स्वतंत्रता के पश्चात देश के अंदर एकीकरण और पुनर्गठन |Bharat me rajyo ka punargathan
भारत में देशी राज्यों का विलय
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारतीय राज्य क्षेत्र दो वर्गों में विभक्त था- ब्रिटिश भारत और देशी रियासतें।
ब्रिटिश भारत में 9 प्रांत थे, जबकि देशी रियासतों की संख्या 600 थी, जिनमें 542 रियासतों को छोड़कर शेष पाकिस्तान राज्य में शामिल हो गई।
542 रियासतों में से तीन रियासतों- जूनागढ़, हैदराबाद तथा जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय कराने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
जूनागढ़ रियासत को जनमत संग्रह के आधार पर तब भारत में मिलाया गया, जब उसका शासक पाकिस्तान चला गया।
हैदराबाद की रियासत को सैन्य कार्यवाही करके भारत में सम्मिलित किया गया
जम्मू-कश्मीर रियासत के शासक ने पाकिस्तानी कबायलियों के आक्रमण के कारण विलय-पत्र पर हस्ताक्षर करके अपनी रियासत की भारत में मिलाया।
देशी रियासतों का भारत में विलय तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की दूरदर्शिता और साहसपूर्ण कूटनीतिक प्रयासों के कारण संभव हो पाया।
भारत में राज्यों की चार श्रेणियां
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत ब्रिटिश प्रांतों एवं देशी रियासतों को एकीकृत करके भारत में राज्यों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया, जो निम्नलिखित हैं:
‘ए’ श्रेणी के राज्य
ब्रिटिश भारत के प्रांतों के साथ 216 देशी रियासतों की सम्मिलित करके ‘ए’ श्रेणी के राज्यों का गठन किया गया। ये राज्य थे-असम, बिहार, बंबई, मध्य प्रदेश, मद्रास, ओडीशा, पंजाब, संयुक्त प्रांत, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश। इनकी संख्या 10 थी।
‘बी’ श्रेणी के राज्य
275 देशी रियासतों की नयी प्रशासनिक इकाई में गठित करके ‘बी’ राज्य की श्रेणी प्रदान की गयी। ये राज्य थे- हैदराबाद, जम्मू-कश्मीर, मध्य भारत, मैसूर, पेप्सू (पटियाला और पूर्वी पंजाब के राज्यों का संघ), राजस्थान, सौराष्ट्र तथा त्रावणकोर-कोचीन। इनकी संख्या 8 थी।
‘सी’ श्रेणी के राज्य
61 देशी रियासतों को एकीकृत करके ‘सी’ राज्य की श्रेणी में रखा गया। ये राज्य थे- अजमेर, बिलासपुर, भोपाल, दुर्ग, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कच्छ, मणिपुर, त्रिपुरा और विंध्य प्रदेश के राज्य। इनकी संख्या 10 थी।
‘डी’ श्रेणी के राज्य
अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह को ‘डी’ राज्य की श्रेणी में रखा गया था।
धर आयोग और JVP समिति
राज्य पुनर्गठन आयोग
संविधान के द्वारा राज्यों का श्रेणियों में विभाजन तात्कालिक उपयोगिता के आधार पर किया गया था। प्रायः सभी इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे। जब केंद्रीय सरकार ने मद्रास राज्य की तेलुगू भाषी जनता के अनुरोध पर 1952 में आंध्र को अलग राज्य बना देने का निर्णय किया तो स्थिति में आकस्मिक परिवर्तन आ गया। 1 अक्टूबर, 1953 में आंध्र प्रदेश राज्य की स्थापना के पश्चात्, भाषा के आधार पर नए राज्यों के पुनर्गठन की मांग भड़क उठी। जब इस समस्या की असंभव हो गया तो इस समस्या के शांतिपूर्ण निदान के लिए 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग की नियुक्ति की गई।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश फजल अली इस आयोग के अध्यक्ष और पंडित एच.एन. कुंजरू और सरदार के.एम. पाणिक्कर इसके सदस्य थे। 22 दिसंबर, 1953 को फजल अली की अध्यक्षता में गठित आयोग ने 30 सितंबर, 1955 में केंद्र सरकार की अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी और राज्यों के पुनर्गठन के संबंध में निम्न सिफारिशें कीं-
- राज्यों का पुनर्गठन भाषा और संस्कृति के आधार पर अनुचित है।
