भूकंप प्राकृतिक आपदा | Bhukamp Prakratik Aapda | Bhukamp Prabandhan
भूकंप प्राकृतिक आपदा एवं आपदा प्रबंधन
- भूकंप की अलग-अलग वैज्ञानिकों ने अलग-अलग परिभाषा दी है। सामान्य तौर पर भूपटल की चट्टानों के कंपन्न उत्पन्न होने को भूकंप कहते हैं। ‘भूकंप‘ भूपटल में कंपन्न और थरथराहट को भूकंप की संज्ञा दी जाती है।
- भूकंप की पृथ्वी के अंदर से जिस बिंदु से उत्पत्ति होती है उसको फोकस कहते हैं और पृथ्वी के धरातक पर फोकस के लंबवत बिंदु को अधिकेंद्र/एपिसेंटर कहते हैं।
- भूकंप की तीव्रता को सीसमोग्राफ पर मापा जाता है। भूकंप की तीव्रता को रिएक्टर मापक पर रिकाॅर्ड किया जाता है।
- भूकंप मापक का आविष्कार 1935 में रिएक्टर ने किया था। इस मापक द्वारा अभी तक का सबसे भीषण भूकंप 11 मार्च 2011 को जापान के टोहोकू में 9.1 रिकार्ड किया गया था। मानव कम से कम 2.0 तीव्रता के भूकंप को महसूस कर सकता है।
- एक अनुमान के अनुसार भूकंप प्रतिवर्ष 10 की घात 18 से 10 की घात 19 जूल ऊर्जा निष्काषित करते हैं। इसमें अधिकतर ऊर्जा चंद बड़े भूकंपो से उत्पन्न होती है।
- सामान्यतः जिन भूकंपो की तीव्रता रिएक्टर मापक पर 7 अंक से अधिक होती है उनसे अधिकतर ऊर्जा उत्पन्न होती है।
- प्रतिवर्ष आने वाले भूकंपो में 98 प्रतिशत भूकंपो की साधरण तीव्रता 8 से कम होती है, जबकि केवल एक भूकंप की प्रतिवर्ष 8 अंक तीव्रता या अधिक होती है।
Bhukaamp Epicenter |
रिएक्टर मापक एवं ऊर्जा निर्मुक्त
रिएक्टर मापक पर तीव्रता | टिप्पणी |
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता- 2.0 |
उर्जा जूल में- 6 10 की घात 7
टिप्पणी- कमजोर प्रकार के भूकंप जिनको आदमी महसूस कर पाता है।
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता. 2.5-3.0
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उर्जा जूल में- 10 की घात 8 से 10 की घात 9
टिप्पणी- निकट के क्षेत्रों में भूंकप को महसूस किया जा सकता है।
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता- 4.5 |
उर्जा जूल में- 4 गुणा 10 की घात 11
टिप्पणी- स्थानीय हानि हो सकती है।
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता- 5.7 |
उर्जा जूल में- 2 गुणा 10 की घात 13
टिप्पणी- हिरोशिमा पर गिराये जाने वाले परमाणु बम से निकलने वाली ऊर्जा के बराबर ऊर्जा निर्मुक्त होती है।
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता-6.0 |
उर्जा जूल में- 6 गुणा 10 की घात 13
टिप्पणी- सीमित क्षेत्र में विनाश
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता-6.7 |
उर्जा जूल में-7 गुणा 10 की घात 14
टिप्पणी- वर्ष 1991 में उत्तरकाशी में आने वाले भूकंप के समान
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता- 7.0 |
उर्जा जूल में- 2 गुणा 10 की घात 15
टिप्पणी- इस प्रकार के भूकंपो की लहरों को विश्व भर में महसूस किया जाता है।
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता- 7.1 |
उर्जा जूल में- 3 गुणा 10 की घात 15
टिप्पणी- वर्ष 1885 में सोपुर (कश्मीर घाटी में आने वाले भूकंप के समान)
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता- 7.25 |
उर्जा जूल में- 4.5 गुणा 10 की घात 16
टिप्पणी- वर्ष 2001 में आने वाले भुज भूकंप के समान
