खाद्य आयोग | राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम
राज्य खाद्य आयोग
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (एनएफएसए) में यह प्रावधान है कि
प्रत्येक राज्य सरकार इस अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी एवं समीक्षा के
प्रयोजनार्थ अधिसूचना द्वारा एक राज्य खाद्य आयोग का गठन करेगी।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (National Food Security Act)
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम एक ऐतिहासिक पहल है जिसके माध्यम से लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम,2013 दिनांक 10 सितम्बर,2013 को अधिसूचित किया गया ।
- खाद्य सुरक्षा अधिनियम का विशेष बल निर्धनों, महिलाओं एवं बच्चों की आवश्यकताएँ पूरी करने पर है।
- इस अधिनियम में शिकायत निवारण तंत्र की भी व्यवस्था है। अगर कोई लोकसेवक या अधिकृत व्यक्ति इसका अनुपालन नहीं करता है तो उसके विरुद्ध शिकायत पर सुनवाई का प्रावधान किया गया है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत गरीबों को 2 रुपए प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था की गई है।
- इस कानून के तहत व्यवस्था है कि लाभार्थियों को उनके लिये निर्धारित खाद्यान्न हर हाल में मिले, इसके लिये खाद्यान्न की आपूर्ति न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के नियम को जनवरी 2015 में लागू किया गया।
- इस अधिनियम के तहत समाज के अति निर्धन वर्ग के प्रत्येक परिवार को प्रत्येक माह अंत्योदय अन्न योजना में सब्सिडी दरों पर यानी तीन रुपए, दो रुपए, एक रुपए प्रति किलो चावल, गेहूँ और मोटा अनाज मिल रहा है।
भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI)
‘उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय’ के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के
अंतर्गत शामिल सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है।
- FCI एक सांविधिक निकाय है जिसे भारतीय खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत वर्ष 1965 में स्थापित किया गया।
- देश में भीषण अन्न संकट, विशेष रूप से गेहूँ के अभाव के चलते इस निकाय की स्थापना की गई थी।
- कृषकों के लिये लाभकारी मूल्य की सिफारिश करने हेतु वर्ष 1965 में ही कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs and Prices- CACP) का भी गठन किया गया।
- इसका मुख्य कार्य खाद्यान्न एवं अन्य खाद्य पदार्थों की खरीद, भंडारण, परिवहन, वितरण और बिक्री करना है।
कृषि लागत और मूल्य आयोग
(Commission on Agricultural Costs and Prices- CACP)
- कृषि लागत और मूल्य आयोग भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से संलग्न कार्यालय है। यह आयोग जनवरी 1965 में अस्तित्व में आया।
- आयोग का गठन कृषि उत्पादों के लिये संतुलित और एकीकृत मूल्य संरचना तैयार करने के उद्देश्य से किया गया है। कृषि लागत और मूल्य आयोग कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) के बारे में सलाह देता है।
- आयोग द्वारा 24 कृषि फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किये जाते हैं।
- इसके अतिरिक्त गन्ने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की जगह ‘उचित एवं लाभकारी मूल्य’ (Fair And Remunerative Price- FRP) की घोषणा की जाती है।
- गन्ना मूल्य निर्धारण के लिये अनुमोदन आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा किया जाता है।
- 7 अनाज (धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा और रागी),
- 5 दलहन (चना, अरहर, मूँग, उड़द, मसूर),
- 7 तिलहन (मूँगफली, तोरिया-सरसों, सोयाबीन, तिल, सूरजमुखी, कुसुम, नाइजर सीड)
- 4 वाणिज्यिक फसलें (खोपरा, गन्ना, कपास और कच्ची जूट) शामिल हैं।
FCI के उद्देश्य
- किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करना।