- राज्यों का पुनर्गठन राष्ट्रीय सुरक्षा, वितीय एवं प्रशासनिक आवश्यकता तथा पंचवर्षीय योजनाओं की सफलता को
ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।
- ए, बी, सी और डी वर्गों में विभाजित राज्यों को समाप्त कर दिया जाये तथा इनकी जगह पर सोलह राज्यों तथा तीन केंद्र शासित प्रदेशों का निर्माण किया जाए।
- संसद ने इस आयोग की सिफारिशों को कुछ परिवर्तनों के साथ स्वीकार कर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के अंतर्गत भारत में चौदह राज्य और पांच केंद्र शासित प्रदेश थे।
- जिन चौदह राज्यों का उल्लेख था, वे हैं- आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, बंबई, जम्मू-कश्मीर,केरल, मध्यप्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा (वर्तमान में ओडीशा), पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।
- जिन पांच केंद्रशासित प्रदेशों का नाम था, वे हैं- दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा एवं अंडमान-निकोबार द्वीप समूह।
भारत में भाषायी पुनर्गठन
इसके बाद भाषायी
आधार पर सीमाओं के पुनर्निर्धारण की मांग और अधिक उठने लगी, जिसके परिणामस्वरूप कई आंदोलन और हिंसक
घटनाएँ हुईं। प्रथम भाषायी राज्य का गठन पोट्टि श्रीरामुलु की मृत्यु के बाद 1953
में मद्रास से तेलुगु भाषी आंध्र प्रदेश को अलग करके किया गया था।
इसके बाद एक आयोग की स्थापना की गई और इसके आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया। इसके तहत 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया।
राज्यों के पुनर्गठन के चरण और योगदान करने वाले विभिन्न कारक:
आंध्र प्रदेश के गठन के बाद 1960 में बंबई
राज्य को दो राज्यों में विभाजित किया गया – महाराष्ट्र और गुजरात। यह विभाजन
भाषायी आधार पर किया गया था।
1963 में असम राज्य के जनजातीय क्षेत्रों को
मिलाकर नागालैंड राज्य का निर्माण किया गया। यह सांस्कृतिक विविधताओं के आधार पर
किया गया था और आदिवासियों की अनूठी संस्कृति को संरक्षित करने के उद्देश्य से
किया गया था।
1966 में पंजाब राज्य को भाषायी आधार पर
पुनर्गठित किया गया। पंजाबी भाषी क्षेत्रों का गठन पंजाब राज्य जबकि हिंदी भाषी
क्षेत्रों का गठन एक नए राज्य हरियाणा के रूप में किया गया तथा इसके पहाड़ी
क्षेत्रों को निकटवर्ती केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया।
मेघालय का गठन 1969 में किया गया। मणिपुर और
त्रिपुरा को 1972 में राज्य का दर्जा प्रदान किया गया। 1975 में सिक्किम को भारत
के 22वें राज्य के रूप में स्वीकार किया गया। मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और गोवा 1987 में राज्य
बने। पूर्वोत्तर राज्यों के इस पुनर्गठन में संस्कृतियों का संरक्षण तथा नृजातीयता
में अंतर प्रमुख कारक बने। प्रशासन में स्वायत्तता की मांग भी एक अन्य प्रमुख कारक
था।
वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड का निर्माण किया गया। 2014 में तेलंगाना का निर्माण हुआ। आधुनिक समय में राज्यों के पुनर्गठन में प्रशासनिक सहजता तथा क्षेत्रीय असमानता एक सुदृढ़ कारक के रूप में उभरे हैं।
यद्यपि, भारत में राज्यों के पुनर्गठन का कार्य अभी तक पूर्ण नहीं हुआ है और यह एक सतत प्रक्रिया है। वर्तमान में भारत में स्वायत्तता तथा राज्य का दर्जा प्राप्त करने के लिए कई मांगें उठ रही हैं और लंबे समय से संघर्ष चल रहे हैं। दार्जिलिंग के पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों द्वारा गोरखालैंड राज्य की मांग; बोडो छात्र संघ द्वारा बोडोलैंड राज्य की मांग; मेघालय राज्य से गारोलैंड राज्य की मांग और उत्तर प्रदेश राज्य को चार राज्यों, नामत: बुंदेलखंड, पूर्वांचल, पश्चिमांचल व अवध प्रदेश में विभाजित करने की माँग ज़ोर पकड़ रही है.
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