रिया है, जो समाज में रहने वाले सदस्यों को आपस
में जोड़ती है।‘‘ यदि
उनके शब्दों के भावार्थ को समझे तो संचार वह माध्यचम है, जो सामाजिक संबंधों को मूर्त रूप
प्रदान करता है। सन् 1954 में चार्ल्स ई. ऑसगुड द्वारा विकसित किया गया संचार का
सर्कुलर मॉडल यह कहता है कि संचार एक सतत प्रक्रिया है, जो लगातार चलती रहती है। इस प्रक्रिया
में संदेश भेजने वाला अगले क्षण संदेश प्राप्त करने वाला बन जाता है।
सन् 1971 मे विल्बर श्रेम ने संचार प्रक्रिया
को और अधिक स्पष्ट करने के लिए एक मॉडल विकसित किया जिसमें कि फीडबैक को संचार का
आवश्यक अंग बताया गया। संचार संप्रेषण प्रक्रिया के क्षेत्र में हो रहे इस तरह के
शोधों ने संचार को सामाजिक ताने-बाने का आधार बताया है साथ ही साथ माध्यम को संचार
प्रक्रिया का मुख्य अंग।
संचार प्रक्रिया में संदेश की निर्भरता माध्यम
पर होती है अर्थात् बिना किसी माध्यम के संदेश संप्रेषित नहीं किया जा सकता है। इस
परिप्रेक्ष्य में विख्यात जनसंचार शास्त्री मार्शल मैकलुहान ने कहा है कि माध्यम
ही संदेश है। आदिम काल से मान समाज द्वारा आपसी संबन्धों के विस्तार में संचार
प्रक्रिया को मुख्य उपकरण के तौर पर प्रयोग करने के साक्ष्य इतिहसा के पन्नों से
मिलते हैं।
संचार का इतिहास History of Communication
मानव की संचार-अभिरूचि ने नित्य ही नए संचार
साधनों को आधार प्रदान किया है। सोशल मीडिया की शुरूआत की सिलसिला आदिम काल से ही
माना जाता है। एक समय था कि खुद मानव ही संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक
पहुंचाया करता था। उस समय ऐसे काम करने वाले व्यक्ति को संदेश वाहक के नाम से जाना
जाता था। राजदरबारों में संदेश संप्रेषण के लिए दूत एंव गुप्तचर हुआ करते थे जो
संचार एवं संपर्क के कार्य को करते थे।
यदि आदिकाल में जनसंपर्क कर्ता की बात करें तो
वैदिक शास्त्रों एवं पुराणों में देव ऋषि नारद इसका चर्चित उदाहरण है। इसी तरह यदि
इतिहास को खंगालें तो पॉचवी सदी के आस-पास कबूतरों के गले में संदेश पत्र बांध कर
एक स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश भेजने के प्रमाण मिलते हैं। मुगल शासनकाल में
वाकिअः नवीन संदेश को लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहंुचाते थे। फिर धीरे-धीरे
डाक विभाग का सृजन हुआ और पत्रवाहक चिट्ठी लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश
पहुंचाने लगे।
जनसंचार Jansanchar
संदेश परिवहन को गति देने के लिए संचार के
क्षेत्र में शोध ने गति पकड़ी। संदेश संप्रेषण को तीव्रता प्रदान करने केक लिए
इसको तकनीक से जोड़ने पर बल दिया गया। यहीं से संचार विद्या में नई श्रेणी जोड़ी
गई, जिसे
जनसंचार नाम दिया गया।
विश्वविख्यात संचार शास्त्री जांडेन ने संचार
का पारिभाषित करते हुए कहा है कि ‘‘स्त्रोत द्वारा विस्तृत, विजातीय, बिखरी हुई जनता को तकनीकी माध्यम से जो
संदेश प्राप्त होता है, उसे जनसंचार कहते हैं।‘‘ जनसंचार का सही अर्थ है जिस संचार
व्यवस्था में माध्यम का प्रयोग किया जाए उसे जनसंचार कहते हैं।
मुद्रण तकनीक के विकास से अखबारों का प्रकाशन
