प्लेटो दार्शनिक विचारक का जीवन | Plato Athenian philosopher
प्लेटो का जीवन परिचय
जन्म -428-27 ई.पूर्व, एथेन्स
प्लेटो का वास्तविक नाम- अरिस्तोक्लीज
पिता - अरिस्तोन
माता -पेरिकतिओन
गुरू -सुकरात
- प्लेटो को समूचे पश्चिमी जगत के प्रथम राजनीतिक दार्शनिक माना जाता है, इनसे पूर्व पश्चिम में किसी ने भी राजनीतिक दर्शन का तर्कसंगत रूप से प्रतिपादन नहीं किया था।
- प्लेटो का राजनीतिक चिन्तन मानव कल्याण का अजर-अमर संदेश लिए हुए था।
- शैली के शब्दों में ''वह प्रथम सम्भवतः अन्तिम व्यक्ति थे, जिन्होने इस बात का प्रतिपादन किया कि राज्य पर सर्वाधिक धनवान, सर्वाधिक महत्वाकांक्षी या सर्वाधिक चालाक व्यक्तियों द्वारा नहीं वरन् सर्वाधिक बुद्धिमान व्यक्तियों द्वारा शासन किया जाना चाहिए।''
प्लेटो का प्रारम्भिक जीवन
- प्लेटो का जन्म 428-27 ई.पूर्व, एथेन्स में हुआ था, इनके पिता का नाम अरिस्तोन एवं माता का नाम पेरिकतिओन था।
- प्लेटो का वास्तविक नाम अरिस्तोक्लीज था, उनके कन्धे भरे हुए और चौड़े होने के कारण उनके व्यायाम शिक्षक ने उन्हे प्लातोन (platon) शब्द से बुलाना प्रारंभ किया, कालान्तर प्लातोन के स्थान पर प्लेटो शब्द का प्रयोग किया जाने लगा।
- युवावस्था से ही प्लेटो राजनीति में जाकर एक कुशल राजनेता बनने के सपने देखे थे, किन्तु वे राजनीतिज्ञ तो नहीं लेकिन एक महान राजनीतिक दार्शनिक बन गये।
- प्लेटो के जन्म के समय एथेन्स यूनान का सबसे महान नगर राज्य था, किन्तु स्पार्टा के साथ 30 सालों तक चले यु़द्ध के कारण इसकी दुर्गती प्रारंभ हुई
- 404 ई.पू में हुई क्रान्ति से एथेन्स में प्रजातन्त्र का पतन हो गया एवं इसके स्थान पर 30 व्यक्तियों की शासन प्रणाली का प्रारंभ हुआ, किन्तु तीस शासकों के क्रूर एवं हिंसक शासन व्यवस्था के कारण शीघ्र की द्वितीय क्रान्ति के द्वारा पुनः प्रजातंत्र की स्थापना हुई। किन्तु इस शासन व्यवस्था द्वारा सुकरात (Socrate) को मृत्युदण्ड दिये जाने के कारण प्लेटो का राजनीति से घृणा हो गई।
प्लेटो के जीवन पर प्रभाव
- 399 ई.पू. सुकरात को मृत्युदण्ड दिये जाने के बाद प्लेटो एथेन्स छोड़कर मेगरा चले गये उसके बाद उनके जीवन के 12 वर्ष का इतिहास अज्ञात है।
प्लेटो पर अपने गुरू सुकरात का अत्यधिक प्रभाव पड़ा, प्लेटो के स्वयं के शब्दों में - ''ईश्वर का धन्यवाद कि मैं यूनानी पैदा हुआ हुं, जंगली नहीं, स्वतंत्र व्यक्ति हुं दास नहीं, आदमी हुं औरत नहीं और इन सबमें महत्वपूर्ण यह है कि मैं सुकरात के यूग में पैदा हुआ''
- सुकरात के अतिरिक्त पाइथागोरस,पार्मिनीडिज, हिराक्लीटस का भी प्लेटो के जीवन में प्रभाव पड़ा।
- पाइथागोरस के सिद्धांतों का अध्ययन करने एवं दार्शनिकों की शासन व्यवस्था देखने के लिये प्लेटो ने इटली एवं सिसली का भ्रमण किया
- प्लेटो ने सिसली के राज्य सिराक्यूज का कई बार भ्रमण किया एवं इस राज्य से उन्हें कई कड़वे अनुभव भी प्राप्त हुए।
