ऋतु परिवर्तन | दिन-रात के छोटे-बड़े होने के कारण
ऋतु परिवर्तन
- भूमध्य रेखा पर ही सदैव दिन-रात बराबर होते हैं, क्योंकि भूमध्य रेखा को प्रकाश-वृत्त हमेशा दो बराकर भागों में बांटता हैं।
- पृथ्वी अपने अक्ष पर 23(1/2)° झुकी होती है, और सदा एक ही ओर झुकी रहती है, इसलिए भूमध्य रेखा के अतिरिक्त उत्तरी व दक्षिणी गोलाई की सभी अक्षांश रेखाओं को प्रकाश वृत्त दो भागों में न बांटकर भिन्न-भिन्न ऋतुओं में असमान रूप से विभक्त करता है। परिणामस्वरूप भूमध्य रेखा के अतिरिक्त शेष भागों में दिन-रात की अवधि समान नहीं होती है।
दिन-रात के छोटे-बड़े होने के कारण
- पृथ्वी की वार्षिक गति का होना
- पृथ्वी का अक्ष का कक्ष तल सदा 66(1/2)° झुके होना
- पृथ्वी के अक्ष का सदा एक ही ओर झुके रहना
नोट: पृथ्वी का अक्ष इसके कक्षा-तल पर बने लम्ब
से 23(1/2)° का
कोण बनाता है।
- जब सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है। इस समय उत्तरी गोलाई में सूर्य की सबसे अधिक ऊंचाई होती है जिससे यहां दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं। इसलिए उत्तरी गोलाई में ग्रीष्म ऋतु होती है यह स्थिति 21 जून को घटित होती है तथा इन स्थिति को कर्क संक्रान्ति या ग्रीष्म अयनान्त कहते हैं।
- 22 दिसम्बर की स्थिति में दक्षिणी ध्रुव सूर्य के सम्मुख होता है और सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत् चमकता है जिससे यहां ग्रीष्म ऋतु होती है। इस स्थिति में मकर संक्रान्ति या शीत अयनान्त कहा जाता है। इस समय सूर्य तिरछा चमकता है, जिससे दिन छोटे व रातें बड़ी होती हैं और गर्मी कम होने से जाड़े की ऋतु होती है।
- 21 मार्च और 23 सितम्बर की स्थितियों में सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् चमकता है। इस समय समस्त अक्षांश रेखाओं का आधा भाग प्रकाश में रहता है। जिससे सर्वत्र दिन-रात बराबर होते हैं, दोनों गोलार्द्धों में दिन रात और ऋतु की समानता रहने से इन दोनों स्थितियों को विषुव अथवा समरात दिन कहा जाता है। 21 मार्च वाली स्थिति बसंत स्थिति को शरद विषुव अवस्था कहा जाता है।
ऋतु परिवर्तन के कारण
- पृथ्वी के अक्ष का झुकाव।
- पृथ्वी के अक्ष का सदैव एक ही ओर झुके रहना।
- पृथ्वी की परिक्रमण या वार्षिक गति का होना।
- इन तीनों के परिणाम स्वरूप दिन-रात का छोटा बड़ा होते रहना।
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