पृथ्वी की उत्पत्ति की परिकल्पनाएँ |Hypotheses of the origin of the earth
पृथ्वी की उत्पत्ति की परिकल्पनाएँ
कास्ते द बफन की परिकल्पना
पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में संभवतः
सर्वप्रथम तर्कपूर्ण परिकल्पना का प्रतिपादन फ्रांसीसी वैज्ञानिक ‘कास्ते द बफन‘ ने 1749 में किया था। उसके अनुसार बहुत समय पूर्व एक विशाल पुच्छलतारा सूर्य
के समीप होकर गुजरा जिससे दोनों में टक्कर हुई, टक्कर के फलस्वरूप जो पदार्थ निकला उसका बड़ा भाग ग्रह और छोटे-छोटे
भाग उपग्रह और अवान्तर ग्रह बने। इस सिद्धांत का समर्थन लाप्लास, रॉस तथा लाकियर ने किया।
इमैनुअल काण्ट परिकल्पना
1755 में जर्मन के प्रसिद्ध दार्शनिक इमैनुअल काण्ट ने न्यूटन के
गुरूत्वाकर्षण के नियमों के आधार पर ‘वायव्य राशि परिकल्पना‘ का प्रतिपादन किया। काण्ट के अनुसार ब्रम्हाण्ड में अलौकिक रीति से
उत्पन्न आद्य पदार्थ
ृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृके कठोर
कण व्याप्त थे। ये पदार्थ शीतल , कठोर
व गतिहीन थे। कालांतर में ये आद्यकण पारस्परिक गुरूत्वाकर्षण के कारण एक-दूसरे से
टकराने लगे, टकराने से ताप, ताप से गति उत्पन्न हुई। ताप के कारण
इन पदार्थों ने वायव्य राशि का रूप धारण कर लिया। इन पदार्थों ने आपस में मिलकर
निहारिका का रूप ग्रहण कर लिया। निहारिका के परिभ्रमण वेग में वृद्धि होने से
अपकेन्द्र बल भी बढ़ने लगा जिससे उसके मध्यवर्ती भाग में उभार पैदा हुआ और अंत में
उभार के पदार्थ वलय के रूप में निहारिका से पृथक् हो गए इस प्रकार 9 वलय निहारिका से पृथक हो गए जो ग्रह
कहलाए। इन्हीं ग्रहो से उपग्रह बने, काण्ट की इस परिकल्पना में कोणीय आवेग की स्थिरता के सिद्धांत के
अनुसार आकार बढ़ता है तो गति घटती है और गति बढ़ती है तो आकार घटता है, अतः वह मूल आधार ही भ्रामक है जिसने
काण्ट की परिकल्पना को गलत सिद्ध कर दिया।
लाप्लास की परिकल्पना
सन् 1796 में फ्रांस के ज्योतिषी लाप्लास ने सौरमण्डल की उत्पत्ति एक
निहारिका से बताई जो एक वायव्य महापिण्ड था और आकाश में बड़ी तीव्रता से चक्कर लगा
रहा था। आकाश में इस वायव्य पिण्ड के तेजी से घूमने के कारण विकिरण द्वारा इसका
ऊपरी भाग ठंडा होने लगा। ठंडा होने से इसका ऊपरी भाग घनीभूत होकर सिकुड़ने लगा, ऊपरी भाग के सिकुड़ने से वायव्य पिण्ड
की परिभ्रमण गति और तीव्र हो गई। परिणामस्वरूप निहारिका में विषुवत रेखा के निकट
एकत्रित पदार्थ भारहीन हो गया और उसके बाद भारहीन होकर पट्टियों के रूप में पृथक
होता गया। इस प्रकार निहारिका के विषुवतरेखीय भाग में अनेक वलयों की एक विशाल चपटी
तश्तरी की रचना हुई। तश्तरी के रूप में समस्त गैसमय पदार्थ चक्कर लगाता रहा।
धीरे-धीरे पदार्थ के घनीभूत होने से तश्तरी के वलयों के बीच की दूरी बढ़ती गयी और