- प्रत्येक व्यक्ति के लिये हर समय खाद्यान्न की उपलब्धता, पहुँच और सामर्थ्य सुनिश्चित करने के लिये संकट प्रबंधन उन्मुख खाद्य सुरक्षा को एक स्थिर सुरक्षा प्रणाली में परिवर्तित करने में सहायता करना ताकि कोई भी, कहीं भी और कभी भी भूखा न रह जाए।
- खाद्यान्नों के कार्यात्मक बफर स्टॉक का संतोषजनक स्तर बनाकर राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) के माध्यम से संपूर्ण देश में खाद्यान्न का वितरण।
- किसानों के हितों की सुरक्षा के लिये प्रभावी मूल्य सहायता ऑपरेशन (Effective Price Support Operations)।
खाद्य सुरक्षा
खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and
Agriculture Organization- FAO) के अनुसार खाद्य सुरक्षा के मूलतः चार स्तंभ हैं:
- उपलब्धता (Availability): खाद्य हर समय और सभी स्थानों पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होना चाहिये।
- खरीद सामर्थ्य (Affordability): खाद्य सस्ता या खरीद के लिये वहन योग्य होना चाहिये, अर्थात् लोगों के पास खाद्य की खरीद के लिये आर्थिक पहुँच (पर्याप्त आय) मौजूद हो।
- अवशोषण (Absorption): खाद्य सुरक्षित और पौष्टिक होना चाहिये जिसे शरीर स्वस्थ जीवन के लिये अवशोषित कर सके।
- स्थिरता (Stability): खाद्य प्रणाली यथोचित रूप से स्थिर होनी चाहिये, क्योंकि खाद्य प्रणालियों में उच्च अस्थिरता न केवल गरीबों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है बल्कि राजनीतिक और सामाजिक प्रणालियों की स्थिरता को भी खतरे में डालती है।
FCI द्वारा कार्यान्वित प्रमुख गतिविधियाँ
खरीद (Procurement)
- केंद्र सरकार FCI और राज्य एजेंसियों के माध्यम से गेहूँ, धान और मोटे अनाज की खरीद के लिये समर्थन मूल्य का निर्धारण करती है।
- सार्वजनिक खरीद एजेंसियाँ FCI द्वारा निर्धारित विनिर्देशों के अनुरूप सभी खाद्यान्नों की खरीद, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तथा प्रोत्साहन बोनस (यदि कोई घोषणा की गई हो) के साथ करती हैं।
- यह खरीद प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से की जाती है।
- 1997-98 में शुरू की गई विकेंद्रीकृत खरीद योजना (Decentralized Procurement Scheme- DCP) के तहत खाद्यान्नों की खरीद और वितरण का कार्य स्वयं राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
- अधिसूचित राज्य, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System- TPDS) और सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत खाद्यान्न की खरीद, भंडारण और निर्गमन करते हैं।
- खरीद की विकेंद्रीकृत प्रणाली को PDS की क्रय दक्षता बढ़ाने और गैर-पारंपरिक राज्यों में खरीद को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ पारगमन हानि तथा लागत को कम करने के लिये प्रस्तुत किया गया था।
- प्रत्येक खरीद मौसम की शुरुआत से पहले केंद्र सरकार गेहूँ, धान, चावल और मोटे अनाज की गुणवत्ता के लिये एक सार्वभौमिक विनिर्देश की घोषणा करती है।
- FCI का गुणवत्ता नियंत्रण प्रभाग (Quality Control Division) भारत सरकार के सार्वभौमिक गुणवत्ता विनिर्देशों के अनुरूप खरीद केंद्रों से खाद्यान्नों की खरीद सुनिश्चित करता है।
- दलहन और तिलहन की खरीद के लिये भी FCI को एक अतिरिक्त नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
- FCI खरीदे गए अनाज के माध्यम से TDPS की आवश्यकताओं को पूरा करता है, जिसे समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की मदद करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा निर्धारित केंद्रीय निर्गम मूल्य (Central Issue Price) पर जारी किया जाता है।
- FCI उचित मूल्य की दुकानों (Fair Price Shops) के माध्यम से वितरण के लिये अपने बेस डिपो से राज्य सरकार/राज्य एजेंसियों को खाद्यान्न वितरित करता है।
