भारत में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम | Bharat me Parmanu urja Karyakram
भारत में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम Atomic Energy Program in India
- भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रेरणा से डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने नाभिकीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास की आधारशिला रखी। सन् 1948 में ही भारत में परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित करके परमाणु अनुसंधान को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए समर्पित किया। डॉ. भाभा की अध्यक्षता में 10 अगस्त, 1948 को परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन किया गया। सन् 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना हुई। विभाग द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम इसके शासनादेश से प्रेरित हैं जिसमें शामिल है-
- स्वदेशी ओर अन्य आजमाई हुई प्रोद्योगिकियों के जरिए नाभिकीय ऊर्जा की हिस्सेदारी को बढ़ाना और उपयुक्त ईंधन चक्र संयत्रों से फास्ट ब्रीडर रिएक्टर और थोरियम रिएक्टर विकसित करना।
- अनुसंधार रिएक्टरों की स्थापना व उनमें उत्पादित रेडियों समस्थानिकों का औषधि व कृषि में उपयोग।
- एक्सलेरेंटर, लेजर, आदि विकसित तकनीकों का विकास और उद्योगों को तकनीकों के हस्तांतरण को बढ़ावा देना।
- देश में उपलब्ध यूरेनियम व थोरियम की प्राकृतिक संपदा का उपयोग करते हुए नाभिकीय ऊर्जा से सुरक्षित व आर्थिक दृष्टि से सक्षम विद्युत उत्पादन।
- नाभिकीय ऊर्जा और विज्ञान के संबद्ध क्षेत्रों में आधारभूत अनुसंधान और विश्विद्यालयों तथा उच्च शैक्षिक संस्थानों के बीच आपसी तालमेल बढ़ाने में सहयोग करना, ऐसी अनुसंधान और विकास परियोजनाओं को सहयोग करना जो विभाग के कार्यक्रमों से जुड़ी हो, इन क्षेत्रों में अनुसंधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
- राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान करना।
परमाणु ऊर्जा के विभिन्न चरण Different stages of nuclear power
भारत में परमाणु ऊर्जा विभाग तीन चरणों में
परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम चला रहा है। यहां हम इसके तीनों चरणों पर प्रकार डाल रहे
हैं
प्रथम चरण-
- इस चरण में दाबित गुरूजल रिएक्टरों () और उनसे जुड़े ईंधन चक्र के लिए विधा को स्थापित किया जाना है। ऐसे रिएक्टरों में प्राकृतिक यूरेनियम को ईंधन के रूप में तथा गुरूजल को मॉडरेटर एवं कूलेंट के रूप में प्रयोग किया जाता है।
द्वितीय चरण-
- दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बनाने का प्रावधान है, जिनके साथ पुनरू प्रसंस्करण संयंत्र और प्लूटोनियम आधारित ईंधन संविचरण संयंत्र भी होंगे। प्लूटोनियम को यूरेनियम 238 के विखंडन से प्राप्त किया जाता है।
तीसरा चरण-
- तीसरे चरण थोरियम-यूरेनियम-233 चक्र पर आधारित है। यूरेनियम-233 को थोरियम के विकिरणसे हासिल किया जाता है।
परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का प्रथम चरण विस्तृत रूप से
