चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है।
खगोलशास्त्रियों, के अनुसार पृथ्वी और चन्द्रमा, दोनों का निर्माण अलग-अलग हुआ, लेकिन एक ही समय में हुआ, जो बाद में ठंडे होकर ग्रह और उपग्रह
बने। चंद्रमा से अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा लगाए गए चट्टानों और मिट्टी के नमूनों
से ज्ञात हुआ कि चंद्रमा भी उतना ही पुराना है जितनी पृथ्वी और यह लगभग 460 करोड़
वर्ष पूर्व बना था।
पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी 384,400
किमी. है।इसकी सतह का क्षेत्रफल 37940,000 वर्ग किमी. है। चंद्रमा की सतह पर
छोटे-बड़े असंख्य गड्ढे हैं। ये गडढे उल्कापिंडों के गिरने के कारण बने हैं।
चंद्रमा के पहाड़ ऊँचे हैं,
लेकिन उनकी चढ़ाइयां ढलवां है। वहां
चोटियां नहीं है, न ही सीधी खड़ी ढलानें हैं। चंद्रमा पर
न तो पानी है, न ही हवा, इसलिए वहां जीवन भी नहीं है। वहां दिन
एकाएक निकलता है और इसी प्रकार रात भी एकाएक होती है। हवा न होने के कारण वहां कोई
ध्वनि भी नहीं है।
चंद्रमा का गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण का 1/6 है।
यदि आप पृथ्वी पर एक मीटर उछलते हैं, तो
चंद्रमा की सतह पर 6.05 मीटर उछलेंगे। इसी प्रकार वजन पर भी प्रभाव पड़ता है।
चंद्रमा की सतह पर किसी भी वस्तु का भार छठा हिस्सा हो जाता है।
चंद्रमा का तापमान
दिन में 120° सेल्सियस और रात में घटकर
–160°
सेल्सियस हो जाता है।
20 जुलाई, 1969
को अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने चंद्रमा पर
पहुंचकर अनेक अध्ययन किए।
व्यास-
पृथ्वी के व्यास का लगभग एक चौथाई (3776 किमी.)।गुरूत्वाकर्षण
बल– पृथ्वी का 1/6 भाग।चन्द्रमा
की पृथ्वी के चारों और घूमने की अवधि 27 दिन, 7
घण्टे, 43 मिनट।चन्द्रमा
के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में लगाने वाला समय 3 सेकण्ड।
चंद्रमा का अपना प्रकाश नहीं
है। उस पर सूर्य की किरणे पड़ती हैं, इसलिए
हम उसे देख पाते हैं, चन्द्रमा सदा एक जैसा नहीं दिखता।
महीने भर के दौरान उसका आकार बदलता जाता है तब हमें बिलकुल नहीं दिखता। जब सूर्य
पृथ्वी की दूसरी ओर होता है तब हमे पूरा चांद दिखता है।
चन्द्रमा पर सबसे बड़े गडढ़े का व्यास 232
किमी. है जिसकी गहराई 365.7 मीटर है। इससे एकत्रित की गई चट्टानों में एल्युमिनियम, लोहा, मैग्नीशियम आदि है। यहां सिलीकेट्स भी है।
चंद्रमा का व्यास 3476 किमी. है। चंद्रमा, पृथ्वी की तुना में 81.3 गुना भारी है
और चंद्रमा से 49 गुना आयतन में बड़ा है।
पृथ्वी और चंद्रमा
चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है तथा पृथ्वी की
परिक्रमा करता है। पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए वह स्वयं अपने अक्ष पर घूर्णन भी
करता है। चंद्रमा का अक्ष तल पृथ्वी के अक्ष तल के साथ 58.48 डिग्री का कोण बनाता है।
चन्द्रमा का अक्ष पृथ्वी के अक्ष के लगभग
समांतर है। चंद्रमा का व्यास 3480
कि.मी. तथा द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 1/81 है।
पृथ्वी के ही समान इसका परिक्रमण पथ भी
दीर्घवृत्ताकार है। चंद्रमा के अपने परिक्रमण पथ में पृथ्वी के निकटतम होने की
स्थिति को अपभू Perigee कहा जाता है। अतः पृथ्वी तथा चंद्रमा के बीच की दूरी में परिवर्तन
होता रहता है। उपभू Apogaee अवस्था में इनके बीच की दूरी 356000 किमी होती है। तथा अपभू की स्थिति में
यह दूरी लगभग 407000 किमी होती है।
चंद्रमा एक महीने की अवधि में पृथ्वी के चारों
ओर एक बार परिक्रमा करता है, इस
दृष्टिकोण से अपभू और उपभू मासिक परिस्थितियां हैं।
सूर्य के संदर्भ में चंद्रमा की परिक्रमा अवधि 29.53 दिन (29 दिन, 12 घंटे, 44 मिनट और 2.8 सैकेंड) होती है। इस समय को एक
साइनोडिक मास कहते हैं।
नक्षत्र समय के दृष्टिकोण से चंद्रमा लगभग 27 1/2 दिन (27.32 दिन या 27 दिन, 7 घंटे, 43 मिनट और 11.6 सैकेंड) में पुनः उसी स्थिति में होता
है। 27 1/2 दिन की यह अवधि नक्षत्र मास कहलाती
है। यह वही अवधि होती है जिससे चंद्रमा पृथ्वी की एक परिक्रमा पूर्ण करता है। इस
प्रकार सूर्य के संदर्भ में पृथ्वी की परिक्रमा करने में चंद्रमा को जो समय लगता
है वह नक्षत्र मास की अपेक्षा लंबा समय होता है। ऐसा होने का वास्तविक कारण पृथ्वी
