Bharat Vibhjan ke Karan | भारत विभाजन के कारण | MP PSC Mains Answer
भारत विभाजन के कारण
18 जुलाई 1947 को पारित हुए स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसार भारत और पाकिस्तान का विभाजन हो गया। यह विभाजन भारतीय इतिहास मे अत्यंत दुखद घटना है। भारत का विभाजित होना कोई आकस्मिक घटना नहीं है। अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ अत्याचारपूर्ण नीति का व्यवहार किया। एक सीमा तक अत्याचार सहने के पश्चात भारतीय आंदोलित हो उठे। उनमें राष्ट्रीय भावना का तीव्र गति से विकास हुआ। अंग्रेजो ने इस स्थिति से निपटने के लिए भारत में सदियों से एक साथ रह रहे हिन्दू एवं मुसलमानों में साम्प्रदायिकता के वैमनस्यता इतनी बढ़ा दी गई कि इसके दूरगामी परिणाम अत्यंत ही घाटतक हुए। भारत दो भागों-भारत एवं पाकिस्तान में विभाजित हो गया।
भारत पाकिस्तान विभाजन के निम्न कारण प्रमुख थे
मुसलमानों की पृथकतावादी प्रवृत्ति
सर सैयद अहमद खाँ ने मुस्लिम समुदाय में पृथकतावादी भावना को प्रोत्साहित किया। इस प्रवृत्ति से उदित होने के कारण मुसलमान स्वयं को हिन्दुओं से अलग समझने लगे।
मुसलमानों का शैक्षणिक पिछड़ापन
शैक्षणिक दृष्टि से मुसलमान हिन्दुओं की तुलना में पिछड़े हुए थे। उनका विचार था कि शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े होने के कारण हिन्दुओं से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकेंगे।
जिन्ना की हठधर्मी नीति
जिन्ना ने द्विराष्ट्र के सिद्धांत का प्रतिपादन कर मुस्लिम समुदाय को विभाजन करने के लिए उकसाया तथा अंत तक वे वह पाकिस्तान निर्माण के लिए अपनी जिद पर अड़ा रहा।
ब्रिटिश सरकार की फूट डालो नीति
ब्रिटिश सरकार ने फूट डालो और शासन करो की नीति का अनुसरण कर सदैव हिन्दु-मुसलमानों को लड़ाया। इस नीति के अंतर्गत 1905 में बंगाल विभाजन किया। यहीं से मुसलमानों के दिमाग में विभाजन की बात घर कर गई।
साम्प्रदायिक उन्माद
अंतरिम सरकार के समय भारत में साम्प्रदायिक झगड़े हुए। जगह-जगह कत्लेआम हुए। अतः विवश होकर कांग्रेस के नेताओं को विभाजन को स्वीकार करना पड़ा।
मुस्लिम लीग का अडंगा नीति
मुस्लिम लीग की स्थापना के बाद से ही लीग ने अडं़गा नीति का अनुसरण किया। लीग के नेताओं ने अंतरिम सरकार में रहकर अडं़गा डालना प्रारंभ कर दिया। इस नीति के पीछे उनका उद्देश्य भारत को विभाजित करना ही था।
कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति
न केवल ब्रिटिश वरन कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति भी भारत विभाजन का कारण बनी। कांग्रेस ने अनेक भूलें कीं। लखनऊ पैक्ट 1932 के साम्प्रदायिक निर्णय के परिणामस्वरूप मुस्लिम लीग की मांगे लगातार बढ़ती गई। कांग्रेस की यह तुष्टीकरण की नीति अत्यंत ही घाटक सिद्ध हुई।
गृह युद्ध की संभावना
एटली की सत्ता हस्तांतरण की घोषणा के पश्चात् हिन्दू और मुसलमान दोनों ही यह सोच रहे थे कि अगर दोनों के मध्य कोई समझौता नहीं हुआ तो सत्ता हस्तांतरण के समय गृहयुद्ध छिड़ जाएगा और स्थिति बद बदतर होगी। अतः हिन्दू एवं मुसलमान दोनों ने ही विभाजन की माँग को स्वीकार कर लिया।
भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति में सहायक तत्व
1-द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात ब्रिटिश शक्ति का ह्यस होना।
2- एशिया में होने वाले अनेक आंदोलनों का भारत पर प्रभाव।
3- 1945 के पश्चात ब्रिटेन में शासन करने वाली मजदूर पार्टी का उदार दृष्टिकोण।
4- भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए ब्रिटेन पर अत्याधिक अंतर्राष्ट्रीय दबा।
5- भारत में हुए शक्तिशाली आंदोलन
6- साम्यवाद का भय
7- सेना में असंतोष का व्याप्त हो जाना
8- माउंटबेटन की योजना को लीग तथा कांग्रेस द्वारा स्वीकार कर लेना।
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