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता- 8.1 |
उर्जा जूल में- 10 की घात 7
टिप्पणी- कांगड़ भूकंप 1950 के समान
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता- 8.4-9.2 |
उर्जा जूल में- 4 गुणा 10 की घात 16
टिप्पणी- असम अरूणाचल प्रदेश के वर्ष 1950 के भूकंप के समान
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रिएक्टर मापक पर तीव्रता- 8.3-9.5 |
उर्जा जूल में- 10 की घात 19
टिप्पणी- वर्ष 2004 में सुमात्रा इंडोनेशिया के समान
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मरसेली का भूकंप प्रबलता मापक
किसी भूकंप से होने वाली हानि, भूकंप की तीव्रता के अतिरिक्त अन्य
बहुत से कारकों पर भी निर्भर करती है।
उदाहरण के लिये अभिकेन्द्र से निकटता, इमारतों का डिजायन तथा उनमें इस्तेमाल होने वाला सामान तथा प्रभावित
क्षेत्र की जनसंख्या का घनत्व । इस संबंध में मरसेली ने भूकंप प्रबलता मापक तैयार
किया जिसका विवरण इस प्रकार है-
मरसेली मापक आविष्कार वर्ष 1902 किया गया था तथा 1956 में इसमें संशोधन किया गया। इस
परिवर्तित मापक के द्वारा भूकंप प्रबलता
को बारह वर्गों मे विभाजित किया जाता है। इन बारह प्रकारों को रोम संख्या
मानव-अनुभव I से XII द्वारा प्रदर्शित
किया जाता है
मरसेली का परिवर्तित मापक
भूकंप की प्रबलता | हानि का वर्णन |
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I | भूकंप महसून न होन, भूकंप का मामूूली प्रभाव |
II | आराम करते हुये आदमी (मानव) को इस भूकंप को महसूस करते हैं, जो मकान की ऊपरी मंजिल में आराम कर रहे या सो रहे हों। |
III | मकान में बैठे व्यक्ति भूकंप महससू कर सकते हैं, बिजली के पंखे तथा लटकने वाले झाड़ फानूस हिलने लगते हैं। |
IV | लटकने वाली वस्तुएं हिलने लगती है, सड़क पर चलने वाले ट्रक को दहल तथा कंपन जैसा अनुभव होता है। खड़ी कार, दरवाजे खिड़कियां हिलने लगती हैं बर्तन आपस में टकराने, दजवाजे खिड़कियां में लगे शीशे चटखने लगते हैं। |
V | भूकंप मकान के बाहर भी महसूस किया जाता है सोये हुय आदमी जाग जाते है। तरल पदार्थों में हलचल हो जाती है। दरवाजों के किवाड़ हिल कर खुलने बंद होने लगते हैं। दीवार पर लगी घड़ी का लटकना हिलना बंद हो जाता है। या उसकी गति परिवर्तित हो जाती है। |
VI | इस भूकंप को सभी व्यक्ति महसूस करते हैं। चलते व्यक्तियों का संतुलन बिगड़ने लगता है, बर्तन, प्लेटें, ग्लास इत्यादि टूटने लगते हैं। वृक्षों की शाखाएं तेजी से हिलने लगती हैं। |
VII | खड़ा होना एवं संतुलन बनाए रखना कठिन होता है। इमारतों में दरारे पड़ने लगती हैं। तालाबों में लहर जैसे उठने लगती है। |
VIII | कार चलाना कठिन होता है। सभी प्रकार की इमारतों एंव घरों को हानि होती है। पुरानी इमारते गिरने लगती है। धरती में दरारे पड़ने लगती है। आर्द्र भूमि तथा ढलानो में दरारें पड़ जाती हैं। |
IX | जनता में भय तथा आंतक फैल जाता है। जलाश्यों में दरार बन जाती है। सभी प्रकार की इमारतों को हानि पहुंचती है। |
X | अधिकतर मकान टूटकर ढेर हो जाते हैं कुछ मजबूत इमारतें एवं पुल आदि भी टूट जाते हैं। बांध इत्यादि को भारी नुकसान होता है। बड़े पैमाने पर भूस्खलन होते है। भूमिगत पाइप फट जाते हैं। रेल पटरियां मुड़ जाती है। |