- TDPS और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से अत्यधिक रियायती कीमतों पर अनाज वितरित करने को प्रतिबद्ध राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के लागू होने के बाद FCI की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो गई है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)
- भारत में आवश्यक वस्तुओं का सार्वजनिक वितरण अंतर-युद्ध अवधि के दौरान भी अस्तित्व में था। लेकिन शहरी अभावग्रस्त क्षेत्रों में खाद्यान्न वितरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए PDS की शुरुआत 1960 के दशक के गंभीर खाद्य संकट के समय हुई।
- PDS ने खाद्यान्न की कीमतों में वृद्धि और शहरी उपभोक्ताओं तक खाद्य की पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। चूँकि हरित क्रांति के बाद राष्ट्रीय कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई अतः PDS के दायरे को 1970 और 1980 के दशक में आदिवासी प्रखंडों और अत्यंत निर्धनताग्रस्त क्षेत्रों की ओर भी बढ़ा दिया गया।
- PDS सहायक प्रकृति का है, इसलिये यह इसके अंतर्गत वितरित किसी पण्य/कमोडिटी की संपूर्ण आवश्यकता को किसी परिवार या समाज के किसी वर्ग तक उपलब्ध कराने का लक्ष्य नहीं रखता।
- PDS का संचालन केंद्र और राज्य सरकारों के संयुक्त उत्तरदायित्व के तहत होता है। केंद्र सरकार FCI के माध्यम से खाद्यान्न की खरीद, भंडारण, परिवहन तथा राज्य सरकारें इसके थोक आवंटन के उत्तरदायित्व का निर्वाह करती हैं।
- राज्य के भीतर आवंटन, लाभार्थी परिवारों की पहचान, राशन कार्ड जारी करना और उचित मूल्य की दुकानों के कामकाज की निगरानी सहित संचालन संबंधी उत्तरदायित्व राज्य सरकारों के पास है।
- PDS के अंतर्गत वर्तमान में गेहूँ, चावल, चीनी और केरोसिन जैसे पण्यों का आवंटन राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा किया जा रहा है। कुछ राज्य/केंद्रशासित प्रदेश दालों, खाद्य तेलों, आयोडीन युक्त नमक, मसालों आदि वृहत उपभोग की अतिरिक्त वस्तुओं का वितरण भी PDS दुकानों के माध्यम से करते हैं।
नवीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली
(Revamped Public Distribution
System- RPDS)
- PDS को सशक्त और सुव्यवस्थित करने के साथ-साथ पहाड़ी, दुर्गम और दूरस्थ क्षेत्रों में (जहाँ गरीबों का एक बड़ा तबका पाया जाता है) इसकी पहुँच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जून 1992 में नवीकृत/संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (RPDS) लागू की गई।
- इसमें 1775 प्रखंड (Blocks) शामिल किये गए जहाँ सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP), एकीकृत जनजातीय विकास परियोजनाएँ (ITDP), मरुस्थल विकास कार्यक्रम (DDP) जैसे विशिष्ट कार्यक्रम कार्यान्वित किये जा रहे थे। इसके साथ ही राज्य सरकारों के परामर्श से कुछ नामित पहाड़ी क्षेत्रों (Designated Hill Areas- DHA) को विशेष देख-रेख के लिये शामिल किया गया।
लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System)
- PDS प्रणाली की विफलता के बाद गरीबों को लाभ पहुँचाने और बजटीय खाद्य सब्सिडी को वांछित सीमा तक नियंत्रित रखने के उद्देश्य से 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TDPS) शुरू की गई।
- अवधारणात्मक रूप में सार्वभौमिक PDS से TDPS की ओर संक्रमण सही दिशा में उठाया गया कदम था, क्योंकि इसे सभी गरीब परिवारों को शामिल करने और उनके लिये इकाई सब्सिडी एवं राशन कोटा बढ़ाने के लिये डिज़ाइन किया गया था।
- TDPS का उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को PDS से अत्यधिक रियायती कीमतों पर और गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों को अपेक्षाकृत अधिक मूल्य पर खाद्यान्न प्रदान करना है।
- इस प्रकार भारत सरकार द्वारा अपनाई गई TDPS योजना भी PDS के समान ही है, लेकिन यह गरीबी रेखा से नीचे के लोगों पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है।
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