प्लूटो एवं सिसली के राज्य सिराक्यूज
- सिराक्यूज के प्रथम भ्रमण में प्लेटो की मुलाकात दियोन (Dion) नाम विद्वान एवं वहां के राजा दियोनिसियस प्रथम से हुई, उसकी प्रेरणा से उसने राजा को दार्शनिक शासक बनाने के लिये हांमी भर दी, किन्तु जब उसने रिब्लिक के सिद्धांतो का पाठ पढाते हुए दियोनिसियस के अन्याय और निरंकुश शासन की कड़ी आलोचना की तो दियोनिसियस उसकी शिक्षाओं से मुकरने लगा, साथ ही साथ राजा के दरबारियों ने उसे दियोन के विरूद्ध भी भड़का दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि दियोन जैसे विद्वान को राजा ने राज्य से बाहर निकाल दिया एवं प्लेटो को भी स्पार्टा के राजदूत को सौंप दिया।
- राजदूत ने प्लेटो को एजाइना(Aegina) के टापू में दास के रूप में बेच दिया वहां पर प्लेटो के एक पुराने मित्र अनीकैरिस ने उसे खरीद कर मुक्त कराया।
प्लेटो के द्वारा अकादमी प्रारम्भ करना
- एथेन्स के बाहर अकादिमस (Academicus) की वाटिका मोल ले ली और इसी जगह प्लेटो ने अपनी अकादमी खोली जिसमें उसने अपने जीवन के 40 वर्ष व्यतीत किये।
- प्लेटो की अकादमी में प्रवेश पाने के लिये गणित और ज्यामितीय का ज्ञान आवश्यक था अकादमी के प्रवेश द्वार पर लिखा था ''ज्यामितीय के ज्ञान के बिना यहां कोई प्रवेश करने का अधिकारी नहीं है।'' (''Let no man ignorant of geometry enter here.'') इस अकादमी में जनीति ज्ञान, तर्कशास्त्र, आचारशास्त्र, विधिशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, मानवशास्त्र आदि अनेक विषयों की शिक्षा दी जाती थी, इस अकादमी की ख्याती संसार के कोने कोने तक फैल् गई , अकादमी ने लगभग 900 वर्ष तक ज्ञान की किरणें फैलाईं, इस अकादमी को पश्चिमी दुनिया का प्रथम विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त है।
प्लेटो का सिराक्यूज द्वितीय भ्रमण 367 ई.पू
- प्लेटो द्वारा सिराक्यूज का द्वितीय भ्रमण 367 ई.पू में किया गया, जब दियोनिसियस द्वितीय सिराक्यूज की राजगददी पर बैठा, दियोन द्वारा प्रेरित करने पर वह दार्शनिक बनने हेतु शिक्षा लेने के लिये तैयार हो गया दियोन ने प्लेटो से सिराक्यूज आकर दियोनिसियस को दर्शन की शिक्षा देने हेतु विनती की उस वक्त प्लेटो की उम्र 60 वर्ष हो चुकी थी वे अपने पिछले अनुभव को ध्यान में रखकर वहां जाने के इच्छुक नहीं थे फिर भी वे वहां गये।
- प्रारंभ में प्लेटो ने राजा को मितिशास्त्र (Geometry) पढाना प्रारंभ किया जिसमें उन्हें कुछ सफलता प्राप्त हुई, किन्तु कुछ ही समय बाद राजा को प्लेटो की शिक्षा नीरस एवं बोझ प्रतीत होने लगीं, राजा के दरबारियों ने दियोन के प्रति राजा के मन में अनेक संकायें भर दीं, जिससे राजा ने दियोन को राज्य से निर्वासित कर दिया एवं उसकी सारी सम्पत्ती जप्त कर ली, इन दशाओें में प्लेटो ने एथेन्स लौटना ही उचित समझा । लौटते हुए तारैन्तम(Tarentam) के दार्शनिक शासक अर्खीतास से प्लेटो की मुलाकात हुई और उनकी मैत्री हो गई।