XI | रेल की पटरियों में भारी मोड़ पड़ जाते हैं। भूमिगत जल इत्यादि के पाइप बेकार हो जाते हैं। |
XII | संपूर्ण तबाही । बड़ी चट्टाने खिसक जाती है। बहुत वस्तुएँवायु में उछल जाती हैं । भारी जान व माल का नुकासान होता है। |
भूकंपो की उत्पत्ति के कारण Causes of Earthquake
भूकंपो की उत्पत्ति के प्रमुख कारण निम्न हैं-
ज्वालामुखी का उदगार
भूकंप उत्पत्ति का प्रमुख कारण ज्वालामुखियों
का उद्गार है। अंतर्जात बल के कारण भू-पटल की पर्तें एवं चट्टाने ऊपर उठती हैं, उनमें वलन एवं भ्रंश पड़ते हैं। जो
भूकंपों की उत्पति का कारण बनते हैं।
भ्रंश तथा परतों का टूटना
अंतर्रात बल यदि विपरीत दिशा में तनाव पैदा
करते हैं तो एक सीमा के पश्चात उनमें भ्रंश पड़ जाते हैं, चट्टानें टूट जाती हैं जिसके
परिणामस्वरूप भूपटल में कंपन उत्पन्न होता है जो भूकंप का कारण बनते हैं।
कैलिफोर्निया का सेन एण्डरियास भ्रंश इस प्रकार का एक उत्तम उदाहरण है। भारत के
गुजरात राज्य में भुज-भ्रंश जिसका अल्लाह बंध कहते हैं, भूकंप का ही परिणाम है।
प्लेट टेक्टोनिक
पृथ्वी का भूपटल बहुत सी बड़ी और छोटी प्लेटों
का बना हुआ है। यह प्लेटें या तो एक दूसरे के निकट आती हैं या एक दूसरे से दूर
जाती हैं अर्थात् प्लेटों में विस्थापन होता रहता है। जब भी इन प्लेटों में
विस्थापन होता है तो भूकंप आते हैं।
मानवीय कारक
मानव द्वारा प्रकृति, भू-आकृतियों से अधिक छेड़-छाड़ करने से
भी भूकंप उत्पन्न होते हैं। मानव ने बहुत से स्थानों पर नदियों पर भारी
बहुउद्देशीय बाँध बनाए हैं। इन बाँधों के जलाश्य बहुत बड़े तथा गहरे हैं जिनमें जल
की भारी मात्रा का संचय है। भारी मात्रा के जल के भार से भूपटल के समस्थिति पर
प्रभाव पड़ता है जिसके कारण भूूूकंप आते हैं। भारत में वर्ष 1967 में कोयना भूकंप तथा 1993 में लातूर (उस्मानाबाद, महाराष्ट्र) के भूकंप मानव द्वारा
निर्मित बाँधो का परिणाम माने जाते हैं।
भूकंपो का भौगोलिक वितरण-
अधिकतर ज्वालामुखी प्रशंत महाागर के अग्निवृत्त
में रिकार्ड किये जाते हंै। इस अग्नि-वृत्त में ज्वालामुखियों के उदगार भी अधिक
हैं।
जापान का टोहोकू- फुकुशिमा भूकंप
जापान का टोहोकू महाआपदा के रूप में 11 मार्च 2011 को आया था। रिएक्टर मापक पर इस भूकंप की तीव्रता 9 मापी गई थी। टोहोकू भूकंप के फलस्वरूप
भारी सुनामी उत्पन्न हुई थी, जिसकी लहरें पाॅच मीटर से अधिक ऊँची
थी। फूकिशिमा न्यूक्लियर पाव प्लांट को भारी क्षति पहुँची तथा विकिरण से बहुत से बड़े प्रभावित क्षेत्र की
जनसंख्या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। जापान का यहा सबसे बड़ा रिकार्ड भूकंप माना जाता
है। सोवियत संघ कमी चरनोबिल दुर्घटना के पख्यात फुकुशिमा विश्व की दूसरी सबसे बड़ी
नाभिकीय दुर्घटना माना जाती है।
विश्व में भारी तबाही मचाने वाले भूकंप
- मेशिना (इटली) वर्ष 1909
- कांसू (चीन) 1920
- सगामी खाड़ी (जापान) 1923
- टोेक्यो (जापान) 1932
- टांगशान (जापान) 1976
- सुमात्रा (इंडोनेशिया) 2004
- टोहोकू (जापान) 2011
भारत में भूकंप Earthquake in India
भारत में अधिकतर भूकंप हिमालय पर्वत श्रेणी, गुजरात, उत्तरी भारत के मैदान तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समुह में आते
हैं। भारत के उत्तरी भागों में फैले हिमालय पर्वत माला में भारी भूकंपीय हलचल होती