द्वारा सूर्य की परिक्रमा किया जाना है। जिसके कारण चंद्रमा को सूर्य तथा पृथ्वी
के संदर्भ में अपनी पूर्व स्थिति प्राप्त करने के लिए अपेक्षाकृत अधिक दूरी तय
करनी पड़ती है।
पृथ्वी के समान चंद्रमा भी अपनी धूरी पर घूर्णन
करता है। अपने अक्ष पर एक चक्कर लगाने में उसे जो समय लगता है वह एक नक्षत मास के
समान होता है। चंद्रमा और पृथ्वी के बीच इन संबंधों के परिणामस्वरूप हम पृथ्वी से
हमेशा चंद्रमा का एक ही भाग को देखते हैं।
पृथ्वी से चंद्रमा का संपूर्ण तल नहीं
देखा जा सकता। इसका केवल 59 प्रतिशत (चंद्रमा के कुल तल भाग का)
भाग ही पृथ्वी से दिखाई देता है तथा शेष 41
प्रतिशत भाग कभी नहीं देख पाते। वास्तविक रूप में किसी एक समय हम चंद्रमा का केवल 50 प्रतिशत भाग ही देखते हैं तथा 9 प्रतिशत भाग समय-समय पर दृश्यमान होता
है जब चंद्रमा के प्रकाशित भाग की स्थिति में परिवर्तन होता है।
चंद्रग्रहण
जिस तरह से पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करता है
उसी तरह चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है। इन परिक्रमाओं के परिणामस्वरूप
पृथ्वी को भी चंद्रमा तथा सूर्य के बीच से गुजरना पड़ता है जिस कारण चंद्र ग्रहण
होता है। चंद्र ग्रहण तब होता है, जब
सूर्य तथा चंद्रमा पृथ्वी के दोनों ओर परस्पर विपरीत दिशा में होते हैं। इस स्थिति
में चंद्रमा, पृथ्वी की छाया पड़ने के कारण अंधकारमय
हो जाता है। इसलिए चंद्रग्रहण पूर्णमासी के दिन होता है। यदि सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति पूर्णतया
एक सीधी रेखा तथा एक ही तल में नही होती है तो चंद्रग्रहण पूर्ण ग्रहण न होकर
आंशिक रह जाता हैं पूर्ण ग्रहण के लिए आवश्यक है कि सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा न केवल एक सीधी रेखा
में हो बल्कि एक ही तल पर भी हों। यही कारण है कि प्रत्येक अमावस्या तथा पूर्णमासी
को ग्रहण नहीं होते ।
चंद्रग्रहण भी पूर्ण या आंशिक रूप से हो सकता
है। जब चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की छाया में ढक जाता है तो पूर्ण चंद्र ग्रहण
होता हैं इसके विपरीत जब यह पृथ्वी की छाया से पूर्णतया ढका नहीं होता है तो ग्रहण
केवल आंशिक होता है और चंद्रमा का कुछ भाग दिखाई देता रहता है।
सामान्यतया एक वर्ष में पांच सूर्यग्रहण और तीन
चंद्रग्रहण होते हैं। परंतु किसी स्थान विशेष से एक निश्चित समय अवधि में
चंद्रग्रहण अधिक दिखाई पडेंगे। इसका कारण है कि जहां चंद्र ग्रहण संपूर्ण
गोलार्द्ध में दिखाई पड़ता है वहीं सूर्य ग्रहण केवल विश्व के एक भाग में ही दिखाई
देता है। पूर्णतया एक जैसा ग्रहण 18
वर्षों के अंतराल के बाद दिखाई पड़ते हैं। इस अवधि को Saros सॉरोस अवधि कहते हैं। इस समय
अवधि में पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा अपनी उसी पारस्परिक
परिस्थिति में पुनः वापस आ जाते हैं।
चंद्रकलाएं
जब सूर्य और चंद्रमा दोनों पृथ्वी के एक ही ओर
होते हैं तो इस स्थिति को चंद्रमास का आरंभ माना जाता है। चंद्रमा इस समय पृथ्वी
से नजर नहीं आता है और इस स्थिति को अमावस्या कहा जाता है। इस स्थिति के 3.75 दिन बाद चंद्रमा का केवल एक पतला भाग
दिखाई पड़ने लगता है। इस स्थिति को क्रिसेंट चंद्रमातथा अमावस्या से 7.5 दिन बाद की स्थिति को पहला चतुर्थक
कहते हैं। इस समय चंद्रमा आधा दिखाई पड़ता है।
अमावस्या के लगभग 11.25 दिन बाद 3/4 चंद्रमा प्रकट होता है इस स्थिति को को
Gibbous moon मून कहते हैं। जब चंद्रमा का संपूर्ण भाग पृथ्वी से दिखाई पड़ता है तो उसे
पूर्ण चंद्रमा कहते है और इस स्थिति को ‘पूर्णमासी‘ कहा जाता है। यह स्थिति अमावस्या के 14.75 दिन के पश्चात उत्पन्न होती है।
चंद्रमास के शेष दिनों में चंद्रमा की यही स्थितियां पुनः उलटे क्रम में दोहराई
जाती हैं। चंद्रमा के पुनः पूरी तरह अदृश्य हो जाने पर, लगभग 29 दिन की अवधि में एक चंद्रमास पूर्ण हो जाता है।अमावस्या से
पूर्णमासी तक की अवधि को शुक्ल पक्ष तथा पूर्णमासी से अमावस्या तक की अवधि को
कृष्ण पक्ष कहते हैं।
बढ़ता हुआ चांद – शुक्लपक्ष
घटता हुआ चांद – कृष्ण पक्ष
सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी की एक रेखीय स्थिति सिजिगी कहलाती है, जो दो तरह से होती है।
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