- 1960 में भारतीय नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम की शुरूआत के समय पहले चरण के रिएक्टर के रूप में (PHWR) प्रेशराइज्ड हैवी वॉटर रिएक्टर का चयन किया गया। मगर संचालन अनुभव हासिल करने के लिए शुरू में तारापुर (महाराष्ट्र) में एक परमाणु ऊर्जा केंद्र लगाया गया। इस केन्द्र में दो बायलिंग वॉटर रिएक्टर थे जिन्होंने 1969 में काम शुरू किया। तारापुर के उपरोक्त संयत्र में परिष्कृत यूरेनियम का ईंधन के रूप में तथा साधारण जल द्वार ठंडा किएजाने की विधि पर आधारित बॉयलिंग वॉटर रिएक्टर की स्थापना की गई है। लेकिन भारत ने इसतकनीक को नहीं अपनाया क्योंकि परिष्कृत यूरेनियम अमरीका से आयात करना पड़ता था। और देश में यूरेनियम परिष्करण की प्रक्रिया अत्यंत जटिल और खर्चीली है।
- तारापुर संयत्र के अतिरिक्त अन्य सभी परमाणु संयत्र कनाड़ा के डिजायन पर आधारित है। इनमें ईधन के तौर पर प्राकृतिक यूरेनियम तथा मंदक के तौरपर गुरू जल का इस्तेमाल किया जाता है। इन रिएकटरों को दाब युक्त गुरू जल रिएक्टर या प्रेशराइज्ड हैवी वाटॅर रिएक्टर (PHWER) कहते हैं। इन्हें कैन्डू रिएक्टर के नाम से भी जाना जाता है। भारत में ज्यादतर रिएक्टर इसी प्रकार के हैं। इन रिएक्टरों की विशेषता यह है कि इनमें प्लूटोनियम का उत्पादन ज्यादा मात्रा में होता है जिनका उपयोग फास्ट ब्रीडर रिएक्टर में ईंधन के रूप में किया जाता है। भारत ने अब पीएचडब्ल्यूआर की स्वदेशी प्रौद्योगिकी में व्यावसायिक परिपक्वता हासिल कर ली है। इस प्रकार संयत्र कैगा (कर्नाटक), काकरापार (गुजरात), कलपक्कम (तमिलनाडु), नरौरा (उत्तर प्रदेश), रावतभाटा (राजस्थान ) में कार्यरत हैं।
गुरूजल उत्पादन
- हमारे देश में सात गुरू जल संयत्र कार्यरत हैं। हमारा गुरू जल उत्पादन सुचारू है और अब हम इसका निर्यात भी करने लगे हैं। वास्तव में भारी जल अथवा गुरू जल हाइड्रोजन के गुरूत्तर समस्थानिक (ड्यूटेरियम) और ऑक्सीजन का यौगिक है। गुरू जल संयत्रों की स्थापना नंगल (पंजाब), तूतीकोरिन (तमिलनाडु), रावतभाटा (राजस्थान), बड़ौदा (गुजरात), थाल (महाराष्ट), तलचर (उड़ीसा), कानगुरू (आंध्रप्रदेश) तथा हजीरा(गुजरात) में की गई है।
- प्रेश्राइज्ड रिएक्टरों के गुरूजल शीतलक के साथ-साथ मॉडरेटर के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
भारी जल उत्पादन संयंत्रों की स्थापना
निम्नलिखित जगहों पर की गई है-
- नांगल (पंजाब), देश का पहला भारी जल संयंत्र जिसकी स्थापना 1962 में की गई
- वडोदरा (गुजरात)
- तालचेर (उड़ीसा)
- तूतीकोरिन (तमिलनाडु)
- थाल (महाराष्ट्र)
- हज़ीरा (गुजरात)
- रावतभाटा (गुजरात)
- मानुगुरू (आंध्र प्रदेश)
परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का द्वितीय चरण
- परमाणु ऊर्जा उत्पादन के दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों की स्थापना और उनके साथ पुनर्प्रसंस्करण संयंत्रों और प्लूटोनियम आधारित ईंधन संविचरणा केन्द्रों की स्थापना का प्रस्ताव है। ये फास्ट ब्रीडर प्रणालियां जिना ईंधन इस्तेमाल करती हैं, उससे ज्यादा उत्पादन करती हैं। इनमें ईंधन का इस्तेमाल पीएचडब्ल्यूआर रिएक्टरों से लगभग साठा गुना ज्यादा तक हो सकता है। इस विभाग के इंदिरा गांधी परमाुण अनुसंधान केन्द्र ने अक्टूबर 1985 में कलपक्कम, तमिलनाडु में फास्ट ब्रीडर परीक्षण रिएक्टर की स्थापना के साथ अपना ब्रीडर कार्यक्रम शुरू किया स्वदेश में ही विकसित यूरेनियम-प्लूटोनियम कार्बाइड ईंधन के उपयोग से इस केंद्र ने अपना प्रौद्योगिकी लक्ष्य हासिल कर लिया है। इस रिएक्टर को 17.4 मेगावाट के विद्युत स्तर तक चलाया गया तथा इसके टर्बों जनरेटर को ग्रिड से जोड़ने पर 1.8 लाख यूनिट बिजली प्राप्त की गई।