रहती है। वर्ष 1819 में सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) तथा 1934 में बिहार के भूकंप को फोकस उत्तरी
भारत के मैदान में था।
भारत के प्रायद्वीप के बारे में अवधारणा थी कि
इसमें भूकंप नहीं आते अथ्वा यह भूकंपमुक्त प्रदेश है, परंतु वर्ष 1967 मे कोयना भूकंप तथा वर्ष 1993 के लातूर भूकंप ने सिद्ध कर दिया कि
भारतीय प्रायद्वीप में कई छोटी प्लेटें हैं और यह प्लेटे जब अपने स्थान से खिसकती
हैं तो भूकंप प्रायद्वीप में भी आते हैं।
गुजरात के कच्छ क्षेत्र में 26 जनवरी 2001 को भारी तीव्रता का भूंकप आया था, जिसका अभिकेन्द्र भूज के पास था इस भूकंप की तीव्रता रिएक्टर मापक पर
8.1 थी। इस भूकंप के कारण तीस हजार लोगों
की जान गई थी और 20 लाख जनसंख्या प्रभावित हुई थी।
भूकंप विशेषज्ञों के अनुसार 2001 का भूकंप 1819 के भूकंप के अनुकेंद्र पर आया था जो
अल्लाह बंध भं्रश के खिसकने के कारण उत्पन्न हुआ था। अल्लाह बंध भं्रश की उत्पत्ति
1819 के भूकंप के कारण हुई थी। भारतीय
प्रायद्वीप 5 सेमी प्रति वर्ष की दर से हिमालय की
ओर खिसक रहा है।
भारत के भकंपीय प्रदेश Seismic Zone of India
सामान्यतः भारत का अधिकतर क्षेत्र भूकंप से
प्रभावित क्षेत्र में आता है। भूकंप तीव्रता के आधार पर भारत को निम्न भूकंपीय
प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है
जोन 1- कम हानि वाले प्रदेश
भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश,
प. मध्यप्रदेश
तथा अरावली क्षेत्र में भूकंप या तो आते नहीं या तीव्रता बहुत कम होती हे, जिससे जान-माल की हानि नहीं होती है।
जोन 2- कम अथवा मामूली हानि के प्रदेश
इस क्षेत्र में छोटा नागपुर का पठार, पूर्वी मध्यप्रदेश, पूर्वी आंध्रप्रदेश, द. पश्चिमी राजस्थान तथा दक्कन लावा
पठार सम्मिलत हैं। उपरोक्त प्रदेशों में कमजोर तीव्रता के भूकंप आते हैं।
जोन 3- औसत तीव्रता कम हानि वाले भूकंपीय प्रदेश
भूकंपो से औसत दर्जे की हानि वाले प्रदेशों में
भारतीय प्रायद्वीप के प्रदेश सम्मिलत हैं। महाराष्ट्र का कोयना (1967) लातूर (1993) तथा जबलपुर (1997)
के भूकंप इस जोन
में आते थे।
जोन 4- भारी हानि के प्रदेश
हिमालय पर्वत श्रेणी के दक्षिण में स्थित भारी
नुकसान वाली भूकंपीय पेटी फैली हुई है। इस अधिक सघन जनसंख्या वाले प्रदेश मे भूकंप
आने पर जान-माल की भारी हानि होती है
जोन 5- बरबादी का प्रदेश
अत्याधिक बराबादी वाले प्रदेश हिमालय पर्वतों
में स्थित जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरी पूर्वी राज्य (अरूणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम तथा प. बंगाल का उत्तरी भाग
एवं उत्त्री पूर्वी बिहार) सम्मिलत हैं। गुजरात में रन-कच्छ तथा अंडमान निकोबार
द्वीप समूह इसी वर्ग में सम्मिलित हैं।
वास्तव में जब भारतीय प्लेट उत्तर भारत की ओर खिसकती है तो इस पेटी में
भारी तीव्रता के भूकंप आते हैं।
भारत में आये भूकंप
- कांगडा 1 अप्रैल 1905 में 8.6 तीव्रता का भूकंप आया जिसमें 20 हजार लोगों की मौत हो गई।
- बिहार नेपाल सीमा 5 जनवरी 1934 को 8.4 तीव्रत के इस भूकंप में 10700 लोगों की मौत हो गई।
- कोयना (महाराष्ट्र) 11 दिसंबर 1967 में 6.5 तीव्रता के इस भूकंप से 1000 लोगो की मृ
- त्यु हो गईं