प्रारंभ हुआ। ग्राहम बेल ने टेलीफोन के आविष्कार के साथ ही पूर्ण रूप से तकनीकी
माध्यम की नींव रख दी। इसके बाद मार्कोनी ने रेडि़यो जैसे बेतार के माध्यम से
संचार के क्षेत्र में का्रंति ला दी।
प्रति दिन नए-नए संचार उपकरण संचार प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करने
लगे। इसके बाद सिनेमा एवं टेलीविजन जैसे जनमाध्यम व्यक्तियों की अभिव्यक्ति का
साधन बने। जनमाध्यमों के लगातार विाकस के बाद भी माध्यम में जन साधारण के सीधे
जुड़ाव की कमी नजर आती रही।
इस कमी को पूरा करने में सन 1940 में चार्ल्स
वेबेज द्वारा बनाई गई कम्प्यूटर नामक मशीन ने इंटरनेट के माध्यम से एक ऐसे माध्यम
का विकास किया, जिसे
न्यू मीडिया नाम दिया गया । सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ इंटरनेट की
प्रायोगिक क्षमताओं ने कोसों की दूरी को एक क्लिक तक सीमित कर दिया। 1960 में
कम्प्यूटर से सूचना-संप्रेषण की सोच के विकास ने अरपानेट से इंट्रानेट और फिर
इंटरनेट के क्रमिक विकास ने दनिया को ग्लोबल विलेज में बदल दिया।
व्लर्ड वाईड वेब के आविष्कार के साथ बेवसाइटों
के अस्तित्व की संरचना सामने आई। फिर एचटीटीपी से इसको विस्तार मिला तथा विभिन्न
कार्यों के लिए अनेक प्रकार की प्रोटोकालों का आविष्कार किया गया। अब मेल, फाइल ट्रांसफर करने का सपना साकार हुआ।
इंटरनेट पर गूगल जैसे सर्च इंजन के आविष्कार ने दुनिया भर की सभी सूचनाओं को
प्राप्त करना सरल कर दिया। अब दुनिया एक डिब्बे में बंद नजर आने लगी। इसके विकास
की गति प्रकाश की रफ्तार से चली और सोशल मीडिया का नामकरण हुआ। यह मीडिया अन्य
माध्यमों से ज्यादा प्रभावी सिद्ध हई इसकी त्वरित प्रतिपुष्टि क्षमता ने इसे
व्यक्तियों के बीच लोकप्रियता प्रदान की।
देखते ही देखते सोशल नेटवर्किंग साइटों ने अपना
जाल बुना और सोशल मीडिया का अस्तित्व तेजी से उभरने लगा। सोशल मीडिया को अपनी
पहचान बनाने अधिक समय नहीं लगा और विश्व भर में इसके चर्चे हो गये। अल्प अवधि में
सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर व्यक्तियों की भीड़ एकत्र होने लगी। इस अनोखी और
स्वतंत्र दुनिया ने व्यक्तियों को अपनी ओर इस प्रकार आकर्षित किया कि आज सोशल
मीडिया व्यक्तियों के दैनिक जीवन की आवश्कयता की तरह दिखने लगी है।
सोशल नेटवर्किंग साइटों ने अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता को मंच देते हुए विश्व को आपसी जुड़ाव का मंच प्रदान किया। सोशल साइटों
की संख्या में इजाफे के साथ व्यक्तियों ने इससे जुड़ना प्रारंभ किया और विश्व का
एक बड़ा हिस्सा इससे जुड़ गया। इसके साथ ही तकनीक ने भी विकास यात्रा जारी रखी और
कम्प्यूटर, लेपटॉप, मोबाईल तथा एंड्राइट एवं स्मार्ट फोन
ने व्यक्तियों तक इसकी पहुँच आसान की।
सोशल मीडिया के विकास ने मीडिया में कुछ इस तहर करवट बदली की मीडिया की चाभी सीधे जनता के हाथ में आ गई। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया ने अपने सही रूप को ग्रहण करने की अग्रणी कदम बढ़ा दिया।
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