उनका गैसमय पदार्थ अलग-अलग वलयों के रूप में घनीभूत हो गया और वे ग्रह बन गए
निहारिका का अवशिष्ट भाग सूर्य है।
लाकयर परिकल्पना
ब्रिटिश वैज्ञानिक नार्मन लॉकयर के अनुसार
सौरमण्डल की उत्पत्ति छोटी-छोटी उल्काओं से हुई। लॉकयर के अनुसार अतीत मेें दो
विशालयकाय तारे आपस टकराए। इस टक्कर से तारे टूटकर छिन्न-भिनन हो गए और उनके आपसी
घर्षण से भीषण ताप, प्रकाश एवं वात की उत्पत्ति हुई। ताप
की भीषणता से उल्का के अधिकांश टुकड़े पिघलकर द्रव बन गए और कुछ वायव्य रूप में
परिणत होकर बादल की भॉति आकाश में छा गए। आकर्षण शक्ति के प्रभाव से एक बहुत बड़े
वायव्य महापिण्ड का आविर्भाव हुआ जो सर्पिल निहारिका कहलायी। इस निहारिका से एक-एक
करके नौ भाग अलग हुए जो सौरमण्डल के नौ ग्रह के रूप में हैं और जो केंद्रीय पिण्ड
सूर्य के चक्कर लगाते हैं। किसी कारण ये पिण्ड आपस में बाद में टकरा गए और उनके
खण्ड हो गए इनमें असली पिण्ड तो सूर्य बन गया और छोटे खण्ड ग्रह बन गए।
जेम्स जीन्स ज्वारीय परिकल्पना
सन् 1919 में जेम्स जीन्स ने ज्वारीय परिकल्पना का प्रतिपादन किया इस
परिकल्पना के अनुसार आदिकालीन सूर्य गैस का एक विशाल पिण्ड था। अतीत में एक
विशालकाय तारा घूमते-घूमते सूर्य के निकट से गुजरा इस तारे की आकर्षण शक्ति से
सूर्य में ज्वार उत्पन्न हुआ और ज्यों-ज्यों तारा सूर्य के निकट आया, ज्वार की ऊँचाई बढ़ती गई। जब तारा
सूर्य के बहुत पास आ गया तब सूर्य से उभरा हुआ ज्वारीय भाग एक लंबे सिगार के रूप
में पृथक् हो गया और तारे की ओर आकर्षित हुआ किन्तु तारे के दूर निकल जाने से उसकी
आकर्षण शक्ति क्षीण हो गई और वह सूर्य के पस ही रहा और उसी के चतुर्दिक चक्कर
लगाने लगा बाद में इस ज्वारीय पिंड से नौ टुकड़े बने और उनके कुछ छोटे टुकड़े
उपग्रह कहलाए। इनके अनुसार सूर्य एक गर्म तथा प्रकाशमय तारा है जिसकी आकर्षण शक्ति
अधिक है। सूर्य के पास कभी एक अन्य तारा, जो बहुत बड़ा था तथा आकर्षण शक्ति रखता था आ गया जिसके प्रभाव से
सूर्य में ज्वार-भाटे के समान लपटें उठीं और एक पिण्ड टूट कर अलग हो गया यह पिण्ड
सूर्य के प्रभाव से अलग नहीं हो सका। बाद में यह ठंडा होता गया और सिकुड़ने लगा।
इस परिवर्तन के कारण इस पिण्ड के नौ टुकड़े हो गए जो ग्रह बन गए ग्रहों से जो
टुकड़े टूटे वे उपग्रह बन गए।
महाविस्फोट सिद्धांत
महाविस्फोट सिद्धांत ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति की
व्याख्या करने वाला नवीनतम सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार 15 अरब वर्ष पूर्व कॉस्मिक पदार्थ
संपीडि़त अवस्था में मौजूद थे। इस संपीडि़त पिंड में विस्फोट के फल-स्वरूप आकाश
गंगाओं का निर्माण हुआ ये आकाश गंगाएं तारों में व तारे ग्रह के रूप में विखंडित
हो गये।
Also Read....
Post a Comment