- लातूर महाराष्ट्र 30 सितंबर 1993 को 6.3 तीव्रता के इस भूकंप से 11 हजार लोगों की मौत हो गई।
- भुज गुजरात 26 जनवरी 2001 को 8.1 तीव्रता के इस भूकंप से 30 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।
- मानगन (सिक्कम) 18 सितंबर 2011 को 6.8 तीव्रता के इस भूकंप से 100 अधिक लोगों की मौत हो गई थी एवं एक लाख से अधिक लोग बेघर हो गये थे।
भूकंपो के संबंध में भविष्यवाणी Earthquake prediction
भूकंपो के बारे में विश्वसनीय भविष्यवाणी करना
अभी तक संभव नहीं हो सका है। भूकंपो के विशेषज्ञ इस दिशा में विशेष प्रयास कर रहे
हैं। भूकंप भविष्यवाणी करने के लिए प्रत्येक प्लेट की सीमा का अध्ययनप किया जा रहा
है। इसप्रकार की जानकारी तथा आंकड़ो की सहायता से भविष्यवाणी करने में सहायता मिल
सकती है। ऐसे क्षेत्र जहां बहुत समय से भूकंप नहीं आये सीसमिक गैप कहलाते हैं। ऐसे
क्षेत्रों के भूपटल के निचले भागों में ऊर्जा एकत्रित होती रहती है और जब अधिक
ऊर्जा एकत्रित हो जाती है तो भूकंप की संभावना बढ़ जाती है।
भूकंप आपदाओं का प्रबंध एवं समाघात Strategy to Combat Earthquake
भूकंप अचानक आते हैं। यह अंतर्जात बलों का
परिणाम होते हैं जिनके बारे मे विश्वसनीय भविष्यवाणी करना अभी तक लगभग असंभव हैं
अन्य प्राकृतिक आपदा की भांति भूकंपो से जान-माल की भारी हानि होती है। भूकंपो से
रेलमार्ग , सड़कों पुलों तथा संचार तंत्र को भारी
नुकसान पहुंचता है। चूंकि भूकंपो को रोकना मानव के लिये विशेष उपयों पर बल देने की
आवश्यकता है। इस दिशा में निम्न उपाय भूकंप से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम
कर सकते हैं-
- भूकंप माने के संटर की देश के विभिनन भागों में स्थापना की जाए ताकि भूकंपो के बारे में लोगों में जागरूकता उत्पन्न हो सके।
- भूकंपो की तीव्रता के आधार पर भूकंप मानचित्र बनाए जाएं ताकि अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों का सीमांकन किया जा सके।
- मकानों, भवनों एवं इमारतों को भूकंपरोधी बनाया जायें बहुमंजिली इमारतों पर रोक लगाई जाये।
- मकानों के निर्माण में हल्का, परंतु मजबूत सामान का इस्तेमाल किया जाये।
- भूपटल में पाये जाने वाला हाॅट-स्पाॅट का गूढ़ अध्ययन किया जाये। इनकी भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं के लिए टोमोग्राफी का उपयोग किया जाये।
- भूकंप-आपदासे निपटने के लिए उपयुक्त तैयारी करना।
- बचाव कार्य सर्तता के साथ करना।
- भूकंप आने पर सहायता कार्य तेजी से करना।
- प्रभावित जनपसंख्या को मानसिक, सामाजिक एवं वित्तीय सहायता पहुँचाने से तेजी लाना।
- प्रभावित लोगों के पुनर्वास का प्रबंधन करना।
- भूमिगत जल को घनी आबादी के क्षेत्रों में घुसने से रोकना।
- बड़े बाँध तथा बहुउद्देशीय योजनाओं के बजाय छोटे बाँध बनाना।
- भूकंप आने पर पैनिक होने की आवश्यकता नहीं है। धैर्य रखें तथा विवेक से काम लें। मेज के नीचे शरण लीए। शीशे लगी खिड़कियों से दूर रहिए, मोमबत्ती न जलायें, यदि आप कार में यात्रा कर रहे है तो वाहन को रोक दीजिए। बिजली के तारों से दूर रहें तथा किसी ऐसी धातु की वस्तु को हाथ न लगाएं जिसका संपर्क बिजली के तारों से हो।
- भूकंप के दौरान यदि कहीं पर आग हो तो उसकों बुझा दें और आप न बुझा सकें तो दमकल को बुलायें।
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