- इस घटना के 6 वर्ष बाद 362 ई.पू. में सिराक्यूज के राजा दियोनिसियस द्वितीय ने पुनः प्लेटो को अपने राज्य में आने हेतु आमंत्रित किया इस समय तक दियोन राज्य से निर्वासित था, प्लेटो सिराक्यूज जाने हेतु इच्छुक नहीं थे किन्तु दियोनिसियस द्वारा आश्वासन दिये जाने पर कि वह प्लेटो के उपदेशों का पालन करेगा एवं तारैन्तम के शासक की प्रेरणा से प्लेटो ने वहां जाना स्वीकार किया।
- प्लेटो द्वारा दियोनिसियस को दर्शनशास्त्र के अध्ययन की कठिनाईयां बताई एवं दियोन पर किये गये अत्याचार को दूर करने हेतु कहा, इसके परिणामस्वरूप दोनों में इतना वैमन्स बढ़ गया कि प्लेटो ने अपने आप को एक राजनैतिक बंदी की तरह पाया, अपने मित्र अर्खीतास (तारैन्तम के शासक) के हस्तक्षेप के बाद प्लेटो वहां से सकुशल निकल पाए एवं वापस एथेन्स चले गये।
- उपरोक्त असफलताओं ने प्लेटो की सम्पूर्ण आदर्शवादी चिन्तन श्रृंखला को तोड़ दिया, अब वह कल्पना के पंख उतार कर यथार्थ की भूमि पर चलने को विवश हो गया। युवावस्था में आदर्श शासक रूपी हाथी की पीठ पर बैठकर आदर्श राज्य के काल्पनिक लक्ष्य की ओर बढ़ने वाले प्लेटो ने वृद्धावस्था में कानून की लाठी का सहारा लिया।
प्लेटो के जीवन का अंतिम समय
- अपने जीवन के शेष समय को प्लेटो ने ग्रन्थ लाज (Laws) लिखने में व्यतीत किये।
- अपने शिष्यों के आग्रह पर वे एक बार किसी विवाह समारोह में गये, जहां शोरगुल से परेशान होकर वे सोने चले गये, प्रातःकाल जब उनके शिष्य उनका आशीर्वाद लेने उनके कमरे में गये तो उन्होने पाया कि उनके गुरू प्लेटो चिरनिद्रा में लीन हो चुके हैं, इस तरह एक महान दार्शनिक ने 81 वर्ष की आयु में इस संसार को अलविदा कहा।
प्लेटो की रचनाएं
प्लेटो
द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या 36 या 38 मानी जाती है, किन्तु इनमें प्रमाणिक ग्रन्थ केवल 28 हैं। इनमें से कुछ प्रमुख ग्रन्थ निम्न
हैं-
- अपॅालॅाजी (Apology)
- क्रीटो (Crito)
- यूथीफ्रो (Euthyphro)
- जोर्जियस(Gorgias)
- मीनो (Meno)
- प्रोटागोरस (Protagoras)
- सिंपोजियम (Symposium)
- फेडो (Phaedo)
- रिपब्लिक (Republic)
- सोफिस्ट (Sophiest)
- स्टेट्समैन (Stateman)
- लॅाज (Laws)
प्लेटो के प्रमुख
सिद्धांत
- प्लेटो का आदर्श राज्य।
- प्लेटो का न्याय सिद्धांत।
प्लेटो के साम्यवाद सम्बन्धि शिक्षा एवं सिद्धांत
- साम्यवाद का क्षेत्र।
- सम्मपत्ति संबधी साम्यवाद।
- परिवार या स्त्रियों का साम्यवाद।
- प्लेटो की शिक्षा योजना की रूपरेखा।
प्लेटो
के न्याय सिद्धांत को आदर्श राज्य की आधारशिला एवं शिक्षा तथा साम्यवादी व्यवस्था
को आदर्श राज्य के आधार स्तंभ माना जाता है।
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