- वास्तव में फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों में प्राकृति यूरेनियम और प्रथम चरण से प्राप्त प्लूटोनियम-239 के मिश्रण का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाएगा। फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों के निर्माण और संचालन में आ सकने वाली कठिनाईयों के अध्ययन और उनका कुछ अनुभव प्राप्त करने के उद्देश्य से इंदिरा गांधी अनुसंधान केंद्र कलपक्कम में 40 मेगावाट क्षमता का एक रिएक्टर सफलतापूर्वक कार्यरत है। इसमें देश में ही विकसित यूरेनियम, प्लूटोनियम कार्बाइड मिश्रित ईंधन का प्रयोग किया जाता है। एक प्रायोगिक रिएक्टर कॉमिनी (1985) का निर्माण कलपक्कम में ही किया गया है। इसके साथ ही फास्ट ब्रीडर रिएक्टर आधारित परमाणु विद्युत ग्रहों के डिजाइन के लिए आवश्यक अनुभव प्राप्त करने के लिए दो प्रायोगिक छोटे रिएक्टर पूर्णिमा-1 एवं पूर्णिमा-2 मुंबई में स्थापित है।
- उपरोक्त रिएक्टरो-कामिनी, पूर्णिमा-1 एंव पूर्णिंमा-2 से प्राप्त अनुभवों के आधार पर कलपक्कम परमाणु विद्युत ग्रह बनाया गया है।
परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का तीसरा चरण
- सतत आधार पर ऊर्जा सुरक्षा देने के लिए भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का दीर्घावधि केंद्रीय उद्देश्य थोरियम इस्तेमाल है। यह खनिज भारत में बहुतायत में तथा सुगमता से उपलब्ध है। भारतीय कार्यक्रम का तीसरा चरण इस कारण थोरियम-यूरेनियम -233 चक्र पर आधारित है।
- भारत में थोरियम के भंडार मोनाजाइट रेत के रूप में प्रचुरता से उपलब्ध हैं। याद रहे कि थोरियम तत्व विखंडनीय नहीं है अर्थात इसका उपयोग प्रत्यक्ष तौर पर नाभिकीय ईंधन के रूप में नहीं किया सकता। थोरियम को फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर में यूरेनियम-233 में परिवर्तित किया जाएगां यह तीसरे चरण के अंतर्गन बनने वाले परमाणु विद्युत ग्रहों में ईंधन के रूप में प्रयुक्त होगा। अनुसंधान और ऊर्जा रिएक्टरों के थोरियम प्रयोग से यूरेनियम-233 बनाने की प्रक्रिया का विकास किया जा चुका है। कलपक्कम स्थित प्रायोगिक कामिनी रिएक्टर में थोरियम से बने ईंधन यूरेनियम-233 का प्रयोग सफलतापूर्वक 30 किलोवॉट ऊर्जा उत्पादन में हो रहा है। कामिनी रिएक्टर में न्यूट्रांन परावर्तक के रूप में बेरिलियम ऑक्साइड का प्रयोग किया जाता है। कामिनी रिएक्टर की सफलता से हमें अपने तृतीय चरण के कार्यक्रम को शुरू करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। थोरियम का प्रयोग के लिए उन्नत गुरूजल प्रकार के रिएक्टर के डिजाइन की प्रौद्योगिकी पर बार्क में कार्य तेजी से प्रगति पर है।
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